Hansi ki Chot Question Answer | Hasi ki Chot Class 11 Hindi Question Answer | हँसी की चोट क्लास 11 प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. ‘हैसी की चोट’ सवैये में कवि ने किन पंच तत्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते हैं ?
उत्तर - इस सैैये में कवि ने पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश तत्वों का वर्णन किया है। प्रेम में विरह की पीड़ा बहुत दुःखदायी होती है जो श्मशान की आग से भी बुरी होती है। श्मशान की आग तो कुछ ही समय में सब कुछ जला कर मिटा देती है लेकिन वियोग की पीड़ा तो तिल-तिल कर जीवन लेती है। गोपी ने जिस दिन से श्रीकृष्ण को अपनी तरफ़ मुसकराकर देखते हुए देखा है उस दिन से वह वियोग की आग में जल रही है। वह सूख-सी गई है। उसकी साँसों का आना-जाना बंद हो गया है। आँखों से अब आँसू बहने बंद हो गए हैं। उसकी आँखों में आँसू शेष बचे ही नहीं हैं। उसके शरीर का तेज समाप्त हो चुका है। विरह-अग्नि ने उसके शरीर की कृशता को अत्यधिक बढ़ा दिया है। उसके शरीर के पाँचों तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, तेज तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। प्रिय से मिलने की आशा में जीवन रूपी आकाश तत्व को अभी बनाए हुए है। गोपी का शरीर सूख गया है; तेज समाप्त हो गया है तथा जल तत्व खत्म हो गया है।
प्रश्न 2. ‘हँसी की चोट’ सवैये की अंतिम पंक्ति में यमक और अनुप्रास का प्रयोग करके कवि क्या मर्म अभिव्यंजित करना चाहता है ?
उत्तर - इस पंक्ति में कवि ने यमक और अनुप्रास के प्रयोग के द्वारा अपने कथन में चमत्कार तथा गंभीरता उत्पन्न करते हुए स्पष्ट करना चाहता है कि जिस दिन से नायक ने नायिका की ओर हँसकर देखा है उस दिन से ही नायिका की हँसी समाप्त हो गई है। वह नायक के विरह में जल रही है। उस दिन से ही नायिका का हुदय नायक ले गया है।
प्रश्न 3. नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया ?
उत्तर - जब नायक ने नायिका के सपने में स्वयं आकर यह कहा कि आओ झूला झूलने चलें, तो अपने प्रियतम को सामने देख और उसका निमंत्रण पाकर वह फूली नहीं समाई थी लेकिन जैसे ही उसकी आँखें खुलीं वैसे ही उसका सपना टूट गया था। वहाँ न तो श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में घने बादल थे। उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं।
प्रश्न 4. ‘सपना’ कवित्त का भाव-सँददर्य लिखिए।
उत्तर - ‘सपना’ कवित्त में गोपी का श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम और मिलन की इच्छा का भाव व्यक्त हुआ है। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मानव के अब चेतन मन में छिपी बातें ही सपनों के रूप में प्रकट होती हैं। गोपी श्रीकृष्ण से मिलना चाहती थी; वर्षा में उनके साथ झूले पर झूलना चाहती थी और उनकी निकटता को अनुभव करना चाहती थी। रिमझिम वर्षा की झड़ी लगी थी। घने काले बादल आकाश में उमड़–ुमड़कर आए थे। श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपी के पास आकर कहा कि आओ, आज झुला झूलने चलें। गोपी यह सुन फूली नहीं समाई। प्रसन्नता में भरकर जैसे ही वह उठी, उसकी नींद खुल गई। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानों सो गए। न तो आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे और न ही वहाँ श्रीकृष्ण थे। वियोग की पीड़ा के कारण उसकी ऑँखें आँसुओं से भर गई थीं।
यह पेज आपको कैसा लगा ... कमेंट बॉक्स में फीडबैक जरूर दें...!!!
प्रश्न 5. ‘दरबार’ सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है ?
उत्तर - देव के द्वारा रचित इस सवैया में रीतिकालीन पतनशील सामंती व्यवस्था और दरबारी वातावरण की ओर संकेत किया गया था। दरबारियों को अपने राजा की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती थी। तत्कालीन शासक बुद्धिहीन और भ्रष्ट बुद्धि थे। मूखों वाली हरकतें करना और देखना उन्हें प्रिय था और दरबारियों को भी वैसा ही करना पड़ता था। बुद्धिमान दरबारी सब देख-सुनकर चुप रहते थे। छोटी, तुच्छ और हीन बातों को महत्व दिया जाता था। व्यर्थ ही तुच्छ और हेय बातें बुद्धिहीन शासकों को अच्छी लगती थीं। वे ओछे और बाज़ारू प्रवृत्ति के थे। उन्हें अच्छो-बुरे के बीच अंतर करना ही नहीं आता था। वे समझाने पर समझते नहीं थे और सुनाने पर सुनते नहीं थे। उनकी जैसी पसंद थी, वे वैसा ही सुनते थे। इसलिए अपनी कला और प्रतिभा को छोड़ सारी रात वे राजा की पसंद के कारण नाचते रहते थे।
प्रश्न 6. दरबार में गुणग्राहकता और कला की परख को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है ?
