Premghan ki Chhaya Smriti Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Premghan ki Chhaya Smriti Question Answer | प्रेमघन की छाया स्मृति के प्रश्न उत्तर

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Premghan ki Chhaya Smriti Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Premghan ki Chhaya Smriti Question Answer | प्रेमघन की छाया स्मृति के प्रश्न उत्तर


 प्रश्न 1. लेखक शुक्ल जी ने अपने पिता की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?

उत्तर : लेखक ने अपने पिता की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है :

– पिताजी फारसी के अच्छे ज्ञाता थे।

– वे पुरानी हिंदी के बड़े प्रेमी थे।

– उन्हें फारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उवितयों के साथ मिलाने में बड़ा आनंद आता था। – वे रात के समय ‘रामचरितमानस’ और रामचंद्रिका’ ‘को घर के लोगों के सम्मुख बड़े चित्राकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे।

– उन्हें भारतेंदु जी के नाटक बहुत पसंद थे।

– वे लेखक की पढ़ाई को ध्यान में रखकर घर में आई पुस्तकों को छिपा देते थे।

 

प्रश्न 2. बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी ?

उत्तर : बचपन में शुक्ल जी के मन में भारतेंदु जी के संबंध में एक अपूर्व मधुरता की भावना जगी रहती थी। उनकी आयु उस समय केवल आठ वर्ष की थी। उनकी बाल बुद्धि ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में कोई भेद नहीं कर पाती थी। वे दोनों को एक ही समझते थे। हरिश्चंद्र शब्द से दोनों ही एक मिली-जुली भावना का अनुभव करते थे। उनके बारे में एक अपूर्व माधुर्य का संचार उनके मन में होता रहता था। जब उन्हें पता चला कि मिर्जापुर में भारतेंदु के एक मित्र रहते हैं तो उनके बारे में उत्कंठा जाग गई।


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प्रश्न 3. उपाध्याय बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी ?

उत्तर : लेखक मिर्जापुर में नगर से बाहर रहते थे। वहीं उन्हें पता चला कि भारतेन्दु जी के मित्र उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ रहते हैं। – डेढ़ मील का सफर तय करके सभी बालक एक मकान के नीचे पहुँचे। – प्रेमघन से मिलने की योजना बनाई गई। कुछ उन बालकों को एकत्रित किया गया जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे। उन्हें आगे किया गया। – नीचे का बरामदा खाली था। ऊपर का बरामदा लताओं के जाल से आवृत्त था। – लेखक ने ऊपर की ओर देखा। काफी देर बाद लताओं के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई दी। – ये ही चौधरी प्रेमघन थे। उनके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। – देखते ही देखते यह मूर्ति दृष्टि से ओझल हो गई। यही बदरीनारायण चौधरी की पहली झलक थी, जो लेखक ने देखी।

 

प्रश्न 4. लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव किस प्रकार बढ़ता गया ?

उत्तर : लेखक के घर में हिंदी का वातावरण तो बचपन से ही था। वह ज्यों-ज्यों सयाना होता गया, त्यों-त्यों हिंदी-साहित्य की ओर उसका झुकाव बढ़ता गया। जब वह क्वींस कॉलेज में पढ़ता था तब स्व. रामकृष्ण वर्मा उनके पिताजी के सहपाठियों में से एक थे। लेखक के घर में भारत जीवन प्रेस की पुस्तके आया करती थीं, पर पिताजी उन्हें इसलिए छिपा कर रखते थे कि कहीं बेटे का चित्त स्कूल की पढ़ाई से न हट जाए। उन्हीं दिनों पं. केदारनाथ पाठक ने एक हिंदी पुस्तकालय खोला था। लेखक वहाँ से पुस्तकें लाकर पढ़ा करता था। बाद में लेखक की पाठक जी के साथ गहरी मित्रता हो गई। 16 वर्ष की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते उसे समवयस्क हिंदी-प्रेमियों की अच्छी-खासी मंडली मिल गई। इनमें प्रमुख थे-काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पं. बदरीनाथ गौड़, पं. उमाशंकर द्विवेदी आदि। इस मंडली में हिंदी के नए-पुराने लेखकों की चर्चा होती रहती थी। अब शुक्ल जी भी स्वयं को लेखक मानने लगे थे। इस प्रकार उनका झुकाव हिंदी-साहित्य के प्रति बढ़ता चला गया।

 

प्रश्न 5. ‘निस्संदेह’ शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का जिक्र किया है ?

उत्तर : लेखक और उनके मित्रों की बातचीत प्रायः लिखने-पढ़ने की हिंदी में हुआ करती थी। इसमें ‘निस्संदेह’ शब्द प्राय: आया करता था। जिस स्थान पर लेखक रहता था, वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार, कचहरी के अफसर और कर्मचारी रहते थे। वे प्रायः उर्दू का प्रयोग करते थे। उनके उर्दू करनों में लेखक-मंडली की हिंदी बोली कुछ अनोखी लगती थी। इसी कारण उन लोगों ने इस लेखक-मंडली के लोगों का नाम ‘निस्संदेह’ रख छोड़ा था।


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प्रश्न 6. पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : पहली रोचक घटना : एक बार की बात है कि मिर्जापुर में एक प्रतिभाशाली कवि वामनाचार्य गिरि रहते थे। एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। अंतिम चरण अभी रह गया था कि उन्हें बरामदे में चौधरी साहब कंधों पर बाल छिटकाए खंभे के सहारे खड़े दिखाई दिए। बस वामन जी का कवित्त इस पंक्ति के साथ पूरा हो गया- “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।” (अर्थात् चौधरी साहब मुगल-रानी के समान लग रहे थे।)

