Important Questions CBSE Class 10 Hindi A-एक कहानी यह भी | एक कहानी यह भी (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
एक कहानी यह भी (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थी- फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकीं। क्यों? 2016
उत्तर:
"लेखिका मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा थीं।" त्याग व परिश्रम की मूर्ति थीं, फिर भी वह लेखिका की आदर्श न बन सकीं क्योंकि लेखिका को अपनी माँ को चुपचाप हर बात को मान लेना, पिताजी की किसी भी बात का विरोध न करना, अपने लिए कोई आवाज़ न उठाना, परिवार के लिए अपनी इच्छाओं का दमन कर अपने को उनकी खुशी के लिए स्वाहा कर देना लेखिका के व्यक्तित्व के विपरीत था। लेखिका उस समय की सक्रिय युवती थीं जो हर अनैतिकता के खिलाफ़ खड़ी होती थीं, जुलूस व हड़तालों में भाग लेती थीं। वह उत्साह और ओज से भरी आज़ादी के लिए लड़ने वाली युवती थीं। उन्हें अपनी माँ का दबूपन व अत्याचार का विरोध न करना कभी पसंद न आया।
प्रश्न 2,
मन्नू भंडारी की ऐसी कौन-सी खुशी थी, जो 15 अगस्त, 1947 की खुशी में समाकर रह गई?
उत्तर:
मन्नू भंडारी ने 1947 के आंदोलन में जोश व उत्साह के साथ भाग लिया। हड़तालों, जूलूसों व प्रभातफेरियों में जोर-शोर से नारे लगाए। उनके जोशीले भाषण की तारीफ़ हुई। मई 1947 में उनकी अध्यापिका शीला अग्रवाल को अनुशासन भंग करने के आरोप में कॉलेज से निकाल दिया, जिसका विरोध सभी विद्यार्थियों व लेखिका ने भी किया। थर्ड इयर की कक्षाएँ बंद कर दी गई, पर लड़कियों ने इतना हुड़दंग मचाया कि कॉलेज वालों को अगस्त में कॉलेज फिर खोलना पड़ा। शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि 15, अगस्त 1947 को मिलने वाली आजादी के बीच लेखिका का कॉलेज पुनः खुलवाने, जोशीले भाषणों की प्रशंसा होने व आज़ादी के लिए स्वतन्त्र रुप से सभी बंधन तोड़ने की सभी खुशियाँ आजादी पाने की खुशी में समा गई।
प्रश्न 3.
मन्नू भंडारी के पिता की कौन-कौन सी विशेषताएँ अनुकरणीय हैं?
उत्तर:
मन्नू भंडारी के पिता एक विरोधाभासी व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उनकी अनेक विशेषताएँ अनुकरणीय हो सकती है। वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे। अपने बच्चों की भावनाओं को समझते थे।
(i) वे शिक्षा के प्रति अत्यंत जागरुक थे। वे इसके प्रसार के लिए घर में आठ-दस बच्चों को शिक्षित करने का दायित्व खुशी से उठाते थे।
(iii) उनकी देशप्रेम की भावना अनुकरणीय है। वे चाहते थे कि मन्नू उनके घर में आए दिन होने वाली राजनतिक पार्टियों का हिस्सा बने।
(iv) वे यश पाने के इच्छुक थे और विशिष्ट बनकर जीना चाहते थे और उसके लिए प्रयासरत रहते थे।
(v) उनके द्वारा बेटी के अच्छे कार्यों व भाषण आदि पर गर्व करना और देशप्रेम के प्रति अग्रसर करना भी अनुकरणीय है।
प्रश्न 4,
शीला अग्रवाल जैसी प्राध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को कैसे संवार सकती हैं?
उत्तर:
लेखिका के लिए शीला अग्रवाल जी केवल विषयगत ज्ञान देने वाली शिक्षिका नहीं थीं, बल्कि एक सच्ची मार्गदर्शक थीं। उनकी प्रेरणा ने लेखिका के अंदर एक अद्भुत आत्मविश्वास भर दिया था ।उन्होंने लेखिका को जीवन में सही निर्णय लेकर बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ना सिखाया। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए वे सामाजिक आंदोलनों एवं गतिविधियों में भाग लेकर उन दकियानूसी घरेलू बंदिशों को तोड़ने में कामयाब रहीं, जिन्हें तोड़ना उन दिनों न केवल उनके लिए, बल्कि हर लड़की के लिए बेहद मुश्किल काम था। अतः कहा जा सकता है कि शीला अग्रवाल जी जैसी अध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को संवार सकती हैं।
प्रश्न 5.
