NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक | पहलवान ली ढोलक (अभ्यास-प्रश्न)

3

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक | पहलवान ली ढोलक (अभ्यास-प्रश्न)


पहलवान ली ढोलक (अभ्यास-प्रश्न)





प्रश्न 1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द कीजिए।
लुट्टन ढोल की आवाज से अत्यधिक प्रभावित था। वह ढोल की एक-एक थाप को सुनकर उत्साहित हो उठता था। ढोल की प्रत्येक थाप उसे कुश्ती का कोई न कोई दाव पेंच अवश्य बताती थी जिससे प्रेरणा लेकर वह कुश्ती करता था। ढोल की ध्वनियाँ उसे इस प्रकार के अर्थ सांकेतिक करती थी:-
      ढोल की आवाज                                           अर्थ
क) चट-धा, गिड़-धा                                   आ जा, भिड़ जा
ख) चटाक-चट-धा                                     उठाकर पटक दे
ग) ढाक-ढिना                                           वाह पट्ठे
घ) चट-गिड़-धा                                         मत डरना 
ङ) धाक-धिना, तिरकट-तिना                       दाँव काटो और बाहर हो जा
ये शब्द हमारे मन में भी उत्साह भरते हैं और संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 2. कहानी के किस किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
क) सर्वप्रथम माता पिता के निधन के बाद लुट्टन अनाथ हो गया और उसकी विधवा सास ने ही उसका भरण पोषण किया। 
ख) श्यामनगर दंगल में लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और राज दरबार में स्थाई पहलवान बन गया। 
ग) पन्द्रह साल बाद राजा की मृत्यु हो गई और विलायत से लौटे राजकुमार ने उसे राजदरबार से हटा दिया और वह अपने गाँव लौट आया। 
घ) गाँव में अनावृष्टि के बाद मलेरिया और हैजा फैल गया जिससे उसके दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई। 
ङ) पुत्रों की मृत्यु के चार-पाँच दिन बाद रात को लुट्टन की भी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
लुट्टन ने किसी गुरु से कुश्ती के दांव-पेंच नहीं सीखे थे। उसे केवल ढोलक की उत्तेजक आवाज से ही प्रेरणा मिलती थी। ढोलक पर थाप पढ़ते ही उसकी नसे उत्तेजित हो उठती थी और तन-बदन कुश्ती के लिए मचल उठता था। श्यामनगर के मेले में उसने चाँद सिंह को ढोल की आवाज पर ही चित किया था। इसलिए कुश्ती जीतने के बाद उसने ढोल को प्रणाम किया और वह ढोल को ही अपना गुरु मानने लगा।

प्रश्न 4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
लुट्टन पहलवान पर ढोल की आवाज का गहरा प्रभाव पड़ता था। ढोल की आवाज उसके शरीर की नसों में उत्तेजना पर देती थी। यह आवाज गाँव के लोगों को भी उत्साहित करती थी। गाँव में महामारी के कारण लोगों में सन्नाटा छाया हुआ था। उसी ढोल की आवाज से लोगों को जिंदगी का एहसास होता था। लोग समझते थे कि जब लुट्टन का ढोल बज रहा है तो मौत का कैसा डर! अपने बेटों की मृत्यु के बावजूद भी वह मृत्यु के सन्नाटे को तोड़ने के लिए निरंतर ढोल बजाता रहा।

प्रश्न 5. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव में क्या असर होता था?
ढोला की आवाज से रात का सन्नाटा और डर कम हो जाता था। बच्चे या बूढ़े हो या जवान; ढोल की आवाज से सभी को आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था और वे उत्साह से भर जाते थे। लुट्टन का सोचना था कि ढोलक की आवाज गाँव के लोगों में भी उत्साह उत्पन्न करती है। भले ही लोग रोग के कारण मर रहे थे लेकिन जब तक जिंदा रहते थे तब तक मौत से डरते नहीं थे। ढोलक की आवाज मौत के दर्द को सहनीय बना देती थी और वे आराम से मरते थे।

प्रश्न 6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
महामारी फैलने के बाद पूरे गाँव की तस्वीर बदल गई थी। सूर्योदय होते ही गाँव में हलचल मच जाती थी। भले ही बीमार लोग रोते थे फिर भी उनके चेहरे पर एक कांति होती थी। सवेरा होते ही गाँव के लोग अपने स्वजनों के पास जाते थे और उन्हें सांत्वना देते थे। जिससे उनका जीवन उत्साहित हो उठता था।
                    सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में चुपचाप घुस जाते थे। उनकी बोलने की शक्ति भी समाप्त हो जाती थी। रात के समय पूरे गाँव में कोई हलचल नहीं होती थी।

प्रश्न 7. कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-
क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
अब पहलवानों को कोई भी सम्मान नहीं मिलता। केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में दंगल आयोजित किए जाते हैं। अब राजा-महाराजाओं का जमाना भी नहीं है। उनका स्थान विधायकों एवं सांसद सदस्यों तथा मंत्रियों ने ले लिया है। उनके पास इन कार्यों के लिए कोई समय नहीं है। दूसरा मनोरंजन के अनेक अन्य साधन अब प्रचलित हो गए हैं।

ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
कुश्ती या दंगल की जगह अब क्रिकेट, फुटबॉल हॉकी, घुड़दौड़, बैडमिंटन आदि खेल प्रचलित हो गए हैं।

ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक उपाय अपनाए जा सकते हैं। दशहरा और होली आदि पर्व पर कुश्ती का आयोजन किया जा सकता है। सरकार की तरफ से अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवानों को पर्याप्त धनराशि तथा सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। इस प्रकार सेना, रेलवे, बैंक और एयरलाइंस आदि में पहलवानों को नौकरी देकर कुश्ती को बढ़ावा दिया जा सकता है।

प्रश्न 8. आशय स्पष्ट करें
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी को जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा सफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे।
लेखक अमावस्या की घनी काली रात में चमकते व टूटते हुए तारों की रोशनी पर प्रकाश डालता है। जब भी कोई तारा टूटकर जमीन पर गिरता तो ऐसा लगता मानो वह महामारी से पीड़ित लोगों की दयनीय स्थिति पर सहानुभूति प्रकट करने के लिए आकाश से टूटकर पृथ्वी की ओर दौड़ा चला आ रहा है। लेकिन वह बेचारा कर भी क्या सकता था। दूरी होने के कारण उसकी ताकत और रोशनी नष्ट हो जाती थी। आकाश के दूसरे तारे उसकी असफलता को देखकर मानो हँसने लगते थे। भाव यह है कि कोई भी व्यक्ति महामारी से पीड़ित लोगों की सहायता करने में समर्थ नहीं हो पाता था।

प्रश्न 9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।    (परीक्षोपयोगी नहीं है)
1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
उत्तर:- आशय – यहाँ पर रात का मानवीकरण किया गया है गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था ऐसे में ओस की बूंदें आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी।

2. अन्य तारे अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर:- आशय – यहाँ पर तारों को हँसता हुआ दिखाकर उनका मानवीकरण किया गया है। यहाँ पर तारे मज़ाक उड़ाते हुए प्रतीत हो रहें हैं।

Post a Comment

3Comments

If you have any doubts, Please let me know

Post a Comment