प्रश्न 1. देव की कविता में वियोग श्रूंगार को बहुत अधिक स्थान दिया गया है-इस कथन के आधार पर कवि पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर - देव रीतिकालीन श्रेष्ठ रस-सिद्ध कवि हैं जिन्होंने जीवन-भर दरबारी वातावरण में रहकर काव्य-रचना की थी। उन्होंने दरबारों की मानसिकता के आधार पर कविता रची थी। तब रसराज भृंगार ही कविता में प्रधान था। इसके संयोग और वियोग पक्षों को समान रूप से महत्व दिया गया था, पर प्रेम की सच्चाई और पराकाष्ठा वियोग शूंगार में निहित है। देव ने नाबिका के वियोग का सूक्ष्म चित्रण किया है। उनके द्वारा किया गया वियोग-वर्णन और उसकी अवस्थाएँ अनेक प्रकार की हैं। जब नायक नायिका को यह बतलाता है कि वह प्रवास पर जाने वाला है तब नायिका परेशान हो जाती है और वह उनके जाने से पहले ही वियोग की अंग्न में जलने लगी है –
विरह की ज्वाला से नायिका की अवस्था अत्यंत सोचनीय हो गई है-पता नहीं वह वियोगावस्था को सहन भी कर पाएगी या नहीं। वर्षा की ॠतु उस विरहिनी को निरंतर जला रही है। वह विरह की आग में जलकर भी अपनी पीड़ा से नायक को पीड़ित नहीं करना चाहती –
पीर सही घर ही में रही कविदेव दियौ नहीं दूतिनि को दुख।
भाहूक बात कही न सुनी मन मारि विसारी दियोँ सिमरौ सुख।
प्रश्न 2. ‘नट की बिगरी मति’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर - नट अपनी कला और प्रतिभा से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। वे दूसरों को प्रसन्न कर धन, मान और मर्यादा प्राप्त करते थे इसलिए वे वही कार्य करते थे जो देखने-सुननेवाले को अच्छा लगता था। जब श्रासक की रचचि ही अच्छी न हो तो उसके दरबार में नट से कला की श्रेष्ठता की प्राप्ति की कल्पना भी उचित नहीं है। वे अपनी कला और प्रतिभा से भटककर रातभर नाचते थे; दूसरों को नाचने के लिए प्रेरित करते थे। ${ }^{+}$नट की बिगरी मति’ से यह प्रकट होता है।
प्रश्न 3. कृष्ण के हैसते हुए मुँह फेरकर चले जाने से गोपिका ने क्या कुछ खो दिया और क्या उसके पास शेष रह गया ?
उत्तर - जब श्रीकृष्ण ने गोपिका की ओर हैंसते हुए देखा और फिर मुँह फेरकर चले गए तो जिन पाँच तत्वों से मानवीय शरीर बनता है उनमें से पृथ्वी, जल, वायु तथा तेज तत्व तो समाप्त हो गए। केवल आकाश तत्व थोड़ा-सा शेष रह गया जो धौरे-धीरे समाप्त होता जा रहा था।
प्रश्न 4. ‘हँसी की चोट’ पद का सार लिखिए।
उत्तर - ‘हैंसी की चोट’ पद महाकवि देव द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सुखसागर तरंग’ से अवतरित है। एक दिन नायिका को नायक ने हँसकर देखा और नायिका नायक की हैंसी पर उसे अपना दिल दे बैठी। नायिका के इस बदलाव पर नायक ने कोई ध्यान नहीं दिया। नायक के ध्यान न देने के कारण नायिका अत्यधिक उद्विग्न एवं व्याकुल है। नायिका को लगता है कि अब वह मूर्चिछहोने वाली है। उसकी साँसों से हवा का आना जाना बंद हो गया है। आँखों से अश्रुओं का बहना समाप्त हो गया है। उसके शरीर में विद्यमान पाँचों तत्व, जल, वायु, तेज अगिन तथा आकाश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। नायिका को अब अपने प्रिय से मिलने की आशा है। वही आशा उसके जीवन रूपी आकाश को स्थिर बनाए हुए है।
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प्रश्न 5. ‘दरबार’ सवैये में देव ने मूल रूप से क्या कहना चाहा है ?
उत्तर - रीतिकालीन कवि देव ने ‘दरबार’ सवैये में मूर्ख राजा की सभा का सजीव चित्रण करते हुए उस समय के युग का चित्र खींचा है। मूर्ख राजा के समक्ष बुद्धिमत्ता यही है कि चुप रहो। कवि देव ने दरबार की अव्यवस्था का वर्णन किया है। पतनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था के प्रति कवि ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
प्रश्न 6. सिद्ध कीजिए कि देव दरबारी कवि थे ?
उत्तर - रीतिकालीन देव का पूरा नाम देवदत्त था। ये दरबारी कवि थे। इन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक आश्रयदाताओं के पास आश्रय लेकर काव्य-रचना की। इनके सभी छंदों में दरबारी चमक देखी जा सकती है। देव की कविता का प्रमुख वर्य-विषय शृंगार था। इन्हें आचार्य का पद भी प्राप्त है। देव ने गुण और रीति को समानार्थक माना है। दरबारी कवि होने के कारण उनको आचार्य होने के बजाय कवि रूप में अधिक सफलता मिली। दरबारी साँदर्य-बोध के कारण इन्हें दरबारी कवि कहना गलत न होगा।
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