Utsah Class 10 Hindi Explanation | उत्साह Class 10 | Hindi Utsah Class 10 Explanation | Class 10 Hindi At Nahi Rahi Hai | At Nhi Rhi h Class 10 | अट नहीं रही है कविता
1. उत्साह
कविता का सार
प्रश्न- 'उत्साह' शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-‘उत्साह' शीर्षक कविता में कवि ने समाज में नई चेतना और सामाजिक परिवर्तन के लिए आह्वान किया है। कवि ने जीवन को व्यापक एवं समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति की चेतना को समानांतर रूप से ध्यान में रखा है। कवि बादलों को गरज-गरजकर बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे पानी बरसाकर तृप्त धरती की तपन दूर करके उसे शीतलता प्रदान करें।
पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो, बादल, गरजो!
शब्दार्थ-
घोर = भयंकर। धाराधर = जल की धारा धारण करने वाले। ललित = सुंदर। विद्युत-छबि = बिजली के समान सुंदरता। उर = हृदय। वज्र = कठोर, भीषण । नूतन = नई।
प्रश्न-(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने बादल को गरजने के लिए आह्वान क्यों किया है ?
(ङ) यहाँ बादलों को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है ?
(च) बादल किसकी कल्पना के समय पाले गए हैं ?
(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं ?
(ज) कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है ?
(झ) 'वज्र छिपा' में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत काय्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'। कविता का नाम-उत्साह ।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2' में संकलित 'उत्साह' नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं। कवि ने उत्साह एवं शक्ति के प्रतीक बादल का आह्वान किया है कि वे पीड़ित, दुःखी एवं प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। कवि ने बादलों को अंधविश्वास के अंकुर के विध्वंसक एवं क्रांति की चेतना को जागृत करने वाला कहा है।
(ग) कवि ने क्रांति के प्रतीक बादल को संबोधित करते हुए कहा है कि हे बादल! तुम खूब गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर खूब बरसो। घनघोर वर्षा करो। हे बादल! तुम बहुत ही सुंदर हो। तुम्हारा रूप घने काले और घुघराले बालों के समान है। तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले हुए हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा रखे हुए हो। तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम अपने जल द्वारा नया जीवन देने वाले हो। तुम्हारे भीतर वज्र की शक्ति विद्यमान है। हे बादल! तुम इस संसार को नई-नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने वाले हो। हे बादल! तुम खूब गरजो और सब में एक बार फिर नया जीवन भर दो।
(घ) कवि ने बादलों का आह्वान गरजने के लिए इसलिए किया है क्योंकि कवि वातावरण में जोश और क्रांति की भावना भर देना चाहता है। बादल की गर्जन को सुनकर सब में जोश भर जाता है।
(ङ) यहाँ बादलों को क्रांति उत्पन्न करने वाले साहसी व उत्साही वीर पुरुष के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।
(च) बादल नन्हें अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं। वे अत्यंत सुंदर एवं कोमल हैं।
(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं।
(ज) कवि बादलों को जल बरसाकर प्राणियों को सुख प्रदान करने के लिए कहते हैं।
(झ) 'वज्र छिपा' का तात्पर्य है कि बादलों के भीतर बिजली की कड़क छिपी हुई है। दूसरे शब्दों में, कवि के हृदय में भी उथल-पुथल करने वाली क्रांति की भावना छिपी हुई है।
(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्यासे और पीड़ित लोगों के हृदय की पीड़ा को दूर करके उनकी कामनाओं को पूरा करने का आह्वान किया है। कवि को बादलों की गर्जन प्रिय है क्योंकि उसमें शक्ति की भावना समाहित है। कवि समाज में क्रांति लाना चाहता है ताकि समाज में व्याप्त रूढ़िबद्ध परंपराएँ समाप्त हो जाएँ और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
(ट) . प्रस्तुत पद में कवि ने ओजस्वी वाणी में क्रांति के स्वर को मुखरित किया है।
• संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।
• लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण जहाँ भाव प्रभावशाली बन पड़े हैं, वहीं कविता में प्रवाह का समावेश भी हुआ है।
• संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
• 'ललित ललित काले घुंघराले' में अनुप्रास अलंकार है।
• 'घर-घेर, ललित-ललित' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
• 'बाल कल्पना के-से पाले' में उपमा अलंकार है।
• 'बादल गरजो' में मानवीकरण अलंकार है।
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[2] विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो, बादल, गरजो!
