Yeh Deep Akela Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Yeh Deep Akela Question Answer | यह दीप अकेला प्रश्न उत्तर | यह दीप अकेला कविता के प्रश्न उत्तर | Maine Dekha Ek Boond Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Maine Dekha Ek Boond Question Answer | मैंने देखा एक बूंद के प्रश्न उत्तर

0

Yeh Deep Akela Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Yeh Deep Akela Question Answer | यह दीप अकेला प्रश्न उत्तर | यह दीप अकेला कविता के प्रश्न उत्तर | Maine Dekha Ek Boond Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Maine Dekha Ek Boond Question Answer | मैंने देखा एक बूंद के प्रश्न उत्तर 


 यह दीप अकेला –

प्रश्न 1. ‘दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?

उत्तर - ‘दीप अकेला’ कविता में ‘दीप’ व्यक्ति का प्रतीक है और ‘पंक्ति’ समाज की प्रतीक है। दीप का पंक्ति में शामिल होना व्यक्ति का समाज का अंग बन जाना है। कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है। दीप में स्नेह (तेल) भरा होता है, उसमें गर्व की भावना भी होती है क्योंकि उसकी लौ ऊपर की ओर ही जाती है। वह मदमाता भी है क्योंकि वह इधर-उधर झाँकता भी प्रतीत होता है। यही स्थिति व्यक्ति की भी है। उसमें प्रेम भावना भी होती है, गर्व की भावना भी होती है और वह मस्ती में भी रहता है। दोनों में काफी समानता है।


प्रश्न 2. ‘यह दीप अकेला, पर इसको भी पंक्ति को दे दो’ के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है ?

उत्तर - दीप-व्यक्ति का प्रतीक है और पंक्ति-समाज का। दीप को पंक्ति में स्थान देना व्यक्ति को समाज में स्थान देना है। यह व्यष्टि का समष्टि में विलय है। यह पूरी तरह संभव है। व्यक्ति बहुत कुछ होते हुए भी समाज में विलय होकर अपना और समाज दोनों का भला करता है। दीप का पंक्ति में या व्यष्टि का समष्टि में विलय ही उसकी ताकत का, उसकी सत्ता का सार्वभौमीकरण है, उसके उद्देश्य एवं लक्ष्य का सर्वव्यापीकरण है।


प्रश्न 3. ‘गीत’ और ‘मोती’ की सार्थकता किससे जुड़ी है?

उत्तर - ‘गीत’ की सार्थकता उसके गायन के साथ जुड़ी है। गीत तभी सार्थक होता है जब लोग उसे गाएँ। गीत चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, पर जब तक कोई उसे गाएगा नहीं तब तक वह निरर्थक है। ‘मोती’ की सार्थकता उसके गहरे समुद्र से बाहर निकालकर लाने वाले गोताखोर के साथ जुड़ी है। समुद्र की गहराई में चाहे कितने भी कीमती मोती भरे पड़े हों, पर वह गोताखोर (पनडुब्बा) द्वारा बाहर निकालकर लाया जाता है, तभी वह मोती सार्थक बनता है अन्यथा वह निरर्थक बना रहता है।


प्रश्न 4. ‘यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित’-पंक्ति के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय विसर्जन की उपयोगिता बताइए।

उत्तर - कवि कहता है कि मनुष्य अकेला है, परंतु अद्वितीय है। वह अपने-आप काम करता है। वह व्यक्तिगत सत्ता को दर्शाता है। वह कार्य करता है और अपने अहं भाव को नष्ट कर देता है। वह समाज में खुद को मिला देता है तथा अपनी सेवाओं से समाज व राष्ट्र को मजबूत बनाता है। इसके अलावा अत्यंत गुणवान और असीम संभावनाओं से युक्त व्यक्ति भी समाज से अलग-अलग रहकर उन गुणों का न तो उपयोग कर पाता है और न समाज के बिना अपनी पहचान ही बना पाता है।


प्रश्न 5. ‘यह मधु है’ तकता निर्भय’-पंक्तियों के आधार पर बताइए कि ‘मधु’, ‘गोरस’ और ‘अंकुर’ की क्या विशेषता है ?

उत्तर - ‘मधु’ की विशेषता यह है कि इसके उत्पन्न होने में युगों का समय लगा है। स्वयं काल द्वारा अपने टोकरे में युगों तक एकत्रित करने के पश्चात् मधु प्राप्त हुआ है। ‘गोरस’ की विशेषता यह है कि यह जीवन रूपी कामधेनु का अमृतमय दूध है। यह देव पुत्रों द्वारा पिया जाने वाला अमृत है। अंकुर की विशेषता यह है कि यह विपरीत परिस्थितियों में भी पृथ्वी को बेधकर बाहर निकलने के लिए उत्कंठित रहता है। यह सूर्य की ओर निडर होकर देखता है।


प्रश्न 6. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :

(क) यह प्रकृत स्वयंभू “शक्ति को दे दो।

उत्तर - कवि ने अंकुर को प्रकृत, स्वंभू और ब्रह्म के समान कहा है क्योंकि वह स्वयं ही धरती को फोड़कर बाहर निकल आता है और निर्भय होकर सूर्य की ओर देखने लगता है। इसी प्रकार कवि भी अपने गीत स्वयं बनाकर निर्भय होकर गाता है, अत: उसे भी सम्मान मिलना चाहिए।


(ख) यह सदा द्रवित, चिर जागरूक”चिर अखंड अपनाया।

उत्तर - दीपक सदा आग को धारण कर उसकी पीड़ा को पहचानता है परंतु फिर भी सदा करुणा से द्रवित होकर स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। यह सदा जागरूक, सावधान तथा सबके साथ प्रेमभाव से युक्त रहता है। दीपक व्यक्ति का प्रतीक है।


(ग) जिज्ञासु प्रबुद्ध सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।

उत्तर - दीपक को व्यक्ति के प्रतीक के रूम में चित्रित किया गया है। यह सदा जानने की इच्छ से भरपूर ज्ञानवान व श्रद्धा से युक्त रहा है। व्यक्ति भी इन सभी विशेषताओं से परिपूर्ण रहता है।


यह पेज आपको कैसा लगा ... कमेंट बॉक्स में फीडबैक जरूर दें...!!!


