Class 11 and 12 Hindi Abhivyakti Aur Madhyam NCERT Book Chapter Naye Aur Apratyashit Vishyon Par Lekhan (Important Question)/ नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन Question Answer
प्रश्न 1. रटंत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा तैयार की गई पठनीय सामग्री को ज्यों का त्यों याद करना और उसे दूसरे के सामने प्रस्तुत करना रटंत कहलाता है।
प्रश्न 2. रटंत अथवा कुटेव को बुरी लत क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-रटंत को बुरी लत इसलिए कहा जाता है क्योंकि जिस विद्यार्थी अथवा व्यक्ति को यह लत लग जाती है, उसके भावों की मौलिकता खत्म हो जाती है। इसके साथ-साथ उसकी चिंतन शक्ति धीरे-धीरे क्षीण हो जाती है और वह किसी विषय को अपने तरीके से सोचने की क्षमता खो देता है। वह सदैव दूसरों के लिखे पर आश्रित हो जाता है। उसे अपनी बुद्धि तथा चिंतन शक्ति पर विश्वास नहीं रहता।
प्रश्न 3. अभिव्यक्ति के अधिकार में निबंधों के नए विषय किस प्रकार सहायक सिद्ध होते हैं ?
उत्तर-अभिव्यक्ति का अधिकार मनुष्य का एक मौलिक अधिकार है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने विचारों की अभिव्यक्ति स्वतंत्र रूप से कर सकता है। निबंध विचारों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। इसमें निबंधकार अपने विचारों को सहज रूप से अभिव्यक्त करता है। विचार अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया निबंधों के पुराने विषयों के साथ पूर्णतः घटित नहीं होती क्योंकि पुराने विषयों पर पहले से ही तैयार शुद्ध सामग्री अधिक मात्रा में उपलब्ध रहती है। इससे हमारी अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित नहीं होती। इसलिए हमें निबंधों के नए विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त करने चाहिए। नए विषयों पर विचार अभिव्यक्त करने से लेखक का मानसिक और आत्मिक विकास होता है। इससे लेखक की चिंतन शक्ति का विकास होता है। इससे लेखक को बौद्धिक विकास तथा अनेक विषयों की जानकारी होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अभिव्यक्ति के अधिकार में निबंधों के विषय बहुत सहायक सिद्ध होते हैं।
प्रश्न 4. नए अथवा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-किसी नए अथवा अप्रत्याशित विषय पर कम समय में अपने विचारों को संकलित कर उन्हें सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करना ही अप्रत्याशित विषयों पर लेखन कहलाता है।
प्रश्न 5. नए अथवा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-नए अथवा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. जिस विषय पर लिखना है लेखक को उसकी संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
2. विषय पर लिखने से पहले लेखक को अपने मस्तिष्क में उसकी एक उचित रूपरेखा बना लेनी चाहिए।
3. विषय से जुड़े तथ्यों से उचित तालमेल होना चाहिए।
4. विचार विषय से सुसम्बद्ध तथा संगत होने चाहिए।
5. अप्रत्याशित विषयों के लेखन में 'मैं' शैली का प्रयोग करना चाहिए।
6. अप्रत्याशित विषयों पर लिखते समय लेखक को विषय से हटकर अपनी विद्वता को प्रकट नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 6. नए अथवा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में क्या-क्या बाधाएँ आती हैं ?
उत्तर-नए अथवा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में अनेक बाधाएँ आती हैं जो इस प्रकार है-
1. सामान्य रूप से लेखक आत्मनिर्भर होकर अपने विचारों को लिखित रूप देने का अभ्यास नहीं करता।
2. लेखक में मौलिक प्रयास तथा अभ्यास करने की प्रवृत्ति का अभाव होता है।
3. लेखक के पास विषय से संबंधित सामग्री और तथ्यों का अभाव होता है।
4. लेखक की चिंतन शक्ति मंद पड़ जाती है।
5. लेखक के बौद्धिक विकास के अभाव में विचारों की कमी हो जाती है।
6. अप्रत्याशित विषयों पर लेखन करते समय शब्दकोश की कमी हो जाती है।
प्रश्न 7. नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को किस प्रकार सरल बनाया जा सकता है ?
उत्तर-नए तथा अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को सरल बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान करना चाहिए :
1. किसी भी विषय पर लिखने से पूर्व अपने मन में उस विषय से संबंधित उठने वाले विचारों को कुछ देर रुककर एक रूपरेखा प्रदान करें। उसके पश्चात् ही शानदार ढंग से अपने विषय की शुरुआत करें।
2. विषय को आरंभ करने के साथ ही उस विषय को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाए, यह भी मस्तिष्क में पहले से होना आवश्यक है।
3. जिस विषय पर लिखा जा रहा है, उस विषय से जुड़े अन्य तथ्यों की जानकारी होना भी बहुत आवश्यक है। सुसंबद्धता किसी भी लेखन का बुनियादी तत्व होता है।
4. सुसंबद्धता के साथ-साथ विषय से जुड़ी बातों का सुसंगत होना भी जरूरी होता है। अतः किसी भी विषय पर लिखते हुए दो बातों का आपस में जुड़े होने के साथ-साथ उनमें तालमेल होना भी आवश्यक होता है।
5. नए तथा अप्रत्याशित विषयों के लेखन में आत्मपरक 'मैं' शैली का प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि निबंधों और अन्य आलेखों में 'मैं' शैली का प्रयोग लगभग वर्जित होता है किंतु नए विषय पर लेखन में 'मैं' शैली के प्रयोग से लेखक के विचारों और उसके व्यक्तित्व को झलक प्राप्त होती है।
प्रश्न 8. 'अक्ल बड़ी या भैंस' विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर-दुनिया मानती है और जानती है कि महात्मा गाँधी जैसे दुबले-पतले महापुरुष ने स्वतंत्रता संग्राम बिना अस्त्र-शस्त्रों से लड़ा था। उनका हथियार तो केवल सत्य और अहिंसा थे। जिस कार्य को शारीरिक बल न कर सका, उसे बुद्धि बल ने कर दिखाया। इसी कारण यह कहावत प्रसिद्ध है कि अक्ल बड़ी या भैंस ? केवल शारीरिक बल होने से कोई लाभ नहीं हुआ करता। महाभारत के युद्ध में भीम और उसके पुत्र घटोत्कच ने अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर बहुत-से कौरवों को मार गिराया किंतु उनकी शक्ति को भी दिशा-निर्देश देने वाली श्री कृष्ण की बुद्धि ही थी।
नैपोलियन, लेनिन तथा मुसोलिनी जैसे महान् व्यक्तियों ने भी बुद्धि के बल पर ही सफलताएँ अर्जित की थीं। राजनीति, समाज, धर्म, दर्शन, विज्ञान और साहित्य आज लगभग हर क्षेत्र में बुद्धि बल का ही महत्त्व है। पंचतंत्र की एक कहानी से भी इस कथन की पुष्टि हो जाती है कि शारीरिक बल से अधिक महत्त्व बुद्धि का होता है। इस कहानी में एक छोटा- सा खरगोश शक्तिशाली शेर को एक कुएँ के पास ले जाकर उससे कुएँ में छलांग लगवाकर उसे मार डालता है। अपनीबुद्धि के बल पर ही उस नन्हें से खरगोश ने खूखार शेर से केवल अपनी ही नहीं अपितु जंगल के अन्य प्राणियों की भी रक्षा की थी। अतः शारीरिक शक्ति की अपेक्षा हमारे जीवन में बुद्धि का अधिक महत्त्व है।
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