Gram Shree Class 9 Solutions Pathit Kavyansh ग्राम श्री पठित काव्यांश / पद्यांश
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
(क) खेतों में फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है?
(ख) हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है?
(ग) नीला आकाश किस पर झुका हुआ है?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) खेतों में फैली फसलों की हरियाली दूर तक फैली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनका हरा-रक्त रूपी शक्ति झलकती हुई दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) सदा से ही साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरे खेतों पर झुका हुआ है।
(घ) छायावादी काव्यधारा की प्रवृत्ति प्रकृति चित्रण से संबंधित अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति, प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जी गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
(क) कवि ने पृथ्वी को रोमांचित होते हुए कब माना है?
(ख) सोने जैसी करघनियाँ किनकी हैं?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) कवि ने गेहूँ और जौ की बालियों को देख पृथ्वी को रोमांचित होते हुए माना है।
(ख) सोने की करघनियां अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने ऋतु परिवर्तन पर वसंत में खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग योजना का सजीव चित्रण किया है। 'लो' शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।
3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही संखिया मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी !
फिरती हैं रंग-रंग की तितली
रंग-रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है?
(ख) मखमली पेटियों में प्रकृति ने क्या छिपाया है?
(ग) फूलों पर फूल गिरते हुए किसके लिए प्रकट किया है?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी हुई बेलों पर लटकते हुए चित्रित किया है जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली-पेटियों के समान कोमल और मोहक हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मंडरा रही हैं। कवि ने कल्पना की है कि रंग-बिरंगे फूल ही माना रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झर बेरी झूली,
फूले आड़, नींबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली।
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है?
(ख) किन-किन पेड़ों से पत्ते झड़ने लगे थे?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) आम के पेड़ सर्दी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए । कोकिल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे हैं ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तन का सुंदर-सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औ सेम फलीं, फैली
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं?
(ख) पेड़ों की ऊँचाई पर बेर और आँवले कैसे हो गए हैं?
(ग) खेतों में सब्जियों पर बहार कैसी-कैसी है?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले पेड़ों पर शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है, धनिया महक रहा है, लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने गाँवों में उगने वाली सब्जियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। लहलह', 'महमह' में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती,
अंगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई !
(क) गंगा किनारे का कवि द्वारा अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है जिस पर लहरों के बहाव के साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे गए हैं जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजों रूपी कँघी से कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप-सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता दिखाई देती है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता-सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से-सोए
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरूपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) 'भीगी अंधियाली' क्या है?
(ग) कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे सा' क्यों माना है?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर-(क) वसंत आगमन पर सर्दियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिनरात सर्दी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गर्मी पाकर अलसाने लगी थी। इसीलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई हुई-सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सर्दियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अंधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है इसीलिए कवि ने उसे भीगी अंधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उस के कण-कण में सिमटी हुई है इसीलिए कवि ने उसे 'मरकत का डिब्बा-सा' माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कणकण खिल उठता है, महक जाता है। कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।
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