Dopahar ka Bhojan Class 11 Question Answer | Class 11th Hindi Chapter 2 Dopahar ka Bhojan Question Answer | Class 11th Hindi Dopahar ka Bhojan Question Answer | दोपहर का भोजन पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11

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Dopahar ka Bhojan Class 11 Question Answer | Class 11th Hindi Chapter 2 Dopahar ka Bhojan Question Answer | Class 11th Hindi Dopahar ka Bhojan Question Answer | दोपहर का भोजन पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11

 


प्रश्न 1. सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला ?

उत्तर : रामचंद्र ने जब सिद्धेश्वरी से मोहन के बारे में पूछा तो सिद्धेश्वरी को पता नहीं था कि मोहन कहाँ है। फिर भी वह रामचंद्र से मोहन के बारे में झूठ बोलते हुए कहती है कि मोहन किसी लड़के के घर पढ़ने गया है, आता ही होगा। उसने रामचंद्र को यह भी कहा कि उसका दिमाग बहुत तेज़ है और उसका मन सदा पढ़ाई में लगा रहता है। वह हमेशा अपनी पढ़ाई की ही बातें करता रहता है।

 

प्रश्न 2. कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर : सिद्धेश्वरी ‘दोपहर का भोजन’ कहानी का सबसे जीवंत पात्र है। लेखक ने अभावग्रस्त सिद्धेश्वरी की दशा का यथार्थ चित्रण किया है। उसके पास आटा केवल इतना था कि उससे सात रोटियाँ बन पाई थीं। दो-दो रोटियाँ उसने मुंशी जी, रामचंद्र और मोहन को दे दी थीं। एक मोटी, भद्दी और जली हुई रोटी उसके लिए शेष रह गई थी। पानीवाली दाल का भी आधा कटोरा और थोड़ी-सी चने की तरकारी उसके लिए बची थी। जैसे ही वह खाना खाने लगी उसकी नज़र सोए हुए प्रमोद पर जा पड़ी। उसने रोटी का आधा हिस्सा प्रमोद के लिए रख दिया और आधी रोटी स्वयं खाने ही लगी थी कि उसकी भूख का दर्द उसकी आँखों से बह निकला फिर भी वह अपने परिवार को भोजन कराती है तथा सबको एकजुट रखने के प्रयास करती है जो उसके चरित्र की दृढ़ता का ही परिणाम है। वह किसी के सामने अपनी व्यथा व्यक्त नहीं करती है।


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प्रश्न 3. कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।

उत्तर : ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में-लेखक ने निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक विपन्नता का सजीव चित्रण किया गया है। परिवार का मुखिया बेरोज़गार है फिर भी उसकी पत्नी खींचतान करके घर का खर्चा चला रही है परंतु खाना खाने के बाद मुंशी जी औंधे मुँह घोड़े बेचकर ऐसे सो रहे थे जैसे उन्हें काम की तलाश में कहीं जाना ही नहीं है। अभावों में जीने के कारण सिद्धेश्वरी चाहकर भी किसी से खुलकर नहीं बोल पाती। मुंशी जी चुपचाप दुबके हुए खाना खाते हैं। रामचंद्र बाहर से आते ही धम्म-से चौकी पर बैठकर बेजान-सा वहीं लेट जाता है। जब वह खाना खाने बैठता है तो खाने की ओर दार्शनिक की तरह देखता है। इन सबसे इस परिवार की घोर विपन्नता का ज्ञान होता है जो इस परिवार की ही नहीं इन जैसे निम्न मध्यमवर्गीय जीवन जीनेवाले सभी परिवारों की त्रासदी है।

 

प्रश्न 4. “सिद्धेश्वरी का एक दूसरे सदस्य के विषय में इूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था” -इस संबंध में अपने विचार रखें।

उत्तर : सिद्धेश्वरी जानती है कि परिवार को जोड़ने के लिए उसे परिवार के सभी सदस्यों के बीच स्नेह संबंध बनाकर रखने हैं, इसलिए वह दोपहर का भोजन खिलाते समय मुंशी जी को अपने बड़े बेटे रामचंद्र द्वारा उनकी प्रशंसा करने तथा उसकी नौकरी के शीं्र लगने की बात बताती है तथा मँझले बेटे मोइन को उसके बड़े भाई द्वारा उसकी प्रशंसा करने की बात कहकर सबके मन में एक-दूसरे के प्रति स्नेह उत्पन्न कर उन्हें एक जुट रखने का प्रयास करती है। इसके लिए वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकती है।

 

