Surdas ki Jhopdi Class 12 Hindi Important Question Answer | Class 12 Surdas ki Jhopdi Important Question Answer | सूरदास की झोपड़ी के Important Questions Answer
प्रश्न 1.सूरदास की विशेषता यह है कि झोंपड़ी जला दिये जाने के बावजूद भी वह किसी से प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं करता बल्कि पुनर्निर्माण में विश्वास करता है। क्या इस प्रकार का चरित्र आज के परिप्रेक्य्य में भी उचित है ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर :प्रतिशोध की भावना अधिकतर ऐसे व्यक्तियों में पाई जाती है जो शक्ति, सत्ता तथा पद की अभिलाषा से ओत-प्रोत होते हैं तथा कभी अपने आप को नीच नहीं होने देना चाहते। ऐसे व्यक्ति किसी नियम, परम्परा व सामाजिक व्यवस्था की परवाह नहीं करते। यदि समाज में ऐसे व्यक्ति अधिक हो जाएँगे तो सामाजिक व्यवस्था में अप्रतिकार्य ह्वास होगा तथा वह ध्वस्त हो जाएगी। समाज में विषमताएँ बढ़ जाएँगी तथा अधिकतर लोग कुंठित हो जाएँगे।लो गों में क्षमा भाव, परोपकारिता व अन्य सार्वभौमिक मूल्यों का अभाव हो जाएगा। यह समाज को पतन की ओर ले जाएगा। प्रतिशोध क्रोध के कारण उत्दन्न एक हिंसात्मक (शारीरिक अथवा मानसिक) प्रतिक्रिया है। यह पथ से भटके हुए व्यक्ति का वह प्रयास है जिसमें वह अपनी लज्जा को अपनी प्रतिष्ठा में बदलना चाहता है। प्रतिशोध से किसी को कभी भी लाभ नहीं पहुँचा है। यह केवल तंत्रिका-तंत्र में उत्पन्न होने वाली उत्तेजनाओं से प्राप्त होने वाले भ्रामक आनन्द जैसा होता है। इसलिए सभी मनुष्यों को ऐसी व्यवस्था स्थापित करने में सहायता करनी चाहिए जिसमें सभी जनों को समानता प्राप्त हो व समाज में प्रतिशोध की भावना समाप्त हो जाए।
प्रश्न 2.जीवन में आगे बढ़ने हेतु सकारात्मक प्रवृत्ति की आवश्यकता है। इस तथ्य को न्यायसंगत ठहराने हेतु तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :जीवन की सार्थकता हेतु सकारात्मक चरित्र की आवश्यकता :यदि हमारा चरित्र सकारात्मक होगा तो हम लक्ष्य प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक प्रयास करने के लिए अभिप्रेरित रहेंगे।यदि हमारा चरित्र सकारात्मक होगा तो कठिनाइयाँ, कठिनाइयाँ न होकर सीखने व आगे बढ़ने के अवसर बन जाएँगी।हमारा आत्मविश्वास ऊँचा रहेगा तथा हम अपने आप में विश्वास रख सकेंगे।यदि हम सकारात्मक हुए तो हमें तनाव कम होगा तथा हमारे अधिक मित्र होंगे। हम अपने कार्य से आनन्द प्राप्त कर सकेंगे।
प्रश्न 3.(क) सूरदास अपनी आर्थिक हानि को क्यों गुप्त रखना चाहता था ? आपकी दृष्टि में क्या उसका ऐसा सोचना सही था ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(ख) उपर्युक्त पाठांश के आधार पर सूरदास के व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष आपको अच्छा प्रतीत होता है ?
