Sandhya ke Baad Class 11 Question Answer | Sandhya ke Baad Class 11 Explanation Question Answer | संध्या के बाद पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर - संध्या के समय अस्त होते हुए सूर्य की किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबाई और झरनों से बहनेवाले जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है। ये किरणें गंगाजल को स्वर्णिम करती हुई उसके किनारे की रेत पर धूपछाँही बना देती है। जैसे-जैसे सूर्य डूबता जाता है वैसे-वैसे प्राकृतिक परिवेश बदलता रहता है। तांबाई से स्वर्णिम, फिर सुरमई और सूर्य के डूबते ही अँधेरा छा जाता है।
प्रश्न 2. पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - कवि कहता है कि जब सूर्य अस्त हो रहा होता है, तो उसकी स्वर्णमम किरणें गंगा के किनारे दूर तक पहले रेत में धूपछाँही बना देती हैं। लगातार बहती हवा के कारण रेत में साँपों की आकृति-सी बन जाती है। गंगा के नीले जल में लहरें ऐसी प्रतीत होती है, मानो बादलों की चाँदी के समान परछाई जल में प्रतिबिंबित हो रही है। रेत, जल और मंद-मंद बहती हवा मानो तीनों मोह-पाश में बँधकर उज्ज्वल प्रतीत होती हैं। हवा पिछलकर जैसे जल बन गई हो और जल जैसे द्रव्य-गुण त्यागकर एकाकार हो गया है।
प्रश्न 3. शाम होते ही कौन-कौन घर लौट पड़ते हैं ?
उत्तर - संध्या के समय और गायें अपने घर लौट रही हैं। दिनभर की मेहनत के कारण थके हुए किसान भी घर लौट रहे हैं। व्यापारी भी अपने कारोबार को समेटकर नाब द्वारा नदी पार कर अपने घरों को लौट रहे हैं। कुछ खानाबदोश अपने ऊँटों और घोड़ों के साथ खाली बोरियों को ही बिस्तर बना उसपर बैठे हुक्का पी रहे हैं।
प्रश्न 4. संध्या के दुश्य में किस-किसने अपने स्वर भर दिए हैं ?
उत्तर - संध्या के समय मंदिरों से शंख और घंटे की ध्वनि आने लगती है। अपने-अपने घोंसलों को लौटते हुए पक्षियों की ध्वनि से वातावरण गूँज उठता है। पंक्तियों में जाते हुए सोन-पक्षियों की द्रवित कर देनेवाली ध्वनियों सुनाई दे रही है। नदी तट पर वृद्धाओं और विधवाओं के भाक्ति गीतों का स्वर सुनाई देता है। सूर्य अपनी अस्ताचलगामी किरणों से प्रकृति को स्वर्णिम बना देता है।
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प्रश्न 5. बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है ?
उत्तर - कवि ने गाँव के अवसाद को कुत्तों के भौकने, गीदड़ों की हुआँ-हुआं, धुआं देती ढिबरी, परचून की दुकान पर उपलब्य थोड़े-से सामान, सर्दी की ठिठुरन, मिट्टी से बने घरौदि नुमा घरों, फटी हुई हुई कथड़ी आदि के द्वारा अभिव्यक्त किया है।
प्रश्न 6. लाला के मन में उठने वाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - लाला की दयनीय आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि अपनी छोटी एवं संकुचित दुकान को देखकर वह स्वयं को दयनीय, दुखी और अपमानित अनुभव करता है। यह संकुचित आय उसकी भूख और प्यास को खत्म नहीं कर पा रही है। उसके जीवन की सभी आकांक्षाएँ लगभग मृतप्राय हो चुकी हैं। बिना किसी आय के उसका अंधकारमय जीवन उसकी दयनीय आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित कर रहा है, वह जीवन-भर अपनी दुकान की गद्दी पर बैठा हुआ ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी निर्जीव और बेकार अनाज का ढेर हो अर्थात् उसके जीवन में सजीवता नहीं बची है। वह थोड़ी-सी आय के लिए बात-बात में झूठ बोलता है तथा अपने ही वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अपने जीवन को तबाह कर रहा है।
प्रश्न 7. सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है ?