प्रश्न 7. ‘यह दीप अकेला’ एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार परं ‘लघु मानव’ के अस्तित्व और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - दीपक अकेला जल रहा है। यह स्नेह से भरा हुआ है। यह अकेला होने पर भी, लघु होने पर भी काँपता नहीं है, गर्व से भरकर जलता है। दीपेक अपने विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण अपने अकेलेपन में भी सुशोभित है, सार्थक है। उसका निजी वैशिष्ट्य समूह के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि आवश्यकता पड़े तो वह समाज के लिए अर्पित हो सकता है। वह बलपूर्वक आत्मत्याग के विरुद्ध है।

इस कविता में लघु मानव का अस्तित्च दर्शाया गया है। दीपक लघु मानव का ही प्रतीक है। उसका अपना विशेष अस्तित्व है। वह समाज का अंग होकर भी समाज से अपना पृथक् अस्तित्व रखता है। लघु मानव का अपना महत्त्व भी है। लघु मानव समाज का चुनाव अपनी इच्छा से करता है। इसे इस पर कोई बलात् लाद नहीं सकता।


प्रश्न 8. कविता के लाक्षणिक प्रयोगों का चयन कीजिए और उनमें निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - कविता के लाक्षणिक प्रयोग यह दीप अकेला : इसमें ‘दीप’ व्यक्ति की ओर संकेत करता है। वह अकेला है।

जीवन-कामधेनु : कामधेनु के समान जीवन से इच्छित की प्राप्ति। पंक्ति में जगह देना : समाज को अभिन्न अंग बनाना। नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा : मानव लघु होने पर भी काँपता नहीं। एक बूँन : लघु मानव। सूरज की आग : आग-ज्ञान का आलोक, रागात्मक वृत्ति की ऊष्मा।


मैंने देखा : एक बूँद –


प्रश्न 1. ‘सागर’ और ‘बूँद’ से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर - ‘सागर’ से आशय समाज से है और ‘बूँद’ से कवि का आशय ‘व्यक्ति’ से है। एक छोटी-सी बूँद सागर के जल से उछलती है और पुन: उसी में समा जाती है। यद्यपि बूँद का अस्तित्व क्षणिक होता है, पर निरर्थक कतई नहीं होता।


प्रश्न 2. ‘रंग गई क्षण-भर, बलते सूरज की आग से’ पंक्ति के आधार पर बूँद के क्षण भर रंगने की सार्थकता बताइए।

उत्तर - बूँद सागर के जल से ऊपर उछलती है और क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती हैं। वह क्षणभर में ही स्वर्ण की भाँति अप़नी चमक दिखां आती है। यह चमकना निरर्थक नहीं है। वह क्षणभर में ही सार्थकता दर्शा जाती है।


प्रश्न 3. ‘सूने विराट के सम्मुख ‘दाग से’-पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि विराट के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से, नष्टशीलता के बोध से मुक्ति का अहसास है। यद्यपि यह विराट सत्ता शून्य या निराकार है तथापि मानव-जीवन में आने वाले मधुर मिलन के आलोक से दीप्त क्षण मानव को नश्वरता के कलंक से मुक्त कर देते हैं। आलोकमय क्षण की स्मृति ही उसके जीवन को सार्थक कर देती है। कवि को खंड में भी विराट सत्ता के दर्शन हो जाते हैं। वह आश्वस्त हो जाता है कि वह अपने क्षणिक नश्वर जीवन को भी बूँद की भाँति अनश्वरता और सार्थकता प्रदान कर सकता है। उसकी स्थिति वैसी ही सात्विक है जैसी उस साधक की, जो पाप से मुक्त हो गया है।


यह पेज आपको कैसा लगा ... कमेंट बॉक्स में फीडबैक जरूर दें...!!!


प्रश्न 4. ‘क्षण के महत्त्व’ को उजागर करते हुए कविता का मूलभाव लिखिए।

उत्तर - इस कविता में क्षण का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि स्वार्थ के क्षुद्र बंधनों को तोड़कर व्यष्टि को समष्टि में लीन हो जाना चाहिए। जगत के सभी प्राणियों का दुःख-दर्द अपना है और उसे अपनाने का प्रयत्ल किया जाना चाहिए। संध्या के समय समुद्र में एक बूँद का उछलना और फिर उसी में विलीन हो जाना क्षण के महत्त्व को प्रतिपादित करता है। यद्यपि बूँद का अस्तित्व बहुत कम समय के लिए था, फिर भी उसे निरर्थक नहीं कहा जा सकता। वह बूँद एक क्षण में ही अस्त होती सुनहरी किरण से चमक उठी थी। बूँद का इस तरह चमककर विलीन हो जाना आत्मबोध कराता है। यद्यपि यह विराट सत्ता निराकार है, फिर भी मानव जीवन में आने वाले मधुर मिलन के प्रकाश से प्रदीप्त क्षण मानव को नश्वरता के कलंक से मुक्त कर देते हैं।


आपकी स्टडी से संबंधित और क्या चाहते हो? ... कमेंट करना मत भूलना...!!!




Post a Comment

0Comments

If you have any doubts, Please let me know

Post a Comment (0)