नमक का दारोगा (पठित गद्यांश)

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नमक का दारोगा (पठित गद्यांश)






निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1, जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वर-प्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई पूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था। यह वह समय था, जब अंग्रेज़ी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फ़ारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फारसीदां लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे। 

प्रश्न
1. ईश्वर प्रदत्त वस्तु क्या हैं? उसके निषेध से क्या परिणाम हुआ
2. नमक विभाग की नौकरी के आकर्षण का क्या कारण था?
3. फ़ारसी का क्या प्रभाव था?

उत्तर-
1. ईश्वर प्रदत्त वस्तु नमक है। सरकार ने नमक विभाग बनाकर उसके निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध के कारण लोग चोरी छिपे इसका व्यापार करने लगे। इससे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।

2. लोग पटवारीगिरी के पद को छोड़कर नमक विभाग की नौकरी करना चाहते थे, क्योंकि इसमें ऊपर की कमाई होती थीं। लोग इनकों घूस देकर अपना काम निकलवाते थे।

3. इस समय फ़ारसी का प्रभाव था। फ़ारसी पढ़े लोगों को अच्छी नौकरियाँ मिल जाती थीं। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फ़ारसी जानने वाले सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

2. उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के व्योझ से दबे हुए हैं। लड़कियां हैं यह घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़े अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो।। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी वारकरा होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवाश्यकता को देखो और अवसर को देख उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है, लेकिन बेगर को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी उन्मभर की कमाई है। 

प्रश्न
1. ओहद को पीर की मजार क्यों कहा गया है।
2. वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
3. तन व ऊपरी आय में क्या अंतर हैं?

उत्तर-
1. हदे को पीर की मज़ार कहा गया है। जिस तरह पीर की मज़ार पर लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, उसी तरह नौकरी में ऊपर की कमाई के रूप में चढ़ावा मिलता है।

2. वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है, क्योंकि यह महीने में एक बार मिलता है। पूर्णमासी का चाँद भी महीने में एक ही बार दिखाई देता है। उसके बाद वह घटता जाता है और एक दिन लुप्त हो जाता है। यही स्थिति वेतन की होती है।

3, वेतन पूर्णमासी के चाँद की तरह है जो एक दिन दिखता है और अंत में लुप्त हो जाता है, जबकि ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है। जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है। इसलिए उसमें बढ़ोतरी नहीं होती, जबकि ऊपर की कमाई ईश्वर देता है इसलिए इसमें बरकत होती है।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

3. पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं। लेटे ही लेटे गर्य से बोले-चलो, हम आते हैं। यह कहकर पंडित जी ने बड़ी निश्चितता से पान के बीड़े लगाकर खाए फिर लिहाफ़ ऑड़े हुए दारोगा के पास । आकर बोले-बाबू जी, आशीर्वाद कहिए हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ कि गाड़ियों रोक दी गई। हम ब्राहमणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए। वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म है।

प्रश्न
1, लक्ष्मी जी के बारे में पडित जी का क्या विश्वास था?
2. गाड़ी पकड़ जाने की खबर पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
3. वशीधर की खाई का क्या कारण था?

उत्तर-
1, पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वे कहते थे कि संसार और स्वर्ग में लक्ष्मी का राज है।न्याय और नीति लछमी के इशारे पर नाचते हैं अर्थात् धन से दोन, ईमान और धर्म सब कुछ खरीदा जा सकता है।

2. गाड़ी पकड़े जाने पर वे शांत धे। वे इसे सामान्य बात मानते थे। वे बेफिक्री से पान चबाते रहे और फिर लिहाफ ओढ़कर सामान्य रूप से दरोगा के पास पहुँचे। वे समझते थे कि पैसों के बल पर अपना हर काम निकलवा लेंगे।

3. वंशीधर की रुरलाई का कारण नमक का गैर-कानूनी व्यापार था। वे ईमानदार, कठोर व दृढ़ अफसर थे। इसलिए वे सरकारी आदेश का पालन करना और करवाना अपना प्रथम उत्तरदायित्व समझाते थे।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

