Important Questions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 Poem Kabir Ke Pad | कबीर के पद (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
कबीर के पद (हम तो एक एक करै जानां) (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
'हम तो एक एक करि जाना' - पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हृदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है।
प्रश्न 2:
'सतों देखो जग बौराना'-पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पद में कबीर ने बाह्य आडंबरों पर चोट की है। वे कहते हैं कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं। कबीरदास कहते हैं कि यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वास किया जाता है। हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाह्य आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप, तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु शिष्यों को आडंबर बताकर उनकी निंदा की गई है।
प्रश्न 3:
ईश्वर के स्वरूप के विषय में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर-
कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर एक है। और उसका कोई निश्चित रूप या आकार नहीं है। वह सर्वव्यापी है। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने कई तर्क दिए हैं, जैसे-संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकार का प्रकाश सबके अंदर समाया हुआ है। यहाँ तक कि एक ही प्रकार की मिट्टी से कुम्हार अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी को काटकर अलग कर सकता है परंतु आग को नहीं। यानी मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा को छोड़कर शेष सबको काट कर आप अलग कर सकते हो। इसी तरह से शरीर नष्ट हो जाता है किंतु आत्मा सदैव बनी रहती। आत्मा परमात्मा का ही अंश है जो अलग- अलग रूपों में सबमें समाया हुआ है। अतः ईश्वर एक है उसके रूप अनेक हो सकते हैं।
प्रश्न 4:
परमात्मा को पाने के लिए कबीर किन दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?
उत्तर-
परमात्मा को पाने के लिए कबीर मोह, माया, अज्ञान, घमंड आदि से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे जीवन यापन के भय से मुक्ति की चेतावनी भी देते हैं। क्योंकि मोह, माया, अज्ञान, घमंड तथा भय आदि परमात्मा को पाने में बाधक हैं। कबीर दास के अनुसार असली साधक में इन दुर्गुणों का समावेश नहीं होता है।
प्रश्न : 5
कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या टिप्पणी करते हैं?
उत्तर-
कबीर कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को कोई ज्ञान नहीं होता। वे घूम-घूमकर मंत्र देकर शिष्य बनाते हैं। ये शिष्यों से गलत कार्य करवाते हैं। यानी ये मानव समाज को अलग-अलग धार्मिक चौपालों के कट्टर प्रतिनिधि बनाकर समाज में धार्मिक भेद-भाव का वातावरण बनाते हैं। फलस्वरूप समाज में कटुता का भाव पैदा होता है। अतः ऐसे गुरुओं से हमें बचना चाहिए। नहीं तो अंततः पछताना पड़ेगा।
प्रश्न 6:
कबीर की दृष्टि में किन लोगों को आत्मबोध नहीं होता?
उत्तर-
कबीर का मानना है कि वे लोग आत्मबोध नहीं पा सकते जो बाह्य आडंबरों में उलझे रहते हैं। वे सत्य पर विश्वास न करके झूठ को सही मानते हैं। धर्म के ठेकेदार लोगों को पाखंड के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हैं, जबकि वे सभी गलत हैं। उनके तरीकों से अहं भाव का उदय होता है, जबकि ईश्वर की प्राप्ति सहज भाव से प्राप्त की जा सकती है।
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