Apathit Kavyansh in Hindi | How to Solve Apathit Kavyansh | हिंदी अपठित काव्यांश | अपठित काव्यांश (for Higher Classes)

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Apathit Kavyansh in Hindi | How to Solve Apathit Kavyansh | हिंदी अपठित काव्यांश | अपठित काव्यांश (for Higher Classes) 


अपठित पद्यांश [काव्यांश】 (for Higher Classes)




अपठित काव्यांश क्या है?

वह काव्यांश, जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है, अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी की भावग्रहण क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।


परीक्षा में प्रश्न का स्वरूप

परीक्षा में विद्यार्थियों को अपठित काव्यांश दिया जाएगा। उस काव्यांश से संबंधित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न एक या दो अंक का होगा तथा कुल प्रश्न पाँच अंक के होंगे।

प्रश्न हल करने की विधि

अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्न हल करते समय निम्नलिखित बिंदु ध्यातव्य हैं-

• विद्यार्थी कविता को मनोयोग से पढ़ें, ताकि उसका अर्थ समझ में आ जाए। यदि कविता कठिन है, तो उसे बार-बार पढ़ें, ताकि भाव स्पष्ट हो सके।

• कविता के अध्ययन के बाद उससे संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।

• प्रश्नों के अध्ययन के बाद कविता को दुबारा पहिए तथा उन पंक्तियों को बुनिए, जिनमें प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हों।

• जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर मिल जाएँ उन्हें लिखिए।

• कुछ प्रश्न कठिन या सांकेतिक होते हैं। उनका उत्तर देने के लिए कविता का भाव तत्व समझिए।

• प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।

• प्रश्नों के उत्तर की भामा सहज व सरल होनी चाहिए।

• उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।

• प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। इससे उत्तरों की स्पष्टता बढ़ेगी।



उदाहरण


1. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी भाव मिटा सकता हैं।
तूफानों-भूचालों की भयप्रद छाया में,
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हैं।

मेरे में की संज्ञा भी इतनी व्यापक है,
इसमें मुझसे अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
में खंडहर को फिर से महल बना सकता है।

जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय मेध भूधाल देख मुझको शरमाए।
में मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ।
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।



प्रश्न
(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में किसका महत्व प्रतिपादित किया गया है?
(ख) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कारण है?
(ग) किन कठिन परिस्थितियों में उसने अपनी निर्भयता प्रकट की है।
(घ) मेरे मैं की संज्ञा भी इतनी व्यापक है, इसमें मुझ से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों का भाय स्पष्ट कर लिखिए।
(ङ) अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म-विश्वास प्रकट किया है?


उत्तर-
(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

(ख) मजदूर निर्माता है । वह अपनी शक्ति से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर बस्तियों बना सकता है। इस कारण उसे स्वर्ग से विरक्ति है।

(ग) मज़दूर ने तूफानों व भूकंप जैसी मुश्किल परिस्थितियों में भी घबराहट प्रकट नहीं की है। वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार रहता है।

(घ) इसका अर्थ यह है कि मैं सर्वनाम शब्द श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि मजदूर वर्ग में संसार के सभी क्रियाशील प्राणी भा जाते हैं।

(ड) मज़दूर ने कहा है कि वह खंडहर को भी आबाद कर सकता है। उसकी शक्ति के सामने भूचाल, प्रलय व बादल भी झुक जाते हैं।

2. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नस जीवन संबल।
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें
श्रम से कातर जीव नहाकर

फिर नूतन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी -
तृप्ति आत्म-बलि पर ही निर्भर
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ।

प्रश्न
(क) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है?
(ख) मृत्यु को विश्राम-स्थल क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने मृता की तुलना किससे और क्यों की है?
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव में क्या परिवर्तन आ जाता है?
(ङ) सध्ये प्रेम की बया विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है?

