Vidyapati ke Pad Class 12 Question Answer | Vidyapati ke Pad Class 12 Exercise Question Answer | विद्यापति पद कक्षा 12 Question Answer
प्रश्न 1. प्रियतमा के दुःख के क्या कारण हैं ?
उत्तर : प्रियतमा के दु:ख के कारण निम्नलिखित हैं –
• सावन मास में प्रियतमा का दुःख बढ़ जाता है। यह मास वर्षा ऋतु में आता है और वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असह्य हो जाती है।
• प्रियतमा के पास उसका प्रियतम नहीं है। यह सावन के महीने में भी अकेली है।
• वर्षा ऋतु में विरह की पीड़ा असहा हो जाती है।
• प्रियतमा का प्रियतम उसके मन को हराकर अपने साथ ले गया है।
• प्रियतमा अपनी प्रियतम की उपेक्षा का शिकार है। अब उसका मन इस प्रियतम की ओर नहीं रह गया है।
प्रश्न 2. कवि ‘नयन न तिरपित भेल’ के माध्यम से विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तर : उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से नायिका के नयनों की अतृप्त दशा का वर्णन किया गया है। कवि कहता है कि नायिका कृष्ण से अति प्रेम करती है। वह जन्मभर प्रिय का रूप निहारती रही. परंतु उसकी आँखें तृप्त नहीं हुई। इस अतुप्ति का कारण उसके प्रिय का मनोहारी एवं सुंदर रूप-सौंदर्य है; जिसे जितनी भी बार देखो उसमें नयापन दिखता है। यह रूप सौददर्य नित प्रतिपल बदलता रहता है। वह मु?ा नायिका है। वह कृष्ण के साथ बिताए हुए पलों को भूल नहीं पाई है।
प्रश्न 3. नायिका के प्राण तृप्त न हो पाने का कारण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : नायिका के प्राण तृप्ति का अनुभव नहीं करते। इसका कारण है कि प्रेम और अनुराग क्षण-प्रतिक्षण नवीनता धारण कर लेता है। उसका न तो वर्णन किया जा सकता है और न उससे पूर्ण तृप्ति का अनुभव किया जा सकता है। प्रियतम के रूप और वाणी की चिर नवीनता नायिका के प्राण को अतृप्त बनाए रखती है। नायिका के मन में मिलन की उत्कंठा बनी ही रहती है। उसके हृदय की प्यास अभी भी वैसी ही है जैसी पहले थी।
प्रश्न 4. ‘सेह पिरित अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होए’-से लेखक का क्या आशय है ?
उत्तर : नायिका की एक सखी उससे उसकी प्रेमानुभूति के बारे में जानना चाहती है तो नायिका इस अनुभव का वर्णन करने में स्वयं को असमर्थ पाती है। इस प्रीति (प्रेम) और अनुराग का वर्णन करना इसलिए कठिन है क्योंकि यह क्षण-क्षण नवीन होता जान पड़ता है। नवीन होती चीज में स्थिरता नहीं होती। इस कथन में लेखक का आशय यही है कि प्रेम कोई स्थिर वस्तु या भाव नहीं है, इसमें हर समय बदलाव आता रहता है।
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प्रश्न 5. कोयल और भौरा की कलरव ध्वनि का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर नायिका अपने हाथों से अपने कान बंद कर लेती है। इसका कारण है कि ये ध्वनियाँ नायिका को प्रियतम का स्मरण कराती हैं। नायिका प्रिय की वियोगावस्था को झेलती-झेलती दु:खी हो गई है। अब उसे ये ध्वनियाँ सहन नहीं होतीं। ये ध्वनियाँ उद्दीपन का काम करती हैं और नायिका की विरह-व्यथा की ओर बढ़ा देती है।
प्रश्न 6. कातर दृष्टि से चारों तरफ प्रियतम को ढूँढने की मनोदशा को कवि ने किन शब्दों में व्यक्त किया है ?
उत्तर : नायिका कातर दृष्टि से चारों तरफ प्रियतम को ढूँढती रहती है। कवि उसकी मनोदशा का वर्णन इन शब्दों में करता हैकातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि नयन गरए जल धारा। कवि बताता है नायिका का शरीर विरह दशा में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान क्षीण हो गया है। नयनों से अश्रुधारा बहती रहती है अर्थात् हर समय रोती रहती है और इधर-उधर प्रियतम को ढूँढने का प्रयास करती रहती है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए :
तिरपित, छन, बिदगध, निहारल, पिरित, साओन, अपजस, छिन, तोहारा, कातिक।
उत्तर :
• तिरपित = तृप्त
• निहारल = निहारना
• अपजस = अपयश
• छन = क्षण
• पिरित = प्रीति
• छिन = क्षण, क्षीण
• विदगध = विदाध
• साओन = सावन (श्रावण)
• तोहारा = तुम्हारा
• कातिक = कार्तिक।
प्रश्न 8. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखिख अनकर दु :ख दारुन रे जग के पतिआएा।
(ख) जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
(ग) कुसुमति कानन हेरि कमलमुखि मुदि रहए दु नयनि।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
उत्तर : (क) इस काव्यांश का आशय यह है कि नायिका घर में अकेली है। उसका प्रियतम बाहर गया हुआ है। यह नायिका प्रोषितपतिका है। नायिका प्रिय के बिना इस सूने घर में नहीं रह पाती है। वह नायिका अपनी सखी से जानना चाहती है कि भाला ऐसा कौन व्यक्ति है जो दूसरे के दारुण (कठोर) दुःख पर विश्वास कर सके अर्थात् कोई किसी के कठोर दुझख की गंभीरता को नहीं समझता।
(ख) नायिका संयोग काल में भी अतृप्त रहती है। वह जन्म-जन्म से अपने प्रियतम के रूप को निहारती चली आ रही है फिर भी आज तक उसके नेत्र तृप्त नहीं हो सके हैं। वह प्रिय के मधुर वचनों को भी अपने कानों से सुनती चली आ रही है फिर भी उसके बोल पहले से सुने नहीं लगते। रूप एवं वाणी में सर्वथा नवीनता बनी रहती है और यही अतृप्ति के कारण हैं।
(ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि नायिका को संयोग कालीन प्राकृतिक वातावरण अच्छा प्रतीत नहीं होता क्योंकि वह स्वयं वियोगावस्था में है। वियोगावस्था में यही मनःस्थिति होती है। नायिका न तो विकसित अर्थात् खिलते फूलों को देखना चाहती है और न कोयल और भौँर की मधुर ध्वनि को सुनना चाहती है। वह आँख-कान बंद् कर लेती है। इन्हें देखने-सुनने से उसकी विरह-व्यथा और भी बढ़ जाती है।
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