kanyadan class 10 hindi | Class 10 Hindi Kanyadan Explanation | class 10 hindi कन्यादान

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 कन्यादान

कविता का सार

प्रश्न-'कन्यादान' नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-'कन्यादान' ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। 'कोमलता' के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।

बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।


पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] कितना प्रामाणिक था उसका दुख

लड़की को दान में देते वक्त

जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

लड़की अभी सयानी नहीं थी

अभी इतनी भोली सरल थी

कि उसे सुख का आभास तो होता था

लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था

पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

शब्दार्थ-

प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चा। सयानी = समझदार। आभास = अनुभव, महसूस । बाँचना = पढ़ना।

धुंधले = अस्पष्ट । लयबद्ध = लय में बँधी हुई।


प्रश्न-(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।

(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।

(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।

(घ) कवि ने किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?

(ङ) माँ की अंतिम पूँजी कौन और कैसे है?

(च) 'दुख बाँचने' का आशय स्पष्ट कीजिए।

(छ) कवि ने किसे और क्यों धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है?

(ज) इस पद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

(झ) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।

(ञ) प्रस्तुत पद में निहित शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-(क) कवि का नाम-ऋतुराज।                      कविता का नाम-कन्यादान।


(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'कन्यादान' नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में बदलते हुए जीवन-मूल्यों का उल्लेख किया है। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानती, अपितु अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का पाठ भी उसे पढ़ाना चाहती है। वह उसे भावी जीवन के यथार्थ के विषय में भी बताती है।


(ग) कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिन दुःखों को सहन किया था, उन्हें अपनी बेटी को कन्यादान के समय बताना और समझाना अति आवश्यक था। यह एक सत्य है। कहने का भाव है कि आज के युग में बेटी के विवाह के समय कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसे जीवन के उन अनुभवों से भी अवगत करा देना उचित होगा जिनको माँ ने अपने जीवन में भोगा था ताकि बेटी अपना जीवन समुचित रूप से जी सके। माँ के लिए बेटी ही तो अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सब सुख-दुःख वह बेटी के साथ बाँटती थी। भले ही वह बेटी का विवाह कर रही थी, किंतु उसकी दृष्टि में बेटी अब भी अधिक समझदार नहीं थी। उसके पास सांसारिक जीवन के अनुभव नहीं थे। वह अत्यंत सरल एवं भोले स्वभाव वाली थी। वह दुःखों की उपस्थिति को अनुभव तो करती थी, किंतु उसे उन्हें पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि उसे धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही आता था, किंतु उसके अर्थ उसकी समझ में नहीं आते थे। कवि के कहने का भाव है कि कन्या भले ही विवाह के योग्य हो जाती है किंतु उसे उन्हें दुनियादारी की ऊँच-नीच व व्यवहार अभी पूरी तरह समझ में नहीं आते। उसमें इस समय इतनी योग्यता नहीं आ पाती कि वह दुनियावी भेदभाव को समझ सके। इसलिए माँ के द्वारा बेटी को समझाना उचित ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है।


(घ) कवि ने माँ के दुःखों को प्रामाणिक कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें भोगा एवं अनुभव किया है।


(ङ) बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी है क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुःख को उसी के साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे अधिक निकट होती है। वह उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है।


(च) 'दुःख बाँचना' का साधारण अर्थ दुःखों को पढ़ना है। यहाँ दुःख बाँचना का अभिप्राय है-जीवन में आने वाले दुःखों की समझ रखना अर्थात् दुःखों को गहराई से समझना व जानना है।


(छ) कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को थोड़ा बहुत अनुभव तो करती है, किंतु उनको गहराई से समझना व उनके कारणों पर विचार करना उसे नहीं आता। इसलिए उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है जोकि उचित है।


(ज) प्रस्तुत पद्यांश का मूल भाव बदलते जीवन-मूल्यों के समय परंपरागत विचारों में भी बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त करना है। आज बेटी को कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं अपितु माँ को चाहिए कि वे अपने जीवन के अनुभवों से भी उसे अवगत कराए ताकि वह अपना वैवाहिक जीवन भली-भाँति व्यतीत कर सके।


(झ) कवि ने कन्या की विवाहपूर्व स्थिति का अत्यंत सूक्ष्मता एवं भावनात्मकतापूर्ण वर्णन किया है। कन्या की चिंता में घुलती माँ की मनोदशा का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया गया है।


(ञ) • प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अर्थ-लय का सुंदर मिश्रण किया है जिससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

• भाषा सरल एवं सहज होते हुए भी भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।

• तत्सम शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।

• अंतिम पूँजी में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

• 'दुःख बाँचना' लाक्षणिक प्रयोग है।

• 'धुंधला प्रकाश', 'तुक', 'समलय पंक्तियाँ' आदि प्रतीकात्मक प्रयोग हैं।


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[2] माँ ने कहा पानी में झाँककर

अपने चेहरे पर मत रीझना

आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

जलने के लिए नहीं

वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह

बंधन हैं स्त्री जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना

पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

शब्दार्थ-

रीझना = प्रसन्न होना। रोटियाँ सेंकना = रोटियाँ पकाना। आभूषण = गहने। भ्रम = धोखा।


प्रश्न-(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।

(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखिए।

(ग) इस पद्यांश की व्याख्या लिखिए।

(घ) माँ ने आग का क्या प्रयोग बताया और क्यों?