उत्तर-
(क) मृत्यु के बाद मनुष्य फिर नया रूप लेकर कार्य करने लगता है, इसलिए कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय होने को कहा है।

(ख) कवि ने मृत्यु को विश्राम स्थल की संज्ञा दी है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार मनुष्य चलते-चलते थक जाता है और विश्राम- स्थल पर रुककर पुनः ऊर्जा प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नए जीवन का सहारा लेकर फिर से चलने लगता है।

(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना सरिता से की है, क्योंकि जिस तरह धका व्यक्ति नदी में स्नान करके अपने गीले वस्त्र त्यागकर सूखे वस्त्र पहनता है, उसी तरह मृत्यु के बाद मानव नया शरीर रूपी वस्त्र धारण करता है।

(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीत ना शरीर धारण करता है तथा पुराने शरीर को त्याग देता है।

(ङ) सध्या प्रेम दह है, जो आत्मबलिदान देता है। जिस प्रेम में त्याग नहीं होता, वह निष्प्राण होता है।

3. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

जीवन एक कुआ है।
अधाह- अगम
सबके लिए एक सा वृत्ताकार।
जो भी पास जाता है,
सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता है
मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में
रस्सी-डोर रखने के बाद भी,
हर प्रयत्न करने के बाद भी
यह यहाँ प्यासा-का-प्यासा रह जाता है।
मेरे मन! तूने भी, बार-बार
बड़ी बड़ी रसियाँ बटी
रोज-रोज कुएँ पर गया

तरह-तरह घड़े को चमकाया,
पानी में डुबाया, उतराया
लेकिन तू सदा ही -
प्यासा गया, प्यासा ही आया ।
और दोध तूने दिया
कभी तो कुएं को
कभी पानी को
कभी सब को
मगर कभी जॉचा नहीं खुद को
परखा नहीं पड़े की तली को ।
चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को
और मूढ़ अब तो खुद को परख देख।

प्रश्न
(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है? कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ख) कवि का मन सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी प्यासा क्यों रह जाता है।
(ग) और तूने दोष दिया……कभी सबकों का आशय क्या है।
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे किन बातों की जाँच-परख करनी चाहिए?
(ङ) 'चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को - यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से किस ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर-
(क) कवि ने जीवन को कुआँ कहा है, क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है। दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।

(ख) कवि ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया। वह अपनी कमियों को नहीं देखता। इस कारण वह सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद प्यासा रह जाता है।

(ग) और तूने दोष दिया….कभी सबको का आशय है कि हम अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं।

(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो तो उसे अपनी कमियों के बारे में जानना चाहए। उन्हें सुधार करके कार्य करने चाहिए।

(ड) यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से मनुष्य की कमियों की ओर संकेत किया गया है।

4. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

उम्र बहुत बाकी है लेकिन, उग्र बहुत छोटी भी तो है
एक स्वप्न मोती का है तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है।
घुटनों में माथा रखने से पौरखर पार नहीं होता है।
सोया है विश्वास जगा लो, हम सब को नदिया तरनी है।
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं।

मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह कोष को खुलकर बाँटो, कभी नहीं टोटा होता है,
आँसू वाला अर्थ न समझे, तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएंगे।
मत सच का आभास दमा लो शाश्वत आग नहीं मरनी है।
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं।

प्रश्न
(क) मशीनी युग में समय महँगा होने का क्या तात्पर्य है। इस कथन पर आपकी क्या राय है?
(ख) 'मोती का स्वप्न और 'रोटी का स्वप्न से क्या तात्पर्य है दोनों किसके प्रतीक है?
(ग) घुटनों में माधा रखने से पोखर पार नहीं होता है पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) मन और स्नेह के बारे में कवि क्या परामर्श दे रहा है और क्यों?
(ड) सच का आभास क्यों नहीं दबाना चाहिए?