शब्दार्थ-
विकल = बेचैन। उन्मन = अनमना। निदाघ = तपती गर्मी। सकल = सारा। जन = मनुष्य। अज्ञात = अनजान। अनंत = असीम अज्ञान। घन = बादल। तप्त = तपी हुई। धरा = पृथ्वी।
प्रश्न-(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि बादल से क्या प्रार्थना करता है ?
(ङ) पृथ्वी पर लोग क्यों बेचैन हो रहे थे ?
(च) निदाघ' किसके प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है ?
(छ) बादल कहाँ से आकर आकाश में छा जाते हैं ?
(ज) 'तप्त धरा' का शाब्दिक व सांकेतिक अर्थ लिखिए।
(झ) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'। कविता का नाम-उत्साह।
(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2' में संकलित 'उत्साह' शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं। इस कविता में कवि ने बादलों का दुःख से पीड़ित मानवता को सुख प्रदान करने के लिए आह्वान किया है।
(ग) कवि कहता है कि चारों ओर व्याकुलता और बेचैनी थी। सब लोग परेशान थे तथा सबके मन अनमने व उचाट हो रहे थे। विश्व के सभी लोग भीषण गर्मी से दुःखी एवं पीड़ित थे। तब न जाने किस अज्ञात दिशा से बादल आकाश में छा गए। कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे बादलो! तुम खूब बरसो और गर्मी से पीड़ित लोगों को शीतलता प्रदान करो। खूब बरसो और जन-जन को ठंडक पहुँचाओ। हे बादल! तुम खूब गरजो।
(घ) कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वे गर्मी से तपी हुई धरती पर खूब जल बरसाओ और उसे शीतलता प्रदान करो।
(ङ) संपूर्ण पृथ्वी के लोग कष्टों व दुःखों रूपी गर्मी के कारण बेचैन व व्याकुल थे।
(च) कवि ने 'निदाघ' अर्थात् भीषण गर्मी का प्रयोग संसार के कष्टों के प्रतीकार्थ किया है।
(छ) बादल न जाने असीम आकाश के किस कोने से आकर चारों ओर छाया की भाँति छा जाते हैं।
(ज) 'तप्त धरा' का शाब्दिक अर्थ है--गर्मी से तपती हुई धरती तथा इसका सांकेतिक अर्थ है-सांसारिक दुःखों से पीड़ित मानव-जीवन।
(झ) प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों का मानवता को सुख देने के लिए आह्वान किया है। इस धरती पर सांसारिक कष्टों व पीड़ाओं से पीड़ित मनुष्य को सुख प्रदान करके उसे शांति व शीतलता प्रदान करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गर्मी से तपती हुई धरती को बादल वर्षा करके ठंडक प्रदान करते हैं।
(ञ) • कवि ने बादलों का मानवीकरण करके विषय को रोचक बना दिया है।
• भाषा सरल एवं सहज है।
• 'अनंत' के दो अर्थ हैं-ईश्वर और आकाश। इसलिए श्लेष अलंकार है।
• नाद-सौंदर्य विद्यमान है।
• ओजगुण सर्वत्र देखा जा सकता है।
• शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक बन पड़ी है।
(ट) संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है। छोटे-छोटे शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाह बना हुआ है। संबोधन शैली के प्रयोग से कविता में रोचकता का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।
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2. अट नहीं रही है
कविता का सार
प्रश्न- 'अट नहीं रही है' नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सौंदर्य से उत्पन्न मादकता का वर्णन किया है। कवि फागुन की सर्वव्यापक सुंदरता को कई संदर्भो में देखता है। कवि का मत है कि जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो तो उस समय उसे सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती नज़र आती है। हर तरफ से सुगंध अनुभव होती है। मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ फूट पड़ती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद जाते हैं। तरह-तरह के सुगंधित फूल भी खिल जाते हैं। सारे वन में प्राकृतिक छटा का दृश्य अत्यंत मनमोहक बन पड़ा है।
पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल
पाट पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
शब्दार्थ-
अट = समाना, प्रविष्ट करना। आभा = सुंदरता। नभ = आकाश । उर = हृदय। मंद-गंध = धीमी-धीमी सुगंध। पुष्प-माल = फूलों की माला। पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सुंदरता से परिपूर्ण। पट = न समाना।
प्रश्न-(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किस मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है ?
