Class 11 and 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam NCERT Book Chapter Naye Aur Aprtyashit Vishyo Per Lekhan / नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन Question Answer
Class 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam Question Answer
प्रश्न 1 अधूरे वाक्यों को अपने शब्दों में पूरा कीजिए—
- हम नया सोचने लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि…..
- लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि…..
- हमें विचार प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि….
- लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि……
- लेखन में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि…..
उत्तर—
- हम नया सोचने लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमें आत्मनिर्भर होकर लिखित रूप में स्वयं को अभिव्यक्ति करने का अभ्यास नहीं होता है।
- लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि हम कुछ नया सोचने लिखने का प्रयास करने के स्थान पर किसी विषय पर पहले से उपलब्ध सामग्री पर निर्भर हो जाते हैं।
- हमें विचार प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि विचारों को नियंत्रित करने से ही हम जिस विषय पर लिखने जा रहे हैं उसका विवेचन उचित रूप से कर सकेंगे।
- लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि जब तक यह स्पष्ट नहीं होगा कि हमने क्या और कैसे लिखना है हम अपने विषय को सुसंबंध और सुसंगत रूप से प्रस्तुत नहीं कर सकते।
- लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने होते हैं और लेख पर लेखक के अपने व्यक्तित्व की छाप होती है।
प्रश्न 2 निम्नलिखित विषयों पर 200 से 300 शब्दों में लेख लिखिए—
- झरोखे से बाहर
- सावन की पहली झड़ी
- इम्तिहान के दिन
- दीया और तूफ़ान
- मेरे मोहल्ले का चौराहा
- मेरे प्रिय टाइम पास
- एक कामकाजी औरत की शाम।
उत्तर— 1. झरोखे से बाहर
झरोखा है-भीतर से बाहर की ओर झांकने का माध्यम और बाहर से भीतर देखने का रास्ता। हमारी आँखें भी तो झरोखा ही हैं-मन-मस्तिष्क को संसार से और संसार को मन-मस्तिष्क से जोड़ने का। मन रूपी झरोखे से किसी भक्त को संसार के कण-कण में बसने वाले ईश्वर के दर्शन होते हैं तो मन रूपी झरोखे से ही किसी डाकू-लुटेरे को किसी धनी-सेठ की धन-संपत्ति दिखाई देती है जिसे लूटने के प्रयत्न में वह हत्या जैसा जघन्य कार्य करने में तनिक नहीं झिझकता। झरोखा स्वयं कितना छोटा-सा होता है पर उसके पार बसने वाला संसार कितना व्यापक है जिसे देख तन मन की भूख जाग जाती है और कभी-कभी शांत भी हो जाती है। किसी पर्वतीय स्थल पर किसी घर के झरोखे से गगन चुंबी पर्वत मालाएँ, ऊँचे-ऊँचे पेड़, गहरी-हरी घाटियां, डरावनी खाइयां यदि पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं तो दूर-दूर तक घास चरती भेड़-बकरियां, बांसुरी बजाते चरवाहे, पीठ पर लंबे टोकरे बांध कर इधर-उधर जाते सुंदर पहाड़ी युवक-युवतियाँ मन को मोह लेते हैं। राजस्थानी महलों के झरोखों से दूर-दूर फैले रेत के टीले कछ अलग ही रंग दिखाते हैं। गाँवों में झोंपड़ों के झरोखों