चार्ली चैप्लिन यानी हम सब (पठित गद्यांश)

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चार्ली चैप्लिन यानी हम सब (पठित गद्यांश)






निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1. 

पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी 'सुधारते' या 'जूते खाने' की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा।

प्रश्न
(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष क्यों महत्वपूर्ण हैं?
(ख) भारत में चार्ली की क्या स्थिति हैं?
(ग) विकासशील देशों में चलिन की लोकप्रियता का क्या कारण हैं?
(घ) लेखक ने यह क्यों कहा कि चैप्लिन पर करीब पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?

उत्तर-
(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस वर्ष उनकी पहली फ़िल्म 'मेकिंग ए लिविंग' के 75 वर्ष पूरे हो गए। हैं। वह पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है।

(ख) चार्ली अब समय, भूगोल व संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघ चुका है। अब वह भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है। वे उसकी कला को बुढ़ापे तक याद रखेंगे।

(ग) विकासशील देशों में टेलीविजन व वीडियो का प्रसार हो रहा है जिसके कारण एक बड़ा व नया दर्शक वर्ग फ़िल्मी कार्यक्रमों से जुड़ रहा है। वह चार्ली को घड़ी ‘सुधारते।' या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है।

(घ) लेखक ने यह बात इसलिए कही है क्योंकि चैप्लिन की कुछ फ़िल्मों की रीलें मिली हैं जो इस्तेमाल नहीं हुई हैं। इनके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी इसलिए अभी उन पर काम होना शेष है।

प्रश्न 2. 

उनकी फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्ध पर नहीं। मेट्रोपोलिस', 'द कैबिनेट ऑफ़ डॉवर कैलिगारी', 'द रोवथ सील', 'लास्ट इयर इन मारिएनबाड', 'द सैक्रिफाइस' जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती हैं। चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फ़िल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता।

प्रश्न
(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक कैसे हैं?
(ख) चार्ली ने दशकों की वर्ण तथा वर्ण-व्यवस्था को कैसे तोड़ा?
(ग) चार्ली की फिल्मों को कौन - सा वर्ग नापसंद करता है?
(घ) चार्ली व शासक वर्ग के बीच नाराजगी का क्या कारण है?

उत्तर =
(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक पागलखाने के मरीज, सिरफिरे लोग व आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले लोग हैं। वे सभी चार्ली को पसंद करते हैं।

(ख) चार्ली ने दर्शकों की वर्ग व वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। उससे पहले लोग जाति, धर्म, समूह या वर्ण के लिए फ़िल्म बनाते थे। कुछ कला फ़िल्में बनती थीं जिनका दर्शक वर्ग विशिष्ट होता था, परंतु चार्ली ने ऐसी फ़िल्में बनाई जिनको देखकर हर आदमी आनंद का अनुभव करता है।

(ग) चार्ली की फ़िल्मों को वे लोग नापसंद करते हैं जो व्यक्ति, समूह या तंत्र में भेदभाव को नहीं मिटाना चाहते।

(घ) चार्ली आम आदमी की कमजोरियों के साथ-साथ शासक वर्ग की कमजोरियों को भी जनता के सामने प्रकट कर देता है। शासक या तंत्र नहीं चाहता कि जनता उन पर हँसे। इस कारण दोनों में तनातनी रहती थी।

प्रश्न 3. 

एक परित्यक्ता, दूसरे दर्ज की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना इन सबसे चैप्लिन को ये जीवन मूल्य मिले । करोड़पति हो जाने के बावजूद वे उनमें रहे। अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी  संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रहीं हो क्योंकि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे और अपने पिता की तरफ से वे यहुदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक बाहरी', 'घुमंतू चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ था। उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके। यदि उन्होंने अपनी फ़िल्मों में अपनी प्रिय छवि ट्रैम्प (बददु, खानाबदोश, आवारागर्द) की प्रस्तुति की है। तो इसके कारण उनके अवचेतन तक पहुँचते हैं।

प्रश्न
(क) चार्ली का बचपन कैसा बीता?
(ख) चार्ली के घुमंतू बनने का क्या कारण था?
(ग) चैप्लिन के जीवन में कौन से मूल्य अंत तक रहे?
(घ) 'चार्ली चैप्लिन' के जीवन में भारतीयता के संस्कार थे-कैसे?

