Jaag Tujhko Dur Jana hai Class 11 Question Answer | Class 11 Hindi Jaag Tujhko Dur Jana Question Answer | जाग तुझको दूर जाना पाठ के प्रश्न उत्तर
1. जाग तुझको दूर जाना
प्रश्न 1. ‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता में कवयित्री मानव को किन विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है ?
उत्तर : इस कविता में कवयित्री मानव को आँधी, तूफ़ान, भूकंप की चिंता न करते हुए सांसारिक माया-मोह के बंधनों को त्यागकर, समस्त सुखों, भोग-विलासों को छोड़कर, समस्त कष्टों को भूलकर और कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रही हैं। वे उसे आलस्य त्याग कर जाग उठने के लिए कहती हैं।
प्रश्न 2. ‘मोम के बंधन’ और ‘ तितलियों के पर’ का प्रयोग कवयित्री ने किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर : ‘मोम के बंधन’ कथन में कवयित्री का आशय है कि हे मनुष्य ! तेरी मंज़ल अभी बहुत दूर है अर्थात स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए अनेक संघर्ष अभी बाकी हैं। तुझे अभी बहुत सफ़र तय करना है, इसलिए स्वतंत्रता-प्राप्ति की यात्रा पर जब तू चल पड़ेगा फिर तुझे ये मानवीय रिश्ते और आपसी संबंध नहीं रोक सकते अर्थात आज़ादी की लड़ाई में तुम्हें अपनों से मुँह मोड़ना होगा। ‘तितलियों के पर’ कथन में भी कवयित्री कहती है कि हे मानव । स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए तेरी संघर्षपूर्ण यात्रा अभी बाकी है, तेरी मंज़िल अभी दूर है, इसलिए जब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो जाती तब तक तुम्हें ‘तितलियों के पर’ अर्थात ऐश्वर्यपूर्ण रंगीन जीवन से नाता तोड़ना होगा अर्थात खुशी और वैभवपूर्ण ज़िंदगी से दूर रहना होगा। इस प्रकार ‘मोम के बंधन’ का अर्थ रिश्ते-नाते अथवा आपसी सामाजिक संबंधों से हैं और ‘तितलियों के पर’ कथन में ऐश्वर्यपूर्ण ज़िंदगी की रंगीनियों (सुख-सुविधाएँ) का अर्थ निहित है।
प्रश्न 3. कवयित्री किस मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव को जागृति का संदेश दे रही है ?
उत्तर : कवयित्री मानव का सांसारिक माया-मोह, सुख-सुविधाओं, भोग-विलास, नाते-रिश्ते आदि के बंधनों से मुक्त होकर निरंतर अपने लक्य की ओर बढ़ते रहने के लिए जागृति का संदेश दे रही है।
प्रश्न 4. कविता में ‘अमरता-सुत’ का संबोधन किसके लिए और क्यों आया है ?
