Class 12 Hindi Biskohar ki Mati Important Question Answer | Biskohar ki Mati Class 12 Question Answer | बिस्कोहर की माटी के Important Questions Answer

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Class 12 Hindi Biskohar ki Mati Important Question Answer | Biskohar ki Mati Class 12 Question Answer | बिस्कोहर की माटी के Important Questions Answer


प्रश्न 1. बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया ? क्या इसे अत्याचार होना कहेंगे ?दाई ने किसे, क्यों पाला ? आपका पालन-पोषण किसने किया ? दोनों स्थितियों में अंतर स्पष्ट करो।

उत्तर -बिसनाथ अभी तीन वर्ष का था कि उसका छोटा भाई आ गया। नवजात शिशु को तो माँ का दूध चाहिए। अब तक बिसनाथ (विश्वनाथ) माँ का दूध पीता था। अब से नया बालक पीने लगा। अतः बिसनाथ का दूध कट गया। अब उसे माँ के दुध के स्थान पर गाय का दूध पीने के लिए मिलने लगा। उसका पालन-पोषण भी कसेरू दाई के जिम्मे आ गया। हम इसे अत्याचार होना नहीं कहेंगे। यह एक स्वाभाविक क्रिया है। नए बालक का माँ के दूध पर अधिक अधिकार होता है। बड़े को यह अधिकार छोड़ना ही पड़ता है। इसमें अत्याचार जैसी कोई बात नहीं है। कसेरूू दाई ने तीन बरस के बालक बिसनाथ का पालन-पोषण किया। इसका कारण यह था कि बिसनाथ की माँ के दूसरा बेटा हो गया था। अब उसके लिए बिसनाथ को दूध पिलाना तथा पालना-पोसना कठिन हो गया था। मेरा पालन-पोषण मेरी माँ ने ही किया। हमारे यहाँ नए भाई के आने जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।


प्रश्न 2.‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’ इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी कारण अपनी वृष्टि से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फर्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं लेकिन मध र और शोभा के भार से दबी ज्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो, बिसनाथ 10 से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँदनी रात में बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी खुशबू प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औसत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँदनी के रूप में लगी जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी । प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी, सुर्गंधि सब देख रहे थे। वह बहुत दूर की चीज इतने नजदीक आ गई थी। सौंदर्य क्या होता है, तदाकार परिणति क्या होती है। जीवन की सार्थकता क्या होती है, यह सब बाद में सुना, समझा, सीखा सब उसी के संदर्भ में। वह नारी मिली भी-बिसनाथ आजीवन उससे शरमाते रहे। उसकी शादी बिस्कोहर में ही हुई। कई बार मिलने के बाद बहुत हिम्मत बाँधने के बाद उस नारी से अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कहा, “जो तुम्हें पाइ जाइ ते जरूरै बोराय जाइ- जो तुम्हें पा जाएगा वह जरूर ही पागल हो जाएगा।”


प्रश्न 3.वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध पिलाना चाहतीं। आपके विचार से माँ और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है ? अपना मत स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -वर्तमान समय में कुछ माताएँ अपने नवजात शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहतीं। वे उसे दूध तो पिलाना चाहती हैं, पर अपना नहीं, बल्कि डिब्बे का या गाय का। इसके कारण निम्नलिखित हैं :

इन माताओं को अपने नवजात शिशु से अधिक चिंता अपने शारीरिक सौंदर्य की है। वे सोचती हैं कि बच्चे को दूध पिलाने से उनका शारीरिक सौष्ठव कम हो जाएगा। स्तनों में कसाव कम रह जाएगा। उनका ऐसा सोचना ठीक नहीं है।दूध न पिलाने का दूसरा कारण है उनका नौकरी करने जाना। वे यह नहीं चाहती कि उनकी अनुपस्थिति में बालक दूसरा दूध पीने में हिचकिचाए। वे प्रारंभ में डिब्बे के दूध की आदत डाल देती हैं। बच्चा माँ के दूध का स्वाद जान ही नहीं पातता। हमारे विचार से इसका बच्चे के विकास पर बड़ा दुष्ष्रभाव पड़ता है। उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता है। माँ द्वारा बच्चे को अपना दूध पिलाते समय जो आत्मीय संबंध स्थापित होता है, उसे बच्चा वंचित रह जाता है। वह माँ की ममता की अनुभूति भी नहीं कर पाता है।


