Important Questions CBSE Class 10 Hindi A-स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन | स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1.
स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं रही हैं- इसके लिए महावीर प्रसाद द्विवेदी ने क्या उदाहरण दिए हैं? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। 2016
उत्तर:
‘स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं रही हैं' के तर्क में श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने निम्नलिखित उदाहरण दिए हैं-
(i) ऋषि अत्रि की पत्नी घंटों भाषण देते हुए अपनी विद्वत्ता का व्याख्यान करती थीं। जो प्रमाणित करता है कि स्त्रियाँ भी शिक्षा में पुरुषों से कम न थीं।
(ii) गार्गी ने तो अपने पांडित्य प्रदर्शन में बड़े-बड़े ज्ञानी ब्रह्मऋषियों तक को हरा दिया था।
प्रश्न 2.
‘महावीर प्रसाद द्विवेदी' का निबंध उनकी खुली सोच और दूरदर्शिता का परिचायक है, केसे ?
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का निबंध अवश्य ही उनकी खुली सोच और दूरदर्शिता का परिचायक है क्योंकि उन्होंने उस समय स्त्री शिक्षा का समर्थन किया, जब कुछ स्वार्थी और पुरातनपंथी लोग उसे व्यर्थ और अनावश्यक समझते थे। महावीर जी जानते थे कि किसी भी समाज व देश का विकास बिना नारी की शिक्षा के संभव नहीं होगा। उन्होंने अनेक उदाहरणों तथा द्रोपदी, गार्गी आदि के माध्यम से नारी शिक्षा के महत्व को सिद्ध किया।
प्रश्न 3.
परंपराएँ विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ना ही चाहिए, कैसे? 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कृतकों का खंडन' पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा रचित ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन' पाठ में लेखक ने ऐसी परंपराओं का जमकर विरोध किया है जो स्त्री शिक्षा का विरोध करती हैं? ऐसी परंपराएँ जो स्त्री को पुरुष के समकक्ष न माने, उन्हें तोड़ने में ही भलाई है। प्रकृति के द्वारा स्त्री-पुरुष को समान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु बनाया गया था, परंतु पुरुष ने समाज के नियम बना, स्त्री का पतन निश्चित किया और अपने को ऊपर रखा। ऐसे पुरुषों को समझना होगा कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। स्त्री शिक्षा का महत्त्व पुरुष से भी अधिक है। शिक्षित स्त्री पूरे परिवार व समाज को शिक्षित कर सकती है। अतः हमें ऐसी परंपराओं को शीघ्र ही तोड़ देना चाहिए जो विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं। उनकी भागीदारी को समझना होगा।
प्रश्न 4.
‘प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी'- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने यह क्यों कहा?
उत्तर:
'प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं, अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी' यह महावीर प्रसाद जी ने इसलिए कहा है। क्योंकि उस समय जनसाधारण यही भाषा बोलता था। अनेक विद्वानों ने 'गाथा सप्तशती' सेतुबंध-महाकाव्य, कुमारपाल चरित और बौद्धों ने त्रिपिटक ग्रंथों की रचना प्राकृत में की थी। भगवान शाक्य मुनि और उनके चेले प्राकृत में ही धर्मोपदेश देते थे। अतः यह स्पष्ट है कि प्राकृत आम बोल-चाल की भाषा के रूप में प्रचलित थी और उसे बोलने वालों को किसी भी प्रकार से अपढ़ बताना उचित नहीं है।
प्रश्न 5.
स्त्री-शिक्षा के समर्थन में महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा दिए गए दो तर्कों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्त्री-शिक्षा के समर्थन में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अकाट्य तर्क देकर पुरातनपंथी स्त्री-शिक्षा विरोधी मानसिकता पर गहरा कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा है कि यदि पढ़ाई करने के बाद स्त्री को अनर्थ करने वाली माना जाता है, तो पुरुषों द्वारा किया हुआ अनर्थ भी शिक्षा का ही दुष्परिणाम समझा जाना चाहिए। साथ ही प्राचीन काल की अनेक विदुषी महिलाओं का उदाहरण देते हुए द्विवेदी जी ने यह भी सिद्ध किया है कि तत्कालीन समय में भी स्त्री-शिक्षा का चलन था। उन्होंने यह भी कहा है कि पुराने समय में स्त्री पढ़ी-लिखी नहीं थी, शायद स्त्रियों को पढ़ाना तब जरूरी नहीं माना गया। लेकिन आज परिस्थितियों बदल गई हैं, इसलिए उन्हें पढ़ाना चाहिए। जैसे आवश्यकता के अनुसार पुराने नियमों को तोड़कर हमने नए नियम बनाए हैं, उसी प्रकार स्त्रियों की शिक्षा के लिए भी नियम बनाना चाहिए।
प्रश्न 6.