(ङ) घर-घर में क्या भर जाता है और क्यों ?
(च) कौन किसको उड़ने के लिए प्रेरित करता है ?
(छ) कवि की आँख किससे नहीं हटती और क्यों ?
(ज) वृक्षों पर किस प्रकार के पत्ते लद गए हैं ?
(झ) वन में क्या पट नहीं रही है ?
(ञ) फागुन के कारण वन-उपवन कैसे लग रहे हैं ?
(ट) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' । कविता का नाम-अट नहीं रही है।
(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'अट नहीं रही है' नामक कविता से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने फागुन मास की प्राकृतिक छटा का मनोरम चित्रण किया है। कवि ने अपने अनंत प्रिय को संबोधित करते हुए कहा है कि यह सब तुम्हारी शोभा का प्रकाश है जो समा नहीं रहा है।
(ग) कवि कहता है कि फागुन की सुंदरता व चमक कहीं भी समा नहीं रही है। प्रकृति का तन इस फागुनी सुंदरता से जगमगा रहा है। तुम पता नहीं कहाँ से साँस लेते हो और अपनी साँसों की सुगंध से घर भर देते हो अर्थात् कवि को हर जगह अपने प्रिय की साँसों की सुगंध अनुभव होती है। वे तुम्ही हो जो मन को ऊँची कल्पनाओं में उड़ने की प्रेरणा प्रदान करते हो। चारों ओर तुम्हारे सौंदर्य की आभा ही चमक रही है। मैं चाहकर भी इस सौंदर्य से आँख नहीं हटा सकता। कवि का मन प्राकृतिक सौंदर्य से बंधकर रह जाता है।
कवि पुनः कहता है कि फागुन मास में वन एवं उपवन के वृक्ष हरे-भरे, नए-नए पत्तों से लद गए हैं। इन वृक्षों पर विभिन्न रंगों के फूल खिले हुए हैं। कहीं कंठों में मंद सुगंधित पुष्पमालाएँ पड़ गई हैं। हे प्रिय! तुमने तो इस प्रकृति में इस सौंदर्य रूपी वैभव को इस प्रकार भर दिया है कि यह इस प्रकृति में समा नहीं रहा है।
(घ) कवि ने फागुन मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
(ङ) घर-घर में फागुन मास की शोभा और मस्ती भर जाती है। चारों ओर सुंदरता एवं मधुरता का वातावरण बन जाता है।
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(च) फागुन मास पक्षियों को उड़ने की प्रेरणा देता है अर्थात् फागुन मास के आते ही पक्षियों के जीवन में भी क्रियाशीलता अधिक तीव्रता से उत्पन्न हो जाती है। फागुन मास में मनुष्यों के मनों में भी ताज़गी भर जाती है और वे भी क्रियाशील हो उठते हैं।
(छ) कवि की आँख प्राकृतिक छटा से नहीं हटती क्योंकि कवि को फागुन मास की प्राकृतिक छटा देखना अत्यंत प्रिय लगता है।
(ज) फागुन मास के आते ही वृक्षों पर हरे-भरे व लाल-लाल पत्ते लद जाते हैं।
(झ) वन में प्राकृतिक छटा पट (समा) नहीं रही है।
(ञ) फागुन मास के कारण वन-उपवन सब महक उठे हैं। पेड़ों पर हरे-भरे व नए-नए पत्ते लद जाते हैं तथा तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। फूलों से लदे पेड़ ऐसे लगते हैं मानों उन्होंने फूलों से बनी हुई मालाएँ पहन रखी हों। वन-उपवनों में फागुन मास की छटा पट नहीं रही है।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फागुन मास के अपूर्व एवं असीम सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। कवि के अनुसार प्रकृति की अनंत सुंदरता व शोभा का कोई छोर नहीं है अर्थात् उसे सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। फागुन मास में प्रकृति का सौंदर्य ऐसा बन जाता है जो बरबस लोक लोचनों को बाँध लेता है।
