Sumirini ke Manke Class 12 Question Answer | Class 12 Hindi Sumirini ke Manke Question Answer |Class 12 Hindi Chapter 2 Sumirini ke Manke Question Answer | सुमिरिनी के मनके प्रश्न उत्तर |सुमिरिनी के मनके पाठ के प्रश्न उत्तर
(क) बालक बच गया –
प्रश्न 1. बालक से उसकी उम्र और योग्यता से
ऊूपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए ?
उत्तर : बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर
के निम्नलिखित प्रश्न पूछे गए : 1. धर्म के कितने लक्षण हैं ? उनके नाम बताइए। 2. रस
कितने हैं ? उनके उदाहरण दीजिए। 3. पानी के चार डिग्री नीचे शीतलता फैल जाने का क्या
कारण है ? 4. चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक कारण बताइए। 5. इंग्लैंड के राजा हेनरी आठवें
की स्त्रियों (पत्नियों) के नाम बताइए। 6. पेशवाओं के शासन की अवधि के बारे में बताओ।
प्रश्न 2. बालक ने क्यों कहा कि मैं यावज्जन्म
लोक सेवा करूँगा ?
उत्तर : ‘बालक बच गया’ लघु निबंध में एक आठ
साल के बालक से बड़े-बड़े प्रश्नों के उत्तर पूछे जा रहे थे। बालक उनके सही उत्तर दे
रहा था। अंत में जब उससे यह पूछा गया कि ‘तू क्या करेगा?’ तो बालक ने उत्तर दिया-”
मैं यावज्जन्म लोक सेवा करूँगा।'” पूरी सभा उसका उत्तर सुनकर ‘वाह-वाह’ कर उठी, पिता
का हुदय भी उल्लास से भर गया। अब प्रश्न उठता है कि बालक ने ऐसा उत्तर क्यों दिया
? बालक को शायद् अपने उत्तर का मतलब तक भी पता नहीं होगा। पर उसे जो कुछ सिखाया गया
था, वही रटा-रटाया उत्तर बालक ने दे दिया।
प्रश्न 3. बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने
पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी ?
उत्तर : लेखक देख रहा था कि बालक को अपने प्राकृतिक
स्वभाव के अनुरूप बोलने नहीं दिया जा रहा था। उसे रटी-रटाई बातें कहने के लिए प्रोत्साहित
किया जा रहा था। उसे समय से पूर्व वह सब बताया जा रहा था जिसे वह जानता-समझता नहीं
था। लेखक को बालक से किए गए प्रश्न और उनके रटे-रटाए उत्तर अस्वाभाविक लग रहे थे। अंत
में जब बालक से उसकी इनाम लेने के बारे में इच्छा पूछी गई तब उसने बालकोचित वस्तु लट्ट्
माँगा। इसे सुनकर लेखक को अच्छा लगा और उसने सुख की साँस ली, क्योंकि ऐसा माँगना बालक
के लिए स्वाभाविक ही था।
प्रश्न 4. बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटना
अनुचित है, पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोंटा
जाता है ?
उत्तर : यह बात बिल्कुल सही है कि बालक की
प्रवृत्तियों का गला घोंटना अनुचित है। उसकी प्रवृत्तियों को सहज रूप से अभिव्यक्त
होने देना चाहिए। तभी उसका पूर्ण विकास हो सकेगा। पाठ में ऐसा आभास निम्नलिखित स्थलों
पर होता है कि बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटा जा रहा है। – जब बालक से ऐसे प्रश्न
पूछे जाते हैं जिनको समझने और उत्तर देने की अभी उसकी आयु नहीं है। – बालक की दृष्टि
भूमि से उठ नहीं रही थी अर्थात् वह भारी तनाव की स्थिति में था। – बालक की आँखों में
कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई साफ झलक रही थी।
प्रश्न 5. “बालक बच गया। उसके बचने की आशा
है क्योंकि वह ‘लड्ड्द’ की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे
काठ की अलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट नहीं” कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक
प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : बालक से उसके शिक्षक जो कुछ कहलवा
रहे थे, वह सब अस्वाभाविक था। बालक से जब वृद्ध महाशय ने इनाम में मनपसंद वस्तु माँगने
को कहा, तब इसके द्वारा लड्डू माँगा जाना, उसकी-बाल सुलभ स्वाभाविकता को इंगित करता
है। इससे लेखक को लगा कि अभी इस बालक के बचने की आशा है अर्थात् इसका बचपन बचाया जा
सकता है। जिस प्रकार जीवित वृक्ष हरे पत्तों के माध्यम से अपनी जीवंतता का परिचय देता
है उसी प्रकार बालक के लड्डू माँगने से उसकी स्वाभाविकता का पता चलता था। बालक को किसी
स्वार्थवश नियमों के बंधन में बाँधने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
(ख) घड़ी के पुर्जे –
प्रश्न 1. लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के
लिए ‘घड़ी के पुर्जें का दृष्टांत क्यों दिया है ?