प्रश्न 5. ‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : अमरकांत की कहानियाँ भारतीय जीवन के अंतर्विरोधों का सजीव चित्रण करती हैं। इसमें मुख्य रूप से कस्बाई मध्यवर्गीय तथा निम्नवर्गीय परिवारों की विभिन्न समस्याओं का यथार्थ अंकन प्राप्त होता है। ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में एक अभावग्रस्त परिवार की भूख और विवशता का ऐसा चित्रण किया गया है जिसमें परिवार के सभी सदस्य घर के अभाव से परिचित हैं इसलिए एक-आध रोटी खाकर भूखे पेट ही उठ जाते हैं। बाप-बेटा काम की तलाश में दर-दर भटक रहे है। खाने के लिए कुछ न होते हुए भी सिद्धेश्वरी परिवार को जोड़े हुए है। अमरकांत की अधिकांश कहानियाँ बोलचाल की सहज भाषा में लिखी गई हैं जिनमें कहीं-कहीं तत्समप्रधान शब्दावली के अतिरिक्त अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी तथा देशज शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। जैसे ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में- ‘वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ गई।’ …… ‘बाहर की गली से गुजरते हुए, खड़-खड़ैया इक्के की आवाज़ आ रही थी और खटोले पर सोए, बालक की साँस का खर-खर शब्द सुनाई दे रहा था।’ ….. ‘आधा मिनट सुन्न खड़ी रही’ ….. ‘मोहन कटोरे को मुँह में लगाकर सडड़-सड़ पी रहा था।’ …… ‘तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई।’ इनकी कहानियों का शिल्प-विधान वर्णनात्मक है जो पात्रों के संवादों के माध्यम से गति प्राप्त करता है। जैसे ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में जब रामचंद्र की थाली में रोटी का केवल एक टुकड़ा शेष रह जाता है, तो सिद्धेश्वरी ने उठाने का उपक्रम करते हुए प्रश्न किया, ‘एक रोटी और लाती हूँ?’

रामचंद्र हाथ से मना करते हुए हड़बड़ाकर बोल पड़ा, ‘नही, नहीं जजरा भी नही। मेरा पेट पहले ही भर चुका है। मैं तो यह भी छोड़ने वाला हैं। बस, अब नहीं।’ सिद्धेश्वरी ने ज़िद्द की ‘अच्छा, आधी ही सही।’

रामचंड्र बिगड़ उठा- ‘अधिक सिलाकर बीमार कर डालने की तबीयत है क्या ?’ इस प्रकार के संवादों से पात्रों का चरित्र उद्घाटित होता है। इसी कहानी के अंत में लेखक का यह कथन ‘सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टैंगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।’ समस्त वातावरण को सजीवता प्रदान करते हुए निम्न मध्यवर्गीय परिवार की दयनीय दशा का शब्द चित्र ही उपस्थित कर देता है। इस प्रकार के बिंबविधान में लेखक अत्यंत निपुण है।


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प्रश्न 6. रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए छह बहाने करते हैं उसमें कैसी विवशता है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : रामचंद्र की थाली में जब रोटी का केवल एक टुकड़ा शेष रह गया तो सिद्धेश्वरी ने उठने का उपक्रम करते हुए प्रश्न किया, “एक रोटी और लाती हू ?

-रामचंद्र हाथ से मना करते हुए बड़बड़ाकर बोल पड़ा, “नहीं-नहीं ज़रा भी नहीं। मेरा पेट पहले ही भर चुका है। मैं तो यह भी छोड़ने वाला हैं। बस, अब नहीं।”

-सिद्धेश्वरी ने जिदद्द की, “अच्छा, आधी ही सही।”

-रामचंद्र बिगड़ उठा, “अधिक खिलाकर बीमार कर डालने की तबीयत है क्या ? तुम लोग ज़ा भी नहीं सोचती हो। बस, अपनी ज्रिद्द। भूख रहती तो क्या ले नहीं लेता ?” इन संवादों में माँ और बेटे को पता है कि किसी के हिस्से में दो से अधिक चपातियाँ नहीं हैं। माँ सिद्धेश्वरी बार-बार रोटी देने का आग्रह करके शिष्टाचार निभा रही है परंतु आधा-पेट खाकर उठ जानेवाला रामचंद्र स्वाभाविक रूप से इस नाटक से क्रुद्ध हो जाता है। वह शांत होकर बहाना बनाता है कि अधिक खाने से बीमार पड़ जाएगा। दोनों एक-दूसरे से सच्चाई छुपा रहे हैं कि घर में सबके लिए सिर्फ दो-दो रोटियाँ ही बनती हैं। इसी प्रकार से मोहन को जब सिद्धेश्वरी और चपाती देना चाहती है तो वह भी एक कटोरी पानीवाली दाल पीकर उठ जाता है।

इसी प्रकार से मुंशी जी को खाना खिलाते हुए-सिद्धेश्वरी ने पूछा, “बड़का की कसम, एक रोटी देती हूँ अभी बहुत-सी हैं। मुंशी ने पत्नी की ओर अपराधी के समान तथा रसोई की ओर कनखी से देखा, तत्पश्चात किसी छँटे उस्ताद की भाँति बोले, “रोटी ? रहने दो, पेट काफ़ी भर चुका है। अन्न और नमकीन चीज्रों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ में कसम धरा दी। खैर, कसम रखने के लिए ले रहा हैं। गुड़ होगा क्या ?”

