Bharat Ram ka Prem Class 12 Question Answer | Class 12th Hindi Bharat Ram ka Prem Question Answer | भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर | तुलसीदास भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर

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Bharat Ram ka Prem Class 12 Question Answer | Class 12th Hindi Bharat Ram ka Prem Question Answer | भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर | तुलसीदास भरत राम का प्रेम प्रश्न उत्तर 



भरत-राम का प्रेम  


प्रश्न 1. ‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है ?

उत्तर : भरत के इस कथन का आशय है कि श्रीराम में बचपन से ही बड़प्पन की भावना थी। वे अपने छोटे भाइयों को अत्यधिक स्नेह करते थे। वे कभी भी उनका दिल दुखी नहीं करते थे। खेल खेलते समय भी वे जानबूझ कर इसलिए हार जाते थे ताकि भरत के दिल को चोट न पहुँचे। वे भरत को जान-बूझकर जिता देते थे, जिससे उसका उत्साह बढ़ा रहे। जहाँ राम अपने अनुज के प्रति स्नेह रखते थे वहीं भरत के मन में बड़े भाई राम के प्रति कृतजता का भाव है। वे उस भाव का ही यहाँ प्रकटीकरण कर रहे हैं।


प्रश्न 2. ‘मैं जानड़ं निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है ?

अथवा

तुलसीदास के भरत-राम का प्रेम पद में भरत ने राम के स्वभाव की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

उत्तर : इस काव्य-पंक्ति में राम के स्वभाव की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है :

राम तो अपराधी व्यक्ति तक पर क्रोध नहीं करते, फिर सामान्य व्यक्ति पर क्रोध करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

भरत पर उनकी विशेष कृपा रहती थी क्योक वे उनके अनुज थे।

राम तो खेलने में भी कभी खुनिस नहीं निकालते थे। वे अपनी अप्रसन्नता प्रकट नहीं करते थे।

राम ने बचपन से ही उनका साथ दिया है।

वे के कभी भरत का दिल नहीं दुःखा सकते थे। अतः खेल में जीतकर भी हार जाते थे और भरत को जिता देते थे।


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प्रश्न 3. भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है ?

उत्तर : भरत अपनी माता द्वारा की गई भयंकर भूल के लिए स्वयं परिताप करते हैं। वे इस दुखद स्थिति के लिए स्वयं को दोषी ठहराते हैं। वे माता को दोषी और स्वयं को साधु के रूप में नहीं दर्शाना चाहते। वे इस स्थिति को अपने पापों का परिणाम बताते हैं। वह अपने माता के प्रति कटु वचनों के लिए भी पछताते हैं और कहते हैं कि मैंने उनको कटु वचन कहकर व्यर्थ ही जलाया। इस प्रकार भरत का आत्म परिताप दोहरा है। वह अपने स्वामी राम के समक्ष भी अपना परिताप करते हैं और माता कैकेयी के प्रति कहे गए कटु वचनों के लिए भी परिताप करते हैं। वे कहते हैं कि मैं ही सब अनर्थों का मूल हूँ। वे तो इतना दारुण दुःख झेलकर स्वयं के जीवित रह जाने पर भी हैरानी प्रकट करते हैं। भरत का यह आत्म परिताप उनके हुदय की पवित्रता तथा बड़े भाई के प्रति अथाह प्रेम एवं श्रद्धा के उज्ज्वल पक्ष की ओर संकेत करता है।


प्रश्न 4. राम के प्रति अपने श्रद्धा भाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भरत के मन में अपने बड़े भाई राम के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव है। वे उनके समक्ष खड़े होकर पुलकित हो जाते हैं तथा श्रद्धा भाव की अधिकता के कारण उनके नेत्रों में प्रेमाश्रुओं की बाढ़-सी आ जाती है। वे अपने बड़े भाई को श्रद्धावश बार-बार स्वामी कहते हैं। वे प्रभु के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख करके उनके प्रति अपने श्रद्धा भाव की अभिव्यक्ति करते हैं। वे सीताराम को देखकर अच्छे परिणाम की उम्मीद करते हैं। वे वन में श्रीराम की दशा देखकर अत्यंत व्याकुल होते हैं। उनकी यह व्याकुलता राम के प्रति श्रद्धा रखे के कारण ही तो है।


प्रश्न 5. ‘मही सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : इस पंक्ति के द्वारा भरत के विचार-भावों के बारे में यह पता चलता है कि भरत पृथ्वी पर होने वाले सभी अनर्थों के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। उनके मन में प्रायश्चित की भावना है। वे स्वयं को अपराधी की भाँति मानते हैं। इस पंक्ति से यह भी पता चलता है कि उनके मन में किसी के प्रति कलुष भाव शेष नहीं रह गया है। वे तो माता कैकेयी को कहे गए अपने कटु वचनों के लिए भी खेद प्रकट करते हैं। वे सारा दोष अपने ऊपर ले लेते हैं। यह उनके हृदय की विशालता का परिचायक है।