उत्तर =
(क) चार्ली का बचपन अत्यंत कष्टों में बीता। वह साधारण स्टेज अभिनेत्री का बेटा था जिसे पति ने छोड़ दिया था। उसे गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपतियों व सामंतों द्वारा दुत्कारा गया।

(ख) चार्ली की नानी खानाबदोश थीं। वह बचपन से ही बेसहारा रहा। माँ के पागलपन, समाज के दुत्कार के कारण उसे कभी संस्कार नहीं मिले। इन जटिल परिस्थितियों ने उसे घुमंतू बना दिया।

(ग) चैप्लिन के जीवन में निम्नलिखित मूल्य अंत तक रहें-एक परित्यक्ता व दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, भयावह गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्यवादी व पूँजीवादी समाज द्वारा दुत्कारा जाना।

(घ) चार्ली चैप्लिन की नानी खानाबदोश थीं। ये खानाबदोश कभी भारत से ही यूरोप में गए थे। चार्ली ने भी घुमंतुओं जैसा जीवन जिया तथा फ़िल्मों में उसे प्रस्तुत किया। इस कारण उसके जीवन में भारतीयता के संस्कार मिलते हैं।

प्रश्न 4, 

चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फिल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों ने सिर धुने हैं और उन्हें नेति नेति कहते हुए यह मानना पड़ता है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है। जो करोड़ों लोग चार्ली को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल टिंगर या जेम्स एणी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चार्ली को समय और भूगोल से काटकर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यह कहना कि वे चार्ली में खुद को देखते हैं।' दूर की कौड़ी लाना है लेकिन बेशक जैसा चालीं में वे देखते हैं वह उन्हें जाना पहचाना लगता है, जिस मुसीबत में वह अपने को हर दसवें सेकेंड में डाल देता है वह सुपरिचित लगती है। अपने को नहीं लेकिन वे अपने किसी परिचित या देखे हुए को चार्ली मानने लगते हैं।

प्रश्न
(क) चार्ली के बारे में समीक्षकों को क्या मानना पड़ा।
(ख) कला व सिद्धांत के बारे में क्या बताया गया हैं?
(ग) चार्ली के बारे में दर्शक क्या सोचते हैं?

उत्तर =
(क) चार्ली के बारे में फिल्म समीक्षकों, फ़िल्म कला के विशेषज्ञों तथा मानविकी के विद्वानों ने गहन शोध किया, परंतु उन्हें यह मानना पड़ा कि चार्ली पर कुछ नया लिखना बेहद कठिन है।

(ख) कला व सिद्धांत के बारे में बताया गया है कि सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत को या तो लेकर आती हैं या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।

(ग) चालीं को देखकर लोग स्वयं में चार्ली देखते हैं या वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है। उसकी हरकतें उन्हें अपनी या आस-पास के लोगों जैसी लगती हैं।

प्रश्न 5. 

चार्ली के नितांत अभारतीय सौंदर्यशास्त्र की इतनी व्यापक स्वीकृति देखकर राजकपूर ने भारतीय फिल्मों का एक सबसे साहसिक प्रयोग किया। 'आवारा' सिर्फ 'द ट्रैम्प' का शब्दानुवाद ही नहीं था बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। यह अच्छा ही था कि राजकपूर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोपों की परवाह नहीं की। राजकपूर के 'आवारा' और 'श्री 420' के पहले फिल्मी नायकों पर हँसने की और स्वयं नायकों के अपने पर हँसने की परंपरा नहीं थी। 1953-57 के बीच जब चैप्लिन अपनी गैर-ट्रेम्पनुमा अंतिम फिल्में बना रहे थे तब राजकपूर चैप्लिन का युवा अवतार ले रहे थे। फिर तो दिलीप कुमार (बाबुल, शबनम, कोहिनूर लीडर, गोपी), देव आनंद (नौ दो ग्यारह, 'टूश, तीन देवियाँ), शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन (अमर अकबर एंथनी) तथा श्री देवी तक किसी-न-किसी रूप से चैप्लिन का कर्ज स्वीकार कर चुके हैं। बुढ़ापे में जब अर्जुन अपने दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से न बचा सके और हवा में तीर चलाते रहे तो यह दृश्य करुण और हास्योत्पादक दोनों था किंतु महाभारत में सिर्फ उसकी त्रासद व्याख्या स्वीकार की गई। आज फ़िल्मों में किसी नायक को झाड़ुओं से पिटता भी दिखाया जा सकता है लेकिन हर बार हमें चार्ली की ही ऐसी फ़जीहतें याद आती हैं।

प्रश्न
(क) राजकपूर ने क्या साहसिक प्रयोग क्रिया?
(ख) राजकपूर ने किससे प्रभावित होकर कौन कौन-सी फिल्में बनाई?
(ग) कौन-कौन से भारतीय नायकों ने अपने अभिनय में परिवतन किया?
(घ) यहाँ महाभारत के किस प्रसंग का उल्लेख किया गया हैं?

