स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन प्रश्न और उत्तर Class 10 | Stri Shiksha ke Virodhi kutarkon ka khandan Mahaveer Prasad Dwivedi Question and Answer Class 10

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स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन प्रश्न और उत्तर Class 10 | Stri Shiksha ke Virodhi kutarkon ka khandan Mahaveer Prasad Dwivedi Question and Answer Class 10


स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन (अभ्यास-प्रश्न)




प्रश्न 1. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया?

कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने इसके लिए निम्नलिखित तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया:
क) बोद्ध- धर्म का त्रिपिटक ग्रंथ जो महाभारत से भी बड़ा है, वह प्राकृत भाषा में रचित है। इसका मुख्य कारण यह है कि प्राकृत उस समय की जनसाधारण भाषा थी। अतः प्राकृत बोलना अशिक्षित होने का चिह्न नहीं है। 
ख) उस समय कुछ चुने हुए लोग ही संस्कृत बोल सकते थे। इसलिए दूसरे लोगों के साथ स्त्रियों की भाषा प्राकृत बोलने का नियम बना दिया गया।

प्रश्न 2. स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं- कुतर्क वादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है अपने शब्दों में लिखिए।

स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। कुतर्क वादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी करते हुए लिखा है कि पढ़ने लिखने में ऐसी कोई बात नहीं होती। अनर्थ तो पढ़े लिखे व अनपढ़ दोनों से ही हो सकते हैं। स्त्रियों के पढ़ने से यदि अनर्थ होता है तो पुरुष भी पढ़ लिखकर कितने गलत कार्य करते है। उनके लिए शिक्षित होने की मनाही क्यों नहीं की जाती। यदि पढ़ने लिखने से स्त्रियाँ अनर्थकारी होती है तो इसमें स्त्रियों का दोष नहीं है, अपितु शिक्षा प्रणाली का दोष है। अतः स्त्रियों को अवश्य शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।

प्रश्न 3. द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय परुषों का मुकाबला करतीं। आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकट समझिए और लिखिए। (परीक्षोपयोगी नहीं है)

स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं-
क) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घुट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
ख) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
ग) "आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!"
घ) अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो पांडित्य प्रकट करे, गाणी बडे-बडे ब्रह्मवादियों को हरा दे. मंडन मिश्रकी सहधर्मचारिणीशंकराचार्य के छक्के छडा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
ङ) जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार का संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।

प्रश्न 4. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अनपढ़ होने का सबूत है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

प्राचीन काल में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा बोलने के अनेकानेक प्रमाण मिलते हैं किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राकृत भाषा बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण है या फिर प्राकृत भाषा अनपढ़ों की भाषा है। सच्चाई यह है कि प्राकृत उस समय की जन साधारण भाषा थी वैसे ही जैसे कि हिंदी, बांग्ला आदि आज की प्राकृत भाषा है। अतः प्राकृत भाषा में बोलने के कारण महिलाओं को अनपढ़ कहना अनुचित है।

प्रश्न 5. परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हो तर्क सहित उत्तर दीजिए।

स्त्रियों की शिक्षा के विरोधियों का तर्क है कि यदि स्त्रियों को शिक्षा दी जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा। यह बात तब तक सही थी जब तक पुरुष पढ़ लिखकर अनर्थ ना करता हो। पुरूष स्त्री की अपेक्षा अधिक अनर्थ करते हैं। एम०ए०, शास्त्री, आचार्य होने के बावजूद भी पुरुष स्त्रियों को हंटर से पीटते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि अनर्थ के पीछे पढ़ना लिखना कोई कारण नहीं है। पढ़ लिखकर स्त्रियाँ कम नहीं रही है। स्त्रियों ने पुरुष के समान वेदरचना तक की है और हम उन्हें अक्षर ज्ञान देना भी पाप समझते हैं।

प्रश्न 6. तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।

तब की शिक्षा प्रणाली गुरुकुलों तथा मंदिर तक सीमित थी। स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। केवल कुछ स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त कर पाती थी। प्रायः कुमारियों को नृत्य ज्ञान, श्रृंगार ज्ञान आदि की शिक्षा दी जाती थी। आज समानता का युग है। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पुरुष और नारी में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। लड़कियाँ भी वहीं पढ़ती है जहाँ लड़के पढ़ते हैं।


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