Sumiran ke Manke Class 12th Important Question | Class 12th Hindi Sumiran ke Manke Important Questions Answer | सुमिरन के मनके क्लास Important Questions Answer
प्रश्न 1. जब बच्चे को पुरस्कार माँगने को कहा गया तो बच्चे के भावों में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर - जब बच्चे को कहा कि वह अपनी इच्छा से कुछ भी माँग ले। इस पर बालक सोचने लगा। पिता और अध्यापकों की सोच थी कि वह पुस्तक माँगेगा। बच्चे के मुख पर रंग बदल रहे थे। उसके हदयय में कृत्रिम तथा स्वाभाविक भावों में पढ़ाई हो रही थी जो आँखों में स्पष्ट झलक रही थी। अंत में उसने लड्डू माँगा। यहाँ बालक के स्वाभाविक भावों ने कृत्रिम भावों पर विजय प्राप्त कर ली और कृत्रिम भाव दबकर रह गए।
प्रश्न 2. ‘बालक बच गया’ पाठ का उद्देश्य बताइए।
उत्तर - ‘बालक बच गया’ निबंध का मूल प्रतिपाद्य है-शिक्षा ग्रहण की सही उम्रे। लेखक मानता है कि हमें व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए, शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं। हमारा लक्ष्य है मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखना। मनुष्य बचा रहेगा तो वह समय आने पर शिक्षित किया जा सकेगा। लेखक ने अपने समय की शिक्षा-प्रणाली और शिक्षकों की मानसिकता को. प्रकट करने के लिए अपने जीवन के अनुभव को हमारे सामने अत्यंत व्यावहारिक रूप में रखा है। लेखक ने इस उदाहरण से यह बताने की कोशिश की है कि शिक्षा हमें बच्चे पर लादनी नहीं चाहिए, बल्कि उसके मानस में शिक्षा की रूचि पैदा करने वाले बीज डाले जाएँ, ‘सहज पके सो मीठा होए’।
प्रश्न 3. ‘समय पूछ लो और काम चला लो’ में निहित संदेश को आप समाज के लिए कितना उपयोगी मानते हैं?
उत्तर - ‘समय पूछ लो और काम चला लो’ के माध्यम से धर्माचार्यों ने समाज में यह धारणा फैला रखी है कि आम आदमी को धर्म के रहस्य जानने का अधिकार नहीं है। वे बनाए गए नियमों तथा विश्वासों का आँख मूँदकर पालन करें। यह ध रणा समाज के लिए जरा भी उपयोगी नहीं है। ऐसा कहकर वे धर्म का तथाकथित ठेकेदार बने रहना चाहते हैं। वे अपनी रोज़ी-रोटी चलाने और दूसरों को मूर्ख बनाए रखने के लिए ऐसा करना चाहते हैं।
प्रश्न 4. ‘बेले चुन लो’ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर - ‘ढेले चुन लो’ में लोक विश्वासों में निहित अंध विश्वासी मान्यताओं पर चोट की गई है। लेखक ने जीवन में बड़े फैसले अंधविश्वासों के वशीभूत होकर न लेने के लिए कहा है। अंधविश्वास के वशीभूत होकर लिए गए फैसले हितकारी ही होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। फिर ऐसा करके अँधेरे में तीर क्यों चलाया जाए। मनुष्य को यथार्थ स्वीकार करते हुए यथार्थवादी होकर अपने फैसले लेने चाहिए।
प्रश्न 5. धर्माचार्य का धर्म के संबंध में आम लोगों के प्रति जो रूख रहा है उसे स्पष्ट करते हुए बताइए कि आपकी दृष्टि में यह कितना उचित है।
उत्तर - धर्माचार्य चाहते थे कि आम मनुष्य धर्म के बारे में उतना और वही जाने जितना वे सही या गलत अपनी सुविध नुसार बताना चाहते हैं। वे नहीं चाहते थे कि धर्म के बारे में कोई और गहराई से जाने-समझे, इसे वे अपनी तथाकथित प्रभुसत्ता के लिए खतरा मानते थे। वे वेद-शास्त्रों को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। उनके अनुसार आम आदमी को यह सब जानने का कोई हक नहीं है। उनके इस दृष्टिकोण को मैं पूर्णतया अनुचित मानता हूँ, क्योंक वेद-शास्त्र तथा धार्मिक ग्रंथ किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं लिखे गए हैं।
प्रश्न 6. पाठशाला के वार्षिकोत्सव में क्या हुआ ?