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मन्नू भंडारी की भागीदारी के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मन्नू भंडारी ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
(1) देश में आज़ादी से पहले जगह-जगह आज़ादी पाने के लिए प्रभात फेरियाँ निकलती, हड़तालें होती और जुलूस निकलते, तो मन्नू भंडारी उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेतीं।
(ii) लेखिका स्कूल, कॉलेज में कक्षाएँ छोड़कर सभी विद्यार्थियों को इकट्ठा कर देशप्रेम के नारे लगातीं। मन्नू भंडारी ने मुख्य बाज़ार के चौराहे पर जोशीला भाषण भी दिया, जिसकी सभी ने प्रशंसा भी की।
प्रश्न 6.
मन्नू भंडारी के लेखकीय व्यक्तित्व-निर्माण में शीला अग्रवाल की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखिका मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व-निर्माण में उनकी हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनके साथ की गई लंबी बहसों ने लेखिका को साहित्य समझने की दृष्टि प्रदान की। शीला जी ने ही उनके अंदर देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से जगाई व देश की गतिविधियों में उन्हें सक्रिय रूप से भागीदार बनने में अहम भूमिका निभाई। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने उनकी रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया। वह नारे लगातीं, हड़ताल कराती और सड़कों के साथ जुलूसों में साहस के साथ हिस्सा लेती।
प्रश्न 7.
मन्नू भंडारी की माँ को किन गुणों की दृष्टि से आदर्श माँ कहा जा सकता है? लेखिका उन गुणों को अपना आदर्श क्यों न बना सकी?
उत्तर:
लेखिका मन्नू भंडारी की माँ एक आदर्श माँ थीं क्योंकि उनमें निम्नलिखित गुण थे-
(i) वे धरती के समान धैर्यवान महिला थीं और सहनशील थीं। वे पिताजी द्वारा की गई सभी ज्यादतियों को चुपचाप सह लेतीं। बात को आगे न बढ़ातीं और घर में शांति बनाए रखतीं।
(i) वे अपने सभी कर्तव्यों को तन-मन से पूरा करतीं। बच्चों की हर उचित-अनुचित मांगों को पूरा करने की हर संभव कोशिश करतीं।
(iii) वे एक सीधी-सादी, कम इच्छाएँ रखने वाली महिला थीं। उन्होंने अपने लिए कभी किसी से कुछ न माँगा । लेखिका इन गुणों को अपना आदर्श इसलिए न बना पाई क्योंकि उन्हें माँ द्वारा इस प्रकार हर ज्यादतियों को सहना, अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ न उठाना, ज़रूरत से ज्यादा सहनशील व धैर्यवान होना कभी अच्छा न लगा। वह माँ के समान एक दब्बू व्यक्ति का जीवन नहीं जीना चाहती थीं। लेखिका एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं।
प्रश्न 8.
'मन्नू भंडारी के पिता के व्यक्तित्व में संवेदनशीलता भी थी और अहंवादिता भी। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
‘मन्नू भंडारी के पिता एक विरोधाभासी व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। बहुत बड़े आर्थिक संकट और अपनों के द्वारा दिए गए विश्वासघात से वे बुरी तरह टूट गए थे। एक तरफ तो वे बेहद कोमल और संवेदनशील थे। उन्हें अपनी पुत्री का रसोई में काम करना पसंद न आता। वे सोचते कि लड़कियों को भी राजनीति में सक्रिय योगदान देना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ उनकी अहंवादिता और सामाजिक दबाव उसे लड़कों के समान बाहर जुलूस निकालने, हड़ताल करने से रोकने की कोशिश करता । एक ओर विशिष्ट बनने और बनाने की उनकी इच्छा, उन्हें संवेदनशील बनाती, तो अपनी पत्नी पर ज्यादतियाँ करना उनका अहं प्रदर्शित करता है।
प्रश्न 9.