के बाहर यदि हरे-भरे खेत लहलहाते दिखाई देते हैं तो कूडे के ऊँचे-ऊँचे ढेर भी नाक पर हाथ रखने को मजबूर कर देते हैं । झरोखे कमरों को हवा ही नहीं देते बल्कि भीतर से ही बाहर के दर्शन करा देते हैं। सजी-संवरी दुल्हन झरोखे के पीछे छिप कर यदि अपने होने वाले पति की एक झलक पानी को उतावली रहती है तो कोई विरहणी अपना नजर बिछाए झरोखे पर ही आठों पहर टिकी रहती है। मां अपने बेटे की आगमन का इंतजार झरोखे पर टिक कर करती है। झरोखे तो तरह-तरह के होते हैं पर झरोखों के पीछे बैठ प्रतीक्षा रत आँखों में सदा एक ही भाव होता है-कुछ देखने का, कुछ पाने का। युद्ध भूमि में मोर्चे पर डटा जवान भी तो खाई के झरोखे से बाहर छिप-छिप कर झांकता है-अपने शत्रु को गोली से उडा देने के लिए। झरोखे तो छोटे बड़े कई होते हैं पर उनके बाहर के दृश्य तो बहुत बड़े होते हैं जो कभी-कभी आत्मा तक को झकझोर देते हैं।
2. सावन की पहली झड़ी
पिछले कई दिनों से हवा में घुटन-सी बढ़ गई थी। बाहर तपता सूर्य और सब तरफ हवा में नमी की अधिकता जीवन दूभर बना रही थी। बार-बार मन में भाव उठता कि हे भगवान, कुछ तो दया करो। न दिन में चैन और न रात को आंखों में नींद-बस गर्मी ही गर्मी, पसीना ही पसीना। रात को बिस्तर पर करवटें लेते-लेते पता नहीं कब आँख लग गई। सुबह आँखें खुली तो अहसास हुआ कि खिड़कियों से ठंडी हवा भीतर आ रही है। उठ कर खिड़की से बाहर झांका तो मन खुशी से झूम उठा। आकाश तो काले बादलों से भरा हुआ था। आकाश में कहीं नीले रंग की झलक नहीं। सूर्य देवता बादलों के पीछे पता नहीं कहाँ छिपे हुए थे। पक्षी पेड़ों पर बादलों के स्वागत में चहचहा रहे थे। मुहल्ले से सारे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल मौसम के बदलते रंग को देख रहे थे। उमड़ते-उमड़ते मस्त हाथियों से काले-कजरारे बादल मन में मस्ती भर रहे थे। अचानक बादलों में तेज बिजली कौंधी जोर से बादल गरजे और मोटी-मोटी कुछ बूँदें टपकीं कुछ लोग इधर-उधर भागे ताकि अपने-अपने घरों में बाहर पड़ा सामान भीतर रख लें। पल भर में ही बारिश का तेज़ सर्राटा आया और फिर लगातार तेज़ बारिश शुरू हो गई। महीनों से प्यासी धरती की प्यास बुझ गई । पेड़-पौधों के पत्ते नहा गए। उनका धूल-धूसरित चेहरा धुल गया और हरी-भरी दमक फिर से लौट आई। छोटे-छोटे बच्चे बारिश में नहा रहे थे, खेल रहे थे, एक-दूसरे पर पानी उछाल रहे थे। कुछ ही देर में सड़कें-गलियां छोटे-छोटे नालों की तरह पानी भर-भर कर बहने लगी थीं। कल रात तक दहकने वाला दिन आज खुशनुमा हो गया था। तीन-चार घंटे बाद बारिश की गति कुछ कम हुई और फिर पाँच-दस मिनट के लिए बारिश रुक गई। लोग बाहर निकलें पर इससे पहले फिर से बारिश की शुरू हो गई-कभी धीमी तो कभी तेज़। सुबह से शाम हो गई है पर बादलों का अंधेरा उतना ही है जितना सुबह था। रिमझिम बारिश आ रही है। घरों की छतों से पानी पनालों से बह रहा है। मेरी दादी अभी कह रही थी कि आज शनिवार को बारिश की झड़ी लगी है। यह तो अगले शनिवार तक ऐसे ही रहेगी भगवान् करे ऐसा ही हो। धरती की प्यास बुझ जाए और हमारे खेत लहलहा उठे।
3. इम्तिहान के दिन