उत्तर =
(क) राजकपूर ने चार्ली के हास्य व करुणा के सामंजस्य के सिद्धांत को भारतीय फिल्मों में उतारा। उन्होंने 'आवारा' फिल्म बनाई जो 'द ट्रैम्प' पर आधारित थी। उन पर चैप्लिन की नकल करने के आरोप भी लगे।

(ख) राजकपूर ने चार्ली चैप्लिन की कला से प्रभावित होकर 'आवारा', 'श्री 420' जैसी फ़िल्में बनाई जिनमें नायकों को स्वयं पर हँसता दिखाया गया है।

(ग) राजकपूर, दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन व श्री देवी जैसे कलाकारों ने चार्ली चैप्लिन के प्रभाव से अपने अभिनय में परिवर्तन किया।

(घ) महाभारत में अर्जुन की वृद्धावस्था का वर्णन है जब वह दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से नहीं बचा सके तथा हवा में तीर चलाते रहे। यह हास्य व करुणा का प्रसंग है, परंतु इसे सिर्फ त्रासद व्याख्या ही माना गया है।


प्रश्न 6. 

चार्ली की अधिकांश फ़िल्मों भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन को सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच पाए, इसकी पड़ताल अभी होने को है। चार्ली का चिर-युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आस पास जो भी चीजें खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत विदेश या 'परदेस' बन जाते हैं और चैप्लिन हम बन जाते हैं। चाली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह मैं भी हो सकता हैं, लेकिन 'मैं' से ज्यादा चार्ली हमें 'हम' लगते हैं। यह संभव है कि कुछ अथों में बस्टर कीटन चार्ली चैप्लिन से बड़ी हास्य प्रतिभा हो लेकिन कीटन हास्य का काफ्का है जबकि चैप्लिन प्रेमचंद के ज्यादा नजदीक हैं।

प्रश्न
(क) चार्ली की फिल्मों को मानवीय क्यों होना पड़ा?
(ख) चार्ली चैप्लिन की सावभौमिकता का क्या कारण है?
(ग) चार्ली की फिल्मों को विशेषता क्या है।
(घ) चार्ली के कारनामे हमें 'मैं' न लगकर 'हम' क्यों लगते हैं?

उत्तर -
(क) चार्ली की फिल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं किया गया। अतः उनमें मानव की क्रियाओं को सहजता व स्वाभाविकता से दिखाया गया ताकि दर्शक उन्हें शीघ्र समझ सकें। इसीलिए चार्ली की फ़िल्मों को मानवीय होना पड़ा।

(ख) चार्ली चैप्लिन की कला की सार्वभौमिकता के कारणों की जाँच अभी होनी है, परंतु कुछ कारण स्पष्ट हैं, जैसे वे सदैव युवा जैसे दिखते हैं तथा दूसरों को अपने लगते हैं।

(ग) चार्ली की फ़िल्मों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
# चार्ली चिर युवा या बच्चों जैसा दिखते हैं।
# वे किसी को विदेशी नहीं लगते।
#  उनके खलनायक सदैव विदेशी लगते हैं।

(घ) चार्ली के कारनामे इतने अधिक थे कि वे किसी एक पात्र की कहानी नहीं हो सकते। उनके संदर्भ बहुत विस्तृत होते थे। वे हर मनुष्य के आस-पास के जीवन को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 7. 

अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम कर्तव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। 

प्रश्न
(क) 'चार्ली के टिली' का क्या अभिप्राय हैं।
(ख) चार्ली के चरित्र में कैसी घटनाएं हो जाती हैं।
(ग) चार्ली किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हैं।
(घ) चार्ली और सुपरमैन में वया अंतर हैं।

उत्तर -
(क) चार्ली वे टिली' का अर्थ है-चाली के कारनामों की नकल। चार्ली के कारनामे व प्रेम अंत में असफल हो जाते हैं, उसी तरह आम आदमी के रोमांस भी फुस्स हो जाते हैं।

(ख) चार्ली के चरित्र में अनेक ऐसी घटनाएँ होती हैं कि वे सफलता के नजदीक पहुँचने वाले होते हैं तो एकदम असफल हो जाते हैं। कभी लाचार होते हुए भी जीत सकते हैं तो कभी वीरता के क्षण में पलायनवादी भी हो सकते हैं। उनके चरित्र में एकदम परिवर्तन हो जाता है।

(ग) चार्ली उस असफल व्यक्ति का प्रतीक है जो सफलता पाने के लिए बहुत परिश्रम करता है, कभी-कभी वह सफल भी हो जाता है, परंतु अक्सर वह निरीह व तुच्छ प्राणी ही रहता है।

(घ) चार्ली आम आदमी है। वह सर्वोच्च स्तर पर पहुँचकर भी अपमान झेलता है, जबकि सुपरमैन शक्तिशाली है। यह जीतता है तथा अपमानित नहीं होता।


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