मन्नू भंडारी के जीवन में शीला अग्रवाल के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी के जीवन में शीला अग्रवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे उनकी हिंदी प्राध्यापिका थीं। उनके साथ की गई लंबी बहसों ने लेखिका को साहित्य समझने की दृष्टि प्रदान की थी। उन्हें साहसी व आत्मविश्वासी बनाने में भी शीला जी का योगदान रहा था। उन्होंने ही मन्नू के अंदर देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से जगाई थी व देश की गतिविधियों में उन्हें सक्रिय रूप से भागीदार बनने में सहायक बनी थीं। शीला जी की जोशीली बातों ने उनकी रगों में बहते खून को लावा में बदल दिया था। उन्हीं के मार्गदर्शन में उन्होंने नारे लगाने, और जुलूस निकालने का कार्य आत्मविश्वास से किया था। मन्नू के प्रभावशाली भाषण देने में कहीं-न-कहीं शीला जी का प्रभाव था । मन्नू के व्यक्तित्व में उनकी अध्यापिका की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
प्रश्न 10.
‘एक कहानी यह भी' की लेखिका को प्रारम्भ में हिन्दी के किस उपन्यास को समझने में कठिनाई हुई? छह सालों बाद उसी उपन्यास से क्या जानकारी प्राप्त हुई?
उत्तर:
एक कहानी यह भी की लेखिका मन्नू भंडारी को प्रारंभ में 'अज्ञेय' जी द्वारा रचित उपन्यास 'शेखर- एक जीवनी' को समझने में कठिनाई हुई क्योंकि लेखिका उस समय छोटी थी और बिना लेखकों की जानकारी के पुस्तकों को पढ़ती रहती थीं। पर जब उनका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ, तब उन्होंने साहित्य की दुनिया में लेखिका का प्रवेश कराया। लेखिका ने तब शरत्चंद्र, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल और भगवती चरण वर्मा तक सभी लेखकों को पढ़ा और पुनः एक बार 'शेखर- एक जीवनी' को पढ़ा और इस बार लेखिका को उसके जीवन मूल्य समझ आए। पढ़कर उसे पता चला कि यह शायद मूल्यों के मंथन का युग था। पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक, सही-गलत की बनी बनाई धारणाओं को तर्क-वितर्क के साथ ध्वस्त किया जा रहा था।
प्रश्न 11.
लेखिका मन्नू भंडारी को साधारण से असाधारण बनाने में शीला अग्रवाल की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लेखिका मन्नू भंडारी को साधारण से असाधारण बनाने में उनकी हिंदी अध्यापिका ‘शीला अग्रवाल' ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साथ की गई लंबी बहसों ने लेखिका को साहित्य समझने की दृष्टि प्रदान की। अनेक महत्वपूर्ण लेखकों को पढ़ने का सुझाव देकर शीला जी ने मन्नू के चिंतन और मनन को संवारा। उन्हें साहसी और आत्मविश्वासी बनाया। उन्होंने ही असाधारण क्षमता का परिचय कराते हुए लेखिका को देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदार बनाया। उनकी जोशीली बातों से ही लेखिका की रगों का खून लावा में बदल गया। उन्हीं के मार्गदर्शन में उन्होंने हड़ताले की, नारे लगाए, जुलूस व प्रभातफेरियाँ निकालीं और चौक पर प्रभावशाली भाषण दिया, जिसकी सभी ने प्रशंसा की थी। उचित ही है कि शीला जी ने मन्नू के व्यक्तित्व को निखार कर खरा सोना बना दिया।
प्रश्न 12.
‘एक कहानी यह भी' की लेखिका ने आस-पड़ोस की कल्चर के महत्त्व को कैसे समझाया है? महानगरों के निवासी उस कल्चर से वंचित क्यों हैं?
उत्तर:
'एक कहानी यह भी' की लेखिका ने यह समझाया है कि पड़ोस-कल्चर मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका रखता है। मिलजुलकर रहने की प्रवृत्ति पड़ोस के कारण ही उत्पन्न होती है। आपसी मेलजोल, सहयोग की भावना, सद्भावना, सहानुभूति, भाईचारा- यह सब पड़ोस-कल्चर की ही देन हैं। स्वयं लेखिका इस पड़ोस-कल्चर की देन हैं। उनकी कहानियों के पात्र उनके पड़ोस के वे लोग हैं, जो सहज भाव से उनकी कहानियों में उतरते चले जाते हैं। उनके समय में परिवार की सीमा संपूर्ण पड़ोस तक जाती थी, परंतु आधुनिक जीवन में अत्यधिक व्यस्तता के कारण महानगरों के फ्लैट में रहने वाली संस्कृति ने परंपरागत पड़ोस-कल्चर को खंडित कर दिया है। बच्चों को पड़ोस-कल्चर से अलग करके उन्हें अत्यधिक संकीर्ण, असहाय और असुरक्षित बना दिया है। महानगरों के निवासी अकेलेपन की पीड़ा से ग्रसित हैं। परिवार में रहते हुए भी उनकी स्थिति बंद कमरे तक सीमित हो गई है। व्यस्त जीवन ने उन्हें आपसी मेलजोल, संवेदनात्मक अनुभूति और परस्पर सहृदयता की भावना से वंचित कर दिया है।
प्रश्न 13.
