Kavita ke Bahane Class 12th Hindi | Baat Seedhi thi Par Class 12 | कविता के बहाने Class 12 | Class 12 Hindi Baat Sidhi thi Par | बात सीधी थी पर कविता की व्याख्या | Class 12 Hindi Kavita ke Bahane

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Kavita ke Bahane Class 12th Hindi | Baat Seedhi thi Par Class 12 | कविता के बहाने Class 12 | Class 12 Hindi Baat Sidhi thi Par | बात सीधी थी पर कविता की व्याख्या | Class 12 Hindi Kavita ke Bahane



 1. कविता के बहाने

कविता का सार

प्रश्न - कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता 'कविता के बहाने' का सार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-प्रस्तुत कविता आधुनिक कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित एक छोटी-सी कविता है। यह कविता कवि के काव्य-संग्रह 'इन दिनों' में संकलित है। आज के वैज्ञानिक युग में कविता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यद्यपि पाश्चात्य काव्यशास्त्री आई०ए० रिचर्डस ने भौतिकवादी युग के लिए कविता को आवश्यक माना है, लेकिन काव्य प्रेमियों में एक डर-सा समा गया है कि आज के यांत्रिक युग में कविता का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इस संदर्भ में प्रस्तुत कविता अपार संभावनाओं को टटोलने प्रयास करती है। ‘कविता के बहाने' कविता चिड़िया की यात्रा से आरंभ होती है और फूल का स्पर्श करते हुए बच्चे पर आकर समाप्त हो जाती है। कवि कविता के महत्त्व का प्रतिपाद्य करते हुए कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित है। वह एक निश्चित समय में निश्चित दायरे में ही उड़ान भर सकती है। इसी प्रकार फूल भी एक निश्चित समय के बाद मुरझा जाता है। परंतु बालक के मन और मस्तिष्क में असीम सपने होते हैं। बच्चों के खेलों की कोई सीमा नहीं होती। इसी प्रकार कविता के शब्दों का खेल भी अनंत और शाश्वत है। कवि जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी को स्पर्श करता हुआ अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है। कविता में एक रचनात्मक ऊर्जा होती है। इसलिए वह घर, भाषा तथा समय के बंधनों को तोड़कर प्रवाहित होती है। कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है ।


पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

सप्रसंग व्याख्या

1. कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने ?


शब्दार्थ- सरल हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है । यह कविता 'इन दिनों' काव्य संग्रह से ली गई है तथा इसके कवि 'कुँवर नारायण' हैं। इस कविता में कवि स्पष्ट करता है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का अस्तित्व समाप्त हो गया है-


व्याख्या - कवि कविता की शक्ति का वर्णन करता हुआ कहता है कि कविता एक उड़ान है। जहाँ चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, परन्तु कविता की उड़ान असीमित होती है। उसमें नए-नए भाव, नए-नए रंग तथा नए-नए विचार उत्पन्न होते रहते हैं। कविता की उड़ान बड़ी ऊँची होती है। चिड़िया भी कविता की उड़ान के उस छोर तक नहीं पहुँच पाती। कविता के भाव असीम होते हैं कविता न केवल घर के भीतर की गतिविधियों का वर्णन करती है, बल्कि वह बाहर के क्रियाकलापों को भी व्यक्त करती है। भाव यह है कि कभी तो कविता घर-परिवार की समस्याओं का उद्घाटन करती है तो कभी घर के बाहर के वातावरण का मार्मिक वर्णन करती है। कविता के साथ कल्पना के पंख लगे होते हैं। इसलिए उसकी उड़ान असीम है। बेचारी चिड़िया कविता की असीम शक्ति को कैसे पहचान सकती है। जहाँ प्रकृति का क्षेत्र ससीम है, वहाँ कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है।


विशेष—(1) यहाँ कवि ने कविता और चिड़िया की उड़ान की मनोहारी तुलना की है। चिड़िया एक सीमित क्षेत्र में ही उड़ान भर सकती है, परंतु कविता की उड़ान असीमित है।

(2) 'चिड़िया क्या जाने' में प्रश्नालंकार है तथा इसमें मानवीकरण का भी पुट है।

(3) 'कविता के पंख' में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(4) 'बाहर भीतर इस घर, उस घर' में अनुप्रास अलंकार का का प्रयोग हुआ है। है।

(5) सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ

(6) शब्द-योजना सार्थक व सटीक है।

(7) वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।


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पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।

(ख) कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने-इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

(ग) कविता चिड़िया के बहाने एक उड़ान क्यों है?

