Visheshan Hindi Grammar | Visheshan Hindi Grammar Trick | Visheshan | विशेषण हिंदी व्याकरण

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Visheshan Hindi Grammar | Visheshan Hindi Grammar Trick | Visheshan | विशेषण हिंदी व्याकरण


परिभाषा:

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते है। 


इसे हम ऐसे भी कह सकते है- जो किसी संज्ञा की विशेषता (गुण, धर्म आदि )बताये उसे विशेषण कहते है।


दूसरे शब्दों में- विशेषण एक ऐसा विकारी शब्द है, जो हर हालत में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।


जैसे- यह भूरी गाय है, आम खट्टे है।


उपयुक्त वाक्यों में 'भूरी' और 'खट्टे' शब्द गाय और आम (संज्ञा )की विशेषता बता रहे है। इसलिए ये शब्द विशेषण है।


इसका अर्थ यह है कि विशेषण रहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सिमित हो जाता है। जैसे- 'घोड़ा', संज्ञा से घोड़ा-जाति के सभी प्राणियों का बोध होता है, पर 'काला घोड़ा' कहने से केवल काले घोड़े का बोध होता है, सभी तरह के घोड़ों का नहीं।


यहाँ 'काला' विशेषण से 'घोड़ा' संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित (सिमित) हो गयी है। कुछ वैयाकरणों ने विशेषण को संज्ञा का एक उपभेद माना है; क्योंकि विशेषण भी वस्तु का परोक्ष नाम है। लेकिन, ऐसा मानना ठीक नहीं; क्योंकि विशेषण का उपयोग संज्ञा के बिना नहीं हो सकता।


विशेष्य- 

विशेषण शब्द जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, वे विशेष्य कहलाते हैं।


दूसरे शब्दों में-जिस शब्द की विशेषता प्रकट की जाये, उसे विशेष्य कहते है।


जैसे- उपयुक्त विशेषण के उदाहरणों में 'गाय' और 'आम' विशेष्य है क्योंकि इन्हीं की विशेषता बतायी गयी है।



प्रविशेषण- 

कभी-कभी विशेषणों के भी विशेषण बोले और लिखे जाते है। जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते है, वे प्रविशेषण कहलाते है।

जैसे- यह लड़की बहुत अच्छी है। 

मै पूर्ण स्वस्थ हूँ।


उपर्युक्त वाक्य में 'बहुत' 'पूर्ण' शब्द 'अच्छी' तथा 'स्वस्थ' (विशेषण )की विशेषता बता रहे है, इसलिए ये शब्द प्रविशेषण है।



विशेषण के प्रकार

विशेषण निम्नलिखित चार प्रकार होते है -


(1)गुणवाचक विशेषण (Adjective of Quality)

(2)संख्यावाचक विशेषण (Adjective of Number)

(3)परिमाणवाचक विशेषण (Adjective of Quantity)

(4)संकेतवाचक विशेषण (Demonstractive Adjective)



(1)गुणवाचक विशेषण :- 

वे विशेषण शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम शब्द (विशेष्य) के गुण-दोष, रूप-रंग, आकार, स्वाद, दशा, अवस्था, स्थान आदि की विशेषता प्रकट करते हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- गुण- वह एक अच्छा आदमी है।

रंग- काला टोपी, लाल रुमाल।

आकार- उसका चेहरा गोल है।

अवस्था- भूखे पेट भजन नहीं होता।



गुणवाचक विशेषण में विशेष्य के साथ कैसा/कैसी लगाकर प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त किया जाता है, जो विशेषण होता है।

विशेषणों में इनकी संख्या सबसे अधिक है। इनके कुछ मुख्य रूप इस प्रकार हैं।


गुण- भला, उचित, अच्छा, ईमानदार, सरल, विनम्र, बुद्धिमानी, सच्चा, दानी, न्यायी, सीधा, शान्त आदि।


दोष- बुरा, अनुचित, झूठा, क्रूर, कठोर, घमंडी, बेईमान, पापी, दुष्ट आदि।


रूप/रंग- लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरा, चमकीला, धुँधला, फीका।


आकार- गोल, चौकोर, सुडौल, समान, पीला, सुन्दर, नुकीला, लम्बा, चौड़ा, सीधा, तिरछा, बड़ा, छोटा, चपटा, ऊँचा, मोटा, पतला आदि।


स्वाद- मीठा, कड़वा, नमकीन, तीखा, खट्टा, सुगंधित आदि।


दशा/अवस्था- दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, गीला, सूखा, घना, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी, स्वस्थ, कमजोर, हल्का, बूढ़ा आदि।


