पहलवान की ढोलक (पठित गद्यांश)
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयार्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बॉस-फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य अँधेरा और निस्तब्धता !
प्रश्न
(क) लेखक किस तरह के मौसम का वर्णन कर रहा है।
(ख) गाँव किससे पीड़ित है?
(ग) गाँव किसके समान काँप रहा है।
(घ) गद्यांश के आधार पर गाँव की आर्थिक दशा का चित्रण कीजिए।
उत्तर -
(क) लेखक सर्दी के दिनों का वर्णन कर रहा है। अमावस्या की रात है। भयंकर ठंड है तथा चारों तरफ अँधेरा है।
(ख) गाँव हैजे व मलेरिया की बीमारी से पीड़ित हैं।
(ग) गाँव मलेरिया व हैजे से पीड़ित है तथा वह भयभीत शिशु की तरह थर-थर काँप रहा है।
(घ) गद्यांश से ज्ञात होता है कि गाँव की आर्थिक दशा दयनीय थी। घर के नाम पर टूटी-फूटी झोपड़ियाँ थीं जिनमें खुशी का नामोनिशान तक नहीं था।
प्रश्न 2.
अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
प्रश्न
(क) गाँव में ऐसा क्या हो गया था कि आँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रहीं थीं?
(ख) कहानी में वातावरण निर्माण के लिए लेखक अँधेरी रात के स्थान पर चाँदनी रात को चुनता तो क्या अंतर आ जाता? स्पष्ट करें।
(ग) उक्त गद्यांश के आधार पर लेखक की भाषा-शैली पर टिप्पणी कीजिए।
(घ) 'निस्तब्धता' किसे कहते हैं उस रात की निस्तब्धता क्या प्रयत्न कर रही थी और क्यों?
उत्तर -
(क) गाँव में हैजा व मलेरिया का प्रकोप था। इसके कारण घर-घर में मौतें हो रही थीं। चारों ओर मौत का सन्नाटा था। इसी कारण अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
ख) कहानी में वातावरण निर्माण के लिए लेखक चाँदनी रात को चुनता तो भाव में अंतर आ जाता। चाँदनी रात प्रेम व योग को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। इससे मनुष्य की व्यथा एवं दयनीय दशा का सफल चित्रण न हो पाता।
(ग) इस गद्यांश में लेखक ने चित्रात्मक व आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया है। रात का मानवीकरण किया गया है। वह मानव की तरह शोक प्रकट कर रही है। मिश्रित शब्दावली है। खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
(घ) 'निस्तब्धता' का अर्थ है-मौन या गतिहीनता। रात के अंधेरे में सब कुछ शांत हो जाता है। उस रात की निस्तब्धता करुण सिसकियों व आहों को बलपूर्वक दबाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि दिन में मौत का तांडव रहता था तथा हर तरफ चीख पुकार होती थी।
प्रश्न 3.
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को ताल ठोककर ललकारती रहती थी सिर्फ पहलवान को होलक संध्या से लेकर प्रात काल तक एक ही गति से बाती रहती-चट्-धा, गिड़-था, ' चट्-था, गिड़ धा' यानी 'आ | भिड़ गा, आ जा, भिड़ जा'' बीच-बीच में चटाक्चर्-धा, 'चटाचट्-धा!' यानी 'उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे।' यही आवाज मृत गाँव में संजीवनी भरती रहती थी।
प्रश्न
(क) रात्रि की भीषणताएँ कैसी थीं?
(ख) पहलवान की ढोलक किसको ललकारती थी?
(ग) पहलवान की ढोलक के मज़ने का क्या समय था?
घ) ढोलक की कौन - सी आवाज क्या असर दिखाती थी?
उत्तर =
(क) लेखक ने रात्रि की भीषणताओं के बारे में बताते हुए कहता है कि जाड़े की अमावस्या की रात थी। मलेरिया व है) का प्रकोप था। चारों तरफ निस्तब्धता थी।
(ख) पहलवान की ढोलक रात्रि की भीषणता को ताल ठोककर ललकारती थी। वह एक ही गति से बजती रही थी।
(ग) पहलवान की ढोलक बजने का समय संध्या से प्रातःकाल तक का था।
(घ) ढोलक की आवाज थी घट धा, गिड़ धा यानी आ जा भिड़ जा। बीच बीच में 'धटाई थट् था' यानी उठाकर पटक 2' की आवाज आती थी। यह आवाज मृत गाँव में जीवन-आशा का संचार करती थी।
प्रश्न 4.
