Yeh Deep Akela Important Questions | Yeh Deep Akela Class 12 Important Questions | यह दीप अकेला कविता के Important Questions Answer | Maine Dekha Ek Boond Class 12 Important Questions | Class 12 Hindi Maine Dekha ek Boond Important Question Answer | मैंने देखा एक बूँद Important Questions Answer

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Yeh Deep Akela Important Questions | Yeh Deep Akela Class 12 Important Questions | यह दीप अकेला कविता के Important Questions Answer | Maine Dekha Ek Boond Class 12 Important Questions | Class 12 Hindi Maine Dekha ek Boond Important Question Answer | मैंने देखा एक बूँद Important Questions Answer 



प्रश्न 1. ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर ‘लघु मानव’ के अस्तित्व और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है। प्रयोगवादी कविता की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें लघु मानव को प्रतिष्ठित किया गया है। जिस प्रकार एक-एक बूँद मिलकर सागर बन जाता है, उसी प्रकार बूँद का अपना अस्तित्व भी बना रहता है। जिस प्रकार एक छोटा-सा दीपक भी अंधकार को भेदने में सक्षम रहता है, उसी प्रकार लघु मानव भी स्वयं को प्रतिष्ठित करता है। लघु मानव विराट का एक अंश होते हुए भी उसका महत्त्व कम नहीं होता। इस कविता में लघु मानव का अस्तित्व दर्शाया गया है। दीपक लघु मानव का ही प्रतीक है। उसका अपना विशेष अस्तित्व है। वह समाज का अंग होकर भी समाज से अपना पृथक् अस्तित्व रखता है। लघु मानव का अपना महत्त्व भी है। लघु मानव समाज का चुनाव अपनी इच्छा से करता है। इसे इस पर कोई बलात् लाद नहीं सकता।


प्रश्न 2. ‘वह दीप अकेला’ कविता की “यह अद्वितीय-यह मेरा- यह मैं स्वयं विसर्जित” – पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।

उत्तर - व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन से उसकी उपयोगिता और सार्थकता बहुत बढ़ जाती है। व्यक्ति सर्वगुण संपन्न होते हुए भी अकेला है। जब वह अपना विलय समाज (समष्टि) में कर देता है, तभी उससे उसका तथा समाज का भला होता है। यह उसकी व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ता है। इस रूप में व्यक्ति के गुणों का लाभ पूरे समाज को मिलता है। इससे समाज और राष्ट्र मजबूत होता है।


प्रश्न 3. ‘मैंने देखा एक बूँद’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - मैंने देखा एक बूँद कविता में असेय ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। यह क्षणभंगुरता बूँद की है, समुद्र की नहीं। बूँद क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है। क्षणभर का यह दृश्य देखकर कवि को एक दार्शनिक तत्व भी दीखने लग जाता है। विराट के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से, नष्टीकरण के बोध से मुक्ति का अहसास है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन में क्षण के महत्त्व को, क्षणभंगुरता को प्रतिष्ठापित किया है।


प्रश्न 4. ‘यह द्वीप अकेला’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने दीप को ‘अकेला’ और ‘गर्वभरा मदमाता’ क्यों कहा?

उत्तर - ‘दीप अकेला’ कविता में ‘दीप’ व्यक्ति का प्रतीक है और ‘पंक्ति’ समाज की प्रतीक है। दीप का पंक्ति में शामिल होना व्यक्ति का समाज का अंग बन जाना है। कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है। दीप में स्नेह (तेल) भरा होता है, उसमें गर्व की भावना भी होती है क्योंकि उसकी लौ ऊपर की ओर ही जाती है। वह मदमाता भी है क्योंकि वह इधर-उधर झाँकता भी प्रतीत होता है। यही स्थिति व्यक्ति की भी है। उसमें प्रेम भावना भी होती है, गर्व की भावना भी होती है और वह मस्ती में भी रहता है। दोनों में काफी समानता है।


प्रश्न 5. ‘दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेहभरा, गर्वभरा और मदमाता क्यों कहा है?