बड़े-बड़े भी कांपते हैं इम्तिहान के नाम से। इम्तिहान छोटों का हो या बड़ों का, पर यह डराता सभी को है। पिछले वर्ष जब दसवीं की बोर्ड परीक्षा हमें देनी थी तब सारा वर्ष स्कूल में हमें बोर्ड परीक्षा नाम से डराया गया था और घर में भी इसी नाम से धमकाया जाता था। मन ही मन हम इसके नाम से भी डरा करते थे कि पता नहीं इस बार इम्तिहान में क्या होगा। सारा वर्ष अच्छी तरह पढ़ाई की थी, बार-बार टैस्ट दे-दे कर तैयारी की थी पर इम्तिहान के नाम से भी डर लगता था। जिस दिन इम्तिहान का दिन था, उससे पहली रात मुझे तो बिल्कुल नींद नहीं आई। पहला पेपर हिंदी का था और विषय पर मेरी अच्छी पकड़ थी पर ‘इम्तिहान’ का भूत सिर पर इस प्रकार सवार था कि नीचे उतरने का नाम ही नहीं लेता था। सुबह स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ। स्कूल बस में सवार हुआ तो हर रोज़ हो हल्ला करने वाले साथियों के हाथों में पकड़ी पुस्तकें और उनकी झुकी हुई आँखों ने मुझे और अधिक डराया। सब के चेहरों पर खौफ-सा छाया था। खिलखिलाने वाले चेहरे आज सहमे हुए थे। मैंने भी मन ही मन अपने पाठों को दोहराना चाहा पर मझे तो कुछ याद ही नहीं। सब कुछ भूलता-सा प्रतीत हो रहा था। मैंने भी अपनी पुस्तक खोली। पुस्तक देखतेे ही ऐसाा लग कि मुझे तो यह आती है। खैर, स्कूल पहुंचकर अपनी जगह पर बैठे। प्रश्न-पत्र मिला, आसान लगा। ठीक समय पर पूरा पत्र हो गया। जब बाहर निकले तो सभी प्रसन्न थे पर साथ ही चिंता आरंभ हो गई अगले पेपर की। अगला पेपर गणित का था। चाहे दो छुट्टियां थीं, पर ऐसा लगता था कि ये तो बहुत कम हैं। वह पेपर भी बीता पर चिंता समाप्त नहीं हुई। पंद्रह दिन में सभी पेपर ख़त्म हुए पर ये सारे दिन बहुत व्यस्त रखने वाले थे इन दिनों न तो भूख लगती थी और न खेलने की इच्छा होती थी। इन दिनों न तो मैं अपने किसी मित्र के घर गया और न ही मेरे किसी मित्र को मेरी सुध आई। इम्तिहान के दिन बड़े तनाव भरे थे।
4. दिया और तूफ़ान
मिट्टी का बना हुआ एक नन्हा-सा दीया भी जलता है तो रात्रि अंधकार से लड़ता हुआ उसे दूर भगा देता है। अपने आस-पास हल्का-सा उजाला फैला देता है। जिस अधकार में हाथ को हाथ नहीं सूझता उसे भी मंद प्रकाश फैला कर काम करने योग्य रास्ता दिखा देता है। हवा का हलका-सा झोंका जब दीये की लौ को कंपा देता है तब ऐसा लगता है कि इसके बुझते ही अंधकार फिर छा जाएगा और फिर हमें उजाला कैसे मिलेगा ? दीया चाहे छोटा-सा होता है पर वह अकेला अंधकार के संसार का सामना कर सकता है तो हम इस इनसान जीवन की राह में आने वाली कठिनाइयों का भी उसी की तरह मुकाबला क्यों नहीं कर सकते ? यदि वह तूफ़ान का सामना करके अपनी टिमटिमाती लौ से प्रकाश फैला सकता है तो हम भी हर कठिनाई में कर्मठ बन कर संकटों के घेरों से निकल सकते हैं। महाराणा प्रताप ने सब कुछ खो कर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ठानी थी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नन्हें-से दीये के समान जीवन की कठोरता का सामना किया था और विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र भारत का प्रधानमंत्री पद प्राप्त कर लिया था। हमारे राष्ट्रपति कलाम ने अपना जीवन टिमटिमाते दीये के समान आरंभ किया था पर आज वही दीया हमारे देश को मिसाइलें प्रदान