सिद्धेश्वरी ने बताया कि हैंडिया में थोड़ा-सा गुड़ है।

मुंशी जी ने उत्साह के साथ कहा, तो थोड़ा गुड़ का ठंडा रस बनाओ, पीकँगा। तुम्हारी कसम भी रह जाएगी, जायका भी बदल जाएगा, साथ-ही-साथ हाजमा भी दुखस्त होगा। हाँ, खाते-खाते नाक में दम आ गया है। ‘ै यह कहकर ठहाका मारकर हैस पड़े। मुंशी जी की हैंसी में भी एक दर्द का अहसास है। यह ठहाका उनकी विपन्नता पर है। वे पेट भरकर खा भी नहीं सकते। उन्हें बहाना बनाकर गुड़ का ठंडा रस माँगना पड़ता है।

 

प्रश्न 7. मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं ? लिखिए।

उत्तर : मुंशी जी जब खाना खाने आते हैं तो पहले तो उनमें बच्चों के संबंध में बातें होती हैं परंतु डेढ़ रोटी खाने के बाद चुप्पी छा जाती है। मुंशी जी चुपचाप शेष आधी रोटी खा रहे थे। सिद्धेश्वरी को यह खामोशी बहुत अखर रही थी। वह खूब खुलकर बातें करना चाहती थी। इस मौन को तोड़ने के लिए वह वैसे ही कह उठती है कि शायद अब वर्षा नहीं होगी तो मुंशी जी कोई विशेष प्रतिक्रिया व्यक्त न करके वहाँ मक्खियों के अधिक होने की बात कहते हैं। इसके बाद सिद्धेश्वरी फूफाजी की बीमारी के बारे में पूछती है तो मुंशी जी गंगाशरण बायू की लड़की की एम०ए० पास लड़के से शादी तय होने की सूचना देते हैं। इनके यह व्यर्थ के वार्तालाप यही सिद्ध करते हैं कि वे अपने घर की दयनीय दशा को छिपाने के लिए कुछ भी बातचीत करके भुला देना चाहते हैं। वे कुछ पल अपनी विपन्नता को भूल जाना चाहते हैं।


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प्रश्न 8. ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्ण तथा सार्थक है ?

उत्तर : ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में लेखक ने एक ऐसे निम्न मध्यवर्गीय परिवार की विपन्नता का चित्रण किया है ‘जिसमें गृहस्वामिनी सात रोटी, पतली दाल और चने की तरकारी से परिवार के पाँच सदस्यों को दोपहर का भोजन करा देती है। वह स्वयं आधी रोटी खाकर ही गुजारा करती है। वह खाना बनाकर सबके आने की प्रतीक्षा करती है और सब को खिलाकर ही स्वयं आधी रोटी खाती है। इस प्रकार सारी कहानी दोपहर के भोजन को लेकर ही रची गई है, अत: इस कहानी का शीर्षक ‘दोपहर का भोजन’ सर्वथा उचित है।

 

प्रश्न 9. आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों के उत्तर दीजिए।

उत्तर : सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी इसलिए हैं क्योंक वह इन झूठों के द्वारा ही घर के सभी सदस्यों के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेमभाव उत्पन्न करती है। मुंशी जी रामचंद्र के मुँह से अपनी प्रशंसा तथा उसकी नौकरी लगने की बात सुनकर निश्चिंत हैं। मोहन अपने भाई से अपनी प्रशंसा सुनकर उसके प्रति आदर भाव रख रहा है। सिद्धेश्वरी सबको एक-दूसरे की बात स्वयं ही बनाकर कह रही है, परंतु इससे परिवार जुड़ रहा है। अत: सिद्धेश्वरी के सभी झूठ सौ सत्यों से भी भारी हैं।

 

प्रश्न 10. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।

(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।

(ग) मुंशी जी ने चने के दाने की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों।

उत्तर : (क) सिद्धेश्वरी सुबह से परिवार वालों के लिए खाना बनाने में जुटी हुई थी। दोपहर तक बह खाना बनाकर उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। वह स्वयं भी भूखी थी। इसी सोच में वह डूबी हुई थी कि अचानक उसे प्यास लगी। भूख के मारे वह लड़खड़ाती-सी उठकर गगरे से लोटा भरकर पानी पी लेती है।

 

(ख) सिद्धेश्वरी मोहन को झूठे ही सांत्वना देते हुए कहती है कि उसका बड़ा भाई उसकी प्रशंसा कर रहा था कि वह पढ़नेलिखने में बहुत ही होशियार है। मोहन जानता था कि यह शब्द उसके भाई ने नहीं कहे होंगे। माँ ही अपने आप बना कर कह रही है। अपने इसी कथन पर स्वयं को लक्जित अनुभव करती हुई सिद्धेश्वरी मोहन की ओर ऐसे देखती है, जैसे कि उसने कोई चोरी की हो।

 

(ग) सिद्धेश्वरी वातावरण को सहज बनाने के लिए मुंशी जी से कोई न कोई बात करती है। वह उनसे फूफा जी की तबीयत के बारे में पूछती हैं, परंतु मुंशी जी अभी भी अपनी भूख मिटाने में लगे थे इसलिए पत्नी के प्रश्न पर ध्यान न देकर थाली में बचे हुए चने के दानों की ओर देखते हैं।


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