उत्तर - कवि कहता है कि ग्रामीण परिवेश में लगभग सभी परिवार अपने-अपने मिट्टी के घरों में अलग-अलग विचारधारा के साथ जीवन जी रहे हैं। कवि का कहना है कि आपसी वैमनस्य और विरोधों के बजाए उन्हें सभी मिल-जुलकर सामाजिक जीवन जीना चाहिए अर्थात अलग-अलग वर्गों में न रहकर उन्हें आपसी भाई-चारे के साथ जीवनयापन करना चाहिए। उन्हें मिल-जुलकर सामाजिक सद्भावना के साथ समाज का निर्माण करना चाहिए। तभी सभी सुंदर और सरल जीवन का आनंद पाए। समाज को बिलकुल शोषण मुक्त बनाएँ और समाज में प्रत्येक व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो।
प्रश्न 8. ‘कर्म और गुण के समान …… हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर - भारतवर्ष में संपूर्ण आय-व्यय का बँटवारा व्यक्ति के गुण और कार्य के आधार पर नहीं होता है। ग्रामीण परिवेश में लोग सारा दिन काम करते हैं, परंतु फिर भी उन्हें ठीक से तीन समय का खाना नहीं प्राप्त होता। बस्ती का व्यापारी लाला सुबह निकलने से पहले ही दुकान पर बैठ जाता है परंतु उसकी आर्थिक दशा अभी भी दयनीय बनी हुई है और शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यापारी अब महाजन बन गए हैं। शहरी और ग्रामीण आर्थिक दशा में इतना बड़ा अंतर देखकर कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को उसके कर्म और गुण के आधार पर ही आय प्राप्त होनी चाहिए।
प्रश्न 9. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदुश्य, गति अंतर-रोदन।
उत्तर - काव्य-साँदर्य-प्रस्तुत पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन की कविता ‘संध्या के बाद’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवि ने सांध्यकालीन वातावरण में नदी के तट पर बैठी बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की दशा का वर्णन किया है जो ऐसे ध्यान मग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों। नदी के बहते पानी में इन बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की न दिखने वाली पीड़ा जैसे धीरे-धीरे बह रही हो अर्थात् कवि ने बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की पीड़ाजन्य स्थिति का वास्तविक वर्णन किया है। भाषा में भावुकता एवं माधुर्य है। उपमा अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है।
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प्रश्न 10. आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/झरते चंचल स्वर्णिम निईर।
(ख) दीपशिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन।
(ग) सोन खगों की पाँति/आर्र्र ध्वनि की नीरव नभ करती मुखरित।
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला।
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा।
(च) बिना आय के क्लांति बन रही/उसके जीवन की परिभाषा।
(छ) व्यक्ति नही, जग की परिपाटी/दोषी जन के दु:ख क्लेश की।
उत्तर - (क) संध्या के समय अस्ताचलगामी सूर्य की रक्तिम किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबई हो जाता है, साथ ही सैकड़ों धाराओं में बहते हुए झरनों के जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है।
(ख) कवि का मानना है कि दीपों की ज्योति के समान मंदिरों के शिखरों पर चमक्ता हुआ कलश ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह आकाश में सिर उठाकर जोर-जोर से परमात्मा का नाम जप रहो हो।
(ग) अस्ताचलगामी सूर्य के कारण वातावरण में धीरे-धीर अंधकार फैल रहा है जिसे देखकर पंक्ति में जाते हुए सोन पक्षियों की द्रवित कर देने वाली ध्वनि आकाश की खामोशी को भंग कर रही है।
(घ) कबि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि वे दिन निकलने से पहले ही टिन की ढिबरी जलाकर ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हैं। उस ढिबरी से रोशनी से अधिक धुआँ निकलता है। इसी धुएँ के समान उनके मन में उत्पन्न अंतद्वर्वद्व के कारण उनके जीवन में भी दुख और पीड़ा रूपी धुआँ उनकी आँखों में भर जाता है।
(ङ) कवि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि अपनी दयनीय आर्थिक स्थिथि के कारण उनके हृदय की मूक वेदना और पीड़ा ढिबरी की कॉपती लौ के समान काँप रही है। इस कंपित ढ़िबरी की ज्योति में मानो उसके हुदय की छिपी पीड़ा और वेदना स्वयं ही मुखरित हो रही है।
(च) कवि कहता है कि बस्ती के छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। बिना किसी आय के उसका जीवन अंधकारमय तथा कष्टों से भरा हो गया है। उसे अपने जीवन की परिभाषा यही लगती है कि सदा अभावों से ग्रस्त रहना ही उसकी नियति है।
(छ) कवि का मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष के दुखी रहने, कष्ट सहने तथा अभाव में जीने का दोषी केवल वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि वह समाज भी है जिस समाज की व्यवस्था ने उस व्यक्ति को दुख सहते रहने योग्य बना दिया है।
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