Are in Dohun rah na pai Class 11 Question Answer | Class 11 Hindi Chapter are in Dohun rah na pai | अरे इन दोहुन राह न पाई Class 11 Important Questions Answer
उत्तर - कबीर बाहयाडंबरों का खुलकर विरोध करते थे और उन्हें परमात्मा के मिलन की राह में रुकावट मानते थे। हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित उनके द्वारा रचित पहले पद में उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों की करनी-कथनी में अंतर को स्पष्ट किया है। हिंदू अपनी प्रशंसा करते हैं और छुआछूत के रास्ते पर चलते हैं। वे पानी से भरी गागर को किसी को छूने तक नहीं देते क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि किसी के द्वारा छूने से उनकी गागर अपवित्र हो जाएगी लेकिन वे स्वयं वेश्यागमन में लिप्त रहते हैं। वेश्याओं के पैरों में सोते रहते हैं। यह कैसी हिंदुआई है उनकी ? मुसलमान जीव-हत्या करते हुए मुर्गी-मुर्गे का मांस खाते हैं और अपनी बेटियों का विवाह मौसी के घर में ही करवा देते हैं। बाहर से किसी मृत जीव को ले आते हैं और उसी को धोकर पका लेते हैं। सभी सहेलियाँ उसी को खाकर प्रशंसा करती हैं। उनकी दृष्टि में हिंदू-मुसलमान दोनों में कोई अंतर नहीं, दोनों ही एक-से हैं। दोनों का जीवन ही आडंबरपूर्ण है। इसी कारण कबीर ने दोनों की आलोचना की है।
प्रश्न 2. ‘बालम, आवो हमारे गेह रे’ में वर्णित प्रियतम के विरह में विरहिणी की दारुण दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - कबीर रहस्यवादी संत थे। उन्होंने जीवात्मा के परमात्मा से अनेक प्रकार के संबंध स्थापित किए हैं। हमारी पाठ्य-पुस्तक में दिए गए दो पदों में से दूसरे पद में उन्होंने परमात्मा के प्रति रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। जीवात्मा को नारी और परमात्मा को पुरुष रूप में चित्रित किया है। जीवात्मा प्रयत्न करने के बाद भी परमात्मा की प्राप्ति कर नहीं पाती। विरहिणी जीवात्मा आग्रह-भरे स्वर में अपने प्रियतम से कहती है कि वे उसके मन रूपी घर में आएँ। क्योंकि वह उनकी प्राप्ति किए बिना वह बड़े कष्ट में है। सभी लोग जीवात्मा को परमात्मा की पत्नी के रूप में जानते हैं पर परमात्मा है कि वे अपने दिल से उसे स्वीकार ही नहीं करते। विरह-वियोग के कारण जीवात्मा को न खाना अच्छा लगता है और न नींद आती है। उसके दुखी मन को कहीं भी धैर्य नहीं मिलता। प्यासा व्यक्ति अपनी प्यास बुझाने के लिए जिस प्रकार पानी प्राप्त करना चाहता है. उसी प्रकार नारी रूपी जीवात्मा भी परमात्मा को पाना चाहती है। जीवात्मा बेहाल है।
प्रश्न 3. कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों की किस चीज़ पर प्रश्न-चिह्न लगाया है ?
उत्तर - कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों के जीवन में व्याप्त अनीति और क्रूरता को प्रकट किया है तथा दोनों के भक्ति-मार्ग पर प्रश्न-चिह्न लगाया है। कबीर का कहना है कि इन हिंदुओं और मुसलमानों दोनों ने ईश्वर की भक्ति रूपी राह को ठीक प्रकार से प्राप्त नहीं किया है। इनका भक्ति-मार्ग गलत है।
प्रश्न 4. कबीरदास किस प्रकार के व्यक्ति थे? संक्षेप में बताइए।
उत्तर - कबीरदास मानवतावादी पुरुष थे। भगवान में अटूट विश्वास के कारण नर में नारायण की प्रतीति ने उन्हें मानवतावाद की ओर उन्मुख किया। कबीर का मुख्य स्वर विद्रोह का है, यद्यपि कबीर मूल्यहीन विद्रोही नहीं हैं। वह भक्त कवि, भक्त साधक, समाज-सुधारक कवि और लोक नेता सभी एक साथ हैं। कबीर एक सरल मनुष्य, ऊँचे संत और विकट आलोचक हैं। उनकी सरलता में भक्ति का भी योग है। उनकी कथनी और करनी में समुचित संयोग है।
प्रश्न 5. दूसरे पद में कबीर ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर - दूसरे पद में कबीर ने स्वयं को विरहिणी स्त्री के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रियतम से घर लौटने की आकांक्षा व्यक्त की है। दांपत्य प्रेम और घर की महत्ता इस पद के केंद्रबिंदु में हैं। कबीर ने इस पद में परमात्मा के प्रति रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उन्होंने जीवात्मा को नारी और परमात्मा को पुरुष रूप में चित्रित किया है। उनके अनुसार जीवात्मा प्रयत्न के बाद भी परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर पाती।
प्रश्न 6. कबीर ने अपने पदों में बाह्य आड्बंबरों का विरोध किया है, कैसे ?