उत्तर : कविता में ‘अमरता-सुत’ संबोधन मानव के लिए आया है क्योंकि उसे अमर रहकर संसार की वेदनाओं और पीड़ाओं को समाप्त है। इसलिए कवयित्री उसे मृत्यु को हुदय में नहीं बसाने के लिए कहती है तथा अमरता का पुत्र बनकर निंरतर समस्त कठिनाइयों से जूझते हुए आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है।
प्रश्न 5. ‘जाग तुझको दूर जाना’ स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित एक जागरण गीत है। इस कथन के आधार पर कविता की मूल संबेदना को लिखिए।
उत्तर : महादेवी द्वारा रचित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ में स्वतंत्रता आंदोलन की परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। इस कविता में भारतीयों का आह्वान किया गया और कहा है कि वे स्वतंत्रता-प्राप्ति के संघर्ष में प्राणों की चिंता न करें। संसार के मोह-माया के बंधन तुम्हें रोक नहीं पाएँगे। तुम अपने कर्तव्य का निर्वाह सदैव सच्चाई के साथ करो। महादेवी वर्मा की देश के प्रति गहरी संवेदनशीलता कवि को अत्यंत भावुक बना देती है। वे कहती हैं कि प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति में अगर उन्हें आँधी-तूफ़ान का भी सामना करना पड़े तो वे नहीं घबराएँ क्योंकि उन्हें ‘अमरता का सुत’ बनना है। कवयित्री मनुष्य को सावधान भी करती है कि वह संसार के मोह-माया के बंधनों में न पड़कर विजय प्राप्त करे, इसलिए उसे रुकना नहीं है, निरंतर चलते जाना है क्योंकि उसकी मंजिल अभी दूर है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-साँदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) विश्व का क्रंदन ……….. अपने लिए कारा बनाना।
(ख) कह न ठंडी साँस ………… सजेगा आज पानी।
(ग) है तुझे अंगार-शय्या ………… कलियाँ बिछाना।
उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्ति में महादेवी वर्मा मानव का आह्वान करते हुए कहती है कि हे मानब! संपूर्ण संसार पीड़ाओं और वेदनाओं से ग्रस्त होकर रो रहा है। जब चारों ओर से दुखों का रुदन सुनाई पड़ेगा क्या तू जीवन की मौज-मस्ती में पड़कर भँवरों की मधुर गुंजार में कहीं खो जाएगा। प्रश्न यह भी है कि फूल्लों पर पड़े हुए ओस के कण क्या तुम्हें डूबो देंगे ? अर्थात् तू भावुकता के कारण संसार की पीड़ाओं से मुँह मोड़ लेगा ? हे मानव! तू अपने सांसारिक बंधनों के कारण अपने जीवन को ही अपने लिए कारागार मत बना लेना अर्थात मोह-माया में पड़कर सांसारिक दुखों को मत भूल जाना। प्रश्न तथा रूपक अलंकार है। चित्रात्मकता, गेयता तथा उद्बोधनात्मकता विद्यमान है। भाषा तत्सम प्रधान एवं भावपूर्ण है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री महादेवी वर्मा मानव को प्रेरित करते हुए कहती है कि हे मनुष्य । जब तेरे हृदय में आग धधक रही होगी तभी तेरी आँखों में आँसू आएँगे अर्थात तू संसार की पीड़ाओं के कारण अवश्य रोएगा। अगर जीवन संघर्ष में तेरी ह्वार भी हो गई तो उसे विजय मानना क्योंकि दीपक की लौ ही अमर होती है और उसपर मँडराने वाला पतंगा उस लौ में जलकर राख हो जाता है अर्थात् पतंगे की भौँति बंधनों में पड़कर तू अपने जीवन को समाप्त मत करना। तुझे अंगारों की शैय्या पर दूसरों के लिए मृदुल कलियाँ बिछानी होंगी अर्थात स्वयं जलकर दूसरों के दुख खत्म करने होंगे। विरोधाभास अलंकार है। भाषा तत्सम-प्रधान है। लार्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता विद्यमान है। ‘ठंडी साँस लेना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। गेयता का गुण है। उद्बोधनात्मक शैली है।
(ग) कवयित्री मानव को निरंतर संघर्षरत रहने तथा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हुए कहती है कि उसे सदा अंगारों की शय्या अथवा कठिनाइयों से भरे मार्ग पर चलना है। उसे स्वयं कष्ट सहन कर दूसरों को सुख प्रदान करना है। वह मानव को परमार्थ के लिए प्रेरित कर रही है। भाषा तत्सम-प्रधान, प्रतीकात्मक तथा लाक्षणिक है। रूपक अलंकार है। गेयता का गुण विद्यमान है। उद्बोधनात्मक शैली है।