(घ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर - (क) कवि- कुँवर नारायण             कविता - कविता के बहाने'


(ख) इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि चिड़िया तो प्रकृति के प्रांगण में ही उड़ान भरती है। उसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं। वह केवल आकाश में ही उड़ सकती है, परंतु वह मानव-मन की सूक्ष्म भावनाओं में प्रवेश नहीं कर पाती। इसलिए वह कविता की उड़ान को नहीं जान सकती।


(ग) जिस प्रकार चिड़िया खुले आकाश में उड़ान भरती है, उसी प्रकार कवि की कल्पना चिड़िया की ऊँची उड़ान को देखकर कल्पना लोक में विचरण करने लगती है। कवि केवल प्राकृतिक सौंदर्य का ही वर्णन नहीं करता, बल्कि वह मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं का वर्णन भी करता है। अतः चिड़िया की उड़ान कविता के लिए प्रेरणा का काम करती है।


(घ) इस पद्यांश में कवि ने चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान की तुलना की है। चिड़िया की उड़ान की अपेक्षा कविता की उड़ान अधिक प्रभावशाली, शक्तिशाली तथा व्यापक है। कंविता की उड़ान का संबंध मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं से भी है।


सप्रसंग व्याख्या

2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने !

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

विना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने?


शब्दार्थ- महकना = सुगंध बिखेरना।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है यह कविता ‘इन दिनों' काव्य संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं । इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है । अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इस पद्य में कवि कविता की तुलना फूल के साथ करता है।


व्याख्या-कवि कहता है कि कविता फूलों को देखकर खिलती है और पुष्पित होती है। फूलों के समान कविता में भी नए-नए रंग भर जाते हैं। कविता का खिलना असीम है, जबकि फूल का खिलना ससीम है। फूल केवल खिलकर अपने चारों ओर सुगंध तथा सुंदरता को बिखेर देता है, परंतु फूल कविता के खिलने को ठीक से समझ नहीं पाता । फूल का क्षेत्र सीमित है। एक समय ऐसा आता है जब फूल मुरझाकर नष्ट हो जाता है। उसके साथ-साथ उसकी सुगंध तथा सुंदरता भी समाप्त हो जाती है, परंतु कविता की सुगंध तथा सुंदरता कभी समाप्त नहीं होती। वह न केवल घर के बाहर तथा भीतर अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरती है, बल्कि वह प्रत्येक घर में अपने भाव-सौंदर्य को बिखेरती रहती है। फूल तो केवल इतना जानता है कि बस सुगंध उत्पन्न करना तथा एक दिन झर जाना। फूल बिना मुरझाए महकने के अर्थ को नहीं जान सकता । कविता हमेशा अपने भावों की सुगंध बिखेरती रहती है उसका भाव शाश्वत होता है तथा वह कभी नष्ट नहीं होता।


विशेष—(1) इस पद्यांश में कवि ने कविता तथा फूल की तुलना बहुत सुंदर ढंग से की है। कविता की तुलना में फूल ससीम है परंतु कविता अनंत और असीम है।

(2) 'कविता का खिलना फूल क्या जाने' - इस पद्य पंक्ति में काकूवक्रोक्ति अलंकार का वर्णन हुआ है।

(3) 'फूल क्या जाने' में प्रश्नालंकार है तथा मानवीकरण अलंकार का पुट भी है।

(4) संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

(5) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है ।

(6) शब्द चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

(7) वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) कविता का खिलना फूल क्या जाने-पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है?

(ख) कविता और फूल के खिलने में क्या अंतर है?

(ग) कविता बिना मुरझाए बाहर भीतर कैसे महकती है?

