Bharat Ram Prem Important Question Answer | Bharat Ram ka Prem Class 12 Question Answer | तुलसीदास भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर

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Bharat Ram Prem Question Answer | Bharat Ram ka Prem Class 12 Question Answer | तुलसीदास भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर



 प्रश्न 1. राम के जूतों को देखकर कौशल्या पर क्या प्रतिक्रिया होती है?

उत्तर : राम वनवास को चले गए। कौशल्या उनकी चीजों को देखकर व्याकुल हो जाती है। वह राम की सुंदर जूतियों को कभी आँखों से छूती है और कभी उसे हृदय से लगा लेती है। जूतों के माध्यम से कौशल्या को राम की निकटता, स्पर्श, महसूस होता है। ये जूते राम की स्मृति के लिए उद्दीपन का कार्य करते हैं।


प्रश्न 2. भरत और राम के प्रेम को वर्तमान के लिए आप कितना प्रासंगिक मानते हैं?

उत्तर : भरत और राम के काल को आस्था और विश्वास का काल कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। लोग परस्पर प्रेम-सौहार्द्र बनाए हुए भातृवत रहते थे। दो सहोदर भाइयों में यह भावना और भी घनिष्ठ हुआ करती थी। भरत और राम का परस्पर प्रेम सराहनीय और अनुकरणीय था। वर्तमान युग भौतिकवादी है। लोग धन के लिए हर अच्छे-बुरे कर्म करने को तैयार हैं। ज़मीन-ज़ायदाद के लिए भाई-भाई की हत्या करता है। रिश्ते-नाते अपनी मर्यादा खोते जा रहे हैं। ऐसे समय में भरत और राम का प्रेम और भी प्रासंगिक हो जाता है। यदि सभी मनुष्य ऐसा ही प्रेम करने लगे तो बहुत-सी सामाजिक समस्याएँ समाप्त हो जाएँगी।


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प्रश्न 3. पठित कविता के आधार पर तुलसी की काव्य-भाषा पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रामचरितमानस’ के अयोध्या कांड का कुछ अंश तथा ‘गीतावली’ के दो पद संकलित हैं। इनके आधार पर तुलसी की काव्य भाषा के बारे में यह कहा जा सकता है कि भाषा पर तुलसी का असाधारण अधिकार है। तुलसीदास ने क्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं का अधिकारपूर्ण प्रयोग किया है। ‘रामचरितमानस’ में अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है, तो ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘ दोहावली’ और ‘विनयपत्रिका’ में ब्रजभाषा प्रयुक्त हुई है। तुलसी की भाषा सुगठित, भावानुकूल तथा परिमार्जित है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

1. अलंकार विधान : तुलसीदास ने काव्य में भावों का उत्कर्ष करने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया है। उन्होंने रूपक, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, उपमा, उत्र्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं –

उपमा अलंकार : चित्रलिखी-सी, सिखी-सी

रूपक अलंकार : कर-पंकज

उत्र्रेक्षा अलंकार : मनहुँ कमल हिममारे

अनुप्रास अलंकार : बाजि बिलोकि, नीरज नयन, मातु

मंदि दृष्टांत : मुकुता ‘काली

2. छंद-विधानः तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में चौपाई-दोहा छंद शैली को अपनाया है। ‘गीतावली’ में पद है। अन्य काव्यों में सवैया और छप्पय छंद भी अपनाए गए हैं।

3. काव्य-रूप : तुलसीदास ने प्रबंध एवं मुक्तक दोनों काव्य-रूपों में रचना की। ‘रामचरितमानस’ प्रबंध काव्य है तो ‘दोहावली’, ‘गीतावली’ मुक्तक शैली में हैं


प्रश्न 5. व्याख्या कीजिए :

मातु मंबि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली॥ फरइ कि कोदब बालि सुसाली। मुकुता प्रसब कि संबुक काली।

सपनेहुँ दोसक लेसु न काहू। मोर अभाग उदधि अवगाहू॥ बिनु समुझें निज अघ परिपाकू। जारेउँ जायं जननि कहि काकू॥

व्याख्या : भाव विद्धल होकर भरत कहते हैं कि मुझे आज यह कहना शोभा तो नहीं देता क्योंकि अपनी समझ में कौन साधु और कौन पवित्र है, यह कहा नहीं जा सकता। इसका निर्णय दूसरे लोग ही करते हैं अर्थात् माता नीच है और मैं सदाचारी या साधु हूँ. ऐसी बात हृदय में लाना भी करोड़ों दुराचारों के समान है । मैं स्वप्न में भी किसी को दोष देना नहीं चाहता। क्या कोदों की बाली से उत्तम धान पैदा हो सकता है ? क्या काली घोंघी उत्तम कोटि के मोती उत्पन्न कर सकती है ? अर्थात् नहीं। वास्तव में मेरा दुर्भाग्य ही अथाह समुद्र और प्रबल है। मैंने अपने पूर्व जन्म के पापों का परिणाम समझे बिना ही माता को कटु वचन कहकर उन्हें बहुत जलाया या दुखी किया है।