उत्तर - ‘दरबार’ सवैये में कवि ने बताया है कि ‘साहिब’ तत्कालीन शासक है जो बुद्धिमान और विवेकी नहीं है। तुच्छ सोच और हेय मानसिकता का परिचायक होने के कारण उसके दरबार का वातावरण बिगड़ चुका है। वह अपने दखबारियों की अच्छी सलाह न सुनता है और न ही मानता है। ओछी और बाजारू बातें ही उसे अच्छी लगती हैं। गहरी सोच और कठिन विषयों पर तो वह विचार करता ही नहीं इसलिए दरबार में गुणवान तथा कलावान व्यक्ति की अनदेखी की जाती है तथा चापलूसी को प्रधानता दी जाती है।
प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।
(ख) सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।
(ग) वेई छाई बूंदें मेरे आसु हूवै दृगन में।
(घ) साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी।
उत्तर - (क) नायक ने जब से नायिका को हैसकर देखा है तब से नायिका को ऐसा लगता है जैसे उस नायक ने हैसकर देखने मात्र से ही उस का हदयय चुरा लिया है। वह नायक से मिलने के लिए व्याकुल रहने लगती है और निरंतर उससे नहीं मिल पाने की वियोगाग्नि में जलती रहती है।
(ख) लाक्षणिकता से युक्त इस पंक्ति में गोपिका की पीड़ा स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई है। जब वह सो रही थी और सपने में श्रीकृष्ण की रूप माधुरी और सान्निध्य को पा रही थी तब संयोग अवस्था के सुखों में डूबी हुई थी लेकिन जगते ही; आँखें खोलते ही उसका सपना टूट गया। जब आँखें खुलीं तो न तो वहाँ श्रीकृष्ण थे और न ही आकाश में छाए बादल। वह तो दुख के सागर में मानो डूब-सी गई। उसकी आँखें औसुओं से भर गई । उसकी किस्मत उसके जागने से सो गई। हर मानव अपने सपनों में अवचेतन के कारण उन सुखों को पा लेता है जो चाहे उसे जीवन में उपलब्ध न हो। गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी पर उन्हें प्राप्त नर्ही कर पा रही थी इसलिए सपने में उसे अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था कि उसने श्रीकृष्ण को पा लिया था, पर नींद खुलते ही जीबन का यथार्थ सामने आ गया। उसके जागने से उसके भाग्य ही मानो सो गए।
(ग) श्रीकृष्ण ने गोपिका को उसके सपने में जब झूले पर झूलने का आग्रह किया था तब बाहर रिमझिम बारिश की झड़ी लगी हुई थी। गोपिका की नींद खुलते ही उसे वास्तविकता का पता चला कि वह तो सपना देख रही थी। न तो बाहर वर्षा हो रही थी और न ही श्रीकृष्ण वहाँ थे। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। गोपी को लगा कि वही वर्षा की बूँदे उसकी आँखों में ऑसू की बूँदों के रूप में दिखाई देने लगी हैं।
(घ) तत्कालीन विलासी तथा चापलूसी-पसंद राजाओं की दशा का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि सद्बुद्धि और विवेक से रहित राजा अक्ल का अंधा है। उसके चापलूस दरबारी अच्छा-बुरा देखते हुए भी राजा की जी हजूरी करने के कारण चुप रहते हैं तथा सभा में उपस्थित अन्य लोग भी राजा की नाराजगी मोल न लेने के कारण देखते-सुनते हुए भी बहरे-गूँगे बने रहते हैं तथा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते।
प्रश्न 8. देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है ?
उत्तर - रीतिकालीन महाकवि देव स्वयं दरबारी कवि थे। जीवनभर वे अनेक राजाश्रयों को प्राप्त करते रहे थे। उन्होने किसी दरबार के चाटुकारिता और दंभपूर्ण वातावरण का चित्रण करते हुए उस पर व्यंग्य किया है कि यदि राजा मूख्य हो तो बुद्धिमान और विवेकी दरबारी भी अपने राजा जैसे ही हो जाते हैं। राजा के समझदार दरबारी चुप हो जाते है और शेष राजा के मूर्खतापूर्ण व्यवहार का समर्थन करते हुए स्वयं भी वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। ऐसे दरबार में कोई किसी की सलाह नहीं सुनता और न ही कोई सलाह देता है। उन्हें जिस प्रकार नचाया जाए वे मूर्खों की भाँति वैसे ही नाचते हैं।
प्रश्न 9. निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) साँसनि करि।
(ख) झहरि गगन में।
(ग) साहिब अंधा बाच्यो।
उत्तर - देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।
प्रश्न 10. देव के अलंकार-प्रयोग और भाषा के प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।
उत्तर - ‘हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि’ में अनुप्रास और यमक अलंकार है। ‘झहरि-झहरि झीनी बूँद’ में अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ‘घहरि-घहरि घटा घेरी’ में अनुप्रास तथा पुनरक्ति प्रकाश अलंकार है। ‘झहरी- झहरि झीनी बूँद हैं परति मनो, ‘घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में-में उत्रेक्षा अलंकार है। ‘रंग रीझ को माच्यो’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘फूली न समानी’ ‘सोए गए भाग’ और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। सर्वत्र ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है। ‘साहिब ग्रंथ, मुसाहिब मूक, सभी बहिरी’ में लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक प्रयोग देखे जा सकते है।
If you have any doubts, Please let me know