(घ) इस पद्य का भाव स्पष्ट कीजिए।


उत्तर—(क) कवि फूल की सीमाओं पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि भले ही वह खिलकर चारों ओर सुगंध बिखेरता है, परंतु उसका खिलना सीमित होता है। वह कविता के मर्म को नहीं जान पाता। निश्चय से कविता फूल से अधिक मूल्यवान है। उसकी प्रभावोत्पादकता असीम है।


(ख) फूल खिलकर एक सीमित क्षेत्र में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। परंतु कविता का क्षेत्र असीमित होता है। कविता की कल्पना सर्वत्र पहुँच सकती है। फूल कविता के समान व्यापक नहीं है। इसलिए कहा भी गया है- “जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।”


(ग) कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता और हमेशा अपनी महक को बिखेरता रहता है। कविता बाह्य प्रकृति और आंतरिक प्रकृति दोनों का वर्णन करने में समर्थ है। वह अनंत काल तक अपनी सुगंध को बिखेरती रहती है। कविता का प्रभाव अनंत तथा असीम है।


(घ) इस पद्यांश द्वारा कवि कविता और फूल की तुलना करते हुए कहता है कि फूल एक सीमित दायरे में अपनी सुगंध तया सुंदरता को बिखेरता है। कुछ समय के बाद शीघ्र ही वह नष्ट हो जाता है। परंतु कविता मानव मन के बाहर तथा भीतर दोनों लोकों को सुगंधित करती है। इसलिए फूल की शक्ति ससीम है, परंतु कविता की शक्ति असीम है।


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सप्रसंग व्याख्या

3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर भीतर

यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने ।


शब्दार्थ- सरल हैं ।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'कविता के वहाने' से लिया गया है। यह कविता 'इन दिनों' काव्य संग्रह से ली गई है । इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है । अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इसमें कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता और निष्कलुपता का सजीव वर्णन किया है ।


व्याख्या - कवि का कथन है कि कवि बच्चों की क्रीड़ाओं को देखकर अपनी कविता द्वारा शब्द-क्रीड़ा करता है। वह शब्दों के माध्यम से नए-नए भावों तथा विचारों के खेल खेलता है। जिस प्रकार बच्चे कभी घर में खेलते हैं, कभी बाहर खेलते हैं और अपने पराए का भेदभाव नहीं करते, उसी प्रकार कवि भी कविता के द्वारा सभी के भावों का वर्णन करता है। बच्चों के खेल कवि को भी प्रेरणा देते हैं। खेल-खेल में बच्चे एक-दूसरे को अपना बना लेते हैं और वे एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। कवि भी बच्चों के समान बाहर और भीतर के मनोभावों का वर्णन करता है । वह समान भाव से सभी लोगों की सूक्ष्मभावनाओं का चित्रण करता है। भाव यह है कि जिस प्रकार बच्चे एक-दूसरे को जोड़ते हैं, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता द्वारा जोड़ने का प्रयास करता है।


विशेष –(1) यहाँ कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता तथा निष्कलुषता का उद्घाटन किया है।

(2) कवि यह स्पष्ट करता है कि बच्चे आपस में खेलते हुए अपने पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं ।

(3) संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

(4) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।

(5) शब्द चयन सर्वथा उचित व सटीक है।

(6) वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है तथा मुक्त छंद है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) कवि ने कविता को खेल क्यों कहा है?

(ख) बच्चे खेल-खेल में कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं?

(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में क्या समानता है ?

(घ) इस पद्य से हमें क्या संदेश मिलता है?


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उत्तर - (क) बच्चे मनोरंजन तथा आत्माभिव्यक्ति के लिए आपस में खेलते हैं। खेलों के पीछे उनका कोई गंभीर उद्देश्य नहीं होता, परंतु क्रीड़ाएँ बच्चों को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं। इसी प्रकार कविता की रचना करना भी एक खेल है। कविता के द्वारा कवि न केवल श्रोताओं का मनोरंजन करता है, बल्कि उन्हें आनंदानुभूति भी प्रदान करता है।


(ख) बच्चे खेल-खेल में अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। खेलों द्वारा उनमें आत्मीयता की भावना उत्पन्न होती है। बच्चे खेलों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।


(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही आनंदानुभूति प्रदान करते हैं। दोनों ही समाज को जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं। दूसरा, दोनों से ही मनोरंजन होता है।


(घ) इस पद्यांश से हमें यह संदेश मिलता है कि बच्चों के समान कविता भी हमें आपस में जोड़ती है। कविता अपने-पराए के भेदभाव को भूलकर सबकी अनुभूतियों को व्यक्त करती है । कविता का क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत व व्यापक है। इसका प्रभाव भी शाश्वत और अनंत है ।


