Class 12 Hindi Important Questions Vitan Chapter 4 डायरी के पन्ने | डायरी के पन्ने Class 12 Important Extra Questions Hindi Vitan Chapter 4 | डायरी के पन्ने (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
डायरी के पन्ने (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
ऐन-फ्रैंक का परिवार सुरक्षित स्थान पर जाने से पहले किस मनोदशा से गुज़र रहा था और क्यों? ऐसी ही परिस्थितियों से आपको दो-चार होना पड़े तो आप क्या करेंगे?
उत्तर –
द्वितीय विश्व-युद्ध के समय हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण बहुत सारी अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। लोग अपनी जान बचाने के लिए परेशान थे। ऐसे कठिन समय में जब ऐन फ्रैंक के पिता को ए०एस०ए० के मुख्यालय से बुलावा आया तो वहाँ के यातना शिविरों और काल-कोठरियों के दृश्य उन लोगों की आँखों के सामने तैर गए। ऐन फ्रैंक और उसका परिवार घर के किसी सदस्य को नियति के भरोसे छोड़ने के पक्ष में न था। वे सुरक्षित और गुप्त स्थान पर जाकर जर्मनी के शासकों के अत्याचार से बचना चाहते थे। उस समय ऐन के पिता यहूदी अस्पताल में किसी को देखने गए थे। उनके आने की प्रतीक्षा की घड़ियाँ लंबी होती जा रही थीं।
दरवाजे की घंटी बजते ही लगता था कि पता नहीं कौन आया होगा। वे भय एवं आतंक के डर से दरवाजा खोलने से पूर्व तय कर लेना चाहते थे कि कौन आया है? वे घंटी बजते ही दरवाजे से उचककर देखने का प्रयास करते कि पापा आ गए कि नहीं। इस प्रकार ऐन फ्रैंक का परिवार चिंता, भय और आतंक के साये में जी रहा था। यदि ऐसी ही परिस्थितियों से हमें दो-चार होना पड़ता तो मैं अपने परिवार वालों के साथ उस अचानक आई आपदा पर विचार करता और बड़ों की राय मानकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करता। इस बीच सभी से धैर्य और साहस बनाए रखने का भी अनुरोध करता।
प्रश्न 2:
हिटलर ने यहूदियों को जातीय आधार पर निशाना बनाया। उसके इस कृत्य को आप कितना अनुचित मानते हैं? इस तरह का कृत्य मानवता पर क्या असर छोड़ता है? उसे रोकने के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे?
उत्तर –
हिटलर जर्मनी का क्रूर एवं अत्याचारी शासक था। उसने जर्मनी के यहूदियों को जातीयता के आधार पर निशाना बनाया। किसी जाति-विशेष को जातीय कारणों से ही निशाना बनाना अत्यंत निंदनीय कृत्य है। यह मानवता के प्रति अपराध है। इस घृणित एवं अमानवीय कृत्य को हर दशा में रोका जाना चाहिए, भले ही इसे रोकने के लिए समाज को अपनी कुर्बानी देनी पड़े। हिटलर जैसे अत्याचारी शासक मनुष्यता के लिए घातक हैं। इन लोगों पर यदि समय रहते अंकुश न लगाया गया तो लाखों लोग असमय और अकारण मारे जा सकते हैं। उसका यह कार्य मानवता का विनाश कर सकता है। अत: उसे रोकने के लिए नैतिक-अनैतिक हर प्रकार के हथकंडों का सहारा लिया जाना चाहिए। इस प्रकार के अत्याचार को रोकने के लिए मैं निम्नलिखित सुझाव देना चाहूँगा।
# पीड़ित लोगों के साथ समस्या पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
# हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा का जवाब अहिंसा से देकर उसे शांत नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसका शांतिपूर्ण हल खोजने का प्रयास करना चाहिए।
# अहिंसात्मक तरीके से काम न बनने पर ही हिंसा का मार्ग अपनाने के लिए लोगों से कहूँगा।
# मैं लोगों से कहूँगा कि मृत्यु के डर से यूँ बैठने से अच्छा है, अत्याचारी लोगों से मुकाबला किया जाए। इसके लिए संगठित होकर मुकाबला करते हुए मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए।
# हिंसा के खिलाफ़ विश्व जनमत तैयार करने का प्रयास करूँगा ताकि विश्व हिटलर जैसे अत्याचारी लोगों के खिलाफ़ हो जाए और उसकी निंदा करते हुए उसके कुशासन का अंत करने में मदद करे।
प्रश्न 3:
ऐन फ्रैंक ने यातना भरे अज्ञातवास के दिनों के अनुभव को डायरी में किस प्रकार व्यक्त किया है? आपके विचार से लोग डायरी क्यों लिखते हैं?
