Class 12 Hindi Important Questions Vitan Chapter 3 अतीत में दबे पाँव | अतीत में दबे पाँव Class 12 Important Extra Questions Hindi Vitan Chapter | अतीत में दबे पाँव (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
अतीत में दबे पाँव (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
मुअनजो-दड़ो सभ्यता में औजार तो मिले हैं, पर हथियार नहीं। यह देखकर आपको कैसा लगा? मनुष्य के लिए हथियारों को आप कितना महत्वपूर्ण समझते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
मुअनजो-दड़ो सभ्यता के अजायबघर में जो अवशेष रखे हैं, उनमें औजार बहुतायत मात्रा में हैं, पर हथियार नहीं। इस सभ्यता में उस तरह हथियार नहीं मिलते हैं, जैसा किसी राजतंत्र में मिलते हैं। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न उपकरण और वस्तुएँ मिलती हैं। इन वस्तुओं में महल, उपासना स्थल, मूर्तियाँ, पिरामिड आदि के अलावा विभिन्न प्रकार के हथियार मिलते हैं, परंतु इस सभ्यता में हथियारों की जगह औजारों को देखकर लगा कि मनुष्य ने अपने जीने के लिए पहले औजार बनाए।
ये औजार उसकी आजीविका चलाने में मददगार सिद्ध होते रहे होंगे। मुअनजो-दड़ो में हथियारों को न देखकर अच्छा लगा क्योंकि मनुष्य ने अपने विनाश के साधन नहीं बनाए थे। इन हथियारों को देखकर मन में युद्ध, मार-काट, लड़ाई-झगड़े आदि के दृश्य साकार हो उठते हैं। इनका प्रयोग करने वालों के मन में मानवता के लक्षण कम, हैवानियत के लक्षण अधिक होने की कल्पना उभरने लगती है। मनुष्य के लिए हथियारों का प्रयोग वहीं तक आवश्यक है, जब तक उनका प्रयोग वह आत्मरक्षा के लिए करता है। यदि मनुष्य इनका प्रयोग दूसरों को दुख पहुँचाने के लिए करता है तो हथियारों का प्रयोग मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध होता है। मनुष्य के जीवन में हथियारों की आवश्यकता न पड़े तो बेहतर है। हथियारों का प्रयोग करते समय मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता, वह पशु बन जाता है।
प्रश्न 2:
ऐतिहासिक महत्त्व और पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कुछ समस्याएँ उठ खडी होती हैं जो इनके अस्तित्व के लिए खतरा है। ऐसी किन्हीं दो मुख्य समस्याओं का उल्लेख करते हुए उनके निवारण के उपाय भी सुझाइए।
उत्तर –
ऐतिहासिक महत्त्व और पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्व रखने वाले स्थानों का संबंध हमारी सभ्यता और संस्कृति से होता है। इन स्थानों पर उपलब्ध वस्तुएँ हमारी विरासत या धरोहर का अंग होती हैं। ये वस्तुएँ आने वाली पीढी की तत्कालीन सभ्यता से परिचित कराती हैं। यहाँ विविध प्रकार की बहुमूल्य वस्तुएँ भी होती है जो आकर्षण का केद्र होती हैं। इनमें सोने…चाँदी के सिक्के, मूर्तियाँ, आभूषण तथा तत्कालीन लोगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले आभूषण, रत्नजड़ित वस्तुएँ या अन्य महँगी धातुओं से बनी वस्तुएँ होती है जो उस समय को समृद्धि की कहानी कहती हैं। मेरी दृष्टि में इन स्थलों पर दो मुख्य समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं…एक है चोरी की और दूसरी उन स्थानों पर अतिक्रमण और अवैध कब्जे की। ये दोनों ही समस्याएँ इन स्थानों के अस्तित्व के लिए खतरा सिद्ध हुई हैं। लोगों का यह नैतिक दायित्व होना चाहिए कि वे इनकी रक्षा करें। जिन लोगों को इनकी रक्षा का दायित्व सौंपा गया है, उनकी जिम्मेदारी तो और भी बढ़ जाती है। दुर्भाग्य से ऐसे लोग भी चोरी की घटनाओं में शामिल पाए जाते हैं। वे निजी स्वार्थ और लालच के कारण अपना नैतिक दायित्व एवं कर्तव्य भूल जाते हैं। इसी प्रकार लोग उन स्थानों के आस–पास अस्थायी या स्थायी घर बनाकर कब्जे करने लगे है जो उनके सौंदर्य पर ग्रहण है। यह कार्य सुरक्षा अधिकारियों की मिली–भगत से होता है और बाद में सीमा पार कर जाता है।