उत्तर - कवि ने ‘दीप अकेला’ को उस अस्मिता का प्रतीक माना है, जिसमें लघुता में भी ऊपर उठने की गर्वभरी व्याकुलता है। उसमें प्रेम रूपी तेल भरा है। यह अकेला होते हुए भी एक आलोक स्तंभ के समान है, जो समाज का कल्याण करेगा और अपने मदमाते गर्व के कारण सबसे भिन्न दिखाई देगा। ‘दीप अकेला’ कविता में ‘दीप’ व्यक्ति का प्रतीक है और ‘पंक्ति’ समाज की प्रतीक है। दीप का पंक्ति में शामिल होना व्यक्ति का समाज का अंग बन जाना है। कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है। दीप में स्नेह (तेल) भरा होता है, उसमें गर्व की भावना भी होती है क्योंकि उसकी लौ ऊपर की ओर ही जाती है। वह मदमाता भी है क्योंकि वह इधर-उधर झाँकता भी प्रतीत होता है। यही स्थिति व्यक्ति की भी है। उसमें प्रेम भावना भी होती है, गर्व की भावना भी होती है और वह मस्ती में ही रहता है। दोनों में काफी समानता है।


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प्रश्न 6. ‘मैंने वेखा एक बूँद’ कविता में कवि अज्ञेय ने किस सत्यता के दर्शन किए और कैसे?

उत्तर - कवि अज्ञेय ने देखा कि सागर की लहरों के झाग से एक बूँद उछली। उस बूँद को सायंकालीन सूर्य की सुनहरी किरणें आलोकित कर गईं, जिससे बूँद मोती की तरह झिलमिलाती हुई चमक उठी। कवि ने बूँद के उस क्षणिक स्वर्णिम अस्तित्व को उसके जीवन की चरम सार्थकता माना है। कवि आत्मबोध प्राप्त कर सोचता है कि यदि (वह) मनुष्य ऐसे स्वर्णिम क्षण परम सत्ता या ब्रह्न के प्रति समर्पित कर देता है तो वह परम सत्ता के आलोक से आलोकित हो उठता है और नश्वरता से मुक्ति पा जाता है। कवि ने इस सत्यता के दर्शन अपने सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति एवं आत्मबोध से प्राप्त किया।


प्रश्न 7. क्षणभर के आलोक ने बूँद को किस तरह विशेष बना दिया? ‘मैंने देखा एक बूँद’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - अस्तगामी, सायंकालीन सूर्य की सुनहरी किरणें सागर के सीने पर छिटक रही थीं। उसी समय सागर की लहरों के झाग से एक बूँद उछली। इस बूँद पर सूर्य की सुनहरी किरण पड़ते ही बूँद मोती की तरह झिलमिलाने लगी। बूँद सुनहरे रंग में रंगकर अलौकिक चमक प्राप्त कर गई। यदि इस बूँद पर सायंकालीन सूर्य की किरणें न पड़तीं तो उसका अस्तित्व निखरकर सामने न आ पाता। इस प्रकार सूर्य की सुनहरी किरणों ने उसे विशेष बना दिया।


प्रश्न 8. ‘यह दीप अकेला’ के आधार पर व्यष्टि और समष्टि पर लेखक के विच्चारों पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर - व्यष्टि को समष्टि में विलय होना ही चाहिए क्योंकि व्यष्टि का समहह ही समष्टि का निर्माण करता है। व्यष्टि के समष्टि में शामिल होने से ही उसकी महत्ता और सार्थकता में वृद्धि होती है। व्यक्ति का मूल्यांकन समाज में ही संभव है। व्यक्ति के समाज में विलय होने से समाज मजबूत होता है और जब समाज मजबूत होगा तो राष्ट्र भी शक्तिशौली होगा। व्यष्टि का समष्टि में विलय तभी संभव हो सकता है जब समष्टि व्यष्टि के महत्व को स्वीकार करेगा।


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