लुटुन के माता पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थीं, वरना वह भी माँ बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराना, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे, लुट्न के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई।
प्रश्न
(क) लुटून कौन था? उसका नाम क्यों फैला था?
(ख) नौ वर्ष की उम्र में विवाह हो जाना लुटन का सौभाग्य क्यों था?
(ग) धारोष्ण दूध से क्या तात्पर्य है? बचपन में लुट्टन और क्या क्या काम किया करता था।
(घ) कसरत करके पहलवान बनने की इच्छा उसके मन में क्यों पैदा हुई थी?
उत्तर =
(क) लट्टन वह बालक था जिसके माँ बाप उस समय मर गए थे जब वह मात्र नौ बरस का था। उसका पालन-पोषण उस विधवा सास ने किया। उसने चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हराकर राज पहलवान बनने का गौरव प्राप्त किया था। इस कारण उसका नाम फैला था।
(ख) लुट्टन का विवाह नौ वर्ष की आयु में हो गया था। लेखक इसे उसका सौभाग्य कहता है क्योंकि इस आयु में उसके माँ-बाप गुजर चुके थे। उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। वह भी मौत के आगोश में समा जाता। विवाह होने के कारण उसकी विधवा सास ने उसे पाला पोसा।
(ग) इसका अर्थ है-धार का गरम दूध। बचपन में लुट्न गाय चराता था तथा कसरत करता था।
(घ) लट्टन की सास को गाँव के लोग तरह-तरह की तकलीफें देते थे। वह उनसे बदला लेना चाहता था इसलिए कसरत करके पहलवान बनने की इच्छा उसके मन में पैदा हुई।
प्रश्न 5.
एक बार वह 'दंगल' देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में 'शेर के बच्चे' को चुनौती दे दी। 'शेर के बच्चे' का असल नाम था चाँद सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ पंजाब से पहले-पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिन में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पहलवानों को पछाड़कर उसने शेर के बच्चे की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँद सिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
प्रश्न
(क) प्रथम पंक्ति में वह कौन है? वह कहाँ गया और उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ख) 'बिजली उत्पन्न होना' का आशय बताइए। इसका कारण क्या था?
(ग) शेर का बच्चा कौन था? उसने यह टायटल कैसे प्राप्त किया?
(घ) चाँद सिंह अपने टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए क्या करता था?
उतर =
(क) वह लुट्न पहलवान है। वह श्यामनगर मेले में दंगल देखने गया। वहीं पहलवानों की कुश्ती व दाँव पेंच देखकर उसमें जोश भर गया।
(ख) 'बिजली उत्पन्न होना' का अर्थ है- प्रबल जोश उत्पन्न होना। जवानी की मस्ती व ढोल की ललकारती हुई आवाज ने लुटुन की बाहों में जोश भर दिया।
(ग) 'शेर का बच्चा' पहलवान बादल सिंह का शिष्य चाँद सिंह था। वह पंजाब से आया था। उसने तीन दिन में ही पंजाबी व पठान पहलवानों की टोली में अपनी जोड़ी व उम्र के पहलवानों को हराकर यह टायटिल प्राप्त किया।
(घ) चाँद सिंह दंगल के मैदान में लैंगोट बाँधकर अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। वह बीच बीच में दहाड़ता भी था।
प्रश्न 6.
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई "पागल है पागल, मरा-ए- मरा!" पर वाह रे बहादुर लुट्टन सफाई से सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपये का नोट देकर कहने लगे-"जाओ, मेला देखकर घर जाओ!"
प्रश्न
(क) शांत दर्शकों में खलबली मचने का क्या कारण था?
(ख) लुट्टन पर किसने आक्रमण किया? उसने क्या प्रतिक्रिया जताई।
(ग) राजा साहब ने कुश्ती बीच में क्यों रुकवा दी?
(घ) राजा साहब ने लुट्न को क्या नसीहत दी?