प्रश्न 4.‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के कथ्य का विश्लेषण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर -आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह पाठ अपनी अभिव्यंजना में अत्यंत रोचक और पठनीय है। लेखक ने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आस-पास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन-शैली, लोक-कथाओं, लोक-मान्यताओं को पाठक तक पहुँचाने की कोशिश की है। गाँव, शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता का दूसरा पक्ष प्राकृतिक सौंदर्य भी है जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है। एक तरफ प्राकृतिक संपदा के रूप में अकाल के वक्त खाई जाने वाली कमल-ककड़ी का वर्णन है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक विपदा बाढ़ से बदहाल गाँव की तकलीफों का जिक्र है। कमल, कोइयाँ, हरसिंगार के साथ-साथ तोरी. लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, कदंब आदि के फूलों का वर्णन कर लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और संपदा को दिखाया है तो डोड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच आदि साँपों, बिच्छुओं आदि के वर्णन द्वारा भयमिश्रित वातावरण का भी निर्माण किया है।ग्रामीण जीवन में शहरी दवाइयों की जगह प्रकृति से प्राप्त फूल, पत्तियों के प्रयोग भी आम हैं जिसे लेखक ने रेखांकित किया है। पूरी कथा के केंद्र में हैं। बिस्कोहर जो लेखक का गाँव है और एक पात्र ‘बिसनाथ’ जो लेखक स्वयं (विश्वनाथ) है। गर्मी, वर्षा और शरद ऋतु में गाँव में होने वाली दिक्कतों का भी लेखक के मन पर प्रभाव पड़ा है जिसका उल्लेख इस रचना में भी दिखाई पड़ता है। दस वर्ष की उम्र के करीब दस वर्ष बड़ी स्त्री को देखकर मन में उठे-बसे भावों, संवेगों के अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच संवादों की यथावत् आंचलिक प्रस्तुति, अनुभव की सत्यता और नैसर्गिकता का द्योतक है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे-भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक की शैली अपने आप में अनूठी और बिल्कुल नई है।


प्रश्न 5.‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं है, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है ‘-इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर -जन्म के उपरांत बच्चा भोजन के रूप में माँ का दूध ही ग्रहण करता है। वह काफी समय तक माँ के दूध से ही अपना पेट भरता है। माँ अपने आँचल में छिपाकर बच्चे को दूध पिलाती है। यह बच्चे का केवल दूध पीना ही नहीं है। इस क्रिया के साथ माँ-बच्चे के सारे संबंध चरितार्थ होते हैं। माँ बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाती है। बच्चा माँ की गोद में कभी रोता है, कभी हँसता है। कभी वह माँ से चिपटता है, तो कभी माँ को पैर मारता है। माँ को बच्चे की ये सब क्रियाएँ अच्छी लगती हैं। वह इन क्रियाओं के दौरान बच्चे को प्यार करती है।उसे अपनी स्नेह छाया से दूर होने नहीं देती। वैसे वह स्नेहवश कभी-कभी उसे मारती भी है, तब भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श-गंध भोगता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह पेट में अपनी जगह ढूँढ रहा है। बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ युवती होती है। उसके स्तन दूध से भरे होते हैं। वह बच्चे को माँ, नारी, मित्र सभी प्रकार का सुख एक साथ देती है। माँ की गोद में लेटकर बच्चे का माँ का दूध पीना, जड़ से चेतन होने यानि मानव जन्म लेने को सार्थकता प्रदान करता है। हम बच्चे के द्वारा माँ के दूध पीने को बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं।


प्रश्न 6.‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के प्रारंभ में लेखक ने कमल, कोइयाँ तथा सिंघाड़े के फूल के बारे में क्या बताया है?

अथवा

‘बिस्कोहर की माटी’ में लेखक द्वारा भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया गया है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -लेखक बताता है कि पूरब टोले के पोखर में कमल फूलते हैं। भोज में हिंदुओं के यहाँ भोजन कमल-पत्र पर परोसा जाता है। कमल पत्र को पुरइन कहते हैं। कमल के नाल को भसीण कहते हैं। आस-पास कोई बड़ा कमल-तालाब था-लेंवडी का ताल, अकाल पड़ने पर लोग उसमें से ‘भसीण’ (कमल-ककड़ी) खोदकर बड़े-बड़े खाँचों में सर पर लाद कर खाने के लिए ले जाते हैं। कमल ककड़ी को सामान्यत: अभी भी गाँव में नहीं खाया जाता। कमल का बीज कमल गट्रा जरूर खाया जाता है। कमल से कहीं ज्यादा बहार कोइयाँ की थी। कोइयाँ वही जल-पुष्प है जिसे कुमुद कहते हैं। इसे कोका-बेली भी कहते हैं। शरद में जहाँ भी गड्ढा और उसमें पानी होता है, कोइयाँ फूल उठती हैं। रेलवे लाइन के दोनों ओर प्राय: गड्ढों में पानी भरा रहता है।आप उत्तर भारत में इसे प्रायः सर्वत्र पाएँगे। लेखक बहुत दिनों तक यही समझते रहे कि कोइयाँ सिर्फ उनके यहाँ का फूल है। एक बार वे वैष्णो देवी दर्शनार्थ गए तो देखा यह पंजाब में भी रेलवे-लाइन के दोनों तरफ खिला था। शरद की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिंब और खिली हुई कोइयाँ की पत्तियाँ एक हो जाती हैं। इसकी गंध को जो पसंद करता है वही जानता है कि वह क्या है। इन्हीं दिनों तालाबों में सिंघाड़ा आता है। सिंघाड़े के भी फूल होते हैं-उजले और उनमें गंध भी होती है। बिसनाथ को सिंघाड़े के फूलों से भरे हुए तालाब से गंध के साथ एक हल्की सी आवाज भी सुनाई देती थी। वे घूम-घूमकर तालाबों से आती हुई वह गंध मिश्रित आवाज सुनते। सिंघाड़ा जब बतिया छोटा-दूधिया होता है तब उसमें वह गंध भी होती है।