स्थान- उजाड़, चौरस, भीतरी, बाहरी, उपरी, सतही, पूरबी, पछियाँ, दायाँ, बायाँ, स्थानीय, देशीय, क्षेत्रीय, असमी, पंजाबी, अमेरिकी, भारतीय, विदेशी, ग्रामीण आदि।


काल- नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, नवीन, सायंकालीन, आधुनिक, वार्षिक, मासिक आदि।


स्थिति/दिशा- निचला, ऊपरी, उत्तरी, पूर्वी आदि।


स्पर्श- मुलायम, सख्त, ठंड, गर्म, कोमल, ख़ुरदरा आदि।


द्रष्टव्य- गुणवाचक विशेषणों में 'सा' सादृश्यवाचक पद जोड़कर गुणों को कम भी किया जाता है। जैसे- बड़ा-सा, ऊँची-सी, पीला-सा, छोटी-सी।


(2)संख्यावाचक विशेषण:-

वे विशेषण शब्द जो संज्ञा अथवा सर्वनाम (विशेष्य) की संख्या का बोध कराते हैं, संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।

बढ़ईगिरी के निम्नलिखित औजार भी होने चाहिए- 

पाँच हथौड़े, 

तीन बसूले,

पाँच छोटी हथौड़ियाँ, 

दो एरन, 

तीन बम, 

दस छोटी-बड़ी छेनियाँ, 

चार रंदे, 

एक सालनी, 

चार केतियाँ, 

चार छोटी-बड़ी बेधनियाँ, 

चार आरियाँ, 

पाँच छोटी-बड़ी सँड़ासियाँ, 

बीस रतल कीलें-छोटी और बड़ी, 

एक मोंगरा (लकड़ी का हथौड़ा), मोची के औजार।


उपर्युक्त अनुच्छेद में विभिन्न प्रकार के औजारों की संख्या की बात की गई है। पाँच, तीन, दो, दस, चार, एक, बीस आदि संख्यावाची विशेषण हैं। ये विशेषण शब्द हथौड़े, बसूले, हथौड़ियाँ, एरन, बम, छेनियाँ, रंदे, सालनी आदि विशेष्य शब्दों की विशेषता बता रहे हैं।


संख्यावाचक विशेषण के भेद

संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते है-


(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण 

(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण


(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण :-

वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।


मेरी कक्षा में चालीस छात्र हैं। 

कमरे में एक पंखा घूम रहा है। 

डाल पर दो चिड़ियाँ बैठी हैं। 

प्रार्थना-सभा में सौ लोग उपस्थित थे।


इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध हो रहा है; जैसे- कक्षा में कितने छात्र हैं?- चालीस, कमरे में कितने पंखे घूम रहे हैं?- एक, डाल पर कितनी चिड़ियाँ बैठी हैं?- दो तथा प्रार्थना-सभा में कितने लोग उपस्थित थे?- सौ।


(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण :- 

वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध न कराते हों, वे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।


बम के भय से कुछ लोग बेहोश हो गए। 

कक्षा में बहुत कम छात्र उपस्थित थे। 

कुछ फल खाकर ही मेरी भूख मिट गई। 



इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध नहीं हो रहा है? जैसे-कितने लोग दिखे?- कम, कितने लोग बेहोश हो गए?- कुछ,कितने छात्र उपस्थित थे?- कम, कितने फल खाकर भूख मिट गई?-कुछ।


प्रयोग के अनुसार निश्चित संख्यावाचक विशेषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-

(क) गणनावाचक विशेषण- एक, दो, तीन। 

(ख) क्रमवाचक विशेषण- पहला, दूसरा, तीसरा। 

(ग) आवृत्तिवाचक विशेषण- दूना, तिगुना, चौगुना। 

(घ) समुदायवाचक विशेषण- दोनों, तीनों, चारों। 

(ड़) प्रत्येकबोधक विशेषण- प्रत्येक, हर-एक, दो-दो, सवा-सवा।



(3)परिमाणवाचक विशेषण :-

जिन विशेषण शब्दों से किसी वस्तु के माप-तौल संबंधी विशेषता का बोध होता है, वे परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं।

यह किसी वस्तु की नाप या तौल का बोध कराता है।

जैसे- 'सेर' भर दूध, 'तोला' भर सोना, 'थोड़ा' पानी, 'कुछ' पानी, 'सब' धन, 'और' घी लाओ, 'दो' लीटर दूध, 'बहुत' चीनी इत्यादि।


परिमाणवाचक विशेषण के भेद

परिमाणवाचक विशेषण के दो भेद होते है-


(i) निश्चित परिमाणवाचक 

(ii)अनिश्चित परिमाणवाचक


(i) निश्चित परिमाणवाचक:-

जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध कराते हैं, वे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- 'दो सेर' घी, 'दस हाथ' जगह, 'चार गज' मलमल, 'चार किलो' चावल।