उत्तर =
(क) लुट्टन ने मेले के मशहूर पहलवान चाँद सिंह को चुनौती दी थी। चाँद सिंह को चुनौती देना तथा उससे कुश्ती लड़ना हँसी-खेल न धा इसलिए शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
(ख) लुड़न पर चाँद सिंह ने आक्रमण किया। लुट्टन बड़ी सफ़ाई से आक्रमण को सँभालकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा।
(ग) राजा साहब चाँद सिंह की कुश्ती के बारे में जानते थे। वह पहले ही 'शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था। लुट्न पहली बार दंगल लड़ा था, इसलिए राजा साहब ने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
(घ) राजा साहब ने लुट्टन को दस रुपये का नोट दिया, उसकी हिम्मत की प्रशंसा की तथा मेला देखकर घर जाने की नसीहत दी।
प्रश्न 7,
भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गए थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थीं। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई कोई लुट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था उसे लड़ने दिया जाए।
प्रश्न
(क) लुट्टन पर गालियों की बौछार कौन कर रहा था? और क्यों?
(ख) दर्शकों की मंडली उत्तेजित क्यों हो रही थीं।
(ग) लुट्टन के पक्ष में एक-दो दर्शक ही क्यों चिल्ला रहे थे?
उत्तर =
(क) शिकार प्रिय वृद्ध राजा साहब पंजाब के पहलवान चाँद सिंह की ख्याति से प्रभावित होकर उसे अपने दरबार में रखने की बात सोच रहे थे। इसीलिए पंजाबी पहलवानों का वर्ग लुट्टन को चाँद सिंह को दी गई चुनौती की प्रतिक्रियास्वरूप लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रहा था। लुटून की चुनौती से उनके हाथ से मौका निकल सकता था इसलिए वे क्रोधित होकर उसे गालियाँ दे रहे थे।
(ख) दर्शकों की मंडली इसलिए उत्तेजित हो रही थी क्योंकि लुट्टन नया पहलवान था जबकि चाँद सिंह प्रसिद्ध पहलवान था। असमान मुकाबले को देखने के लिए दर्शकों में उत्सुकता थी।
(ग) लुट्टन पहलवानी के क्षेत्र में अपरिचित नाम था। उसे कोई-कोई ही जानता था, इसलिए एक-दो लोग ही उसका उत्साहवर्धन कर रहे थे।
प्रश्न 8.
पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें पोंछ रहीं थीं। लुट्टन को राजा साहब ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पद्धती ने मुँह बिचकाया 'हुजूर जाति का 'सिंह'। मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। क्लीन शेवड' चेहरे को संकुचित करते हुए, शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले-"हाँ सरकार यह अन्याय है!” राजा साहब ने मुसकुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा-उसने क्षत्रिय का काम किया है। उसी दिन से लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्ध में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया।
प्रश्न
(क) कौन किसकी आँखें पोंछ रहा था और क्यों?
(ख) लुट्टन सिंह का विरोध किसने किया और क्यों?
(ग) लुट्टन के विरोध से तत्कालीन समाज की किस बुराई का पता चलता हैं?
(घ) लुट्टन की कीर्ति दूर दूर तक कैसे फैल गई?
उत्तर =
(क) पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें पोंछ रही थी क्योंकि चाँद सिंह को लुट्टन ने हरा दिया था। इस हार के कारण उसे राज-पहलवान का दर्जा नहीं मिला। फलतः वह दुखी था।
(ख) लुट्टन सिंह का विरोध राज-पंडितों और मैनेजर ने किया। ये दोनों उच्च जाति के थे तथा लुट्टन नीची जाति का था। वे क्षत्रिय या ब्राहमण को राज पहलवान बनाना चाहते थे।
(ग) लुट्टन का विरोध करने से पता चलता है कि उस समय क्षेत्रवाद के साथ-साथ जाति प्रथा जोरों पर थी। निम्न जाति के व्यक्ति को सरकारी पद व लाभ से दूर रखा जाता था।
(घ) लुट्टन ने चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हरा दिया। राज दरबार में रहकर उसने एक एक करके भी नामी पहलवान को चित कर दिया। इससे उसकी प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैल गई।
प्रश्न 9,
मेलों में वह घुटने तक लंबा चोंगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह झूमता चलता। दुकानदारों को चुहल करने की सूझती। हलवाई अपनी दुकान पर बुलाता- "पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो!" पहलवान बच्चों की-सी स्वाभाविक हँस हँसकर कहता-'अरे तन-मनी काहे। ले आव डेढ़ सेर।' और बैठ जाता।
प्रश्न
(क) मेले में लुट्टन सिंह क्या पहनता था?
(ख) दुकानदार उसके साथ क्या करते थे?
(ग) हलवाई उसे क्यों बुलाता था?
(घ) हलवाई के बुलाने पर लुट्टन की क्या प्रतिक्रिया होती?