2. बात सीधी थी पर

प्रश्न - कुँवर नारायण द्वारा रचित 'बात सीधी थी पर' कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर - प्रस्तुत कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' में संकलित है । इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि हमें काव्य के विषय को सहज तथा सरल भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करना चाहिए। परंतु प्रायः कवि कविता में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए उसे पेचीदा बना देते हैं। इस प्रकार के कवि इस भ्रम के शिकार हो जाते हैं कि इस क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करने से उन्हें अधिकाधिक लोकप्रियता प्राप्त होगी। कुछ क्षणों के लिए ऐसा हो भी जाता है। पाठक अथवा श्रोता भी कवि के भ्रम का शिकार हो जाते हैं, परंतु बाद में कवि द्वारा कही गई बात प्रभावहीन हो जाती है क्योंकि चमत्कार के चक्कर में कवि की भाषा पर पकड़ ढीली पड़ जाती है। इस संदर्भ में कवि उदाहरण भी देता है। वह कहता है कि पेंच को निर्धारित चूड़ियों पर ही कसा जाना चाहिए। यदि चूड़ियाँ समाप्त होने पर पेंच को घूमाएँगे तो चूड़ियाँ मर जाएँगी और उसकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी। भले ही उसे बलपूर्वक ठोक दिया जाए, पर वह पहली जैसी बात नहीं रहती। सहज शब्दावली में सहजता के साथ ही भावों की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सहजता की पकड़ मजबूत और स्थाई होती है। इसमें न अधिक परिश्रम करना पड़ता है और न ही अधिक दवाव डालना पड़ता है। इसलिए कवि को अपनी सहज एवं सीधी बात को सहज भाषा के साथ अभिव्यक्त करना चाहिए।


सप्रसंग व्याख्या

1. बात सीधी थी पर एक बार

भाषा के चक्कर में

ज़रा टेढ़ी फँस गई।

उसे पाने की कोशिश में

भाषा को उलटा पलटा

तोड़ा मरोड़ा

घुमाया फिराया

कि बात या तो बने

या फिर भाषा से बाहर आए-

लेकिन इससे भाषा के साथ साथ

बात और भी पेचीदा होती चली गई।


शब्दार्थचक्कर = प्रभाव दिखाने की कोशिश । टेढ़ा फँसना = बुरी तरह फँसना। पेचीदा = जटिल, उलझी हुई।


प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता 'बात सीधी यी पर' में से अवतरित है। यह कविता 'कुँवर नारायण' द्वारा रचित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। सीधी बात को हम सहज एवं सरल भाषा द्वारा प्रभावशाली बना सकते हैं।


व्याख्या-कवि कहता है कि मैं कविता द्वारा एक सहज, सरल बात कहना चाहता था। एक बार ऐसा करते समय में भाषा के भ्रम का शिकार बन गया। मैंने सोचा कि मैं बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करूँ, परंतु ऐसा करते समय मेरा कथ्य उलझकर रह गया और बात की सरलता और स्पष्टता नष्ट हो गई। सरल-सी बात भी सुलझकर रह गई । तब मैंने एक बड़ी भारी भूल की। मैंने भाषा के शब्दों को काटना-छाँटना तथा तोड़ना-मरोड़ना आरंभ कर दिया। उसे कभी इघर घुमाया, कभी उधर घुमाया। वस्तुतः मैं अपनी मूल बात को सहज तथा सरल रूप से व्यक्त करना चाहता था, परंतु मेरी बात उलझकर रह गई। तब मैंने यह कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या मेरी बात को भाषा के उलट-फेर से स्वतंत्रता मिल जाए। परंतु दोनों काम नहीं हो सके। इस प्रयास में भाषा जटिल से जटिलतर होती चली गई और मेरी मूल बात भी सरलता खोकर जटिल बन गई। भाव यह है कि कविता का कथ्य और माध्यम दोनों उलझकर रह गए।


विशेष—(1) इस पद्य में कवि ने सहज, सरल कथ्य को सहज और सरल माध्यम (भाषा) द्वारा अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया पर बल दिया है। ऐसा करने से अभिव्यक्ति की सरलता का भाव स्वतः प्रकट हो जाता है।