विशेष :

1. भरत जी अपनी इस स्थिति के लिए विधाता को दोषी ठहराते हैं।

2. दृष्टांत अलंकार (मुकुता ……. काली) का सटीक प्रयोग है ।

3. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है-मातु मंदि, समुझि साधु, सुचि, जारहिं जायँ जननि, गुरु गोसाँइ, साहिब सिय आदि।

4. भाषा : अवधी।

5. छंद : चौपाई-दोहा।

6. रस : करुण रस।


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प्रश्न 6. राम के वन-गमन के बाद उनकी माँ की दशा का वर्णन तुलसीदास के पद के आधार पर कीजिए।

उत्तर : राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या अत्यंत भावुक हो उठती हैं। वह व्याकुलता का अनुभव करती हैं। राम से संबंधित वस्तुएँ उन्हें पुत्र राम का स्मरण करा देती हैं। वह राम के धनुष-बाण को देखती हैं, राम की जूतियों को देखती हैं और हृदय तथा नेत्रों से लगाती हैं। माता कौशल्या चित्रवत् मनःस्थिति में आ जाती हैं। वह इधर-उधर हिलती-डुलती तक नहीं। वह चकित-सी रह जाती हैं। जिस प्रकार चित्र में कोई आकृति स्थिर रहती है, वही दशा कौशल्या की हो गई। जो कौशल्या अभी तक राम की वस्तुओं को देखकर और राम के बचपन का स्मरण करके मुग्धावस्था में थी, वही राम के वन-गमन को याद करके स्थिर चित्र-सी हो जाती हैं।


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प्रश्न 7. ‘गीतावली’ के पद ‘जननी निरखति बान ध नुहियाँ” के आधार पर राम के वन-गमन के पश्चात् माँ कौशल्या की मनःस्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर : माता कौशल्या राम के बचपन की चीजों को देखकर और स्मरण करके अत्यंत व्याकुल हो जाती हैं। ये चीजें उनकी वेदना को बढ़ाने में उद्दीपन का काम करती हैं। वे श्रीराम के बचपन के छोटे-छोटे धनुष बाण को देखती हैं। श्रीराम की शैशवकालीन जूतियों को देखकर उन्हें बार-बार अपने हुदय और नेत्रों से लगाती हैं। वे यह भूल जाती हैं कि अब उनके पुत्र श्रीराम यहाँ नहीं हैं और वे पहले की तरह प्रिय वचन बोलती हुई राम के शयन कक्ष में जाती हैं और उन्हें जगाते हुए कहती हैं-हे पुत्री ! उठो। तुम्हारी माता तुम्हारे मुख पर बलिहारी जाती है। उठो, दरवाजे पर तुम्हारे सभी सखा और अनुज खड़े होकर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कभी वे कहती हैं-भैया, महाराज के पास जाओ, तुम्हें बहुत देर हो गई है। अपने भाइयों तथा साथियों को बुला लो, जो रुचिकर लगे वह खा लो। तुम्हारी माँ तुम पर न्यौछावर जाती है। किन्तु जैसे ही उनको स्मरण होता है कि राम यहाँ नहीं हैं, वे तो वन को चले गए हैं, तब वे चित्रवत् होकर रह जाती हैं अर्थात् चित्र के समान स्तब्ध और चकित रह जाती हैं।


प्रश्न 8. ‘गीतावली’ में संकलित पद ‘राधौ ! एक बार फिरि आवौ’ में निहित करुणाजनक संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : ‘राधौ एक बार फिरि आवौ’ में माता कौशल्या की करुणा और संदेश निहित है। माता कौशल्या इस पंक्ति के माध्यम से राम को पुनः अयोध्या लौटने का आग्रह करती हैं। अब की बार वह अपने लिए न कहकर घोड़ों के लिए आने को कहती हैं। राम के वियोग में उनके अश्वों का दु:ख उससे देखा नहीं जाता और वे दिन-प्रतिदिन दुर्वल होते जा रहे हैं। अपने स्वामी राम के हाथों का स्पर्श पाकर वे भली प्रकार जी सकेंगे। इस पद में पशुओं के प्रति करुणा भाव दर्शाया गया है। इस पद में राघौ (रघुपति राम) को अयोध्या लौट आने का संदेश दिया गया है। हमारे लिए यह संदेश है कि पशुओं के प्रति भी हमें दया का भाव रखना चाहिए।


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