4. पंडित आलोपदीन ने हँसकर कहा हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? मापने व्यर्थ का कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ावें। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर ऐश्वर्य की मोहिनी वशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नयी उमंग थी। कड़ककर बोले-हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं। आप इस समय हिरासत में हैं। आपका कायदे के अनुसार चालान होगा। बस मुझे अधिक बातों की पुरसत नहीं है। जमादार बदलू सिंह, तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हैं। 

प्रश्न
1. पडित अलोपीदीन का व्यवहार कैसा है?
2. 'घाट के देवता को भेंट चढाने से क्या तात्पर्य हैं?
3 दशधर का व्यवहार कैसा था।

उत्तर-
1. पंडित अलोपीदीन चालाक व्यापारी है। वह चापलूसी, रिश्वत आदि से अपना काम निकलवाना जानता है। रिश्वत देने में माहिर होने के कारण वह सरकारी कर्मियों व अदालत से नहीं घबराता।

2. इस कथन का तात्पर्य है कि इस क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है अर्थात् बिना रिश्वत दिए वह मुफ्त में घाट नहीं पार करने देंगे।

3, वंशीधर ने अलौपदीन से कठोर व्यवहार किया। वह ईमानदार था तथा गैरकानूनी कार्य करने वालों को सजा दिलाना चाहता था। इस प्रकार वंशीधर का व्यवहार सरकारी गरिमा एवं पद के अनुरूप था।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वहीं पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं मानी संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोशनामधे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेन में बिना टिकट सफर करने वाले बाद लोग, जाली दस्तावेज़ लानानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-वे-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित भलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा। 

प्रश्न
1. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जगती थी।' से क्या तात्पर्य हैं।
2. देवताओं की तरह गरदने चलाने का क्या मतलब है
३. कौन-कौन लोग गरदन चला रहे थे?

उत्तर-
1. इस कधन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि संसार में परनिंदा हर समय होती रहती है। रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई। हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था।

2. इसका अर्थ है-स्वयं को निर्दोष समझना। देवता स्वयं को निर्दोष मानते हैं, अतः वे मानव पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। पंडित अलोपीदीन के पकड़े जाने पर भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे।

3. पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, नकली बही-खाते बनाने वाला अधिकारी वर्ग, रेल में बेटिकट यात्रा करने वाले बाबू जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार ये भी गरदने चला रहे थे।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

6. किंतु अदालत में पहुँचने की देर थी। पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, मले उनके सेवक, वकील मुलार उनके आज्ञापालक और अदला चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बि| माल के गुलाम थे। उन्हें देखते ही लो। चारों तरफ से दौड़े। सभी लोग विस्मित हो रहे थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्दिा इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे । आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाघालता हो, वह यय कानून के पंजे में आए । प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था। बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने के निमित्त वकीलों की एक सेना तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर चुपचाप खड़े थे। उनके पास सत्य के सिवा न कोई बल था, न स्पष्ट भाषण के अतिरिक्त कोई शस्त्र। गवाह थे किंतु लोभ से डाँवाडोल। 

प्रश्न
1. किस वन का सिह कहा गया तथा क्यों?
2. कचहरी की अगाध वन क्यों कहा गया।
३. लोगों के विस्मित होने का क्या कारण था?

उत्तर-
1. 1पंडित अलोपीदीन को अदालत रूपी वन का सिंह कहा गया, क्योंकि यहाँ उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे। वे उसके हुबम के गुलाम थे।

2. कचहरी को अगाध वन कहा गया है, क्योंकि न्याय की व्यवस्था जटिल व बीहड़ होती है। हर व्यक्ति दूसरे को खाने के लिए वोठा है| वहा से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, जिससे जनसाधारण न्याय प्रणाली का शिकार बनकर रह जाता है।

3. लोग अलोपीदीन की गिरफ्तारी से हैरान थे, क्योंकि उन्हें उसकी धन की ताकत व बातचीत की कुशलता का पता था। उन्हें उसवे पकड़े जाने पर हैरानी थी क्योंकि वह अपने धन के बल पर कानून की हर ताकत से बचने में समर्थ था।


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