ऐसे स्थानों की सुरक्षा के लिए सरकार को सुरक्षा–व्यवस्था कडी करनी चाहिए तथा लोगों को नैतिक संस्कार दिए जाने चाहिए। इसके अलावा इन घटनाओं में संलिप्त लोगों के पकड़े जाने पर कड़े दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्तियों से बचा जा सके।
प्रश्न 3:
सिंधु घाटी सभ्यता को 'जल–सभ्यता' कहने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए बताइए कि वर्त्तमान में जल–संरक्षण क्यों आवश्यक हो गया है और इसके लिए उपाय भी सुझाइए।
उत्तर –
सिंधु घाटी की सभ्यता में नदी, कुएँ, स्नानागार और तालाब तो बहुतायत मात्रा में मिले ही है, वहाँ जल–निकासी की उत्तम व्यवस्था के प्रमाण भी मिले हैं। इस कारण इस सभ्यता को ‘जल–सभ्यता‘ कहना अनुचित नहीं है। इसके अलावा यह सभ्यता नदी के किनारे बसी थी। मोहनजोदड़ो के निकट सिंधु नदी बहती थी। यहाँ पीने के जल का मुख्य स्रोत कुएँ थे। यहाँ मिले कुओं की संख्या सात सौ से भी अधिक है। मुअनजो–दड़ो में एक जगह एक पंक्ति में आठ स्नानाघर है जिनके द्वार एक–दूसरे के सामने नहीं खुलते। यहाँ जल के रिसाव को रोकने का उत्तम प्रबंध था। इसके अलावा, जल की निकासी के लिए पक्की नालियों और नाले बने हैं। ये प्रमाण इस सभ्यता को ‘जल–सभ्यता‘ सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।
वर्तमान में विश्व की जनसंख्या तेज़ गति से बढी है, जिससे जल की माँग भी बढ़ी है। पृथ्वी पर तीन–चौथाई भाग में जल जरूर है, पर इसका बहुत थोडा–सा भाग ही पीने के योग्य है।मनुष्य स्वार्थपूर्ण गतिविधियों से जल को दूषित एवं बरबाद कर रहा है। अतः जल–संरक्षण की आवश्यकता बहुत ज़रूरी हो गई है। जल–संरक्षण के लिए –
# जल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
# जल को दूषित करने से बचने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
# अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
# फ़ैक्टरियों तथा घरों का दूषित एवं अशुद्ध जल नदी-नालों तथा जल-स्रोतों में नहीं मिलने देना चाहिए।
# नदियों तथा अन्य जल-स्रोतों को साफ़-सुथरा रखना चाहिए ताकि हमें स्वच्छ जल प्राप्त हो सके।
प्रश्न 4:
‘अतीत में दबे पाँव’ में सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़े नगर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना आज की नगर-योजनाओं से किस प्रकार भिन्न है? उदाहरण देते हुए लिखिए।
उत्तर –
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ में लेखक ने वर्णन किया है कि सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़े नगर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना आज की नगर-योजनाओं से इस प्रकार भिन्न थी कि यहाँ का नगर-नियोजन बेमिसाल एवं अनूठा था। यहाँ की सड़कें चौड़ी और समकोण पर काटती हैं। कुछ ही सड़कें आड़ी-तिरछी हैं। यहाँ जल-निकासी की व्यवस्था भी उत्तम है। इसके अलावा, इसकी अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी...
# यहाँ सुनियोजित ढंग से नगर बसाए गए थे।
# नगर निवासी की व्यवस्था उत्तम एवं उत्कृष्ट थी।
# यहाँ की मुख्य सड़कें अधिक चौड़ी तथा गलियाँ सँकरी थीं।
# मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क पर नहीं खुलते थे।
# कृषि को व्यवसाय के रूप में लिया जाता था।
# हर जगह एक ही आकार की पक्की ईंटों का प्रयोग होता था।
# सड़क के दोनों ओर ढँकी हुई नालियाँ मिलती थीं।
# हर नगर में अन्न भंडारगृह और स्नानागार थे।
# यहाँ की मुख्य और चौड़ी सड़क के दोनों ओर घर हैं, जिनका पृष्ठभाग सड़क की ओर है।
इस प्रकार मुअनजो-दड़ो की नगर योजना अपने-आप में अनूठी मिसाल थी।
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