वर्तमान में स्त्रियों को पढ़ना क्यों जरूरी माना गया है? 2015
उत्तर:
वर्तमान समय में स्त्रियों को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वे एक परिवार का संचालन करने के साथ-साथ समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं, वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। आज वे घर के साथ-साथ बाहर की दुनिया में भी कदम रख चुकी हैं। स्त्रियों को निरक्षर रखने से समाज का अपकार व पतन होता है। यदि देश की जनसंख्या का आधा भाग अशिक्षित होगा, तो उन्नति में अवरोध उत्पन्न होगा। अतः देश, समाज व परिवार के कल्याण और विकास के लिए स्त्रियों का पढ़ना ज़रूरी माना गया है।
प्रश्न 7.
पुराने नियमों, रूढ़ियों और परंपराओं को तोड़ना कब और क्यों आवश्यक हो जाता है?
उत्तर:
पुराने नियमों, रुढ़ियों और परंपराओं को तोड़ना तब आवश्यक हो जाता है जब वे सड़-गल जाएँ अर्थात महत्त्वहीन हो जाएँ और समाज का कल्याण करने के स्थान पर अकल्याणकारी हो जाएँ। पुरानी परंपराओं व रुढ़ियों को तोड़ना इसलिए आवश्यक है क्योंकि ये मानव के विकास में अवरोध पैदा करती हैं। विवेकपूर्ण फैसले के द्वारा उन्हीं परंपराओं को ग्रहण करना चाहिए, जो कल्याणकारी हैं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। अतः प्राचीन परंपराओं व रूढ़ियों में भी परिवर्तन व संशोधन कर समाज व देश को शिक्षित व विकसित बनाने के लिए नई व कल्याणकारी परंपराओं का निर्माण करना चाहिए।
प्रश्न 8.
लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी शिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है?
उत्तर:
नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत भाषा बोलना उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं है क्योंकि उस समय संस्कृत कुछ गिने-चुने व्यक्ति ही बोलते थे। आम व्यक्ति प्राकृत भाषा ही बोलते थे। प्राकृत ही आम बोलचाल की भाषा थी। संस्कृत न बोल पाना अपढ़ या अशिक्षा का प्रमाण नहीं था। भवभूति व कलिदास के नाटक जिस ज़माने के हैं, उस ज़माने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत बोलता हो, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है।
प्रश्न 9.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कृतकों का खंडन' लेखक की दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। कैसे?
उत्तर:
लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का यह निबंध उनकी दूरगामी व खुली सोच का परिचायक है क्योंकि उन्होंने उस समय स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया जब लोग इसे व्यर्थ और अनावश्यक मानते थे। उनका दृष्टिकोण स्त्री-शिक्षा के पक्ष में व्यापक था। भविष्य में उनकी बात सही साबित हुई। सभी को स्त्री-शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा। आज स्त्रियाँ शिक्षित होकर एक-से-एक बड़े कार्य कर रही हैं। लेखक ने बिल्कुल उचित समय पर नारी शिक्षा के प्रति अपना योगदान दिया।
प्रश्न 10,
महावीर प्रसाद द्विवेदी किस परिस्थिति में प्रसिद्ध अख़बार के संपादक को भी अपढ़ मानते है और क्यों?
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी आज की परिस्थिति में प्रसिद्ध अखबार के संपादक को भी अपढ़ मानते हैं क्योंकि वह भी आज की प्रसिद्ध भाषा का प्रयोग संपादन के लिए करते हैं। अतः यदि प्राचीन काल की स्त्रियाँ भी प्रचलित भाषा प्राकृत बोलने के कारण अपढ़ और गंवार मानी जाती थीं, तो आजकल के संपादक और बुद्धिजीवी भी प्रचलित भाषा के प्रयोग के कारण अपढ़ और गंवार माने जा सकते हैं।
प्रश्न 11.
सिद्ध कीजिए कि वर्तमान में लड़कियाँ क्षमता में लड़कों से पीछे नहीं हैं।
उत्तर:
ईश्वर की कृति लड़का और लड़की को समान बनाया गया है। लड़कियाँ क्षमता में लड़कों से किसी भी प्रकार कम नहीं है। आज वे शिक्षा में लड़कों से अधिक अंक लाती हैं। लड़कों के समान शारीरिक शक्ति वाले कार्यों जैसे- खेलकूद, सेना की नौकरी, अंतरिक्ष अनुसंधान सभी में सफलतापूर्वक अपना योगदान दें रही हैं। साथ ही वे घर संभालने के साथ-साथ शिक्षित होकर बाहर भी कुशल भूमिका निभा रही हैं तथा परिवार, समाज और देश के विकास में संपूर्ण योगदान दे रही हैं।
प्रश्न 12,
स्त्री-शिक्षा के समर्थन या विरोध में अपनी ओर से दो तर्क दीजिए, जिनका उल्लेख पाठ में न हुआ हो।
उत्तर:
स्त्री-शिक्षा के समर्थन में हम तर्क देना चाहते हैं कि-
(i) एक स्त्री परिवार की धूरी है। यदि वह शिक्षित होगी, तो पूरा परिवार शिक्षित होगा। परिवार शिक्षित होंगे, तो समाज शिक्षित होगा। एक शिक्षित समाज ही देश का सच्चा विकास कर सकता है। अतः स्त्रियों के लिए शिक्षा अति आवश्यक है।
(ii) स्त्री, आबादी का आधा हिस्सा होने के साथ-साथ पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर कार्य कर रही है। अतः शिक्षा के अभाव में समाज व देश के विकास में उसकी क्षमता पूरा योगदान देने में असमर्थ होगी।
प्रश्न 13,
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन' पाठ में शकुंतला और सीता का उल्लेख क्यों किया गया है?