मन्नू भंडारी अपने व्यक्तित्व में उभरी कुंठाओं और ग्रंथियों को पिता की देन क्यों मानती हैं?
उत्तर:
लेखिका के पिताजी के व्यवहार ने बचपन में ही लेखिका के मन में यह हीन भावना की ग्रंथि पैदा कर दी थी कि वह काली हैं। उनके पिताजी को गोरा रंग पसंद था इसलिए लेखिका से दो वर्ष बड़ी, खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहन सुशीला से उसके पिता उसकी तुलना किया करते थे और हमेशा सुशीला की ही प्रशंसा किया करते थे। पिताजी के इस व्यवहार ने लेखिका के मन में हीन भाव की ग्रंथि पैदा कर दी थी। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा पाने के उपरांत भी लेखिका इस कुंठा से उबर नहीं पाई। इतना ही नहीं पिताजी के शक्की स्वभाव के कारण लेखिका को बड़े होने पर अपने अंदर हीनता नज़र आने लगी, जिसके कारण वह खंडित विश्वासों की पीड़ा झेलने लगी। अपने भीतर अपनों के हाथों विश्वासघात की गहरी व्यथा को महसूस करने लगी। वास्तव में, ये कुंठाएँ और ग्रंथियाँ पिता की ही देन थीं।
प्रश्न 14,
शीला अग्रवाल की मन्नू भंडारी को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने को प्रेरित करना और पिताजी का घर के दायरे में रखना, इन दो दबावों से लेखिका कैसे जूझती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखिका के पिताजी के अनजाने, अनचाहे व्यवहार से लेखिका हीन-भावना एवं कुंठा से ग्रसित हो गई थी। वे उसे घर की चारदीवारी में रखकर देश और समाज के प्रति जागरूक तो बनाना चाहते थे, परंतु इसकी भी एक निश्चित सीमा थी। वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी आंदोलनों में भाग ले या सड़क पर हड़तालों इत्यादि में शामिल हो। लेखिका और उनके पिताजी में सदैव वैचारिक टकराहट रही। लेखिका, जब प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के संपर्क में आई, तब वह इस चारदीवारी से बाहर निकलने को प्रेरित हुई। प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस सब में सक्रिय भाग लिया। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने उसे देश के लिए सक्रिय होकर काम करने के लिए प्रेरित किया और फिर यह सिलसिला जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया। शीला अग्रवाल के निर्देशन को पाकर उनकी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी रही।
प्रश्न 15.
‘एक कहानी यह भी' आत्मकथ्य की लेखिका को बचपन में घर की सीमा से बाहर जाने की इज़ाज़त क्यों नहीं थी? क्या लड़कियों के लिए अभी भी वही स्थिति है?
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी' आत्मकथ्य की लेखिका को बचपन में घर की सीमा से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि उस समय की पारिवारिक एवं सामाजिक मान्यताएँ ऐसी थीं कि लड़की को घर से बाहर जाने नहीं दिया जाता था। यद्यपि उस समय घर की सीमा परिवार से हटकर पड़ोस और मोहल्ले तक फैली हुई थी, पड़ोस और मोहल्ला परिवार का ही एक अभिन्न अंग था। परंतु उसके बाहर लड़कियों के लिए कोई इजाज़त नहीं थी। आज परिस्थितियों बदल गई हैं। पड़ोस और मोहल्ले की परंपराएँ आज समाप्त हो गई हैं। अधिकांश लोग फ्लटों में रहने लगे हैं। आजकल लड़कियों के लिए बाहर जाने की कोई बंदिश नहीं है। वे कहीं भी जा सकती हैं। किसी भी स्तर पर खेल खेल सकती हैं। उनका राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेना उसकी योग्यता पर निर्भर करता है। पढ़ने के लिए स्थान या क्षेत्र की कोई सीमा नहीं है। यहाँ तक कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक किसी भी क्षेत्र में वह भाग ले सकती हैं एवं कार्य कर सकती हैं। अब वे किसी बंदिशों की मोहताज़ नहीं हैं।
प्रश्न 16.