उत्तर =
(क) मेले में लुट्टन सिंह घुटने तक लंबा चोगा पहनकर अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह झुमता चलता था।
(ख) दुकानदार उसके साथ चुहलबाजी करते थे।
(ग) हलवाई उसे दुकान पर बुलाता और उसे ताजे रसगुल्ले का नाश्ता करने के लिए कहता था।
(घ) हलवाई द्वारा नाश्ते का निमंत्रण पाकर लुट्न बच्चों की तरह खुश होता और थोड़ा नहीं बल्कि डेढ़ सेर रसगुल्ले लेकर खाने बैठ जाता।
प्रश्न 10,
दोनों ही लड़के राज-दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अतः दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रात: काल पहलवान स्वयं ढोलक बाजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता- "समझे। ढोलक की आवाज पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे! ढोल की आवाज के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना, समझे!” ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है, कब कैसा व्यवहार करना चाहिए, आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था।
प्रश्न
(क) पहलवान के बेटों का भरण-पोषण राज-दरबार से क्यों होता था?
(ख) पहलवान अपने पुत्रों को क्या शिक्षा दिया करता था?
(ग) लुट्टन किसे अपना गुरु मानता था और क्यों?
(घ) आज गाँवों में अखाड़े समाप्त हो रहे हैं, इसके क्या कारण हो सकते हैं।
उत्तर -
(क) पहलवान के बेटों का भरण-पोषण राज-दरबार से इसलिए होता था क्योंकि लुट्टन राज-पहलवान घोषित हो चुका था। उसने चाँद पहलवान को हराकर राजा का दिल जीत लिया था।
(ख) पहलवान अपने पुत्रों को शिक्षा देता था कि ढोल की आवाज पर पूरा ध्यान देना। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोल को प्रणाम करना। इसके अलावा वह मालिक को खुश रखने का उपाय भी बताता था।
(ग) लुट्न अपना गुरु ढोल को इसलिए मानता था क्योंकि उसने जो भी धन, प्रतिष्ठा और प्रसिद्ध पाई थी उसमें ढोल का बड़ा योगदान था।
(घ) आज गाँवों में पहलवानों को आदर सत्कार न मिलना, लोगों के पास समयाभाव होना तथा अखाड़ों से अच्छी आय का साधन न बन पाने के कारण गाँवों से अखाड़े समाप्त हो रहे हैं।
प्रश्न 11.
किंतु उसकी शिक्षा-दीक्षा, सब किए-किराए पर एक दिन पानी फिर गया। वृद्ध राजा स्वर्ग सिधार गए। नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय शिथिलता आ गई थी, राजकुमार के आते ही दूर हो गई। बहुत से परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों की चपेटामात में पड़ा पहलवान भी। दंगल का स्थान घोड़े की रेस ने लिया। पहलवान तथा दोनों भावी पहलवानों का दैनिक भोजन व्यय सुनते ही राजकुमार ने कहा 'टैरिबुल!" नए मैनेजर साहब ने कहा " पहलवान को साफ जवाब मिल गया, राज दरबार में उसकी आवश्यकता नहीं। उसको गिड़गिड़ाने का भी मौका नहीं दिया गया।
प्रश्न
(क) पहलवान के किए-कराए पर पानी क्यों फिरा?
(ख) सत्ता परिवर्तन के क्या परिणाम हुए?
(ग) पहलवान को राज्याश्रय क्यों नहीं मिला?
(घ) मैनेजर ने लुट्टन को कैसे निकाला?
उत्तर =
(क) पुराने राजा ने लुट्टन को राज-पहलवान बनाया था। यहाँ पर लुट्टन पंद्रह वर्ष से अपने लड़कों को शिक्षा-दीक्षा देकर भावी पहलवान बनाना चाहता था, परंतु राजा की मृत्यु होते ही उसकी सारी योजना फेल हो गई। नए राजा ने उसे निकाल दिया।
(ख) सत्ता परिवर्तन होते ही नए राजकुमार ने विलायती ढंग से शासन शुरू किया। उसने पहलवानी की जगह घोड़ो की रेस को बढ़ावा दिया, प्रशासनिक शिथिलता को दूर किया और राज-पहलवान को राज-दरबार से हटा दिया।
(ग) पहलवान व उसके भावी पहलवानों का दैनिक भोजन-व्यय अधिक था। दूसरे, नए राजा की रुचि दंगल में नहीं थी। इसलिए पहलवान को राज्यालय नहीं मिला।
(प) मैनेजर नीच जाति के लुट्टन से पहले ही चिढ़ते थे। नए राजा को पहलवानों का शौक नहीं था। अतः जब उसने पहलवानों के व्यय पर एतराज जताया तो मैनेजर ने इनकी बात का समर्थन तथा इनके खर्च को होरीबुल' बताकर पहलवानों को दरबार से हटा दिया।
प्रश्न 12.