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प्रश्न 7. कवयित्री ने स्वाधीनता के मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों को इंगित कर मनुष्य के भीतर किन गुणों का विस्तार करना चाहा है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवयित्री ने इस कविता में मनुष्य को अपने भीतर निम्नलिखित गुणों का विस्तार करने की प्रेरणा दी है –
(i) ‘चिह्न अपने छोड़ आना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने मनुष्य को कहा है कि मंज़िल प्राप्त करने में तुम्हें अगर प्राण कुर्बान भी करने पड़ें तो तू मत घबराना अपनी कुर्बानी देकर आनेवाली पीढ़ियों के लिए अपने पैरों के निशान छोड़ जाना ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ तुम्हें अपना प्रेरणा स्रोत बना सकें।
(ii) ‘अपने लिए कारा बनाना’ पंक्ति में कवयित्री ने मनुष्य के गुणों का वर्णन करते हुए कहा है कि उसे संसारिक मोह-माया और बंधनों रूपी जीवनकारा में न बैधना चाहिए अर्थात मोह-माया और संसारिक बंधनों का त्यागकर अपनी मंज्जिल प्राप्त करनी चाहिए।
(iii) ‘मृत्यु को डर में बसाना’ पंक्ति के माध्यम से महादेवी वर्मा मनुष्य को कहना चाहती है कि वह मृत्यु से न डरे बलिक अगर मंज़िल प्राप्त करते समय उसे अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े वह न घबराए।
(iv) ‘मृदुल कलियाँ बिछाना’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने कहा है कि हे मनुष्य । तुझे जीवन-संघर्ष में अनेक कठिनाइयों से गुज़रना पड़ेगा। तुम्हें आनेवाली पीढ़ियों को सुखद बनाने के लिए उनकी अंगार-शख्या पर मृदुल कलियों को बिछाना होगा अर्थात दूसरों के लिए रास्ता आसान बनाना होगा।
2. सब आँखों के आँसू उजले
प्रश्न 8. महादेवी वर्मा ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले ‘ विशेषण का प्रयोग किस संदर्भ में किया है और क्यों ?
उत्तर : कवयित्री ने ‘आँसू’ के लिए ‘उजले’ विशेषण का प्रयोग इसलिए किया है क्योंक वे मन की सत्य भावनाओं के प्रतीक हैं। अत्यधिक दुख होने पर अथवा बहुत अधिक सुख मिलने पर ये स्वयं ही मनुष्य की आँखों से छलछला आते हैं।
प्रश्न 9. सपनों को सत्य रूप में छालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण स्थितियों का सामना करने को कहा है ?
उत्तर : कवयित्री का मानना है कि सपनों को सत्य रूप में ढालने के लिए मनुष्य को जीवन में आनेवाली कठिनाइयों, सुख-दुखों आदि का साहसपूर्वक सामना करना चाहिए ताकि किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 10. ‘नीलम मरकत के संपुट हो, जिनमें बनता जीवन-मोती ‘ पंक्ति में ‘नीलम मरकत’ और ‘जीवन-मोती’ के अर्थ को कविता के संद्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : ‘नीलम मरकत’ से कवयित्री का आशय जीवन की कठोर सच्चाइयों से है जिनका साहसपूर्वक सामना करने से ही मनुष्य के जीवन रूपी मोती का निमाण होता है।
‘जीवन-मोती’ का अर्थ मनुष्य का सत्य पर आधारित जीवन है।
प्रश्न 11. प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सब ऑँखों के आसू उजले’ नामक कविता में कवयित्री ने प्रकृति के उपादानों के माध्यम से स्वप्न बुने है और इन स्वप्नों में सत्य को उद्घाटित किया है। फूलों में मकरंद भरना, सूर्य के प्रकाश से संसार को आलोकिक करना, झरने का बहना, दीपक का जलकर सृष्टि को प्रकाशवान करना तथा फूलों का सुगंध बिखेरकर संसार को सुगंध से भर देना प्रकृति के स्वप्न हैं जिनमें सत्य निहित होता है। मृत्यु के बाद पुनर्जीवन प्राप्त करना स्वप्न को साकार करना है। कविता के अंत में कवयित्री भी कामना करती है कि हे प्रभु ! संसार के सुख-दुख को भोगकर अब मेरे प्राण मुझे छोड़कर जा रहे हैं मेरा यह स्वप्न है कि तू इन्हें नवजीवन दे दो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस कविता में ‘स्वप्न’ और ‘सत्य’ को संपूर्णता के साथ चित्रित किया गया है।
प्रश्न 12. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) आलोक लुटाता वह ………… कब फूल जला?
