उषा (पठित काव्यांश)
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
प्रश्न
(क) प्रात कालीन आकाश की तुलना किससे की गई हैं और क्यों?
(ख) कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्यों कहा हैं?
(ग) 'अभी गीला पड़ा हैं' से क्या तात्पय हैं?
(घ) प्रातःकालीन नभ के लिए कवि ने किन उपमानों का प्रयोग किया हैं?
उत्तर-
(क) प्रातःकालीन आकाश की तुलना नीले शंख से की गई है, क्योंकि वह शंख के समान पवित्र माना गया है।
(ख) कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका इसलिए कहा है, क्योंकि भोर का नभ सफेद व नीले रंग से मिश्रित दिखाई देता है।
(ग) इसका अर्थ यह है कि प्रातःकाल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अतः नीले नभ को गीला बताया गया है।
(घ) प्रातःकालीन नभ के लिए कवि ने दो उपमानों का प्रयोग किया है- नीला शंख तथा राख से लीपा चौका -ये उपमान सर्वथा नवीन हैं।
प्रश्न 2.
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो।
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
प्रश्न
(क) आसमान का सौंदर्य दशने के लिए कवि ने किन उपमानों का प्रयोग किया है।
(ख) कवि ने किस समय का चित्रण किया है।
(ग) कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
(घ) कवि ने प्रातःकालीन सौंदर्य का चित्रण किस प्रकार किया है ?
उत्तर-
(क) आसमान का सौंदर्य दर्शाने के लिए कवि ने सिल और स्लेट उपमानों के माध्यम से प्रातःकालीन नभ के लाल लाल धब्बों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
(ख) कवि ने सूर्योदय से पहले के भोर का चित्रण किया है।
(ग) कवि ने अंधेरे को काली सिल माना है। सुबह की किरणें लालिमायुक्त होती हैं। ऐसे में सूर्योदय से ऐसा लगता है मानो किसी ने काली सिल को लाल केसर से धो दिया है।
(घ) कवि ने प्रात:कालीन सौंदर्य को काली स्लेट, लाल केसर, लाल खडिया चाक के उपमानों के माध्यम से चित्रित किया है। प्रातःकालीन आसमान नमी के माध्यम से काली सिल को लाल केसर से धुलना बताया गया है।
प्रश्न 3.
नील जल में या किसी की
और झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और,
जादू टूटता हैं इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
प्रश्न
(क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता किससे की गई है।
(ख) उषा का जादू कैसा है?
(ग) उषा का जादू टूटने का तात्पर्य बताइए।
(घ) उषा का जादू कब टूटता हैं?
उत्तर
(क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता सुबह के सूर्य से की गई है। सुबह वातावरण में नमी तथा पता होने के कारण सूर्य चमकता प्रतीत होता है।
(ख) उषा का जादू अद्भुत है। सुबह का सूर्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में गोरी युवती का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो। यह जादू जैसा लगता है।
(ग) उषाकाल में प्राकृतिक सौंदर्य अति शीघ्रता से बदलता रहता है। सूर्य के आकाश में चढ़ते ही उषा का सौंदर्य समाप्त हो जाता है। ऐसा लगता है कि उषा का जादू समाप्त हो गया है।
(घ) सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू टूट जाता है। सूर्य की किरणों से आकाश में छाई लालिमा समाप्त हो जाती है।
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