उत्तर-
(क) इस युग में व्यक्ति समय के साथ बाँध गया है। उसे हर घंटे के हीसाब से मज़बूरी मिलती है । हमारी राय में यह बात सही है।

(ख) 'मोती का स्वप्न' का तात्पर्य वैभवयुक्त जीवन की आकांक्षा से है तथा 'रोटी का स्वप्न का तात्पर्य जीवन की मूल जरूरतों को पूरा करने से है। दोनों अमीरी व गरीबी के प्रतीक हैं।

(ग) इसका भाव यह है कि मानव निष्क्रिय होकर आगे नहीं बढ़ सकता। उसे परिश्रम करना होगा तभी उसका विकास हो सकता है।

(घ) गन के बारे में कवि का मानना है कि मनुष्य को हिम्मत रखनी चाहिए। हौसला खोने से कार्य या बाधा खत्म नहीं होती। 'स्नेह भी बॉटने से कभी कम नहीं होता। कवि मनुष्य को मानवता के गुणों से युक्त होने के लिए कह रहा है।

(ङ) सच का आभास इसलिए नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि इससे वास्तविक समस्याएँ समाप्त नहीं हो जातीं।

5. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

नदीन कंठ दो कि मैं नवीन गान गा सकू,
स्वतंत्र देश की नवीन आरती सजा सकें।
नदीन दृष्टि का नया विधान आज हो रहा,
नवीन आसमान में विहान आज हो रहा,
खुली दसों दिशा खुले कपाट ज्योति-द्वार के-
विमुक्त राष्ट्र सूर्य भासमान आज हो रहा।
युगांत की व्यथा लिए अतीत आज रो रहा,
दिगंत में वसंत का भविष्य बीज बो रहा,
कुलीन जो उसे नहीं गुमान या गरूर है,
समर्थ शक्तिपूर्ण जो किसान या मजूर है।
भविष्य द्वार मुक्त से स्वतंत्र भाव से चलो,
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिले चले चलो,
समान भाव के प्रकाशवान सूर्य के तले-
समान रूपगंध फूल-फूल-से खिले चलो।

सुदीर्घ क्रांति झेल, खेल की ज्वलंत भाग से-
स्वदेश बल सँजो रहा की थकान खो रहा।
प्रबुद्ध राष्ट्र को नवीन वंदना सुना सकू,
नवीन बीन दो कि मैं अगीत गान गा सकें!
नए समाज के लिए नदीन नींव पड़ चुकी,
नए मकान के लिए नवीन ईट गढ़ चुकी,
सभी कुटुंब एक, कौन पारा, कौन दूर है।
नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है।
पुराण पथ में खड़े विरोध वैर भाव के
त्रिशूल को दले थलो, बबूल को मले थलो।
प्रवेश-पर्व है स्वदेश का नवीन वेश में
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिलो चले चलो।
नवीन भाव दो कि मैं नवीन गान गा सकू,
नवीन देश की नवीन अर्चना सुना सकू!"

प्रश्न
(क) कवि नई आवाज की आवश्यकता क्यों महसूस कर रहा है।
(ख) नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है-आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि मनुष्य को क्या परामर्श दे रहा है?
(घ) कवि किस नवीनता की कामना कर रहा है।
(ङ) किसान और कुलीन की क्या विशेषता बताई गई है?


उत्तर-
(क) कवि नई आवाज की आवश्यकता इसलिए महसूस कर रहा है, ताकि वह स्वतंत्र देश के लिए नए गीत गा सके तथा नई आरती सजा सके।

(ख) इसका भाशय यह है कि स्वतंत्र भारत का हर व्यक्ति प्रकाश के गुणों से युक्त है। उसके विकास से भारत का विकास है।

(ग) कवि मनुष्य को परामर्श दे रहा है कि आजाद होने के बाद हमें अन्य मैत्रीभाव से आगे बढ़ना है। सूर्य व फूलों के समान समानता का भाव अपनाना है।

(घ) कवि कामना करता है कि देशवासियों को वैर विरोध के भावों को भुनाना चाहिए। उन्हें मनुष्यता का भाव अपनाकर सौहाद्रता से आगे बढ़ना चाहिए।

(ङ) किसान समर्थ व शक्तिपूर्ण होते हुए भी समाज के हित में कार्य करता है तथा कुलीन वह है, जो घमंड नहीं दिखाता।

6. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
गौ महाप्रलय में मुस्काए ।

अंतिम दम हो रहे है?
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे।
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त तिलक भारत ललाट!

