वे आँखें (काव्य-सौंदर्य /शिल्प-सौंदर्य)

1

वे आँखें 


काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न







पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स: 


● कवि ने साहित्यिक खड़ी बोली का सफल प्रयोग किया है।
● प्रसाद गुण का परिपाक हुआ है।
● कविता मुक्तक छंद में लिखित होते हुए भी गेयता के गुण से पूर्ण है।
● कवि ने किसान की पारिवारिक स्थिति का अवलोकन कराया है।
● शब्द चयन सर्वथा उचित है।




1.
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण ।
दैन्य दुख की नीरव रोदन।
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे माँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका।

प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
क) इस अंश में कवि ने किसान की दयनीय दशा का वर्णन किया है। वह हताश व उदासीन है। समाज द्वारा उसकी उपेक्षा करना सर्वथा अनुचित है।

ख) 
• 'अंधकार की गुहा सरीखी' में उपमा
• 'दारुण दैन्य दुख' में अनुप्रास अलंकार है। अलंकार है।
• 'संसार कगार सदृश' में उपमा अलंकार है।
• संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है।
• करुण रस है।
• भाषा में लाक्षणिकता है।
• 'संसार में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

2.
लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बदलखल वह अब जिनसे
हँसती थी उसके जीवन की
गया जवानी ही में मारा।
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी अखिों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
हरियाली जिनके तृन तृन से।

प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
ख) शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
क) इन पंक्तियों में जर्मीदारों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है। जमींदार किसानों की जमीन पर कब्जा करते हैं तथा विरोध करने पर युवाओं की हत्या तक कर दी जाती है।

ख) 
• 'तृन तृन' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
•जीवन की हरियाली में रूपक अलंकार है।
• 'हँसना' प्रसन्नता का परिचायक है।
• भाषा में लाक्षणिकता है।
•'आँखों का तारा' व 'आँखों में घूमना' मुहावरे
• कारकूनों द्वारा लाठी से मारे जाने से दृश्य बिंब का सशक्त प्रयोग है। साकार हुआ है।

3.
बिका दिया घर द्वार
महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह अह,
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी।
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती
अखिों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती

प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
ख) शिल्प सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
क) इस काव्यांश में महाजनी शोषण का मर्मस्पर्शी चित्र है। किसान से कर्ज वसूली के लिए उसके खेत, घर, आदि बिकवा दिया जाता है। ब्याज की वसूली के लिए बैल तक नीलाम करवाए जाते हैं।

ख) 
• बैलों की कुकी जैसे दृश्य कारुणिक हैं।
• 'किसे कब' में अनुप्रास अलंकार है।
• रह रह में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।
• 'बरधों शब्द से ग्रामीण परिवेश प्रस्तुत हो जाता है।
• खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
• मिश्रित शब्दावली है।
• उजरी.... देती?' में प्रश्न अलंकार है।
• आँखों में चुभना व ‘आँखों में नाचना' मुहावरे का सटीक प्रयोग है।


4.
बिना दवा-दपन के घरनी
स्वरग चली अखें आती भर
देख-रेख के बिना दुधमुंही
बिटिया दो दिन बाद गई मूर।
घर में विधवा रहीं पतोहू,
लछमी थी यद्यपि पति घातिन
पकड़ माया, कोतवाल ने
डूब कुएँ में मरी एक दिन।

प्रश्न
क) भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
ख) शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-
क) इस काव्यांश में किसान की फटेहाली, विवशता व शोषण का सजीव चित्रण है। अभाव के कारण पत्नी व बच्ची की मृत्यु पुलिस द्वारा पुत्रवधू का शोषण होना, फिर उसका आत्महत्या करना आदि परिस्थितियाँ किसान की लाचारी को व्यक्त करती हैं। पति की मृत्यु के लिए पनी को दोषी मानना भी समाज की रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।

ख) 
• करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है।
• ऑखें भर आना' मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
• खड़ी बोली है।
• अनुप्रास अलंकार है दवा दर्पन, दो दिन में मरी। भाषा प्रवाहमयी है।
• घरनी, स्वरग, लछमी, कोतवाल, पतोहू आदि शब्द ग्रामीण परिवेश को व्यक्त करते हैं।

Post a Comment

1Comments

If you have any doubts, Please let me know

Post a Comment