उत्तर :(क) सूरदास अपनी आर्थिक हानि को इसलिए गुप्त रखना चाहता था ताकि लोग उसके बारे में गलत धारणा न बना सकें। एक भिखारी के पास धन जमा होना लज्जाजनक स्ञ्थिति की परिचायक मानी जाती है। वह इस धन से अनेक कार्य संपन्न तो करना चाहता था, पर आकस्मिक ढंग से। वह पूरा श्रेय ईश्वर को देना चाहता था। उसका ऐसा सोचना सही था। सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाए रखना आवश्यक होता है।
(ख) सूरदास के व्यक्तित्व के अनेक पक्ष इस पाठ में उजागर होते हैं। हमें उसके व्यक्तित्व का यह पक्ष अच्छा प्रतीत होता कि वह लोक-लज्जा की परवाह करने वाला है। वह स्वार्थी एवं लालची नहीं है। वह तो दूसरों के लिए अपना संचित धन खर्च करना चाहता है। वह मान-अपमान की भी परवाह करता है। सामाजिकता की भावना का सम्मान करना उसके व्यक्तित्व का उजला पक्ष है।
प्रश्न 4.(क) जगधर ने भैरों को क्या सलाह दी थी ? इसके पीछे उसकी क्या भावना थी ? क्या इसे उचित मानते हैं ?
(ख) इस पाठांश के आधार पर भैरों के चरित्र की कौन-सी प्रवृत्ति उभरकर सामने आती है ? आपकी दृष्टि में क्या यह उचित है ? तर्क दीजिए।
उत्तर :(क) जगधर ने भैरों को यह सलाह दी थी कि सूरदास के रुपयों को लौटा दो क्योंकि यह उसकी मेहनत की कमाई है। यद्यपि उसकी यह सलाह सर्वथा उचित थी, पर इस समय उसने यह सलाह ईर्य्यावश और स्वार्थ के वशीभूत होकर दी थी। वह यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि भैरों के हाथ अनायास इतना ध न लग जाए। वह भी अपना हिस्सा चाहता था। हमारी दृष्टि में यह कतई उचित नहीं है। उसे भैरों पर दबाव डालकर सूरदास का ध न लौटवाना चाहिए था।
(ख) इस पाठांश के आधार पर कहा जा सकता है कि भैरों के चरित्र का काला पक्ष उभरता है। वह बदला लेने के लिए किसी भी सीमा तक गिर सकता है। उसमें लोभ की प्रवृत्ति भी है। हमारी दृष्टि में भैरों के चरित्र की स्वार्थी एवं लोभी प्रवृत्ति सर्वथा अनुचित है। उसे अंधे सूरदास के रुपए लौटा देने चाहिए थे। इससे उसका दु:ख कम हो जाता।
प्रश्न 5.सूरदास झोंपड़े में लगी आग के समय लोगों के चले जाने के बाद कहाँ बैठा हुआ था ? वह क्या सोच
उत्तर :सूरदास के झोपड़े में आग लग गई थी। इस अवसर पर अनेक लोग जमा हो गए थे। वे कुछ देर वहीं रुके रहे। बाद में सब लोग इस दुर्घटना पर आलोचनाएँ करते हुए विदा हुए। सन्नाटा छा गया किंतु सूरदास अब भी वहीं बैठा हुआ था। उसे झोंपड़े के जल जाने का दु:ख न था, बरतन आदि के जल जाने का भी दुःख न था; दुःख था उस पोटली का, जो उसकी उम्र-भर की कमाई थी, जो उसके जीवन की सारी आशाओं का आधार थी, जो उसकी सारी यातनाओं और रचनाओं का निष्कर्ष थी। इस छोटी-सी पोटली में उसका, उसके पितरों का और उसके नामलेवा का उद्धार संचित था।यही उसके लोक और परलोक, उसकी दीन-दुनिया का आशा-दीपक थी। उसने सोचा-पोटली के साथ रुपये थोड़े ही जल गए होंगे ? अगर रुपये पिघल भी गए होंगे तो चाँदी कहाँ जाएगी ? क्यश जानता था कि आज यह विपत्ति आने वाली है, नहीं तो यहीं न सोता। पहले तो कोई झोंपड़ी के पास आता ही न और अगर आग लगाता भी, तो पोटली को पहले से निकाल लेता। सच तो यों हैं कि मुझे यहाँ रुपए रखने ही न चाहिए थे पर रखता कहाँ ? मुहल्ले में ऐसा कौन है, जिसे रखने को देता ? हाय । पूरे पाँच सौ रुपये थे, कुछ पैसे ऊपर हो गए थे। क्या इसी दिन के लिए पैसे-पैसे बटोर रहा था ? खा लिया होता, तो कुछ तस्कीन होती।