प्रश्न 6. ‘फरै कि कोदव बलि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।’-पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : भाव : भरत यह दृष्टांत देकर यह स्पष्ट करना चाहते हैं जिस प्रकार कोदों की बाली में उत्तम धान (चावल) नहीं फल सकता और तालाब की काली घोंघी में मोती नहीं बनता, उसी प्रकार अच्छी बात या वस्तु के लिए वातावरण की पवित्रता आवश्यक है। गलत स्थान पर गलत किस्म की चीज ही उत्पन्न होती है। भरत के इस कथन से उसके चरित्र की उदात्र भावना प्रकट होती है।

शिल्प-सौंदर्य :

दृष्टांत अलंकार का सटीक प्रयोग किया गया है।

‘कि कोदव’ में अनुप्रास अलंकार है।

अवधी भाषा प्रयुक्त है।

चौपाई छंद है।


तुलसीदास पद 


प्रश्न 1. राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर : राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या अत्यंत भावुक हो उठती हैं। वह व्याकुलता का अनुभव करती हैं। राम से संबंधित वस्तुएँ उन्हें पुत्र राम का स्मरण करा देती हैं। वह राम के धनुष-बाण को देखती हैं, राम की जूतियों को देखती हैं और भावविहललता वश उन्हें अपने हृदय और नेत्रों से लगाती हैं। राम के घोड़े भी उन्हें आर्शंकित कर देते हैं कि कहीं वे मर न जाएँ क्योंकि वे दिन-प्रतिदिन दुर्बल होते जा रहे हैं।


प्रश्न 2. ‘रहि चकि चित्रलिखी-सी’ पंक्ति का मर्म

उत्तर : इस पंक्ति का मर्म यह है कि राम का स्मरण करके माता कौशल्या चित्रवत् मनःस्थिति में आ जाती हैं। वह इधर-उधर हिलती-डुलती तक नहीं। वह चकित-सी रह जाती हैं। जिस प्रकार चित्र में कोई आकृति स्थिर रहती है, वही दशा कौशल्या की हो गई। जो कौशल्या अभी तक राम की वस्तुओं को देखकर और राम के बचपन का स्मरण करके मुग्धावस्था में थी, वही राम के वन-गमन को याद करके स्थिर चित्र-सी हो जाती है।


प्रश्न 3. गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ में निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ में माता कौशल्या की करुणा और संदेश निहित है। माता कौशल्या इस पंक्ति के माध्यम से राम को पुनः अयोध्या लौटने का आग्रह करती हैं। अबकी बार वह अपने लिए न कहकर घोड़ों के लिए आने को कहती हैं। राम के वियोग में उनके अश्वों का दु:ख उससे देखा नहीं जाता और वे दिन-प्रतिदिन दुर्बल होते जा रहे हैं। अपने स्वामी राम के हाथों का स्पर्श पाकर वे भली प्रकार जी सकेंगे। इस पद में पशुओं के प्रति करुणा भाव दर्शाया गया है। इस पद में राघौ (रघुपति राम) को अयोध्या लौट आने का संदेश दिया गया है। हमारे लिए यह संदेश है कि पशुओं के प्रति भी हमें दया का भाव रखना चाहिए।


प्रश्न 4. (क) उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।

उत्तर: उपमा अलंकार के दो उदाहरण –

1. रहि चकि चित्रलिखी-सी

2. लागति प्रीति सिखी-सी।

(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है ? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

उत्तर : जब उपमेय में उपमा की संभावना प्रकट की जाती है तब उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग माना जाता है।

‘गीतावली’ से संकलित दूसरे पद में अश्वों की मुरझाई दशा में हिम की मार झेलते कमलों की संभावना प्रकट की गई है’…’मनहुँ कमल हिममारे।’

 

प्रश्न 5. पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था।

उत्तर : हमने ‘गीतावली’ के दो पद पढ़े हैं। इन पदों को पढ़कर पता चलता है कि तुलसी का भाषा पर पूरा अधिकार है। उन्होंने जहाँ ‘रामचरितमानस’ में अवधी भाषा का प्रयोग किया है वहीं गीतावली में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास का अवधी और ब्रज-दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। ‘गीतावली’ की रचना उन्होंने पद-शैली में की है।

गीतावली के पदों की भाषा में ब्रजभाषा का माधुर्य उभर कर आया है। उन्होंने इन पदों की भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग किया है।

उदाहरणार्थ : उपमा अलंकार – चित्रलिखी-सी, सिखी-सी

अनुप्रास अलंकार – बंधु बोलि, चकि चित्रलिखी

उत्रेक्षा अलंकार – “मनहु कमल हिम मारे

तुलसी की भाषा में भावों की गहराई है।


प्रश्न 6. पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं, उन्हें छाँटकर लिखिए।

उत्तर : अनुप्रास अलंकार के चार प्रयोग स्थल –

1. नीरज नयन नेह जल बाढ़े। (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)

2. प्रेम प्रपंचु कि” (‘प’ वर्ण की आवृत्ति)

3. दुसह दुःख दैव सहावइ (‘द’ वर्ण की आवृत्ति)

4. ज्यों जाइ जगावत” (‘ज़’ वर्ण की आषृत्ति)


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