उत्तर : लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए
घड़ी के पुर्जे का दृष्टांत इसलिए दिया है –
घड़ी पुर्जों के बलबूते पर चलती है और इसी
प्रकार धर्म अपने नियम-कायदों पर चलता है।
जिस प्रकार हमारा काम घड़ी से समय जानना होता
है, उसी प्रकार धर्म से हमारा काम धर्म के ऊपरी स्वरूप को जानना होता है। (धर्म के
ठेकेदारों पर व्यंग्य)
आम आदमी को घड़ी की बनावट, उसके पुर्जों की
जानकारी नहीं होती, उसी प्रकार आम आदमी को धर्म की संरचना को जानने की जरूरत नहीं है।
उसे उतना ही जानना चाहिए जितना धर्मोपदेशक बताएँ।
इस दृष्टांत से लेखक ने यह बताना चाहा है कि
धर्मोपदेशक धर्म को रहस्य बनाए रखना चाहते हैं ताकि वे लोगों को अपने इशारों पर चला
सकें। वे केवल ऊपरी-ऊपरी बातें बताते हैं।
प्रश्न 2. ‘धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्न
धर्माचार्यों का ही काम है’ आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं ? धर्म संबंधी अपने विचार
व्यक्त कीजिए।
उत्तर : धर्म का रहस्य जानना केवल वेदशास्त्रज्ञ
धर्माचार्यों का ही काम नहीं है, यह हमारा भी काम है। धर्म का प्रभाव हम सभी पर पढ़ता
है और जिस बात का प्रभाव हम सभी पर पड़ता है उसको जानना हमारा अधिकार है। जब तक हम
धर्म का रहस्य नहीं जानते तब तक ये धर्माचार्य हमें मूर्ख बनाते रहेंगे और हमारी अज्ञानता
का लाभ उठाते रहेंगे। हमें धर्म के स्वरूप के बारे में जानना चाहिए। हमें यह भी समझना
चाहिए कि क्या-क्या बातें धर्मानुकूल हैं और क्या बातें धर्म के प्रतिकूल हैं। धर्म
आस्था का विषय है। धर्म के नाम पर शोषण नहीं किया जाना चाहिए। धर्म के बारे में हमारा
अज्ञान ही हमारा शोषण करता है। ये तथाकथित धर्माचार्य धर्म के रहस्यों पर से परदा हटाने
की बजाय उसको और अधिक रहस्यमय बना देते हैं ताकि वे अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे।
प्रश्न 3. घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या
धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते ?
उत्तर : घड़ी समय का ज्ञान कराती है बशर्त
कि हमें घड़ी में समय देखना आता हो। धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार भी अपने समय का
बोध कराती हैं। धर्म की कोई भी मान्यता यह बताती है कि उस समय किस परिस्थिति में इसें
स्वीकारा गया। धर्म के विचार भी अपने काल का बोध कराते हैं। इसके लिए हमें धर्म के
रहस्य को जानना होगा। धर्म की मान्यताओं और विचारों को धर्माचार्य अपने ढंग से परिभाषित
करते हैं और उनका वास्तविक स्वरूप आम लोगों के सामने नहीं आने देते।
प्रश्न 4. घड़ीसाजी का इम्तहान पास करने से
लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : घड़ीसाजी का इम्तहान पास करने से लेखक
का यह तात्पर्य है कि वह घड़ी के कल-पुर्जां की पूरी जानकारी प्राप्त कर चुका है। वह
घड़ी को खोलकर फिर से ठीक प्रकार से जोड़ सकता है। उसके हाथों में घड़ी पूरी तरह से
सुरक्षित है। उसे घड़ी के बारे में कोई धोखा नहीं दे सकता। घड़ीसाज के माध्यम से लेखक
हमें यह बताना चाहता है कि हमें धर्म के रहस्यों की पूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए
ताकि कोई हमें मूर्ख न बना सके। हमें धर्म का इम्तहान पास करना होगा। हमें भी धर्म
के वास्तविक स्वरूप को समझना चाहिए।
प्रश्न 5. धर्म अगर कुछ विशेष लोगों, वेदशास्वज्ञ,
धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुडी में है तो आम आदमी और समाज का उससे
क्या संबंध होगा ? अपनी राय लिखिए।