(ठ) • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
• अट, सट, पट, पाट आदि लघु-लघु शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता बनी हुई है।
• देशज शब्दों का अत्यंत सुंदर प्रयोग देखते ही बनता है।
• भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।।
• कोमलकांत पदावली है।
• यमक, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
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sir aapka jitna dhanyawad karein utna kam h . sir apko mera shat shat naman evum dandwar pranam
ReplyDeleteLand lelo kela le lo madharchod
Deletesaram karo
DeleteDhanyawad sir ap humari bhut madad karte h
ReplyDeletebahut achaa laga
ReplyDeleteaap hindi bahut mast padhate hai
....
Yes
DeleteU r absolutely right
Deletenice
ReplyDeleteYes
DeleteI have never seen a person who is hardworking like you sir❤️
ReplyDeleteU r really a great teacher..👍😊😊
Yes he is..
Deleteright bro or sis if you are a girl
DeleteThank You so much for doing this all for students for free , thank u
ReplyDeleteSir ne to tumhare liye itna kr diya ab bari hai ki tum board exam me sir ke liye kuch kro
DeleteIt's the best study material anyone could afford. Thank you so much sir.
ReplyDeleteVery awesome sir i am Very thanku full to to you sir
ReplyDeleteYou are God for us sir
ReplyDeleteYour notes and vedio are very helpful for us
Really helphul
ReplyDeleteGreat material Sir... Tq sir!
ReplyDeleteThis pdf page is too helpful tomorrow is my pre board exam and I got so help from this Thanku Sir 😊
ReplyDeleteSuch an amazing work !
ReplyDeleteKitna comment krte ho bhai
DeleteVery op aaj se phele aisa teacher nahi mila hindi ka kasam se mai apka kaise shukriya karu smaj nahi aa rha . Aap plz sandesh lekhan pe video bna de plz
ReplyDeleteThanks sir ji aapne hamre liye itna kiya.. Aaapka dhanyavaad.. ✌✌
ReplyDeletebest notes on internet sir
ReplyDeletesir me northeast area se ho mujhe bohut tough lagta hai hindi aur mere hindi coarse A mujhe pata nahi me hindi kesa parroh :(
ReplyDeleteThank uh sir !! This notes really help me for term 2 board exam.
ReplyDeleteSir kal exam h Or aaj aapke notes pdh rha hu😜
ReplyDeleteMain bhi bro🤪
DeleteMai to exam me hi dekh raha hu aisi isthiti hai
Deletesame
DeleteSir you are best teacher
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThanku sir
ReplyDeletehttps://url-shortner.rf.gd/group-invite
ReplyDeleteSir you really helped me a lot in my hindi exams thank you sir for all your support tomorrow is my hindi board exam
ReplyDeleteVery easy to understand
ReplyDeletethank you sir
ReplyDeletedhanyabaad guruji
ReplyDeleteSo much thank you sir
ReplyDeleteSir is page par utshat chapter ki written summary nhi hai...
ReplyDeleteInstagram = captcha1o1
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