(ङ) वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों बताया गया है?

(च) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की जैसी दिखाई मत देना?

(छ) माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है?

(ज) 'शाब्दिक भ्रम' का क्या तात्पर्य है।

(झ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(ञ) प्रस्तुत पद्यावतरण में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।


उत्तर-(क) कवि का नाम-ऋतुराज।                           कविता का नाम-कन्यादान।


(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'कन्यादान' नामक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कविवर ऋतुराज ने एक माँ के द्वारा विदाई के समय पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा का उल्लेख किया है। अकसर नारियों को कोमल, कमज़ोर और असहाय बताया जाता है। माँ अपनी बेटी को इस भ्रम को तोड़कर जीवन जीने की शिक्षा देती है।


(ग) प्रस्तुत काव्यांश में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती हुई कहती है कि तुम कभी अपने चेहरे को पानी में देखकर अपनी सुंदरता पर प्रसन्न मत होना। कवि के कहने का भाव है कि कभी-कभी उनकी सुंदरता ही उनके लिए बंधन बन जाती है। दहेज के कारण लोग लड़कियों को जला देते हैं। इस भय के कारण माँ बेटी को समझाती है कि आग रोटी पकाने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। किसी भी ऐसी घटना से सदा सचेत रहना। देखा गया है कि लड़कियाँ ससुराल वालों के जुल्म सहती रहती हैं और कुछ बोलती भी नहीं। यदि समय रहते उसका विरोध किया जाए तो ऐसी घटना से बचा जा सकता है। अकसर नारी की कोमलता को उसकी कमज़ोरी मान लिया जाता है। नारी को अच्छे वस्त्रों और आभूषणों तक सीमित कर दिया जाता है। नारी के लिए नए-नए आदर्शों की व्याख्या की जाती है। उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है आदि। ऐसी बातें या आदर्श उसके बंधन बन जाते हैं। इसीलिए उसकी माँ कहती है कि लड़कियों की तरह रहना, किंतु लड़कियों की तरह दिखाई मत देना। कहने का भाव है कि हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना, किसी बात का विरोध न करना आदि। लड़कियों के गुणों से ऊपर उठकर अपनी बात को दृढ़ता से औरों के सामने रखना जिससे लोग स्त्री को अबला समझकर उस पर अत्याचार करने की हिम्मत न करें।


(घ) माँ ने अपनी बेटी की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए बताया है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है अर्थात् आग का प्रयोग भोजन बनाने के लिए होता है, स्वयं जलने के लिए नहीं। दुल्हनों को आग में जलाकर मारने की घटनाएँ प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं। अतः माँ ने बेटी को सावधान करते हुए ऐसा कहा है।


(ङ) स्त्री को लोग सौंदर्य की वस्तु समझते हैं। वह अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर और भी सुंदर लगती है। इस भावना को स्त्रियाँ भी समझती हैं। इसलिए वे सुंदर वस्त्रों और आभूषणों के प्रति मोह रखती हैं। अतः कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन के लिए बंधन कहा है।


(च) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ससुराल वाले लड़की को कमज़ोर समझकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और वह उनको सहती रहती है। वह किसी भी तरह का प्रतिवाद नहीं करती। किंतु उसे ऐसा नहीं होने देना चाहिए। उसे अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। उसे चुप नहीं रहना चाहिए।


(छ) माँ ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया क्योंकि प्रायः स्त्रियाँ अपनी सुंदरता पर रीझकर हर बंधन को निभा लेती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर उनके हर अत्याचार व अन्याय को भी सहन कर लेती हैं और अपने शोषण का विरोध नहीं करतीं।


(ज) 'शाब्दिक भ्रम' का तात्पर्य है कि शब्दों के द्वारा किसी अवास्तविक वस्तु को वास्तविक बताना। किसी वस्तु का शब्दों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना। इसकी समानता बहू को मिलने वाले सुंदर कपड़ों और आभूषणों से की गई है। ये भी बहू के मन में भ्रम पैदा करते हैं कि उसके ससुराल वाले उससे सचमुच प्यार करते हैं। कहने का भाव है कि माँ अपनी बेटी को ऐसे शाब्दिक भ्रमों से सावधान रहने के लिए कहती है।


(झ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन सब बातों व सामाजिक बंधनों के रहस्य को व्यक्त किया है जिनके कारण स्त्री को गुलाम बनाया जाता है। कवि ने नारी की सुंदरता, वस्त्र और आभूषणों के प्रति मोह, झूठी प्रशंसा, आदर्शों की व्याख्या आदि को नारी जीवन की गुलामी के कारण बताया है। इस भाव को अत्यंत कुशलता से अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त लड़कपन का होना भी कभी-कभी स्त्री के शोषण का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नारी इन बातों का ध्यान रखते हुए अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक व्यतीत कर सकती है।


(ञ) • कवि ने नारी को सामाजिक बंधनों से मुक्त रहने के लिए सुझाव दिए हैं।

• भाषा सांकेतिक है। पानी में झाँकना, लड़की होना, रोटियाँ सेंकना, जलने के लिए नहीं आदि प्रयोग इसके उदाहरण हैं। जो सांकेतिक होते हुए भी अपने में गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं।

• वाक्य-रचना अत्यंत सरल है।

• मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।

• लाक्षणिकता का प्रयोग हुआ है।


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