अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण
परिभाषा
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘ आभूषण। मानव समाज बहुत ही सौन्दर्योपासक है उसकी प्रवर्ती के कारण ही अलंकारों को जन्म दिया गया है। जिस तरह से एक नारी अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती हैं उसी प्रकार भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है। अर्थात जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।
उदाहरण :- ‘ भूषण बिना न सोहई – कविता , बनिता मित्त।’
अलंकार के भेद :-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
1. शब्दालंकार :-
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनि और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थात जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद :-
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- प्रश्नालंकार
- शलेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार :-
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अनु + प्रास | यहाँ पर अनु का अर्थ है बार -बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है।
जैसे :- जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।
जैसे :- रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।
जैसे :- “चामर- सी ,चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद- सुघर है।”
जैसे :- ” लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग ?”
2. यमक अलंकार :-
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।
जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी , मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर , वा पाये बौराये।
3. पुनरुक्ति अलंकार :-
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है – पुन: +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है।
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है – पुन: +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है।
4. श्लेष अलंकार :-
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
जैसे :- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
अर्थालंकार क्या होता है :-
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के भेद :-
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- द्रष्टान्त अलंकार
- संदेह अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- उपमेयोपमा अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अनन्वय अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- दीपक अलंकार
- अपहृति अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- अर्थान्तरन्यास अलंकार
- उल्लेख अलंकार
- विरोधाभाष अलंकार
- असंगति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- स्वभावोती अलंकार
1. उपमा अलंकार :-
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।
जैसे :- सागर -सा गंभीर ह्रदय हो ,
गिरी -सा ऊँचा हो जिसका मन।
उपमा अलंकार के अंग :-
उपमेय
उपमान
वाचक शब्द
साधारण धर्म
उपमेय क्या होता है :- उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।
उपमान क्या होता है :- उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।
वाचक शब्द क्या होता है :- जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।
साधारण धर्म क्या होता है :- दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।
2. रूपक अलंकार :-
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।
जैसे :- ” उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत- सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।”
रूपक अलंकार की निम्न बातें :-
- उपमेय को उपमान का रूप देना।
- वाचक शब्द का लोप होना।
- उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
जैसे :- बीती विभावरी जागरी . अम्बर – पनघट में डुबा रही , तारघट उषा – नागरी।
जैसे :- जनम सिन्धु विष बन्धु पुनि, दीन मलिन सकलंक
सिय मुख समता पावकिमि चन्द्र बापुरो रंक।।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार :-
जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे :- सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।
जैसे :- ” सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।”
जैसे :- खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।
6. अतिश्योक्ति अलंकार :-
जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं।
जैसे :-हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई , गये निसाचर भागि।
20. मानवीकरण अलंकार :-
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियाओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है।
जैसे :-बीती विभावरी जागरी , अम्बर पनघट में डुबो रही तास घट उषा नगरी।
उभयालंकार :-
जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी करते हैं वहाँ उभयालंकार होता है।
जैसे :- ‘ कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।’
अलंकारों से सम्बन्धित प्रश्न – उत्तर :-
इन उदाहरणों में कौन-कौन से अलंकार हैं —–
1. प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे।
2. तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
1. प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे।
2. तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
3. कालिका-सी किलकि कलेऊ देति काल को।
4. रावनु रधी बिरथ रघुबीरा।
5. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती मानुस चून ॥
6. उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भंग ॥
7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरन की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।।
8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमणि शैल पर आतंप पर्यो प्रभात ॥
9. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास ॥
10. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
11. बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन सरोज बढ़ जाई।
घटत-घटत सु न फिरि घटे, बरु समूल कुम्हिलाई ॥
12. चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन, मादक मधुहिँ पिए ।
13. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिल काल बस निज कुल घालकु।
भानु बंस-राकेस-कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥
14. यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या ? '
भू काँप उठे तो ढह जाए, बाढ़ आ जाए, बह जाए ।
15. या अनुराग चित की, गति समुझे नहिं कोइ।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यौं उज्जलु होइ ॥
16. मेरे अंतर में आते हो देव, निरंतर,.