उनको मेरा पहला प्रणाम !
फिर वे जो ऑधी बन भीषण
कर रहे भाज दुश्मन से रण
बाणों के पवि संधान बने ।
जो चालामुख-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चकर
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं।
भारत के लिए समर्पित हैं।
कीर्तित जिससे यह भरा धाम
उन दीरों को मेरा प्रणाम

श्रद्धानत कवि का नमस्कार
दुर्लभ है छंद-प्रसून हार
इसको बस वे ही पाते हैं।
जो चढे काल पर आते हैं।
हुम्कृति से विश्व काँपते हैं।
पर्वत का दिल दहलाते हैं।
रण में त्रिपुरांतक बने शर्व
कर ले जो रिपु का गर्व खर्च
जो अग्नि-पुत्र, त्यागी, अक्राम
उनको अर्पित मेरा प्रणाम!!!

प्रश्न
(क) कवि किन वीरों को प्रणाम करता है?
(ख) कवि ने भारत के माधे का लाल चंदन किन्हें कहा है।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक किस तरह वार करते हैं?
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ड) कवि की श्रद्धा किन वीरों के प्रति है।

उत्तर-
(क) कवि इन वीरों को प्रणाम करता है, जिनमें देश का मान भरा है तथा जो साहस और निडरता से अंतिम दम तक देश के लिए संघर्ष करते हैं।

(ख) कवि ने भारत के माधे का लाल चंदन (तिलक) उन वीरों को कहा है, जिन्होंने देश की वेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक शॉधी की तरह भीषण वार करते हैं तथा आग उगलते हुए उनके किलों को तोड़ देते हैं।

(घ) शीर्षक: वीरों को मेरा प्रणाम

(ङ) कवि की श्रद्धा उन वीरों के प्रति है, जो मृत्यु से नहीं घबराते, अपनी हुंकार से विश्व को कैंपा देते हैं तथा जिनके साहस और वीरता की कीर्ति धरती पर फैली हुई है।

7. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।
पुरुष वया, पुरुषार्थ हुआ न जौ,
हृदय की सब दुर्बलता तजो।
प्रबल जो तुम में पुरुधार्थ हो,
सुलभ कौन तुम्हें न पदार्थ हो?
प्रगति के पथ में विचारों उठो।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।।

न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है,
न पुरुषार्थ बिना परमार्थ है।
समझ लो यह बात यथार्थ है।
कि पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ है।
भुवन में सुख-शांति भरो, उठो।
पुरुष हो. पुरुषार्थ करो, उठौ।।

न पुरुषार्थ बिना स्वर्ग है.
न पुरुषार्थ बिना अपसर्ग है।
न पुरुषार्थ बिना क्रिसत कहीं,
न पुरुषार्थ बिना प्रियता कहीं।
सफलता वर तुल्य बरो, जठौ ।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो उठी।।

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहाँ
सफलता वह पा सकता कहाँ ?
अपुरुषार्थ भयंकर पाप है,
न उसमें यश है, न प्रताप हैं।
न कृमि-कीट समान मरो, उठो।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।।


प्रश्न
(क) काव्यांश के प्रथम भाग के माध्यम से कवि ने मनुष्य को क्या प्रेरणा दी है?
(ख) मनुष्य पुरुषार्थ से क्या क्या कर सकता है।
(ग) 'सफलता बर तुल्य वरो, उठो-पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) अपुरुषार्थ भयंकर पाप है-कैसे?
(ड) काव्यशि का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

उत्तर-
(क) इसके माध्यम से कवि ने मनुष्य को प्रेरणा दी है कि वह अपनी समस्त शक्तियाँ इकट्ठी करके परिश्रम करे तथा उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाए।