(2) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसे लयात्मक गद्य कहा जा सकता है।

(3) प्रस्तुत पद्य में उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा, घुमाया-फिराया आदि शब्दों का सटीक प्रयोग किया गया है। इन शब्द-युग्मों में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।

(4) 'साथ-साथ' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।

(5) 'भाषा का चक्कर' तथा 'टेढ़ी फंसी' आदि लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है।

(6) ज़रा, पेचीदा आदि उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।

(7) मुक्त छंद है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - (क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।

(ख) 'भाषा के चक्कर' से कवि का क्या अभिप्राय है?

(ग) कवि द्वारा भाषा के तरोड़ने-मरोड़ने का क्या दुष्परिणाम हुआ?

(घ) कवि भाषा के चक्कर में क्यों फँस गया?

(ङ) इस पद्यांश का संदेश क्या है?


उत्तर- (क) कवि-कुँवर नारायण             कविता - बात सीधी थी परं


(ख) जब कवि कविता की भाषा में अलंकार-सौंदर्य, शब्द-शक्तियों आदि को बलपूर्वक हँसने का प्रयास करता है तो भाषा में जटिलता उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप मूल संदेश शब्दों में उलझकर रह जाता है। कवि कथ्य के चारों ओर भाषा का ऐसा जंजाल खड़ा हो जाता है कि सीधी बात भी नहीं कही जा सकती।


(ग) कवि द्वारा भाषा को तरोड़ने-मरोड़ने तथा उलटने-पलटने के फलस्वरूप बात और उलझकर रह गई और कवि-कथ्य जटिल और पेचीदा बन गया।


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(घ) कवि अपनी सीधी बात को प्रभावशाली ढंग से कहना चाहता था। इसलिए उसने बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करने का प्रयास किया, परंतु उसकी बात और उलझकर रह गई।


(ङ) इस पद्य द्वारा कवि यह संदेश देना चाहता है कि कवि को जान-बूझकर भाषा जटिल नहीं बनानी चाहिए, बल्कि सीधी बात सरल शब्दों में व्यक्त करनी चाहिए। भाषा की जटिलता कथ्य को उलझाकर रख देती है और कविता पाठक को आनंदानुभूति नहीं दे पाती।


सप्रसंग व्याख्या

2. सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना

मैं पेंच को खोलने के बजाए

उसे बेतरह कसता चला जा रहा था

क्योंकि इस करतव पर मुझे

साफ़ सुनाई दे रही थी

तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।


शब्दार्थ- कठिनाई= मुश्किल । बेतरह = बुरी तरह । करतब = चमत्कार । तमाशबीन = तमाशा देखने वाले । शाबाशी = प्रशंसा।


प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बात सीधी थी पर' में से अवतरित है। यह कविता 'कुँवर नारायण' द्वारा रचित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। इसमें कवि स्पष्ट करता है कि जटिल भाषा का प्रयोग करने वाला कवि लोगों की वाह-वाही तो लूट लेता है, परंतु वह अपने भाव तथा भाषा को जटिल बना देता है


व्याख्या - कवि कहता है कि मेरी सहज, सरल बात भाषा के चक्कर में फँस गई थी। मैं इस कठिनाई को धैर्यपूर्वक समझ नहीं पाया, बल्कि मैं समस्या के कारण को समझे बिना ही उसे और जटिल बनाता चला गया। जिस प्रकार कोई कारीगर पेंच को खोलने की बजाए उसे बुरी तरह कसता चला जाता है, उसी प्रकार में भी भाषा के साथ जबरदस्ती करने लगा। मेरी इस बेवकूफी पर वाह-वाही करने वाले लोग भी अधिक थे जो मुझे शावाशी दे रहे थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मेरी कविता के भाव और भाषा दोनों जटिल बनते चले गए और कविता का कथ्य उलझकर रह गया।


विशेष—(1) यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कवि का कथ्य जब जटिल भाषा में उलझकर रह जाता है तो वह अपना धैर्य खो बैठता है तब वह जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करने लगता है।