दूसरी रोचक घटना : एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहाँ पहुँचे। उन्हें देखते ही सवाल पूछा-” क्यों साहब, एक लफ्ज (शब्द) मैं अक्सर सुना करता हूँ, पर उसका अर्थ ठीक से समझ में नहीं आया है। आखिर ‘घनचक्कर’ शब्द के क्या मानी है। उसके लक्षण क्या हैं ?” पड़ोसी महाशय तुरंत बोले- ” वाह, यह क्या मुश्किल बात है। एक दिन रात को सोने से पहले कागज-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, सब लिख जाइए और पढ़ जाइए।” (अर्थात् ऐसा व्यक्ति ही घनचक्कर होता है-व्यंग्य)

तीसरी रोचक घटना : एक बार गमी के दिनों में कई आदमी छत पर बैठकर चौधरी साहब से बातचीत कर रहे थे। चौधरी साहब के पास एक लैम्प जल रहा था तभी लैम्प की बत्ती भभकने लगी। चौधरी साहब इसे बुझाने के लिए नौकरों को आवाज देने लगे। लेखक ने चाहा कि वह आगे बढ़कर बत्ती को नीचे गिरा दे पर पं. बदरीनारायण ने तमाशा देखने के विचार से लेखक को रोक दिया। चौधरी साहब कहते जा रहे थे- अरे, जब फूट जाई तबै चलत आवह” और अंत में चिमनी ग्लोब सहित चकनाचूर हो गई, पर चौधरी साहब का हाथ लैम्य की तरफ न बढ़ा।

 

प्रश्न 7. “इस पुरातत्त्व की दृष्टि से प्रेम और कुतूल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ~ यह कथन बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन के संदर्भ में कहा गया है।

~ लेखक का उनसे अच्छा परिचय हो गया था। अतः अब वह वहाँ एक लेखक की हैसियत से जाता था।

~ लेखक की मित्र-मंडली उन्हें एक पुरानी चीज समझती थी।

~ उनमें प्रेम और कौतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था। लेखक और उनके मित्र उन्हें महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मानकर उनके बारे में जानने को उत्सुक रहते थे।


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प्रश्न 8. प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?

उत्तर : प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है :

– आकर्षक व्यक्तित्व

चौधरी साहब एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। उनके बाल कंधों पर बिखरे रहते थे। वे एक भव्य मूर्ति के समान प्रतीत होते थे। तभी वामनाचार्य जी ने उन्हें देखकर ‘मुगलानी नारी’ कहा था।

– रईसी प्रवृत्ति वाले

चौधरी साहब एक अच्छे-खासे हिंदुस्तानी रईस थे। उनकी हर अदा से रियासत और तबीयतदारी टपकती थी। जब वे टहलते थे तब एक छोटा-सा लड़का पान की तश्तरी लिए उनके पीछे-पीछे लगा रहता था।

– उत्सव प्रेमी

चौधरी साहब के यहाँ वसंत पंचमी, होली इत्यादि अवसरों पर खूब नाचरंग और उत्सव हुआ करते थे।

– वचन-वक्रता

चौधरी साहब बात की काँट-छाँट करने में अनोखे थे। उनके मुँह से जो बात निकलती थी, उसमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी। उनकी बातचीत का ढंग निराला होता था। नौकरों के साथ उनका संवाद सुनने लायक होता था।

– प्रसिद्ध कवि

चौधरी साहब एक प्रसिद्ध कवि थे। उनका पूरा नाम था-उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’। उनके घर पर लेखकों की भीड़ रहती थी।

 

प्रश्न 9. समवयस्क हिंदी-प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे ?

उत्तर : लेखक की समवयस्क हिंदी-प्रेमियों की मंडली में निम्नलिखित लेखक मुख्य थे :

~ काशीप्रसाद जायसवाल

~ बा. भगवानदास हालना

~ पं. बदरीनाथ गौड़

~ पं. उमाशंकर द्विवेदी।

 

प्रश्न 10. ‘भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।’कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक,एक बार एक बारात में काशी गया। वह घूमता हुआ निकला तो उसे पें, केदारनाथ पाठक दिखाई पड़े। लेखक उनके पुस्तकालय में प्रायः जाया करता था, अतः पाठक जी लेखक को देखते ही वहीं खड़े हो गए। दोनों में वहीं बातचीत होने लगी। इसी बातचीत में मालूम हुआ कि पाठक जी जिस मकान से निकले थे वह भारतेंदु जी का ही घर था। लेखक बड़ी चाह और कुतूहल की दृष्टि से उस मकान की ओर देखता रहा। उस समय लेखक भावों में लीन था। पाठक जी लेखक की ऐसी भावुकता देकर बड़े प्रसन्न हुए। उन दिनों का यह हृदय-परिचय भारतेंदु के मकान के नीचे हुआ था, जो आगे चलकर शीघ्र ही गहरी मित्रता में बदल गया। वे दोनों गहरे मित्र बन गए।

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  1. बहुत ही आभार आपका ,,बहुत ही अच्छे एवम सरल भाषा में प्रश्नों के बेहतर उत्तर देने के लिए । धन्यवाद सर।
    और अध्याय के प्रश्नोत्तर भी प्रकाशित कीजिए

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  2. Short question ❓

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  3. Such a good and helpful answers i got thankyou!!

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