करने वाला प्रचंड अग्नि पुंज है। उसने देश को जो शक्त प्रदान की है वह स्तुत्य है। समुद्र में एक छोटी-सी नौका ऊँची-तूफानी लहरों से टकराती हुई अपना रास्ता बना लेती है और अपनी मंज़िल पा लेती है। एक छोटा-सा प्रवासी पक्षी साइबेरिया से उड़ कर हज़ारों-लाखों मील दूर पहुँच सकता है तो हम इंसान भी कठिन से कठिन मंज़िल प्राप्त कर सकते हैं। अकेले अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घिर कर कौरवों जैसे महारथियों का डट कर सामना किया था। कभी-कभी तूफान अपने प्रचंड वेग से दीये की लौ को बुझा देता है पर जब तक दीया जगमगाता है तब तक तो अपना प्रकाश फैलाता है और अपने अस्तित्व को प्रकट करता है। मिटना तो सभी को है एक दिन। वह कठिनाइयों से डरकर छिपा रहे या डट कर उनका मुकाबला करे। श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो दीये के समान जगमगाता हुआ तफ़ानों की परवाह न करे और अपनी रोशनी से संसार को उजाला प्रदान करता रहे।
5. मेरे मुहल्ले का चौराहा
मुहल्ले की सारी गतिविधियों का केंद्र मेरे घर के पास का चौराहा है। नगर की चार प्रमुख सड़के इस आर-पार से गुज़रती हैं इसलिए इस पर हर समय हलचल बनी रहती है। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली सड़क रेलवे स्टेशन की ओर से आती है और मुख्य बाज़ार की तरफ़ जाती है जिसके आगे औदयोगिक क्षेत्र हैं। रेलवे स्टेशन से आने वाले यात्री और मालगाड़ियों से उतरा सामान ट्रकों में भर इसी से गुज़रकर अपने- अपने गंतव्य पर पहुँचता है। उत्तर से दक्षिण की तरफ जाने वाली सड़क मॉडल टाऊन और बस स्टैंड से गुज़रती है। इस पर दो सिनेमा हॉल तथा अनेक व्यापारिक प्रतिष्ठान बने हैं जहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता है। चौराहे पर फलों की रेहड़ियां, कुछ सब्जी बेचने वाले, खोमचे वाले तो सारा दिन जमे ही रहते हैं। चूंकि चौराहे के आसपास घनी बस्ती है इसलिए लोगों की भीड़ कुछ न कुछ खरीदने के लिए यहाँ आती ही रहती है। सुबह-सवेरे स्कूल जाने वाले बच्चों से भरी रिक्शा और बसें जब गुज़रती हैं तो भीड़ कुछ अधिक बढ़ जाती है। कुछ रिक्शाओं में तो नन्हें-नन्हें बच्चे गला फाड़ कर चीखते चिल्लाते सब का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। वे स्कूल नहीं जाना चाहते पर जाने के लिए विवश कर रिक्शा में बिठाए जाते हैं। चौराहे पर लगभग हर समय कुछ आवारा मजनू छाप भी मंडराते रहते हैं जिन्हें ताक-झांक करते हुए पता नहीं क्या मिलता है। मैंने कई बार पुलिस के द्वारा उनकी वहाँ की जाने वाली पिटाई भी देखी है पर इसका उन पर कोई विशेष असर नहीं होता। वे तो चिकने घड़े हैं। कुछ तो दिन भर नीम के पेड़ के नीचे घास पर बैठ ताश खेलते रहते हैं। मेरे मुहल्ले का चौराहा नगर में इतना प्रसिद्ध है कि मुहल्ले और आस-पास की कॉलोनियों की पहचान इसी से है।
6. मेरा प्रिय टाइम-पास