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अद्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य विहीन प्राणियों में यह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढे जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्तिशून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
प्रश्न
(क) गद्यांश में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी।
(ख) किस प्रकार के व्यक्तियों को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसी थी?
(ग) दंगल के दृश्य से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था?
(घ) पहलवान को ढोलक की आवाज कैसे लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी?
उत्तर
(क) गद्यांश में महामारी की विभीषिका की चर्चा की गई है। ढोलक की आवाज मन में उत्साह पैदा करती थी जिससे मनुष्य महामारी से निपटने को तैयार होता था।
(ख) ढोलक से महामारी के कारण अर्धमृत, औषधि और उपचार विहीन लोगों को राहत मिलती थी। उसकी आवाज सुनकर उनके शरीरों में दंगल जीतने का दृश्य साकार हो उठता था।
(ग) लुट्टन ढोलक की आवाज के बल पर ही दंगल जीता था। उस दृश्य को याद करके लोग उत्साह से भर उठते थे। वह उन्हें बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देता था।
(घ) पहलवान को ढोलक की आवाज गाँव के अर्धमृत औषधि उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरती थी ।
प्रश्न 13.
उस दिन पहलवान ने राजा श्यामानंद की दी हुई रेशमी जाँघिया पहन ली। सारे शरीर में मिट्टी मलकर थोड़ी कसरत की, फिर दोनों पुत्रों को कंधों पर लादकर नदी में बहा आया। लोगों ने सुना तो दंग रह गए। कितनों की हिम्मत टूट गई। किंतु, रात में फिर पहलवान की ढोलक की आवाज प्रतिदिन की भाँति सुनाई पड़ी। लोगों की हिम्मत दुगुनी बढ़ गई। संतप्त पिता-माताओं ने कहा-'दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर पहलवान की हिम्मत तो देखो, डेढ़ हाथ का कलेजा है!” चार-पाँच दिनों के बाद एक रात को ढोलक की आवाज नहीं सुनाई पड़ी। ढोलक नहीं बोली। पहलवान के कुछ दिलेर, किंतु रुग्ण शिष्यों ने प्रात: काल जाकर देखा-पहलवान की लाश 'चित' पड़ी है। आँसू पोंछते हुए एक ने कहा-गुरु जी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊँ तो चिता पर मुझे चित नहीं, पेट के बल सुलाना। मैं जिंदगी में कभी चित्त नहीं हुआ। और चिता सुलगाने के समय ढोलक बजा देना।' वह आगे बोल नहीं सका।
प्रश्न
(क) पहलवान ने अपने बच्चों का अतिम संस्कार कैसे किया?
(ख) लोग पहलवान की किस बात पर हैरान थे?
(ग) पहलवान की ढोलक बजनी बंद क्यों हो गई?
(घ) पहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी?
उत्तर -
(क) बीमारी से पहलवान के दोनों लड़के चल बसे। उस दिन उसने राजा श्यामानंद की दी हुई रेशमी जाँघिया पहनी, सारे शरीर पर मिट्टी मलकर थोड़ी कसरत की तथा फिर दोनों पुत्रों को कंधों पर लादकर नदी में बहा आया।
(ख) लोग पहलवान की आत्मशक्ति देखकर हैरान थे। दोनों जवान पुत्रों की मृत्यु पर भी वह हिम्मत नहीं हारा था। उसने रोज की तरह रात भर ढोलक बजाई। लोगों ने उसके कलेजे को डेढ़ हाथ का बताया। वे उसकी हिम्मत की दाद देते थे।
(ग) एक रात पहलवान के ढोलक की आवाज नहीं सुनाई दी। शिष्यों ने सुबह जाकर देखा तो पहलवान की मृत्यु हो चुकी थी।
(घ) पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उसे चिता पर पेट के बल लिटा दिया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी 'चित' नहीं हुआ। इसके अलावा चिता सुलगाने के समय ढोलक बजाया जाए।
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