(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक :-

जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध नहीं कराते हैं, वे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- 'सब' धन, 'कुछ' दूध, 'बहुत' पानी।



(4) संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण :- 

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करते है या जो शब्द सर्वनाम होते हुए भी किसी संज्ञा से पहले आकर उसकी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते है।


दूसरे शब्दों में- ( मैं, तू, वह ) के सिवा अन्य सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं, तब वे 'संकेतवाचक' या 'सार्वनामिक विशेषण' कहलाते हैं।


सरल शब्दों में- जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग संज्ञा के आगे उनके विशेषण के रूप में होता है, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।

जैसे- वह नौकर नहीं आया; यह घोड़ा अच्छा है।


यहाँ 'नौकर' और 'घोड़ा' संज्ञाओं के पहले विशेषण के रूप में 'वह' और 'यह' सर्वनाम आये हैं। अतः, ये सार्वनामिक विशेषण हैं।



सार्वनामिक विशेषण के भेद

व्युत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के भी दो भेद है-


(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण 
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण


(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण- 

जो बिना रूपान्तर के संज्ञा के पहले आता हैं। 

जैसे- 'यह' घर; वह लड़का; 'कोई' नौकर इत्यादि।


(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण- 

जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं। 

जैसे- 'ऐसा' आदमी; 'कैसा' घर; 'जैसा' देश इत्यादि।


विशेष्य और विशेषण में सम्बन्ध

विशेषण संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है और जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं। 

वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।



प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद है-


(1) विशेष्य-विशेषण 
(2) विधेय-विशेषण


(1) विशेष्य-विशेष- 

जो विशेषण विशेष्य के पहले आये, वह विशेष्य-विशेष होता है-

जैसे- रमेश 'चंचल' बालक है। सुनीता 'सुशील' लड़की है। 

इन वाक्यों में 'चंचल' और 'सुशील' क्रमशः बालक और लड़की के विशेषण हैं, जो संज्ञाओं (विशेष्य) के पहले आये हैं।


(2) विधेय-विशेषण- 

जो विशेषण विशेष्य और क्रिया के बीच आये, वहाँ विधेय-विशेषण होता है;

जैसे- मेरा कुत्ता 'काला' हैं। मेरा लड़का 'आलसी' है। इन वाक्यों में 'काला' और 'आलसी' ऐसे विशेषण हैं,

जो क्रमशः 'कुत्ता'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) तथा 'लड़का'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) के बीच आये हैं।



यहाँ दो बातों का ध्यान रखना चाहिए- 

(क) विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुसार होते हैं। जैसे- अच्छे लड़के पढ़ते हैं। आशा भली लड़की है। राजू गंदा लड़का है।


(ख) यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य हों तो विशेषण के लिंग और वचन समीपवाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार होंगे; जैसे- नये पुरुष और नारियाँ, नयी धोती और कुरता।


विशेषण शब्दों की रचना

हिंदी भाषा में विशेषण शब्दों की रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्दों के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर की जाती है।


संज्ञा से विशेषण शब्दों की रचना
संज्ञा
विशेषण
संज्ञा
विशेषण
कथनकथितराधाराधेय
तुंदतुंदिलगंगागांगेय
धनधनवानदीक्षादीक्षित
नियमनियमितनिषेधनिषिद्ध
प्रसंगप्रासंगिकपर्वतपर्वतीय
प्रदेशप्रादेशिकप्रकृतिप्राकृतिक
बुद्धबौद्धभूमिभौमिक
मृत्युमर्त्यमुखमौखिक
रसायनरासायनिकराजनीतिराजनीतिक
लघुलाघवलोभलुब्ध/लोभी
वनवन्यश्रद्धाश्रद्धेय/श्रद्धालु
संसारसांसारिकसभासभ्य
उपयोगउपयोगी/उपयुक्तअग्निआग्नेय
आदरआदरणीयअणुआणविक
अर्थआर्थिकआशाआशित/आशान्वित/आशावानी
ईश्वरईश्वरीयइच्छाऐच्छिक
इच्छाऐच्छिकउदयउदित
उन्नतिउन्नतकर्मकर्मठ/कर्मी/कर्मण्य
क्रोधक्रोधालु, क्रोधीगृहस्थगार्हस्थ्य
गुणगुणवान/गुणीघरघरेलू
चिंताचिंत्य/चिंतनीय/चिंतितजलजलीय
जागरणजागरित/जाग्रततिरस्कारतिरस्कृत
दयादयालुदर्शनदार्शनिक
धर्मधार्मिककुंतीकौंतेय
समरसामरिकपुरस्कारपुरस्कृत
नगरनागरिकचयनचयनित
निंदानिंद्य/निंदनीयनिश्र्चयनिश्चित
परलोकपारलौकिकपुरुषपौरुषेय
पृथ्वीपार्थिवप्रमाणप्रामाणिक
बुद्धिबौद्धिकभूगोलभौगोलिक
मासमासिकमातामातृक
राष्ट्रराष्ट्रीयलोहालौह
लाभलब्ध/लभ्यवायुवायव्य/वायवीय
विवाहवैवाहिकशरीरशारीरिक
सूर्यसौर/सौर्यहृदयहार्दिक
क्षेत्रक्षेत्रीयआदिआदिम
आकर्षणआकृष्टआयुआयुष्मान
अंतअंतिमइतिहासऐतिहासिक
उत्कर्षउत्कृष्टउपकारउपकृत/उपकारक
उपेक्षाउपेक्षित/उपेक्षणीयकाँटाकँटीला
ग्रामग्राम्य/ग्रामीणग्रहणगृहीत/ग्राह्य
गर्वगर्वीलाघावघायल
जटाजटिलजहरजहरीला
तत्त्वतात्त्विकदेवदैविक/दैवी
दिनदैनिकदर्ददर्दनाक
विनतावैनतेयरक्तरक्तिम