प्रश्न 7.माँ के साथ बच्चे का क्या संबंध होता है?

उत्तर :माँ आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है। बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं। माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है। बच्चा सुबुकता है, रोता है, माँ को मारता है, माँ भी कभी-कभी मारती है, बच्चा चिपटा रहता है, माँ चिपटाए रहती है, बच्चा माँ के पेट का स्पर्श, गंध भोगता रहता है, पेट में अपनी जगह जैसे ढूँढता रहता है। बिसनाथ ने एक बार जोर से काट लिया। माँ ने जोर से थप्पड़ मारा फिर पास में बैठी नाउन से कहा-दाँत निकाले हैं, टीसते हैं, बच्चे दाँत निकालते हैं तब हर चीज को दाँत से यों ही काटते हैं, वही टीसना है। चाँदनी रात में खटिया पर लेटी माँ बच्चे को दूध पिला रही है। बच्चा दूध ही नहीं, चाँदनी भी पी रहा है, चाँदनी भी माँ जैसी ही पुलक स्नेह-ममता दे रही है। दूध पिलाने वाली माँ युवती है, उसके स्तन भरे हैं। वह बच्चे को माँ, नारी, मित्र, सबका सुख एक साथ देती है। माँ के अंक से लिपटकर माँ का दूध पीना जड़ के चेतन होने यानी मानव-जन्म की सार्थकता है।


प्रश्न 8.बिसनाथ ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में क्या दृश्य देखा?

उत्तर -बिसनाथ ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में बत्तखें देखीं। बत्तख अंडा देने को होतीं तो पानी को छोड़कर जमीन पर आ जाती थीं। इसके लिए एक सुरक्षित काँटेदार बाड़ा था। देखा-एक बत्तख कई अंडों को से रही है। पंख फुलाए उन्हें छिपाए है-दुनिया से बचाए है। एक कौवा थोड़ी दूर ताक में ? बत्तख की चोंच सख्त होती है। अंडों की खोल नाजुक ? कुछ अंडे बत्तख-माँ के डैनों से बाहर छिटक जाते। बत्तख उन्हें चोंच में इतनी सतर्कता, कोमलता से डैनों के अंदर फिर छुपा लेती थी कि बस आप देखते रहिए, कुछ कह नहीं सकते-इसे ‘सेस, सारद’ भी नहीं बयान कर सकते। और माँ की निगाह कौवे की ताक पर भी थी। कभी-कभी वह अंडों को बड़ी सतर्कता से उलटती-पलटती थी।


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प्रश्न 9.‘फूल जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करते हैं वहीं वे औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं।’ बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक बताता है कि कमल, कोइयाँ और हरसिंगार के अलावा ऐसे कितने फूल थे जिनकी चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती और वे असली फूल हैं-तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूल, कदम (कदंब) के फूलों से पेड़ लदबदा जाता। मुझे तो लगता है कदंब का दुनिया भर में एक ही पेड़ है-बिस्कोहर के पच्हूँ टोला में ताल के पास।सरसों के फूल का पीला सागर लहराता हुआ। खेतों में तेल-तेल की गंध, जैसे हवा उसमें अनेक रूपों में तैर रही हो। सरसों के अनवरत फूल-खेत सौंदर्य को कितना पावन बना देते हैं। बिसनाथ के गाँव में एक फल और बहुत इफ़रात होता था-उसे भरभंडा कहते थे, उसे ही शायद सत्यानाशी कहते हैं। नाम चाहे जैसा हो सुंदरता में उसका कोई जवाब नहीं। फूल गोभी तितली, जैसा, आँखें, आने पर माँ उसका दूध आँख में लगाती और दूबों के अनेक वर्णी छोटे-छोटे फूल-बचपन में इन सबको चखा है, सूँघा है, कानों में खोसा है।


प्रश्न 10.इस पाठ में साँपों के बारे में क्या जानकारी दी गई है ?