आज के आपाधापी से भरे युग में किसके पास फ़ालतू समय है पर फिर भी हम लोग मशीनी मानव तो नहीं हैं। कभी-कभी अपने लिए निर्धारित काम धंधों के अतिरिक्त हम कुछ और भी करना चाहते हैं। इससे मन सुकून प्राप्त करता है और लगातार काम करने से उत्पन्न बोरियत दूर होती है। हर व्यक्ति की पसंद अलग होती है इसलिए उनका टाइम पास काा तरीका अलग होता है। किसी का टाइम पास सोना है तो किसी का टीवी देखना,तो किसी का सिनेमा देखना तो किसी का उपन्यास पढ़ना, किसी का इधर-उधर घूमना तो किसी का खेती-बाड़ी करना। मेरा प्रिय टाइम पास विंडो-शॉपिंग है। जब कभी काम करते-करते मैं ऊब जाता हैं और मन कोई काम नहीं करना चाहता तब मैं तैयार हो कर घर से बाहर बाजार की ओर निकल जाता है-विंडो-शापिंग के लिए। जिस नगर में मैं रहता हूँ वह काफी बड़ा है। बड़े-बड़े बाजार, शॉपिंग मॉल्ज और डिपार्टमेंटल स्टोर की संख्या काफी बड़ी है दुकानों की शो-विंडोज सुंदर ढंग से सजे-संवरे सामान से ग्राहकों को लुभाने के लिए भरे रहते हैं। नए-नए उत्पाद, सुंदर कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक नया सामान, तरह-तरह के खिलौने, सजावटी सामान आदि इनमें भरे रहते हैं। मैं इन सजी-संवरी दुकानों की शो-विंडोज को ध्यान से देखता हूँ, मन ही मन खुश होता है, उनकी संदरता और उपयोगिता की सराहना करता हूँ। जिस वस्तु को मैं खरीदने की इच्छा करता हूँ उसके दाम का टैग देखता हूँ और मन में सोच लेता हूँ कि मैं इसे तब खरीद लूगा जब मेरे पास अतिरिक्त पैसे होंगे। ऐसा करने से मेरी जानकारी बढ़ती है। नए-नए उत्पादों से संबंधित ज्ञान बढ़ता है और मन नए सामान को लेने की तैयारी करता है और इसलिए मस्तिष्क और अधिक परिश्रम करने के लिए तैयार होता है। टाइम-पास की मेरी यह विधि उपयोगी है, सार्थक है, परिश्रम करने की प्रेरणा देती है, ज्ञान बढ़ाती है और किसी का कोई नुकसान नहीं करती।
7. एक कामकाजी औरत की शाम
हमारे देश में मध्यवर्गीय परिवारों के लिए अति आवश्यक हो चुका है कि घर परिवार को ठीक प्रकार से चलाने के लिए पति-पत्नी दोनों धन कमाने के लिए काम करें और इसीलिए समाज में कामकाजी औरतों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। कामकाजी औरत की जिंदगी पुरुषों की अपेक्षा कठिन है। वह घर-बाहर एक साथ संभालती है। उसकी शाम तभी आरंभ हो जाती है जब वह अपने कार्यस्थल से छुट्टी के बाद बाहर निकलती है वह घर पहुंचने से पहले ही रास्ते में आने वाली रेहड़ी या बाजार से फल-सब्जियां खरीदती है, छोटा-मोटा किरयाने का सामान लेती है और लदी-फदी घर पहुँचती है। तब तक पति और बच्चे भी घर पहुँच चुके होते हैं। दिन भर की थकी-हारी औरत कुछ आराम करना चाहती है पर उससे पहले चाय तैयार करती है। यदि वह औरत संयुक्त परिवार में रहती है तो कुछ और तैयार करने की फ़रमाइशें भी उसे पूरी करनी पड़ती है। चाय पीते-पीते वह बच्चों से, बड़ों से बातचीत करती है। यदि उस समय कोई घर में मिलने-जुलने वाला आ जाता है तो सारी शाम आगंतुकों की सेवा में बीत जाती है। लेकिन यदि ऐसा नहीं हआ तो भी उसे फिर से बाज़ार या कहीं और जाना पड़ता है ताकि घर के लोगों की फ़रमाइशों को पूरा कर सके। लौट कर बच्चों को होमवर्क करने में सहायता देती है और फिर रात के खाने की तैयारी में लग जाती है। कभी कभी उसे आस-पड़ोस के घरों में भी औपचारिकता वश जाना पडता है। कामकाजी औरत तो चक्कर घिन्नी की तरह हर पल चक्कर ही काटती रहती है। उसकी शाम अधिकतर दूसरों की फ़रमाइशों को पूरा करने में बीत जाती है। वह हर पल चाहती है कि उसे भी घर में रहने वाली औरतों के समान कोई शाम अपने लिए मिले पर प्रायः ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि कामकाजी औरत का जीवन तो घड़ी की सुइयों से बंधा होता है।