सर्वनाम से विशेषण शब्दों की रचना
सर्वनाम
विशेषण
सर्वनाम
विशेषण
कोईकोई-साजोजैसा
कौनकैसावहवैसा
मैंमेरा/मुझ-साहमहमारा
तुमतुम्हारायहऐसा

क्रिया से विशेषण शब्दों की रचना
क्रिया
विशेषण
क्रिया
विशेषण
भूलनाभुलक्क़ड़खेलनाखिलाड़ी
पीनापियक्कड़लड़नालड़ाकू
अड़नाअड़ियलसड़नासड़ियल
घटनाघटितलूटनालुटेरा
पठपठितरक्षारक्षक
बेचनाबिकाऊकमानाकमाऊ
उड़नाउड़ाकूखानाखाऊ
पत्पतितमिलनमिलनसार

अव्यय से विशेषण शब्दों की रचना
अव्यय
विशेषण
अव्यय
विशेषण
ऊपरऊपरीपीछेपिछला
नीचेनिचलाआगेअगला
भीतरभीतरीबाहरबाहरी



विशेषण की अवस्थायें या तुलना (Degree of Comparison)

विशेषण(Adjective) की तीन अवस्थायें होती है -

(i)मूलावस्था (Positive Degree)
(ii)उत्तरावस्था (Comparative Degree) 
(iii)उत्तमावस्था (Superlative Degree)



(i) मूलावस्था :-

किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुण-दोष बताने के लिए जब विशेषणों का प्रयोग किया जाता है, तब वह विशेषण की मूलावस्था कहलाती है।

इस अवस्था में किसी विशेषण के गुण या दोष की तुलना दूसरी वस्तु से नही की जाती।

इसमे विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है।


कमल 'सुंदर' फूल होता है। 

आसमान में 'लाल' पतंग उड़ रही है। 

ऐश्वर्या राय 'खूबसूरत' हैं। 

वह अच्छी 'विद्याथी' है। इसमें कोई तुलना नहीं होती, बल्कि सामान्य विशेषता बताई जाती है।


(ii) उत्तरावस्था :- 

यह विशेषण का वह रूप होता है, जो दो विशेष्यो की विशेषताओं से तुलना करता है।

इसमें दो व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणियों के गुण-दोष बताते हुए उनकी आपस में तुलना की जाती है।


जैसे- तुम मेरे से 'अधिक सुन्दर' हो। 

वह तुम से 'सबसे अच्छी' लड़की है। 

राम मोहन से अधिक समझदार हैं।


(iii) उत्तमावस्था :- 

यह विशेषण का वह रूप है जो एक विशेष्य को अन्य सभी की तुलना में बढ़कर बताता है।

इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु अथवा प्राणी को सबसे अधिक गुणशाली या दोषी बताया जाता है।


जैसे- तुम 'सबसे सुन्दर' हो। 

वह 'सबसे अच्छी' लड़की है।

हमारे कॉंलेज में नरेन्द्र 'सबसे अच्छा' खिलाड़ी है।



अन्य उदाहरण
मूलावस्था
उत्तरावस्था
उत्तमावस्था
लघुलघुतरलघुतम
अधिकअधिकतरअधिकतम
कोमलकोमलतरकोमलतम
सुन्दरसुन्दरतरसुन्दरतम
उच्चउच्चतरउच्त्तम
प्रियप्रियतरप्रियतम
निम्रनिम्रतरनिम्रतम
निकृष्टनिकृष्टतरनिकृष्टतम
महत्महत्तरमहत्तम


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