उत्तर - कबीर बाह्य आडंबरों का खुलकर विरोध करते थे। उन्होंने हिंदू-मुसलमानों में प्रचलित विभिन्न अंधविश्वासों, रूढ़ियों और बाह्याडंबरों का कड़ा विरोध किया है। हिंदुओं की मूर्तिपूजा, छुआछूट, व्रत, धर्म, नियम के नाम पर की जाने वाली हिंसा आदि की आलोचना की है। मुसलमानों के रोजा, नमाज, हज, मांस खाने, जीव-हत्या आदि विधान की भी इन्हॉने कटु आलोचना की है।
प्रश्न 7. प्रथम पद में कबीर ने हिंदुओं की किस बात पर आलोचना की है ?
उत्तर - प्रथम पद में कबीर ने कहा है कि हिंदुओं का भक्ति-मार्ग गलत है। हिंदू सदा अपनी भकित और अपनी प्रशंसा में लीन रहते हैं। उनका छुआछूत में बड़ा ही ठोस विश्वास है। वैसे वे स्वयं वेश्यागमन बुरे कामों मंर लिप्त रहते हैं, तब उन्हें कोई भेद दिखाई नहीं देता, किंतु उनकी गागर कोई और छू ले तो वह अपवित्र हो जाती है।
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प्रश्न 8. प्रेमी के न मिलने पर कबीर की स्थिति कैसे हो गई है?
उत्तर - प्रेमी के न मिलने पर कबीर की स्थिति अत्यंत दु:खदायी हो गई है। उनकी स्थिति उस प्यासे व्यक्ति के समान हो गई है जो प्यास से अत्यधिक व्याकुल है। कबीर की आत्मा ईश्वर से कहती है कि उनके बिना वह अत्यधिक परेशान है। कबीर की जीवात्मा कहती है कि परमात्मा के अभाव में उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। भोजन नीरस लगता है। नींद नहीं आती है। मन परेशान रहता है।
प्रश्न 9. कबीर के दुखों का अंत किस प्रकार होगा ?
उत्तर - कबीर के दुखों का अंत तब होगा जब पति रूपी परमात्मा उससे मिलकर उसके प्रति अपना प्रेमभाव प्रकट करेगा। उसे अपने हृदय में स्थान देगा। पति रूपी परमात्मा ही कबीर के जीवन को सुख-शांति प्रदान कर सक्ता है। अतः कबीर के दुखों को सदा के लिए समाप्त करने हेतु परमात्मा को उसके घर तथा हुदय में जाना होगा।
प्रश्न 10. कबीर संत थे या कवि ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कबीर एक संत थे। वे संतकाव्य धारा के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। ये घुमक्कड़ स्वभाव के थे। वे ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को मानने वाले थे। कबीर ने संतों की परंपरा का निर्वाह करते हुए लोगों को सद्विचार प्रदान किए। निस्संदेह वे कवि भी थे लेकिन अपनी संत प्रवृत्तियों के समक्ष उनकी कवि-वृत्ति छिप जाती है, अतः कबीरदास को संत कबीरदास कहना उचित है।
प्रश्न 11. कबीर ने अपने पदों में जाति-पाति और छुआछूत का विरोध क्यों किया है ?
उत्तर - कबीर संत कवि थे। समाज-सुधार उनका उद्देश्य बन चुका था। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण उन्होंने समाज में व्याप्त जाति-पौति और छुआदूत के बुरे परिणाम को महसूस किया और खुलकर उसका विरोध किया। कबीर इसे समाज के लिए एक बीमारी मानते है। उन्होंने अनुभव किया कि धर्म के ठेकेदार धर्म के नाम पर जात-पाँत और छुआछूत को बढ़ावा दे रहे है। अतः इसका विरोध कर समाज से इसे पूर्णतः समाप्त कर देना चाहिए।
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