(ख) पुरुषार्थ से मनुष्य अपना व समाज का भला कर सकता है। वह विश्व में सुख-शांति की स्थापना कर सकता है।

(ग) इसका अर्थ है कि मनुष्य निरंतर कर्म करे तथा वरदान के समान सफलता को धारण करे। दूसरे शब्दों में, जीवन में सफलता के लिए परिश्रम आवश्यक है।

(घ) अपुरुषार्थ का अर्थ यह है-कर्म न करना। जो व्यक्ति परिश्रम नहीं करता, उसे यश नहीं मिलता। उसे वीरता नहीं प्राप्त होता। इसी कारण अपुरुषार्थ को भयंकर पाप कहा गया है।

(ङ) शीर्षक-पुरुषार्थ का महत्व। अथवा पुरुष हो पुरुषार्थ करो।

8. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

मनमोहिनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है।
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुटहिमालय, वह देश कौन-सा है।

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुभा सलोना, वह देश कौन-सा है।।
जिसके बड़े रसीले, फल, कंद, नाण, मेवे।
सब अंग में सजे हैं वह देश कौन-सा है।।

जिसके सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है।
मैदान, गिरि, वनों में हरियाली है महकती।
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन सा है।।

जिसके अनंत बन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन सा है।
सबसे प्रथम जगत में जो सभ्य ा यशस्वी।
जगदीश का दुलारा, वह देश कौन-सा है।

प्रश्न
(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में कौन सा देश बसा हुआ है और उसका पद प्रक्षालन निरतर कौन कर रहा है?
(ख) भारत की नदियों को क्या विशेषता है?
(ग) भारत के फूलों का स्वरूप कैसा है?
(घ) जगदीश का दुलारा देश भारत संसार का शिरोमणि कैसे है?
(ङ) काव्यांश को सार्थक एवं उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर-
(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में भारत देश बसा हुआ है। इस देश का पद-प्रक्षालन निरंतर समुद्र कर रहा है।

(ख) भारत की नदियों की विशेषता है कि इनका जल अमृत के समान है तथा ये देश को निरंतर सचती रहती हैं।

(ग) भारत के कुल सुंदर व प्यारे हैं। दिन रात हँसते रहते हैं।

(घ) नाना प्रकार के वैभव एवं सुख-समृद्ध से युक्त भारत देश जगदीश का दुलारा तथा संसार शिरोमणि है, क्योंकि यहीं पर सबसे पहले सभ्यता विकसित हुई और संसार में फैली।

(ङ) शीर्षक-वह देश कौन-सा है?

9. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

जब कभी मलेरे को फेंका हुआ
फला जाल
समेटते हुए देखता हूँ
तो अपना सिमटता हुआ
स्व याद हो आता है-
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार के वृहत्तर रकबे में
समाहित था।
सर्व की परिभाषा बनकर
और अब केंद्रित हो
गया है. मात्र बिंदु में।

जब कभी अनेक फूलों पर
बैठी, पराग को समेटती ।
मधुमक्खियों को देखता हैं।
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो भाती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अधवा कबीलों में नहीं बाँटते थे।
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है,

और मधू-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा होती है।
किंतु अब
बाग और मनुष्यता
शिलाले में जकड़ गई है।
मात्र संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ।

प्रश्न
(क) कविता में प्रयुक्त स्त' शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है? उसकी जान से तुलना क्यों की गई हैं?
(ख) कवि के स्व में किस तरह का बदलाव आता जा रहा है और क्यों ?
(ग) कवि को अपने पूर्वजों की याद कब और क्यों आती है।
(घ) उसके पूर्वजों की विचारधारा वर्तमान में और भी प्रासंगिक बन गई है, कैसे?
(ङ) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
…और मनुष्यता
शिलालेखों में जकड़ गई है।


उत्तर
(क) यहाँ स्व का अभिप्राय निजता से है। इसकी तुलना जाल से इसलिए की गई है, क्योंकि इसमें विस्तार व संकुचन की क्षमता होती है।