उत्तर :इस पाठ में बताया गया है कि घास पात से भरे मेड़ों पर, मैदानों में, तालाब के भीटों पर नाना प्रकार के साँप मिलते हैं। साँप से डर तो लगता है लेकिन वे प्रायः मिलते दिखते हैं। डोंड़हा और मजगिदवा विषहीन है। डोंड़हा को मारा नहीं जाता। उसे साँपों में वामन जाति का मानते हैं। धामिन भी विषहीन है लेकिन वह लंबी होती है, मुँह से कुश पकड़ कर पूँछ से मार दे तो अंग सड़ जाए। सबसे खतरनाक गोंहुअन हैं जिसे हमारे गाँव में ‘फेंटारा’ कहते हैं और उतना ही खतरनाक ‘घोर कड़ाइच’ जिसके काट लेने पर आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाकर मरता है। भटिहा जिसके दो मुँह होते हैं। आम, पीपल, केवड़े की झाड़ी में रहने वाले साँप बहुत खतरनाक होते हैं। अजीब बात है, साँपों से भय भी लगता है और हर जगह अवचेतन में, डर से ही सही, उनकी प्रतीक्षा भी करते हैं। छोटे-छोटे पौधों के बीच में सरसराते हुए साँप को देखना भी भयानक रस हो सकता है। साँप के काटे लोग बहुत कम बचते हैं।

    

प्रश्न 11.गंध के बारे में लेखक क्या विश्लेषण करता है ?

उत्तर :लेखक (बिसनाथ) को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी का रंग लगता-गंध दूध का। पिता के कुर्ते को जरूर सूँघते। उसमें से पसीने की बू बहुत अच्छी लगती। नारी शरीर से उन्हें बिस्कोहर की ही फसलों, वनस्पतियों की उत्कट गंध आती है। तालाब की चिकनी मिट्टी की गंध गेहूँ, भुट्या, खीरा या पुआल की गंध होती है। आम के बाग में आम्रमंजरी, बौर की लपट मारती हुई गंध तो साक्षात् रति गंध होती है। फूले हुए नीम की गंध को नारी शरीर या शृंगार से कभी नहीं जोड़ सकते। वह गंध मादक, गंभीर और असीमित की ओर ले जाने वाली होती है। संगीत, गंधा, बच्चे बिसनाथ के लिए सबसे बड़े सेतु हैं काल, इतिहास को पार करने के।


प्रश्न 12.गमी के दिनों में लेखक क्या-क्या काम करता था और उससे बचाव कैसे होता था?

उत्तर :जिन दिनों खूब चिलचिलाती गर्मी पड़ती। लेखक घर में सबको सोता पाकर चुपके से निकल जाता। दुपहरिया का नाच देखता। गर्मी में कभी-कभी लू लगने की घटनाएँ सुनाई पड़ती थीं। माँ लू से बचने के लिए धोती या कमीज से गाँठ लगाकर प्याज बाँध देती थी। लू लगने की दवा थी-कच्चे आम का पन्ना। भूनकर गुड़ या चीनी में उसका शरबत पीना, देह में लेपना, नहाना। कच्चे आम को भून या उबाल कर उससे सिर धोते थे। कच्चे आमों के झौर के झौरर पेड़ पर लगे देखना, कच्चे आम की हरी गंध, पकने से पहले ही जामुन तोड़ना, खाना-यह गर्मी की बहार थी। गर्मी का फल और तरकारी भी है-कटहल।


प्रश्न 13. कसेरिन दाई के बारे में लिखिए। उनके साथ छत पर लेटकर तीन वर्ष के बिसनाथ को कैसा लगता था?

उत्तर :बसनाथ के पड़ोस में कसेरिन दाई रहती थी। वह बच्चों को पैदा कराने तथा उनके पालन-पोषण की कला में दक्ष है। जब बिसनाथ (विश्वनाथ) ने माँ के दूध के स्थान पर गाय का दूध पीने से इंकार कर दिया तब कसेरिन दाई ने ही इस संकट से उबरने का उपाय बताया। उसने बिसनाथ की माँ के स्तनों पर ‘बुकवा’ (उबटन) का लेप करवा दिया और फिर दूध पिलाने को कहा। उबटन का स्वाद तीखा-कसैला पड़ते ही बिसनाथ चीख पड़ा “तोर दूध खराब है, हमई नाहीं पिअब रे”। सब लोग यही तो चाहते थे। बिसनाथ को कसेरिन दाई ने ही पाला-पोसा था। साफ-सफ्फाक सुजनी पर बालक बिसनाथ को कसेरिन दाई के साथ लेटकर बहुत अच्छा लगता था। बालक बिसनाथ चाँद का देखता रहता था। उसे लगता था कि वह चाँद को छू रहा है, उसे खा रहा है, उससे बातें कर रहा है। वह धुक-धुक करके चलता रहता। कभी बादलों में छिप जाता और कभी निकल आता।



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