Aatmkathya Class 10 Explanation | Class 10 Hindi Aatmkathya | आत्मकथ्य Class 10 Hindi
कविता का सार
प्रश्न- 'आत्मकथ्य' शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर–‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है । यह सन् 1932 में 'हंस' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया । उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।
इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है । इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।
कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं । उसके जीवन में अधूरे थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँभी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके । अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने । वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है
पद्यशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी ।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन - इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास.
तब भी कहते हो - कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती ।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे - यह गागर रीती ।
शब्दार्थ- मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा) । घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार | असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य - मलिन = खराब ढंग से निंदा करना । उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली ।
प्रश्न - (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
(ग) प्रस्तुत पयांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) 'मधुप' किसे कहा है और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
(ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है ?
(च) 'अनंत-नीलिमा' और 'असंख्य जीवन इतिहास' से क्या तात्पर्य है ?
(छ) कवि अपनी बीती दुर्बतताओं को क्यों नहीं बताना चाहता है ?
(ज) कवि की कहानी जानकर उनको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को क्या लगा ?
(झ) 'गागर रीती' से क्या अभिप्राय है ?,
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य / काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (क) कवि का नाम- जयशंकर प्रसाद । कविता का नाम-आत्मकथ्य ।
(ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता 'आत्मकथ्य' से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें।
(ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूँ। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।
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(घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। 'मधुप' का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।
(ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं।
(च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। 'असंख्य जीवन इतिहास' 'मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं।
(छ) कवि जानता है कि सच्ची आत्मकथा लेखन अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता।
(ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो।
(झ) 'गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः 'गागर रीति' का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है।
(ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओरत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है।
(ट) इन पंक्तियों में कवि ने अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अपने मन के भावों को अभिव्यंजित किया है।
• लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
• तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
• अनुप्रास, प्रश्न और रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
• करुण रस है।
[2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले -
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।
शब्दार्थ- विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना धोखा। उज्ज्वल =पवित्र, सुख से भरी हुई।
प्रश्न - (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ङ) कवि किसका रस लेने की बात कहता है?
(च) कवि ने 'खाली करने वाले' किसे और क्यों कहा है ?
(छ) कवि ने किस बात को विडंबना कहा है और क्यों ?
(ज) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता ?
(झ) कवि किन उज्ज्वल गाथाओं की बात कहता है ?
(ञ) खिलखिलाकर हँसने वाली बातों का क्या अभिप्राय है ?
(ट) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद में प्रयुक्त भाषा की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- (क) कवि का नाम- जयशंकर प्रसाद । कविता का नाम-आत्मकथ्य ।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'आत्मकथ्य' नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है।
(ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था।
कवि पुनः हता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए।
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(घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता।
(ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने आपको उन्नत बनाना चाहते हैं।
(च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही 'खाली करने वाले' बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कविके निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवनको खुशियों से वंचित कर दिया हो।
(छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता।
(ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।
(झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं।
(ञ) खिल-खिलाकर कर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है- प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने जीवन की उन बातों को अत्यंत विनम्रता एवं यथार्थपूर्वक व्यक्त किया है जो उनके व्यक्तिगत प्रेम व सुख से संबंधित थीं। साथ ही उन लोगों के विषय में भी लिखा है जो उनसे आत्मकथा लिखवाना चाहते थे।
• कवि ने अपनी सरलता का मानवीकरण किया है जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया।
• तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
• संकेत-शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
• स्वर मैत्री के कारण भाषा लयात्मक बनी हुई है।
(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है।
[3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
शब्दार्थ- स्वप्न = सपना । आलिंगन में = बाँहों में मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर अरुण कपोल = मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन । उषा = प्रातः । निज = अपना। मधुमाया = मधुर मोहकता पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक यात्री | पंथा = रास्ता । कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन ।
प्रश्न - (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए ।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था ?
(ङ) कौन और कैसे भाग गया ?
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे ?
(छ) कवि ने किसको पाथेय माना है ?
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का क्या तात्पर्य है ?
(झ) कवि ने भोर को कैसा बताया है ?
(ञ) कंथा' से क्या अभिप्राय है ?
(ट) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(ठ) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- (क) कवि का नाम- जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य ।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग2 में संकलित 'आत्मकथ्य' नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था।
(ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो ? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।
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(घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका।
(ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन- बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं।
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी।
(छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए।
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था।
(झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया ।
(ञ) 'कंथा' का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।
(ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है।
(ठ) ●कवि ने अपने जीवन के गोपनीय सुखद क्षणों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
● संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
● भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
● प्रतीकों एवं बिंबों का प्रयोग किया गया है।
● अनुप्रास, मानवीकरण, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
● वियोग श्रृंगार है।
[4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा ?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा ।
शब्दार्थ- कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा
जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया ।
प्रश्न – (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है ?
(ङ) कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं ?
(च) कवि को क्या अच्छा लगता था ?
(छ) कवि ने अपनी जीवन कहानी को कैसा बताया है ?
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा किस स्थिति में थी ?
(झ) इस कवितांश में निहित भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।
(ञ) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- (क) कवि का नाम- जयशंकर प्रसाद । कविता का नाम - आत्मकथ्य।
(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' भाग 2 में संकलित 'आत्मकथ्य' नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता।
(ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि नैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है।
(घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है ।
(ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य - सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं ।
(च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्मकथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है।
(छ) कवि ने अपने जीवन कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है।
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुप्त ( सोई हुई ) रूप में थी।
(झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा ही व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।
(ञ) ● कवि ने अपने मन के गहन भावों को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है।
● कवि ने तत्सम प्रधान शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया है।
● शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।
● भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
● स्वर मैत्री के सार्थक एवं सफल प्रयोग के कारण लयात्मकता बनी हुई है।
● प्रश्न, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
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