Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल | शिरीष के फूल Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 17 | शिरीष के फूल (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

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Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल | शिरीष के फूल Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 17 | शिरीष के फूल (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


शिरीष के फूल (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)






प्रश्न 1:
कालिदास ने शिरीष की कोमलता और द्विवेदी जी ने उसकी कठोरता के विषय में क्या कहा है ? 'शिरीष के फुल' पाठ के आधार पर बताए।

उत्तर =
कालिदास और संस्कृत साहित्य ने शिरीष को बहुत कोमल माना है। कालिदास का कथन है कि 'पदं सहेत भ्रमरस्य पेलयं शिरीष पुष्पं न पुनः पतन्निणाम्-शिरीष पुष्प केवल भौरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। लेकिन इससे हजारी प्रसाद द्विवेदी सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि इसे कोमल मानना भूल है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते, तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन पर जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है तब भी शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।

प्रश्न 2:
शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को किस महात्मा की याद आती है और क्यों?

उत्तर =
शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत है, क्योंकि वह बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू सत्र में शांत बना रहता है और पुष्पित पल्लवित होता रहता है। इसी प्रकार महात्मा गांधी भी मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खराबे के बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक को गांधी जी की याद आ जाती है, जिनके व्यक्तित्व ने समाज को सिखाया कि आत्मबल, शारीरिक बल से कहीं ऊपर की चीज है। आत्मा की शक्ति है। जैसे शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल, इतना कठोर हो सका है, वैसे ही महात्मा गांधी भी कठोर-कोमल व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और वह मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।

प्रश्न 3:
शिरीष की तीन ऐसी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उसे 'कालजयी' अवधूत कहा है।

उत्तर -
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष को 'कालजयी अवधूत' कहा है। उन्होंने उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं -
1. वह संन्यासी की तरह कठोर मौसम में जिंदा रहता है।
2, वह भीषण गरमी में भी फूलों से लदा रहता है तथा अपनी सरसता बनाए रखता है।
3. वह कठिन परिस्थितियों में भी घुटने नहीं टेकता।
4. वह संन्यासी की तरह हर स्थिति में मस्त रहता है।

प्रश्न 4:
लेखक ने शिरीष के माध्यम से किस द्वंद्व को व्यक्त किया है?

उत्तर =
लेखक ने शिरीष के पुराने फलों की अधिकार-लिप्सु लड़खड़ाहट और नए पत्ते-फलों द्वारा उन्हें धकियाकर बाहर निकालने में साहित्य, समाज व राजनीति में पुरानी त नयी पीढ़ी के द्वंद्व को बताया है। वह स्पष्ट रूप से पुरानी पीढ़ी व हम सब में नएपन के स्वागत का साहस देखना चाहता है।

प्रश्न 5:
कालिदास-कृत शकुंतला के सौंदर्य-वर्णन को महत्त्व देकर लेखक 'सौंदर्य' को स्त्री के एक मूल्य के रूप में स्थापित करता प्रतीत होता हैं। क्या यह सत्य हैं? यदि हाँ, तो क्या ऐसा करना उचित हैं?

उत्तर =
लेखक ने शकुंतला के सौंदर्य का वर्णन करके उसे एक स्त्री के लिए आवश्यक तत्व स्वीकार किया है। प्रकृति ने स्त्री को कोमल भावनाओं से युक्त बनाया है। यह तथ्य आज भी उतना ही सत्य है। स्त्रियों का अलंकारों व वस्त्रों के प्रति आकर्षण भी यह सिद्ध करता है। यह उचित भी है क्योंकि स्त्री प्रकृति की सुकोमल रचना है। अतः उसके साथ छेड़छाड़ करना अनुचित है।

प्रश्न 6:
ऐसे दुमदारों से तो लंडूरे भले-इसका भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -
लेखक कहता है कि दुमदार अर्थात सजीला पक्षी कुछ दिनों के लिए सुंदर नृत्य करता है, फिर दुम गवाकर कुरूप हो जाता है। यहाँ लेखक मोर के बारे में कह रहा है। वह बताता है कि सौंदर्य क्षणिक नहीं होना चाहिए। इससे अच्छा तो पूँछ कटा पक्षी ही ठीक है। उसे कुरुप होने की दुर्गति तो नहीं झेलनी पड़ेगी।

प्रश्न 7:
विज्जिका ने ब्रहमा, वाल्मीकि और व्यास के अतिरिक्त किसी को कवि क्यों नहीं माना है?

उत्तर -
कर्णाट राज की प्रिया विज्जिका ने केवल तीन ही को कवि माना है-ब्रहमा, वाल्मीकि और व्यास को। ब्रहमा ने वेदों की रचना की, जिनमें ज्ञान की अथाह राशि है। वाल्मीकि ने रामायण की रचना की, जो भारतीय संस्कृति के मानदंडों को बताता है। व्यास ने महाभारत की रचना की, जो अपनी विशालता व विषय-व्यापकता के कारण विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। भारत के अधिकतर साहित्यकार इनसे प्रेरणा लेते हैं। अन्य साहित्यकारों की रचनाएँ प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित नहीं हो पाई। अतः उसने किसी और व्यक्ति को कवि नहीं माना।


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