उत्तर - पाठशाला के वार्षिकोत्सव में लेखक भी गया था। वहाँ प्रधान अध्यापक के आठ वर्षीय पुत्र की बुद्धि की नुमाइश की गई थी। उसे सबसे अधिक बुद्धिमान बताकर पेश किया गया। इसकी जाँच के लिए उससे वे प्रश्न पूछे गए जिनके उत्तर उसे पहले ही रटा दिए गए थे। बालक न तो उन प्रश्नों को समझता था और न उत्तरों को जानता था। फिर भी उसने सभी प्रश्नों के उत्तर उगल दिए। उससे ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछे गए जो उसकी आयु वर्ग के लिए व्यर्थ थे। बालक रटे हुए उत्तर दे रहा था। लेखक को यह अच्छा नहीं लग रहा था। हाँ, जब बालक ने इनाम में लट्टू माँगा तब वह प्रसन्न हुआ, क्योंकि यह बालक की स्वाभाविक इच्छा का परिचायक था।
प्रश्न 7. धर्माचार्यों का आम लोगों के प्रति क्या रुख होता है ?
उत्तर - धर्माचार्य स्वयं को धर्म का ठेकेदार मानते हैं। वे यह कतई नहीं चाहते कि आम आदमी धर्म के रहस्य को जानें। धर्म के रहस्य को वे स्वयं तक सीमित रखना चाहते हैं। उनके अनुसार धर्म के रहस्य को जानने की इच्छा प्रत्येक मनुष्य को नहीं करनी चाहिए। उसे तो धर्म के बारे में उतना ही जानना चाहिए, जितना हम (धर्माचार्य) कहें या बताएँ। उनके कान में धर्माचार्य जो कुछ डाले, वहीं वह सुने और अधिक जानने की इच्छा न करे। इसी बात को लेखक ने घड़ी के दृष्टांत के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। घड़ी को ठीक करना, सुधारना घड़ी-साज़ का काम है, सामान्य व्यक्ति का नहीं। इसी धर्म का रहस्य बताना धर्माचायों का काम है, वे ही वेद-शास्त्र के ज्ञाता होते हैं। वे धर्म का रहस्य स्वयं तक सीमित करके रखना चाहते हैं। तभी समाज में उनकी पूछ बनी रह सकती है।
प्रश्न 8. ‘ढेले चुन लो’ प्रसंग में किस नाटक का उल्लेख है और क्यों ?
उत्तर - इस प्रसंग में शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक मर्चैट ऑफ वेनिस’ (Merchant of Venice) का उल्लेख है। इस नाटक की नायिका पोर्शिया अपने वर का चुनाव स्वयं करती है। वह बड़ी सुंदर रीति से वर चुनती है।
प्रश्न 9. किन सूत्रों में ढेलों की लॉटरी का उल्लेख है ?
उत्तर - इन गृह्यसूत्रों में ढेलों की लॉटरी का उल्लेख है :
आश्वलायन – गोभिल – भारद्वाज।
प्रश्न 10. ‘बालक बच गया’ में किस समस्या को उठाया गया है ?
उत्तर - इस प्रसंग का प्रतिपाद्य यह है कि बालक का विकास स्वाभाविक ढंग से होने देना चाहिए। हमें उस पर अपनी इच्छा नहीं डालनी चाहिए। उसे समय से पूर्व ज्ञान के बोझ से दबा नहीं देना चाहिए। जब उपयुक्ता समय आता है तब बालक स्वयं अपेक्षित ज्ञान प्राप्त कर लेता है। उस पर यदि ज्ञान का बोझ लादा गया तो उसका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाएगा। खेल का भी उसके जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रश्न 11. ‘बालक बच गया’ निबंध का प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर - ‘बालक बच गया’ निबंध का मूल प्रतिपाद्य हैशिक्षा-ग्रहण की सही उम्र बताना तथा बच्चे पर अनावश्यक बोझ को न लादना। लेखक का मानना है कि व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा होनी चाहिए, न कि शिक्षा के लिए मनुष्य। हमारा लक्ष्य मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखने का होना चाहिए। यदि मनुष्य बचा रहेगा तो समय आने पर उसे शिक्षित किया जा सकेगा। हमें बच्चे पर शिक्षा को लादना नहीं चाहिए। बच्चे को स्वाभाविक रूप से शिक्षा ग्रहण करने देनी चाहिए। हमें बच्चे के बचपन को नष्ट नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 