(2) 'तमाशबीन' शब्द में व्यंग्य छिपा हुआ है। प्रायः दर्शक श्रोता अथवा प्रशंसक अकारण प्रशंसा द्वारा कवि को भ्रमित कर देते हैं और वह कविता में जटिल भाषा का प्रयोग करने का आदी बन जाता है।

(3) 'करतब' शब्द में व्यंग्यात्मकता है। जान-बूझकर भाषा को जटिल बनाना करतब ही कहा जाएगा।

(4) पेंच कसने के बिंब द्वारा कवि अपनी बात को स्पष्ट करता है। यहाँ उद्देश्य बिंब के साथ रूपकातिशयोक्ति अलंकार प्रयोग हुआ है।

(5) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।

(6) शब्द-योजना सर्वथा उचित व सटीक है।

(7) मुश्किल, करतब, साफ़, तमाशबीन, शाबाशी आदि उर्दू के शब्दों का सफल प्रयोग है जिससे इस पद्यांश की भाषा लोक प्रचलित हिंदी बन गई है।

(8) पेंच खोलने की बजाए उसे कसने में दृश्य बिंब की योजना सुंदर बन पड़ी है। है

(9) मुक्त छंद का प्रयोग है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न - ( क ) पेंच खोलने का क्या अर्थ है?

(ख) कवि सारी मुश्किल को धैर्य से समझे विना पेंच को खोलने की बजाए कसता क्यों चला गया ?

(ग) तमाशबीन वाह-वाह क्यों कर रहे थे?

(घ) कवि के कार्य को करतब क्यों कहा गया है ?

(ङ) इस पयांश का मुख्य भाव क्या है?


उत्तर- (क) यहाँ पेंच खोलने से अभिप्राय अभिव्यक्ति की जटिलता को और अधिक बढ़ाना है। कवि अपना धैर्य खो रहा था। इस कारण वह मूल समस्या को समझे बिना जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करता चला गया।


(ख) कवि अपने कथ्य को अत्यधिक प्रभावशाली बनाना चाहता था। इसलिए वह धैर्यपूर्वक समस्या को नहीं समझ पाया और कविता के अभिव्यक्ति पक्ष को जटिल बनाता चला गया।


(ग) तमाशबीन कवि की प्रशंसा करके उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। वे अभिव्यक्ति के सौंदर्य को जानते नहीं थे। वे तो केवल कवि की जटिल भाषा से प्रभावित होकर कवि की पीठ ठोंक रहे थे।


(घ) कवि ने सोचे-समझे बिना अपनी बात को उलझाने तथा जटिल बनाने का प्रयास किया। इसलिए कवि के कार्य को करतब कहा गया है।


(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि कवि को धैर्यपूर्वक सरल अभिव्यक्ति का ही प्रयोग करना चाहिए। सरल भाषा में कही गई बात श्रोता की समझ में शीघ्र आ जाती है और वह कवि की अभिव्यंजना शिल्प से प्रभावित भी होता है। परंतु जो कवि सोचे-समझे बिना बात को उलझाकर जटिल बना देते हैं, उनकी कविता वांछित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाती।


सप्रसंग व्याख्या

3. आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था

ज़ोर ज़बरदस्ती से

बात की चूड़ी मर गई

और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

हार कर मैंने उसे कील की तरह

उसी जगह ठोंक दिया

ऊपर से ठीक-ठाक

पर अंदर से

न तो उसमें कसाव था

न ताकत !

बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह

मुझसे खेल रही थी,

मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-

"क्या तुमने भाषा को

सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”


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शब्दार्थ- ज़ोर ज़बरदस्ती = बलपूर्वक | चूड़ी मरना = पेंच कसने के लिए बनाई गई चूड़ी का नष्ट होना ( कथ्य की प्रभावोत्पादकता) | कसाव = कसावट | ताकत = शक्ति | सहूलियत = आसानी, सरलता। बरतना = प्रयोग करना।


प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता 'बात सीधी थी पर' में से अवतरित है। यह कविता 'कुँवर नारायण' द्वारा रचित काव्य संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' में संकलित है। इस पद्यांश के कवि कुँवर नारायण हैं। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।