कर जाते हो व्यथा भार लघु,
बार-बार कर कंज बढ़ाकर ।
17. कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
18. पी तुम्हारी मुख बात तरंग
आज बौरे भौंरे सहकार।
19. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
20. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।
21. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
22. मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
23. जीवन के रथ पर चढ़कर, सदा मृत्यु-पथ पर बढ़कर।
24. सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार ।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ॥
25. चारू चंद्र की चंचल किरणें ।
26. चंचल वासना-सी विछलती नदियां
27. मैया मैं तो चंद-खिलोना लहों
28. सुबरन को ट्रॅउल फिरत कवि, व्याभिचारी चोर
29. मुख बाल-नवि सम लाल होकर चाल-सा बोपित्त हजा।
30. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
31. भजु मन चरण-कमल अविनासी।
32 किवन कालहि में वन वीथिका,
विविध धेन विभूषित हो गई।
33. भजन कहयो तातें, भज्यों ने एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कड्यो, सो तू मज्यो गवार ॥
34. चंचल है ज्यों मीन, अरुणोर पंकज सरिस।
35. गुरुपद रज मृदु मंजुल अंजन।
36. रघुपति राघव राजा राम।
37. कमल-सा कोमल गात सुहाना।
38. चरण कमल बंदी हरि राई।
39. भग्न मगन रलाकर में वह राह।
40. तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
41. विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर।
42. एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास ।
43. बरषत बारिद बूंद।
44. मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टोला ।
45. रती-रती सोभा सब रती के सरीर की।
46. यह देखिए, अरविंद-से शिशु कैसे सो रहे।
47. सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।
48. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
49. ईस-भजनु सारथी सुजाना।
50. मिटा मोदु मन भए मलीने।
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे ॥
51. विज्ञान-वान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है।
52. नभ पर चमचम चपला चमकी।
53. माया दीपक नर पतंग भ्रमि-भ्रमि इवै पड़त।
54. यवन को दिया दया का दान।
55. राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
56. झुककर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
57, परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाए।
58. आए महंत बसंत।
59. मैं तो मात्र मृत्तिका।
60. कितनी करुणा कितने संदेश।
61, नभ मंडल छाया मरुस्थल-सा।
दल बांध अंधड़ आवै चला ॥
62. आवत-जात कुंज की गलियन रूप-सुधा नित पीजै।
63. सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
64. सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन माँ-सरीखी।
65. कार्तिक की एक हँसमुख सुबह नदी-तट से लौटती गंगा नहाकर।
उत्तर-1. उत्प्रेक्षा, 2. यमक, 3. अनुप्रास एवं उपमा, 4. अनुप्रास, 5. श्लेष, 6. रूपक, 7. उपमा, 8. उत्प्रेक्षा, 9. अनुप्रास, 10. अनुप्रास और यमक, 11. रूपक, 12. उत्प्रेक्षा, अनुप्रास एवं रूपक, 13. अनुप्रास, 14. उपमा, 15. श्लेष, 16. रूपक एवं यमक, 17. यमक, 18. यमक, 19. यमक, 20. अनुप्रास, 21. उत्प्रेक्षा, 22. उपमा, 23, रूपक, 24. यमक, 25, अनुप्रास, 26. उपमा, 27. रूपक, 28. श्लेष, 29. उपमा, 30. अनुप्रास, 31. रूपक, 32. अनुप्रास, 33. यमक, 34. उपमा, 35. रूपक, 36. अनुप्रास, 37. उपमा, 38. रूपक, 39. अनुप्रास, 40. उपमा एवं अनुप्रास, 41. अनुप्रास एवं उपमा, 42. रूपक, 43. अनुप्रास, 44. उपमा, 45. यमक, 46. उपमा, 47. रूपक, 48. उत्प्रेक्षा, 49. रूपक एवं अनुप्रास, 50. उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास, 51. रूपक, 52. अनुप्रास, 53. रूपक, 54. अनुप्रास, 55. रूपक, 56. उत्प्रेक्षा, 57. उपमा, 58. रूपक, 59. मानवीकरण, 60. अनुप्रास, 61. उपमा, 62. रूपक, 63. रूपक, 64. उपमा, 65. मानवीकरण।
If you have any doubts, Please let me know