सहर्ष स्वीकारा है (पठित काव्यांश)

0

सहर्ष स्वीकारा है (पठित काव्यांश)






निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.

जिंदगी में जो कुछ हैं जो भी है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा हैं।
वह तुम्हें प्यारा हैं।
गरबीली गरीबी यह ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभन्न सब
बढ्ता यह भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है मौलिक है।
इसलिए कि पल पल में
जो कुछ भी जाग्रत हैं अपलक हैं-
संवेदन तुम्हारा हैं 

प्रश्न
(क) कवि जीवन की प्रत्यक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार क्यों करता है।
(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेष का औचित्य और सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि किन्हें नवीन और मौलिक मानता है तथा क्यों?
(घ) जो कुछ भी मेरा हैं वह तुम्हें प्यारा हैं इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
(क) कवि को अपने जीवन की हर उपलब्धि व स्थिति इसलिए सहर्ष स्वीकार है क्योंकि यह सब कुछ उसकी माँ या प्रेयसी को प्रिय लगता है, क्योंकि उसे कवि की हर उपलब्धि पसंद है।

(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण है-गरबीली। इसका औचित्य यह है कि कवि इस दशा में भी अपना स्वाभिमान बनाए हुए है। वह गरीबी को बोझ न मानकर उस स्थिति में भी प्रसन्नता महसूस कर रहा है।

(ग) कवि स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंतकरण की भावनाओं को मौलिक मानता है। इसका कारण यह है कि ये सब उसके यथार्थ के प्रतिफल हैं और इन पर किसी का प्रभाव नहीं है।

(घ) जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है-का आशय यह है कि कवि के पास जो कुछ उपलब्धियाँ हैं वह उसे (अभीष्ट महिला) को प्रिय हैं। इन उपलब्धियों में वह अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) का समर्थन महसूस करता है।

प्रश्न 2.

जाने क्या रिश्ता है जाने क्या नाता हैं।
जितना भी ऊँडेलता हूँ भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है।
मीठे पानी का सोता हैं।
भीतर वह ऊपर तुम
मुसकता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं 

प्रश्न
(क) कवि अपने उस प्रिय के साथ अपने संबध कैसे बताता हैं?
(ख) कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों?
(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है?
(घ) कवि ने प्रिय की तुलना किससे की है और क्यों ?

उत्तर-
(क) कवि का अपने उस प्रिय के साथ गहरा संबंध है। उसके स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णतः आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है।

(ख) कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम उड़ेलता है, उतना ही यह फिर भर जाता है।

(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन पर इस प्रकार आच्छादित अनुभव करता है जैसे धरती पर सदा चाँद मुस्कराता रहता है। कवि के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कराता हुआ चेहरा जगमगाता रहता है।

(घ) कवि ने अपने प्रिय की तुलना चाँद से इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार आकाश में हँसता चाँद अपने प्रकाश से पृथ्वी को नहलाता रहता है। उसी प्रकार कवि अपने प्रिय का मुस्कुराता चेहरा के अद्भुत सौंदर्य से नहलाता रहता हैं।

प्रश्न 3.

सचमुच मुझे दंड दो कि भूनँ मैं भूलें मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या
शरीर पर चेहरे पर अंतर में पा हूँ मैं
झे मैं उसी में नहा हूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेटित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता हैं।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बदल की माँडराती कोमलता
भीतर पिरती है।
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवित व्यता डराती है।
बहलाती - सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है। 

प्रश्न
(क) कवि क्या दंड चाहता हैं और क्यों ?
(ख) कवि अपने जीवन में क्या चाहता है?
(ग) कवि को क्या सहन नहीं होता।
(घ) कवि की आत्मा कैसे हो गई है तथा क्यों?

उत्तर-
(क) कवि अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री)को भूलने का दंड चाहता है क्योंकि उसके अत्यधिक स्नेह के कारण उसकी आत्मा कमजोर हो गई है। उसका अपराधबोध से दबा मन यह प्रेम सहन नहीं कर पा रहा है। उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।

(ख) कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वस्तुतः वह अपने प्रिय को भूलना चाहता है तथा उसके विस्मरण को शरीर, मुख और हृदय में बसाकर उसमें डूब जाना चाहता है।

(ग) कवि की प्रियतमा (यानी सबसे प्रिय स्त्री) के स्नेह का जाला अत्यंत रमणीय है। कवि का व्यक्तित्व चारों ओर से उसके स्नेह से घिर गया है। इस अद्भुत, निश्छल और उज्ज्वल प्रेम के प्रकाश को उसका मन सहन नहीं कर पा रहा है।

(घ) कवि की आत्मा अत्यंत कमजोर हो गई है क्योंकि वह अपनी प्यारी स्त्री के अत्यधिक स्नेह के कारण पराश्रित हो गया है। यह स्नेह उसके मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ित कर रहा है। दुख से छटपटाता किसी अनहोनी की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठता है।

प्रश्न 4.

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है।
या मेरा जो होता-सा लगता हैं होता-सा संभव है।
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यो का घेरा है कार्यों का वैभव है।
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है।
सहर्ष स्वीकार है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है।
वह तुम्हें प्यारा हैं। 

प्रश्न
(क) कवि दंड पाने की इच्छा क्यों रखता हैं
(ख) कवि दंड स्वरूप कहाँ जाना चाहता हैं और क्यों?
(ग) प्रियतमा के बारे में कवि क्या अनुभव करता है।
(घ) कवि को जीवन की हर दशा सहर्ष क्यों स्वीकार है।

उत्तर-
(क) कवि अपनी प्रियतमा के बिना अकेला रहना सीखना चाहता है। वह गुमनामी के अँधेरे में खोना चाहता है। प्रिया के अत्यधिक स्नेह ने कवि को भीतर से कमजोर बना दिया है। कवि स्वयं को अपनी प्रियतमा का दोषी मानता है, अतः वह दंड पाना चाहता है।

(ख) कवि दंड स्वरूप गहन अंधकार वाली गुफाओं सुरंगों या धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है। इससे वह अपनी प्रियतमा से दूर रह पाएगा और अकेला रहना सीख सकेगा।

(ग) कवि को अपनी प्रियतमा के बारे में यह अनुभव है कि उसके जीवन की हर गतिविधि पर उसका प्रभाव है। उसके जीवन में जोबकुछ घटित होने वाला है, उन सब पर उसकी प्रियतमा की अदृश्य छाया है।

(घ) कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, सफलताएँ-असफलताएँ सभी कुछ खुशी-खुशी अपनाया है क्योंकि ये उसकी प्रियतमा को अच्छे लगते हैं और उन्हें अस्वीकार करना कवि के लिए असंभव है।


Post a Comment

0Comments

If you have any doubts, Please let me know

Post a Comment (0)