क्या सोचता था और क्या हुआ ! गया जाकर पितरों को पिंड देने का इरादा था। अब उनसे कैसे गला छूटेगा ? सोचता था, कहीं मिटुआ की सगाई ठहर जाए, तो कर डालूँ। बहु घर में आ जाए, तो एक रोटी खाने को मिले ! अपने हाथों ठोंक-ठोंकर खाते एक जुग बीत गया। बड़ी भूल हुई। चाहिए था कि जैसे-जैसे हाथ में रुपये आते, एक-एक काम पूरा करता जाता। बहुत पाँव फैलाने का यही फल है।
प्रश्न 6.सूरदास की झोपड़ी में आग किसने लगाई, यह जानने को जगधर क्यों बेचैन था ? झोपड़ी जल जाने पर भी सूरदास का किसी से प्रतिशोध न लेना क्या इंगित करता है? अपना अनुमान बताइए।
उत्तर :सूरदास की झोंपड़ी में आग भैरों ने लगाई थी। भैरों सूरदास से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। उसे सूरदास के रुपयों का भी लोभ था। अतः उसने रुपए चुराने के बाद झोंपड़ी में आग लगा दी। जगधर आग लगाने वाले के बारे में जानने के लिए इसलिए बेचैन था क्योंकि उसे सूरदास के यहाँ रखे हुए पाँच सौ रुपए की चिंता हो रही थी।वह सोच रहा था कि वे रुपए अब भैरों अकेले ही हड़प लेगा। वह भैरों के पास सूरदास के पाँच सौ से अधिक रुपए देखकर ईर्ष्यालु हो जाता है, उसकी छाती पर ईर्ष्या। का साँप लोट रहा था-” भैरों को दम के दम इतने रुपये मिल गए। अब यह मौज उड़ाएगा … ऐसा ही कोई माल मेरे हाथ भी पड़ पाता तो जिंदगी सफल बन जाती।” झोंपड़ी जल जाने पर भी सूरदास किसी से प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था। वह किसी पर यह प्रकट नहीं करता था कि उसके पास पाँच सौ से अधिक रुपए थे। एक भिखारी के पास धन का होना लज्जा की बात माना जाता है। वैसे सूरदास संतोषी स्वभाव का था।
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प्रश्न 7.‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा’-इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन अपने ढंग से कीजिए।
उत्तर :जब सूरदास की झोपड़ी जल गई थी तब सूरदास नैराश्य, ग्लानि, चिंता और क्षोभ के सागर के जल में गोता खा रहा था। तब वह अत्यंत दुखी था। झोपड़ी जल जाने का उसे इतना दुख न था जितना दुख उस पोटली का था, जिसमें उसकी उम्रभर की कमाई थी। यही पोटली उसके जीवन की सारी आशाओं का आधार थी, उसकी सारी यातनाओं का निष्कर्ष थी।तभी उसे घीसू का मिठुआ को यह कहते सुनाई पड़ा-‘ खेल में रोते हो।’ यह चेतावनी सुनते ही सूरदास को ऐसा मालूम हुआ जैसे किसी ने उसका हाथ पकड़कर किनारे पर खड़ा कर दिया हो। उसे लगा कि यह जीवन भी तो एक खेल है और मैं इस खेल में रो रहा हूँ अर्थात् दुखी हो रहा हूँ। सच्चे खिलाड़ी कभी नहीं रोते, बाजी-पर बाजी हारते हैं, चोट-पर-चोट खाते हैं, ध क्के-पर-धक्के सहते हैं, पर मैदान में डटे रहते हैं। हिम्मत उनका साथ नहीं छोड़ती, दिल पर मालिन्य के छींटे भी नही आते, न किसी से जलते हैं, न चिढ़ते हैं। खेल में रोना कैसा ? खेल हँसने के लिए है, दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं।इस प्रतीति ने सूरदास को उत्साह से भर दिया। वह उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग के साथ झोंपड़ी की राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा। अब उसकी मनोदशा उस खिलाड़ी के समान हो गई जो एक बार हारने के बाद पुन: पूरे उत्साह से खेल जीतने के लिए कमर कस लेता है।