(ख) कवि का स्व पहले समाज, गाँव व परिवार के बड़े दायरे में फैला था। आज यह निजी जीवन तक सिमटकर रह गया है, क्योंकि अब मनुष्य स्वार्थी हो गया है।

(ग) कवि जब मधुमक्खियों को परागकण समेटते देखता है तो उसे अपने पूर्वजों की याद आती है। उसके पूर्वज रंग, जाति, वर्ग या कबीलों के आधार पर भेद भाव नहीं करते थे।

(घ) कवि के पूर्वज सारे देश को एक बाग के समान समझते थे। वे मनुष्यता को महत्व देते थे। इस प्रकार उनकी विचारधारा वर्तमान में और भी प्रासंगिक बन गई है।

(ड) इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि आज के मनुष्य शिलालेखों की तरह जड़, कठोर, सीमित व कट्टर हो गए हैं। वे जीवन को सहज रूप में नहीं जीते।

10. निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए -

तू हिमालय नहीं तूनगंगा-यमुना
तू त्रिवेणी नहीं, तून रामेश्वरम् ।
तू महाशील की है अमर कल्पना
देश! मेरे लिए तू परम वंदनाः ।
तू पुरातन आहुत, तू नए से नया
तू महाशील की है भमर कल्पना।
देशः मेरे लिए तू महा अर्चना।
शनि-बल का समर्थक हा सर्वदा,
टू परम तत्व का नित विचारक रहा।

मेध करते नमन, सिंधु धोता चरण,
लहलहाते सहस्त्रों यहाँ खेत-वन।
नर्मदा-ताप्ती, सिंधु, गोदावरी,
हैं कराती युगों से तुझे आचमन।
शांति-संदेश देता रहा विश्व को।
प्रेम-सद्भाव का नित प्रचारक रहा।
सत्य औ’ प्रेम की है परम प्रेरणा
देश मेरे लिए तु महा अर्चना।

प्रश्न
(क) कवि का देश को 'महाशील की अमर कल्पना' कहने से क्या तात्पर्य है ?
(ख) भारत देश पुरातन होते हुए भी नित नूतन कैसे है।
(ग) तू परम तत्व का नित विचारक रहा पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) देश का सत्कार प्रकृति केसे करती है? काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ङ) शांति संदेश' रहा काव्य पंक्तिर्यो का अर्थ बताते हुए इस कथन की पुष्टि में इतिहास से कोई एक प्रमाण दीजिए।

उत्तर-
(क) कवि देश को 'महाशील की अमर कल्पना कहता है। इसका अर्थ यह है कि भारत में महाशील के अंतर्गत करुणा, प्रेम दया, शांति जैसे महान आचरण हैं, जिनके कारण भारत का चरित्र उज्ज्वल बना हुआ है।

(ख) भारत में करुणा, दया, प्रेम आदि पुराने गुण विद्यमान हैं तथा वैज्ञानिक व तकनीकी विकास भी बहुत हुआ है। इस कारण भारत देश पुरातन होते हुए भी नित नूतन है।

(ग) इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि भारत ने सदा सृष्टि के परम तत्व की खोज की है।

(घ) प्रकृति देश का रात्कार विविध रूपों में करती है। मेघ यहाँ वर्षा करते हैं, सागर भारत के चरण धोता है। यहाँ लाखों लहलहाते खेत व वन हैं। नर्मदा, ताप्ती, सिंधु, गोदावरी नदियाँ भारत को आचमन करवाती हैं।

(ड) इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि भारत सदा विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता रहा है। यहाँ सम्राट अशोक व गौतम बुद्ध ने संसार को शांति व धर्म का पाठ पढ़ाया।


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3Comments

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  1. अजीब दिन पर कव्यंस चाहिए

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  2. Option MCQ question unseen cbse

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  3. Sir mcq wale nahi hai aaj hi dijiye nahi to saal khatam ho jayega or dobara nahi maangunga
    Please

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