उत्तर : धर्म अगर कुछ विशेष लोगों जैसे वेदशास्त्रजों,
धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में रहता है तो आम आदमी तो मूख्ख
बनता रहेगा। धर्म के ये ठेकेदार आम आदमी को धर्म का वास्तविक रहस्य जानने ही नहीं देते।
वे अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए धर्म को अपने कब्जे में रखते हैं। वे तो लोगों को
उतना ही बताते हैं जितना वे चाहते हैं। धर्म के ये तथाकधित ठेकेदार आम आदमी और समाज
को अपने पाखंड का शिकार बनाते हैं, धार्मिक अंधविश्वास फैलाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति
को स्वयं धर्म के बारे में जानने का प्रयास करना चाहिए। धर्म पर किसी का एकाधिकार नहीं
होना चाहिए।
प्रश्न 6. ‘जहाँ धर्म पर कुछ मुद्ठी भर लोगों
का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके
विकास एवं विस्तार का द्योतक है।’ तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर : यह बात पूर्णतः सत्य है कि जब धर्म
पर मुट्ठी भर लोगों का आधिपत्य हो जाता है तब धर्म संकुचित हो जाता है अर्थात् धर्म
का स्वरूप सिकुड़ जाता है। धर्म के तथाकथित ठेकेदार धर्म का उपयोग अपने हित-साधन के
लिए करते हैं। ये लोग धर्म को अपने तक सीमित रखते हैं। जब धर्म का संबंध आम आदमी के
साथ जुड़ता है तब धर्म का विकास होता है और धर्म विस्तार पा जाता है। इसका अर्थ हुआ
कि धर्म का संबंध आम लोगों से है। जब धर्म उनके साथ जुड़ जाता है तब वह विस्तार पा
जाता है। धर्म को व्यापक बनाने के लिए उसे धर्माचार्यों के चंगुल से निकालकर सामान्य
जन तक ले जाना होगा।
प्रश्न 7. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
:
(क) ‘वेदशास्त्र, धर्माचार्यों का ही काम है
कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या ?’
(ख) ‘अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर
जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।
(ग) ‘हमें तो धोखा होता है कि पड़दादा की घड़ी
जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्जे सुधारना,
तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।
उत्तर : (क) वेदशास्त्रों को जानने वाले धर्माचार्य
धर्म के ठेकेदार बनते हैं। वे ही धर्म के रहस्य को अपनी दृष्टि से हमें समझाते हैं।
वे एक प्रकार से घड़ीसाज का सा काम करते हैं। उनका ऐसा करना उचित नहीं है। हमें भी
धर्म की जानकारी होनी चाहिए। धर्म का संबंध हम सभी से है। हमें इन तथाकथित धर्माचायों
को बेवजह इतना अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए।
(ख) यह ठीक है कि अनाड़ी आदमी घड़ी को बिगाड़
देगा, पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास करके आया है अर्थात् घड़ी का पूरा जानकार है,
उसे घड़ी देने में कोई हर्ज नहीं है। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की है। जो धर्म का
जानकार नहीं है, उससे तो खतरा हो सकता है, पर जो धर्म की पूरी जानकारी रखता है, उसे
तो धर्म की व्याख्या करने दो।
(ग) जिस प्रकार पुराने जमाने की घड़ी को जेब
में डाले रहने पर यह भ्रम तो बना ही रहता है कि मेरे पास घड़ी है, चाहे वह बंद ही क्यों
न हो। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की भी है। हम धर्म के पुराने स्वरूप को लेकर इस भ्रम
में रहते हैं कि हम धार्मिक हैं और धर्म के बारे में सब कुछ जानते हैं। इस स्थिति को
सुधारने की आवश्यकता है।
(ग) ढेले चुन लो –
प्रश्न 1. वैदिककाल में हिंदुओं में कैसी लाटरी
चलती थी जिसका जिक्र लेखक ने किया है?