प्रश्न 3. घर से स्कूल तक के सफ़र में आज आपने क्या-क्या देखा और अनुभव किया ? लिखें और अपने लेख को एक अच्छा-सा शीर्षक भी दें।
उत्तर— संवेदनाओं की मौत
मैं घर से अपने विद्यालय जाने के लिए निकली। आज मैं अकेली ही जा रही थी क्योंकि मेरी सखी नीलम को ज्वर आ गया था। मेरा विद्यालय मेरे घर से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। रास्ते में बस स्टेंड भी पड़ता है। वहाँ से निकली तो बसों का आना-जाना जारी था। मैं बचते-बचाते निकल ही रही थी कि मेरे सामने ही एक बस से टकरा कर एक व्यक्ति बीच सड़क पर गिर गया। मैं किनारे पर खड़ी होकर देख रही थी कि उस गिरे हए व्यक्ति को उठाने कोई नहीं आ रहा। मैं साहस करके आगे जा ही रही थी कि एक बुजुर्ग ने मुझे रोक कर कहा, ‘बेटी ! कहाँ जा रही हो?’ वह तो मर गया लगता है। हाथ लगाओगी तो पुलिस के चक्कर में पड़ जाओगी। मैं घबरा कर पीछे हट गई और सोचते-सोचते विद्यालय पहुंच गई कि हमें क्या हो गया है जो हम किसी के प्रति हमदर्दी भी नहीं दिखा सकते, किसी की सहायता भी नहीं कर सकते?
प्रश्न 4. अपने आस-पास की किसी ऐसी चीज़ पर एक लेख लिखें, जो आप को किसी वजह से वर्णनीय प्रतीत होती हो। वह कोई चाय की दुकान हो सकती है, कोई सैलून हो सकता है, कोई खोमचे वाला हो सकता है या किसी खास दिन पर लगने वाला हॉट-बाज़ार हो सकता है। विषय का सही अंदाज़ा देने वाला शीर्षक अवश्य दें।
उत्तर-
पानी के नाम पर बिकता ज़हर
जेठ की तपती दोपहरी। पसीना, उमस और चिपचिपाहट ने लोगों को व्याकुल कर दिया था। गला प्यास से सूखता है तो मन सड़क के किनारे खड़ी ‘रेफ्रिजरेटर कोल्ड वाटर’ की रेहड़ी की ओर चलने को कहता है। प्यास की तलब में पैसे दिए और पानी पिया। चल दिए। पर कभी सोचा नहीं कि इन रेहड़ी की टंकियों की क्या दशा है ? क्या इन्हें कभी साफ़ भी किया जाता है ? क्या इन में वास्तव में रेफ्रीजेरेटर कोल्ड वॉटर है या पानी में बर्फ डाली हुई है ? कही हम पैसे देकर पानी के नाम पर ज़हर तो नहीं पी रहे? इन कोल्ड वाटर बेचने वालों के ‘वाटर’ की जांच स्वास्थ्य विभाग का कार्य है परंतु वे तो तब तक नहीं जागते हैं जब तक इनके दूषित पानी पीने से सैंकडों व्यक्ति दस्त के, हैजे के शिकार नहीं हो जाते। आशा है इन गर्मियों में स्वास्थ्य विभाग जायेगा और पानी के नाम पर ज़हर बेचने वाली इन काल्ड वाटर की रेहड़ियों की जाँच करेगा।
Sir Jo "mere mohalle ka chouraha" ka lekh hai usme अंत mai pura dhyan chourahe se hatkar Awara ladko ki taraf chala jata hai toh ye सुसंबद्धता ka पालन nahi kar raha hai...kya yeh sahi hai?
ReplyDeleteHa kyuki sir ne btaya h ki apratyaashit lekh 2 prakar ke h
Delete1st jisme hmm kuch bhi likh sakte h
Apne vicharo ke according
(Ye ek khuli maidan ki tarah hoti h)
Aur 2nd jisme hme dhyan rekhna hota h
( sapast focus vale lekh jisme hmm badhya ho jate h usi se related likhne ke liye)