‘एक कहानी यह भी' पाठ की लेखिका की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी' पाठ के आधार पर लेखिका की माँ की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
(i) परिवार के प्रति समर्पण की भावना- लेखिका की माँ अपने परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित थीं। वह सुबह से शाम तक बच्चों की इच्छाओं और पिताजी की आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहती थीं।
(ii) धैर्य और सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति- लेखिका की मां में धरती से भी ज्यादा धैर्य और सहनशक्ति थी। वह अपना प्राप्य समझकर उनके पिताजी की हर ज्यादती को सहन करती थीं। बच्चों की हर फ़रमाइश और ज़िद को वह धैर्यपूर्वक पूरा करती थीं।
(iii) त्याग की मूर्ति- लेखिका की माँ त्याग की प्रतिमूर्ति थीं। वह सदैव दूसरों के लिए कार्य करने में मग्न रहती थीं। जिंदगी भर उन्होंने न अपने लिए कुछ चाहा और न ही अपने लिए कुछ मांगा। केवल दूसरों को देती ही रहीं।
(iv) स्नेह और ममत्व से पूर्ण- लेखिका की माँ स्नेह और ममत्व से लबालब भरी हुई थीं। लेखिका के सभी भाई-बहिनों का लगाव माँ के ही साथ था।
प्रश्न 17.
‘एक कहानी यह भी' के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखिका की बेपढ़ी-लिखी माँ भारतीय स्त्री की प्रतिनिधि पात्र है।
उत्तर:
'एक कहानी यह भी' पाठ की लेखिका की माँ भारतीय स्त्री का प्रतिनिधिपात्र हैं। भारतीय नारी युग से पुरुष के शोषण को सहन करती आई है। उसके आश्रय में रहकर वह स्वयं को कमज़ोर समझती रही है इसलिए हर दबाव को सहन करना उसकी सहज प्रवृति बन गई है। सहशीलता, त्याग उसके जीवन का आधार है। यही रूप लेखिका की माँ में दिखाई देता है। वह भारतीय नारी का जीता-जागता रूप थीं। सुबह से शाम तक बच्चों की इच्छाओं और पति की आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहती थीं। धैर्य और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति बन वह पति की हर ज्यादती को सहन करती थीं। हर काम को सिर झुकाकर, फर्ज समझकर करते रहना, उसकी आदत बन गई थी। उसने ज़िदगी भर अपने लिए कुछ नहीं मांगा। वास्तविकता यह है कि वे स्नेह और ममत्व से भरी पूर्ण परंपरागत, नितांत घरेलू एवं निरीह भारतीय स्त्री थीं।
प्रश्न 18,
‘एक कहानी यह भी' पाठ की लेखिका ने आस-पड़ोस के महत्त्व के विषय में जो विचार प्रकट किए हैं? आज के महानगरीय परिवेश में उनकी प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
उत्तर:
लेखिका ने 'आस-पड़ोस' के महत्व को बताया है कि लोग आपस में सुख-दुख बांटते थे तथा घर की सीमा मोहल्ले तक फैली हुई होती थी अर्थात लोग एक-दूसरे के घर खूब आया-जाया करते थे। उनके संबंधों में स्नेह व विश्वास था। आज की महानगरीय संस्कृति में आस-पड़ोस के लिए कोई स्थान नहीं है। लोग अपने घरों तक सीमित होकर रह गए हैं। लोगों का परस्पर प्रेम, उनकी सुरक्षा, उदारता, सामाजिकता सब कुछ धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं।
आपके के द्वारा दिए गए प्रश्न काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहे है इनमे से कई प्रश्नों को मैंने ओसवाल की नमूने प्रश्न पत्र में देखा है अत: ये प्रश्नों ने काफी सहयोग किया है|
ReplyDeleteधान्यवाद सहित
Anonymous
chup bhosdike
DeleteThanks sir
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeleteSIR APNI MAA CHUDAO
ReplyDeleteBhai kon hai tu? 😂
DeleteThanks for this 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks sir for this wonderful content 🙏🙏
ReplyDeleteThank you .
ReplyDeleteSir it helped me a lot in my Hindi boards preparation
Thank you sir ur efforts mean a lot 🫡
ReplyDeleteThnks sir...these que and ur yt video help me a lot to score 97 in my Hindi board xam🙏
ReplyDeletesir kal exam h
ReplyDeleteBhai padhle jakar comment mat padh kal exam hai tera
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