उत्तर : वैदिक काल में हिंदुओं में जो लाटरी
चलती थी उसमें नर पूछता था और नारी को बूझना पड़ता था। नर स्नातक विद्या पढ़कर, नहा-धोकर,
माला पहनकर, सेज पर जोग होकर किसी बेटी के बाप के घर पहुँच जाता था। वह उसे गौ भेंट
करता था। पीछे वह कन्या के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रख देता और उससे कहता कि इनमें
से एक उठा लें। ये ढेले प्रायः सात तक होते थें। नर जानता था कि वह ये ढेले कहाँ-कहाँ
से लाया है और इनमें किस-किस जगह की मिट्टी है। कन्या इनके बारे में कुछ जानती न थी।
यही लॉटरी की बुझौवल थी। इन ढेलों में वेदी, गौशाला, खेत, चौराहे, मसान (श्मशान) की
मिट्टी होती थी। यदि वह वेदी का ढेला उठा ले तो संतान वैदिक पंडित, गोबर चुना तो पशुओं
का धनी, खेत की मिट्टी छू ली तो जमींदार-पुत्र होगा। मसान की मिट्टी अशुभ मानी जाती
थी। यदि किसी नर के सामने वह वेदी का ढेला उठा ले और ब्याही जाए। इस प्रकार वैदिक काल
में हिंदू ढेले छुआकर स्वयं पत्नी वरण करते थे।
प्रश्न 2. ‘दुर्लभ बंधु’ की पेटियों की कथा
लिखिए।
उत्तर : बबुआ हरिश्चंद्र के ‘दुर्लभ बंधु’
में पुरश्री के सामने तीन पेटियाँ हैं –
एक सोने की, दूसरी चाँदी की और तीसरी लोहे
की। तीनों में से किसी एक में उसकी प्रतिमूर्ति है। जो व्यक्ति स्वयंवर के लिए आता
है उसे इन तीन पेटियों में से एक को चुनने के लिए कहा जाता है। अकड़बाज सोने की पेटी
चुनता है और उसे उलटे पैरों लौटना पड़ता है। चाँदी की पेटी लोभी को अँगूठा दिखा देती
है। सच्चा प्रेमी लोहे की पेटी को छूता है और घुड़दौड़ का पहला इनाम पाता है।
प्रश्न 3. ‘जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के
ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं ?
उत्तर : जीवन साथी के चुनाव में मिट्टी के
ढेलों पर छोड़ने के जो-जो फल प्राप्त होते हैं, वे इस प्रकार हैं :
~ यदि वेदि का ढेला उठा ले तो संतान वैदिक
पंडित होगा।
~ यदि गोबर चुना तो पशुओं का धनी होगा।
~ यदि खेत की मिट्टी छू ली तो ‘जमींदार पुत्र’
होगा।
~ मसान की मिट्टी को हाथ लगाना अशुभ माना जाता
था। यदि ऐसी नारी ब्याही जाए तो घर मसान हो जाएगा और वह जन्म भर जलाती रहेगी।
प्रश्न 4. मिट्टी के छेलों के संदर्भ में कबीर
की साखी की व्याख्या कीजिए-
पत्थर पूजै हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार॥
उत्तर : कबीर की इस साखी में बताया गया है
कि पत्थर के पूजने से (मूर्ति पूजा से) भगवान नहीं मिलते। यदि पत्थर को पूजने से भगवान
मिंल जायें तो मैं तो पहाड़ को पूजने लगूँ, पर यह व्यर्थ है। पत्थर का उपयोग तो आटा
पीसने की चक्की में अच्छा होता है क्योंकि उसके आटे से लोगों का भोजन बनता है। यही
बात मिट्टी के ढेलों पर भी लागू होती है। मिट्टी के ढेलों की बात भी एक ढोंग से बढ़कर
कुछ नहीं है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
:
(क) ‘अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से
चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों-करोड़ों कोस दूर बैठे
बेड़े-बेड़े मिट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित
हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।
(ख) ‘आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज
का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के
तेज पिंड से।
उत्तर : (क) इस कथन में ढोंग-आडंबरों पर चोट
की गई है। अपने द्वारा चुने गए मिट्टी के ढेलों पर इस प्रकार का विश्वास करना उचित
नहीं है। यही स्थिति ग्रह चालों की है। हम मंगल, शनीचर और बृहस्पति की चाल की कल्पना
करके अपने भाग्य का मिलान उसके साथ करते हैं। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है। जिस जगह
को आप जानते हैं वही ठीक है। दूर की काल्पनिक बातें व्यर्थ हैं।
(ख) यह कथन वात्स्यायन का है। जो चीज हैमारे
हाथ में है वह उससे अधिक अच्छी है जिसकी हमें कले मिलने की संभावना है। संभव है वह
चीज हमें हम कल मिले ही नहीं अतः वर्तमान में जीना बेहतर है। आज हमें कम पैसा मिल रहा
है और कल काफी धन मिलने की संभावना है तो हाथ का पैसा ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
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