उत्तर –
द्वितीय विश्व-युद्ध के समय जर्मनी ने यहूदी परिवारों को अकल्पनीय यातना सहन करनी पड़ी। उन्होंने उन दिनों नारकीय जीवन बिताया। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपते फिरते रहे। ऐसे समय में दो यहूदी परिवारों को गुप्त आवास में छिपकर जीवन बिताना पड़ा। इन्हीं में से एक ऐन फ्रैंक का परिवार था। मुसीबत के इस समय में फ्रैंक के ऑफ़िस में काम करने वाले इसाई कर्मचारियों ने भरपूर मदद की थी। ऐन फ्रैंक ने गुप्त आवास में बिताए दो वर्षों के समय के जीवन को अपनी डायरी में लिपिबद्ध किया है। फ्रैंक की इस डायरी में भय, आतंक, भूख, प्यास, मानवीय संवेदनाएँ, घृणा, प्रेम, बढ़ती उम्र की पीड़ा, पकड़े जाने का डर, हवाई हमले का डर, बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहकर जीने की पीड़ा, युद्ध की भयावह पीड़ा और अकेले जीने की व्यथा है।
इसके अलावा इसमें यहूदियों पर ढाए गए जुल्म और अत्याचार का वर्णन किया गया है। मेरे विचार से लोग डायरी इसलिए लिखते हैं क्योंकि जब उनके मन के भाव-विचार इतने प्रबल हो जाते हैं कि उन्हें दबाना कठिन हो जाता है और वे किसी कारण से दूसरे लोगों से मौखिक रूप में उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब वे एकांत में उन्हें लिपिबद्ध करते हैं। वे अपने दुख-सुख, व्यथा, उद्वेग आदि लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उस समय तो वे अपने दुख की अभिव्यक्ति और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए लिखते हैं पर बाद में ये डायरियाँ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बन जाती हैं।
प्रश्न 4:
‘डायरी के पन्ने’ की युवा लेखिका ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में किस प्रकार द्वितीय विश्व-युद्ध में यहूदियों के उत्पीड़न को झेला? उसका जीवन किस प्रकार आपको भी डायरी लिखने की प्रेरणा देता है, लिखिए।
उत्तर –
ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में इतिहास के सबसे दर्दनाक और भयप्रद अनुभव का वर्णन किया है। यह अनुभव उसने और उसके परिवार ने तब झेला जब हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण अकल्पनीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। ऐन और उसके परिवार के अलावा एक अन्य यहूदी परिवार ने गुप्त तहखाने में दो वर्ष से अधिक समय का अज्ञातवास बिताते हुए जीवन-रक्षा की। ऐन ने लिखा है कि 8 जुलाई, 1942 को उसकी बहन को ए०एस०एस० से बुलावा आया, जिसके बाद सभी गुप्त रूप से रहने की योजना बनाने लगे।
वह दिन में घर के परदे हटाकर बाहर नहीं देख सकते थे। रात होने पर ही वे अपने आस-पास देख सकते थे। वे ऊल-जुलूल हरकतें करके दिन बिताने पर विवश थे। ऐन ने पूरे डेढ़ वर्ष बाद रात में खिड़की खोलकर बादलों से लुका-छिपी करते हुए चाँद को देखा था। 4 अगस्त, 1944 को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों के उत्पीड़न को झेला। ऐन फ्रैंक का जीवन हमें साहस बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देता है और प्रेरित करता है कि अपने जीवन और आस-पास की घटनाओं को हम लिपिबद्ध करें।
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