प्रश्न 8.‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे ‘-इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर :जब सूरदास का पालित मिठुआ उससे पूछता है कि क्या हम बार-बार झोपड़ी बनाते रहेंगे तब सूरदास ‘हाँ’ में उत्तर देता है। अंत में मितुआ पूछ्ता है-और जो कोई सौ लाख बार (आग) लगा दे ? तब सूरदास उसी बालोचित सरलता से उत्तर देता है-“तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे।”उपर्युक्त कथन के आधार पर सूरदास के चरित्र का विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है :सूरदास में निर्णय लेने की क्षमता है। वह विषम परिस्थितियों में थोड़ी देर के लिए विचलित अवश्य होता है, पर शीघ्र ही उबर आता है और सृजन करने का निर्णय ले लेता है। वह नई झोपड़ी बनाने की दिशा में प्रयत्नशील हो जाता है। सूरदास के व्यक्तित्व में हार न मानने की प्रवृत्ति है। वह अपने शत्रुओं के समक्ष हार नहीं मानता। वह अपनी धुन का पक्का है। वह उनसे तब तक लड़ना चाहता है जब तक वे हार न मान जाएँ। सूरदास कर्मशील है। वह काम करने में विश्वास रखता है। तभी तो वह रोने-पीटने में समय गँवाने के स्थान पर पुन: झोंपड़ी बनाने के काम में जुट जाता है। सूरदास के मन में प्रतिशोध लेने की भावना नहीं है। वह सब कुछ जानकर भी किसी को इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराता। वह सारी मुसीबत स्वयं झेल जाता है।
प्रश्न 9.‘सूरदास की झोंपड़ी’ का कथ्य क्या है?
उत्तर :‘सूरदास’ प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का मुख्य पात्र है। वह अंधा है तथा भिक्षा माँगकर अपना भरण-पोषण करता है। उसके एक बालक मिटुआ भी रहता है। उसे गाँव के जगधर और भैरों अपमानित करते रहते हैं। भैरों की पत्नी का नाम सुभागी है। भैरों उसे मारता-पीटता है। अतः वह वहाँ से भागकर सूरदास की झोंपड़ी में शरण ले लेती है। भैरों उसे मारने सूरदास की झोपड़ी में घुस आता है किंतु सूरदास के हस्तक्षेप के कारण उसे मार नहीं पाता। इस घटना को लेकर पूरे मोहल्ले में सूरदास की बदनामी होती है। जगधर और भैरों सूरदास के चरित्र पर उंगली उठाते हैं।इस घटनाचक्र से सूरदास फूट-फूटकर रोता है। जगध भैरों को उकसाता है क्योंकि वह सूरदास से ईर्ष्या करता है। सूरदास और सुभागी के संबंधों को लेकर पूरे मोहल्ले में हुई बदनामी से भैरों स्वयं को अपमानित करता है और बदला लेने का निश्चय करता है। एक दिन वह सूरदास के रूपयों की थैली उठा लाता है तथा रात को उसकी झोपड़ी में आग लगा देता है। सूरदास के चरित्र की यह विशेषता है कि वह झोपड़ी जला दिए जाने के बावजूद किसी से प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं करता और झोंपड़ी के पुनर्निर्माण में जुट जाता है।
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