व्याख्या - कवि स्पष्ट करता है कि यहाँ अन्ततः वही परिणाम निकला जिसका कवि को भय था। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने तथा जटिल बनाने से कविता की भावाभिव्यक्ति का प्रभाव ही नष्ट हो गया। उसकी अभिव्यंजना कुंद हो गई। कवि द्वारा प्रयुक्त जटिल भाषा भावहीन होकर पीड़ा करने लगी अर्थात् कविता का मूल कथ्य तो नष्ट हो गया, केवल भाषा की उछल-कूद ही दिखाई देने लगी । अंत में कवि तंग आ गया। उसने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से बलपूर्वक ठूँस दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऊपर से वह कविता ठीक लग रही थी, परंतु उसका कथ्य पक्ष बड़ा ही कमज़ोर तथा प्रभावहीन बनकर रह गया। कवि के कथन में न कोई प्रभाव था और न ही भावों की गंभीरता थी । कवि की कविता पूर्णतः प्रभावहीन बनकर रह गई थी।

अंत में कविता के कथ्य ने (बात ने) बच्चे की तरह कवि के साथ क्रीड़ा करते हुए उससे कहा कि तुम मुझ पर व्यर्थ में ही मेहनत कर रहे थे और अपनी इस मूर्खता पर पसीना बहा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि तुम्हें आज तक सहज तथा सरल भाषा का प्रयोग करना ही नहीं आया। इससे पता चलता है कि तुम एक अयोग्य और बेकार कवि हो। तुम इस तथ्य को नहीं जान पाए कि सहज तथा सरल भाषा में कही बात ही प्रभावशाली सिद्ध होती है।


विशेष - (1) कवि ने स्वीकार किया है कि जटिल तथा चमत्कारी भाषा का प्रयोग करने से कविता का मूल भाव प्रभावहीन हो जाता है।

(2) पेंच कसने में दृश्य बिंव की योजना सजीव बन पड़ी है। यहीं रूपक्रातिशयोक्ति अलंकार का भी प्रयोग हुआ है।

(3) ‘बात की चूड़ी बनना' में भी रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(4) कील की तरह ठोंकना' से अभिप्राय है-भाषा का बलपूर्वक प्रयोग करना।

(5) प्रस्तुत पद्य में बात का सुंदर और प्रभावशाली मानवीकरण हुआ है।

(6) 'कील की तरह', 'शरारती बच्चे की तरह' दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग है।

(7) ‘पसीना पोंठना’, ‘ज़ोर-जबरदस्ती' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

(8) ‘कवि का पसीना पौंछना' में सुंदर बिंब योजना है। यह पद परिश्रम की व्यर्थता को सिद्ध करता है।

(9) इसमें कवि ने सहज, सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। इसमें आखिर, जोर-जबरदस्ती, ताकत, पसीना, सहूलियत आदि उर्दू शब्दों का बड़ा ही सुंदर मिश्रण किया गया है।

(10) शब्द-योजना बड़ी सार्थक व सटीक है।

(11) मुक्त छंद तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग है।


पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न- (क) कवि को किस बात का डर था?

(ख) कवि के सामने कथ्य तथा माध्यम की क्या समस्या थी?

(ग) क्या कवि इस समस्या का हल निकात सका?

(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से क्या कहा?

(ङ) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।


उत्तर—(क) कवि को इस बात का डर था कि जडित भाषा का प्रयोग करने से कविता का मुख्य भाव प्रभावहीन तथा अस्पष्ट हो जाएगा और अंत में ऐसा ही हुआ।


(ख) कवि अपने कथ्य को प्रभावशाली माध्यम के द्वारा व्यक्त करना चाहता था। परंतु कवि इस सच्चाई से अनभिज्ञ था कि सहज तथा बोधगम्य भाषा में कही गई बात ही अधिक प्रभावशाली और गंभीर होती है।


(ग) कवि इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण कवि की बात उलझकर रह गई। अंततः कवि ने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से ठूँस दिया।


(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से कहा कि तुन व्यर्थ में ही परिश्रम कर रहे हो और अपनी बेवकूफी की मेहनत पर पसीना बहा रहे हो। तुम आज तक समझ नहीं पाए कि कविता में हमेशा सहज, सरत, बोधगम्य भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।


(ङ) इस पद्यांश में कवि स्वीकार करता है कि वह अपने कथ्य को सहज, तरत भाषा के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण उसकी बात उलझकर रह गई और प्रभावहीन हो गई।


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