12. ‘बालक बच गया’ संस्मरण के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर - ‘बालक बच गया’ शीर्षक पूर्णत: सार्थक है। इसमें लेखक बालक के ऊपर जबरन लादे गए बोझ से बच जाने को व्यंजित करता है। बालक से उसके शिक्षक जो कुछ कहलवा रहे थे, वह सब अस्वाभाविक था। बालक से जब वृद्ध महाशय ने इनाम में मनपसंद वस्तु माँगने को कहा, तब इसके द्वारा लड्डू माँगा जाना, उसकी-बाल सुलभ स्वाभाविकता को इंगित करता है। इससे लेखक को लगा कि अभी इस बालक के बचने की आशा है अर्थात् इसका बचपन बचाया जा सकता है। जिस प्रकार जीवित वृक्ष हरे पत्तों के माध्यम से अपनी जीवंतता का परिचय देता है उसी प्रकार बालक के लड्डू माँगने से उसकी स्वाभाविकता का पता चलता था। शीर्षक इस भावना को पूरी तरह व्यक्त करता है।
प्रश्न 13. समाज में धर्म-संबंधी अनेक अंधविश्वास व्याप्त हैं। ‘ढेले चुन लो’ के आधार पर ऐसे कुछ अंधविश्वासों
उत्तर - ‘ढेले चुन लो’ पाठ में बताया गया है कि समाज में धर्म संबंधी अनेक अंध विश्वास व्याप्त हैं। एक अंधविश्वास यह है- वैदिक काल में हिंदुओं में जो लाटरी चलती थी उसमें नर पूछता था कि नारी को बूझना पड़ता था। नर स्नातक विद्या पढ़कर, नहा-धोकर, माला पहनकर सेज पर जोग होकर किसी बेटी के बाप के घर पहुँच जाता था। वह उसे गौ भेंट करता था। पीछे वह कन्या के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रख देता और उससे कहता कि इनमें से एक उठा ले। ये ढेले प्रायः सात तक होते थे। नर जानता था कि वह ये ढेले कहाँ-कहाँ से लाया है और उनमें किस-किस जगह कि मिट्टी है। कन्या इनके बारे में कुछ जानती न थी। यही लॉटरी की बुझौवल थी। इन ढेलों में वेदी, गौशाला, खेत, चौराहे, मसान (श्मशान) की मिट्टी होती थी। यदि वह वेदी का ढेला उठा ले तो संतान वैदिक पंडित, गोबर चुना तो पशुओं का धनी, खेत की मिट्टी छू ली तो जमींदार-पुत्र होगा। मसान की मिट्टी अशुभ मानी जाती थी। यदि किसी नर के सामने वह वेदी का ढेला उठा ले और ब्याही जाए। इस प्रकार वैदिक काल में हिंदू ढेले छुआकर स्वयं पत्नी वरण करते थे।
प्रश्न 14. समाज में धर्म-संबंधी अनेक अंधविश्वास व्याप्त हैं। ‘ढेले चुन लो’ के आधार पर ऐसे कुछ अंध विश्वासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - ‘ढेले चुन लो’ पाठ में बताया गया है कि समाज में धर्म संबंधी अनेक अंधविश्वास व्याप्त हैं। एक अंधविश्वास यह है – वैदिक काल में हिंदुओं में जो लाटरी चलती थी उसमें नर पूछता था कि नारी को बूझना पड़ता था। नर स्नातक विद्या पढ़कर, नहा-धोकर, माला पहनकर सेज पर जोग होकर किसी बेटी के बाप के घर पहुँच जाता था। वह उसे गौ भेंट करता था। पीछे वह कन्या के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रख देता और उससे कहता कि इनमें से एक उठा ले। ये ढेले प्रायः सात तक होते थे। नर जानता था कि वह ये ढेले कहाँ-कहाँ से लाया है और उनमें किस-किस जगह कि मिट्टी है। कन्या इनके बारे में कुछ जानती न थी। यही लॉटरी की बुझौवल थी। इन ढेलों में वेदी, गौशाला, खेत, चौराहे, मसान (श्मशान) की मिट्टी होती थी। यदि वह वेदी का ढेला उठा ले तो संतान वैदिक पंडित, गोबर चुना तो पशुओं का धनी, खेत की मिट्टी छू ली तो जमींदार-पुत्र होगा। मसान की मिट्टी अशुभ मानी जाती थी। यदि किसी नर के सामने वह वेदी का ढेला उठा ले और ब्याही जाए। इस प्रकार वैदिक काल में हिंदू ढेले छुआकर स्वयं पत्नी वरण करते थे।
thank you sir
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