उत्तर:
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन' पाठ में शकुंतला और सीता का उल्लेख इसलिए किया गया है। क्योंकि दोनों ने ही; शकुंतला ने दुष्यंत को और सीता ने राम को कटु वचन कहे थे। सीता ने राम के आचरण को कुल, शील व पांडित्य को बट्टा लगाने वाला बताया था, क्योंकि उन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा के बाद भी उसे त्याग दिया था। यहाँ तक कि सीता ने राम को आर्यपुत्र, नाथ व देव न कहकर केवल राजा कहकर अपना संदेश भेजा था। लेखक ने इनका उल्लेख इसलिए किया है कि यदि शकुंतला की कम पढ़ाई ने यह अनर्थ किया, तो सीता तो पढ़ी-लिखी, जनक-पुत्री थीं। अतः पढ़ने लिखने से अनर्थ हो सकने वाली बात का कोई संबंध नहीं है।
प्रश्न 14.
महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध के आलोक में बताइए कि स्त्री-शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण में क्या अंतर आया है और उसका क्या परिणाम हुआ है?
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित पाठ के संदर्भ में आज स्त्री-शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण में काफी अंतर आया है। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग स्त्री-शिक्षा का समर्थन करता है क्योंकि वह देश के विकास में शिक्षित स्त्री के योगदान से परिचित है, लेकिन आज भी कुछ पढ़े-लिखे लोगे ऐसे हैं जो स्त्री-शिक्षा का समर्थन नहीं करते या जिनका अहं स्त्री को उनसे आगे निकलते नहीं देख सकता, पर फिर भी आज स्त्रियाँ शिक्षा के प्रति जागरूक हैं। इसका परिणाम सुखद ही हुआ है। आज हर क्षेत्र में शिक्षित स्त्रियों का बोलबाला है। वे जी-जान से परिवार, समाज व देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दे रही हैं।
प्रश्न 15.
‘आधुनिक शिक्षा-प्रणाली' के विषय में द्विवेदी जी के विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
द्विवेदी जी ने शिक्षा का व्यापक अर्थ लिया, जिसमें पढ़ने-लिखने के अतिरिक्त सीखने योग्य अनेक विषय समाहित हैं। उनका यह मानना था कि इस देश की वर्तमान-शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं है। उसमें त्रुटियाँ हैं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझते है, तो स्त्रियों को पढ़ने-लिखने से रोकने की बजाए वर्तमान शिक्षा-प्रणाली में सुधार करना चाहिए। प्रणाली बुरी होने का यह मतलब नहीं कि स्कूल और कॉलेज बंद कर देने चाहिए। लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा प्रणाली में संशोधन करना चाहिए कि उन्हें क्या पढ़ाना है, कितना पढ़ाना है, किस तरह की शिक्षा देनी है, कहाँ शिक्षा देनी है, इन सब पर विचार होना चाहिए न कि पढ़ाई-लिखाई को दोषपूर्ण अथवा अनर्थकर मानना चाहिए।
प्रश्न 16.
द्विवेदी जी ने विक्षिप्त, बातव्यथित और ग्रहग्रस्त किन लोगों को कहा है और क्यों ?
उत्तर:
द्विवेदी जी ने विक्षिप्त, बातव्यथित, ग्रहग्रस्त उन लोगों को कहा है जो यह मानते हैं कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। यदि स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ उन्हें पढ़ाने का ही परिणाम है, तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए। चूँकि यदि बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियों करना आदि पढ़ने-लिखने के परिणाम हैं, तो सारे कॉलेज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जाने चाहिए। वास्तव में, ऐसी दलीलें देने वाले विक्षिप्त, बात-व्यथित, ग्रहगस्त लोगों की सोच अति संकीर्ण है क्योंकि वे स्वयं कुछ करने की क्षमता नहीं रखते। उनकी संकुचित वैचारिक दृष्टि उन्हें आगे बढ़ने नहीं देती।
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