(ख) नभ तारक-सा ………….. हीरक पिघला ?
उत्तर : (क) कवयित्री का मानना है कि परमात्मा ही इस संसार के प्राणियों को सुख-दुख देता है। कभी वह संसार को सूर्य के प्रकाश से तो कभी फूलों की सुगंध से भर देता है। दोनों ही संसार में आनंद बिखेरते हैं परंतु ये सब कब और कैसे होगा यह उस परमात्मा पर ही निर्भर करता है।
(ख) कवयित्री कहती है कि सूर्य के अस्त होते ही वातावरण अंधकारमय हो जाता है फ्लस्वरूप दिन का सूर्य रूपी सत्य रात को चाँद-सितारे बनकर आकाश को चूमता प्रतीत होता है। यही सत्य दिन की गरमी को खत्म कर ठंडक रूपी मधुर रस में परिवर्तित कर देता है। चाँद-सितारे वातावरण को शीतलता प्रदान करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो केशर किरणों के समान झूम रहे हों। स्वयं को अमूल्य बनाने के लिए स्वप्न कब शीशे के समान टूटकर स्वयं को कब हीरा बना लेते हैं यह जीवन की सच्चाई केवल परमात्मा ही जानता है। अर्थात् जीवन के स्वप्न को सत्य में परिवर्तित केवल परमात्मा ही कर सकता है।
प्रश्न 13. काव्य-सॉंदर्य स्पष्ट कीजिए :
संसृति के प्रति पग में मेरी. एकाकी प्राण चला।
उत्तर : इन पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे परमात्मा ! मेरा जीवन अब अंतिम चरण में है अर्थांत मेंरे शरीर से प्राण निकलनेवाले हैं अब तुम मेरे जीवन को नवजीवन में परिवर्तित कर दो। मेरे प्रतिपल परिवर्तित होते जीवन में तुमने कितनी साधनाएँ की होंगी उन सभी को गिन लीजिए। इस दुखी संसार में सुख-दुख एकाकार होकर मेरे प्राण अकेले चले जा रहे हैं अर्थात मेरे जीवन का अंत होनेवाला है और मैंने यह जान लिया है कि जीवन के प्रत्येक स्वप्न में सत्य समाहित होता है। अनुप्रास अलंकार है। भाषा तत्सम प्रधान, लाक्षणिक एवं प्रतीकात्मक है। उद्बोधनात्मक शैली है। गेयता का गुण विद्यमान है।
प्रश्न 14. ‘सपने-सपने में सत्य ढला’ पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : ‘सपने-सपने में सत्य बला’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ की अंतिम पंक्ति है। इस कविता की मूल संवेदना यह है कि प्रकृति के प्रत्येक क्रिया-कलाप में सत्य निहित होता है। कवयित्री का मानना है कि फूलों में मकरंद का होना, दिन का प्रकाशमय होना, सूर्य की स्वर्णिम किरणों में घुल-मिलकर झरने का बहना, दीपक का जलना तथा फूल का चारों ओर सुगंध बिखेर देना सभी प्रकार के प्रकृति क्रिया-कलापों में सत्य ही प्रदर्शित होता है। जीवन के प्रत्येक-कदम पर मनुष्य को सच्चाई का सामना करना पड़ता है। कवयित्री कविता के अंत में कहती है कि हे परमात्मा ! मेरी जीवन यात्रा में मैने अनेक अच्छे बुरे अनुभव प्राप्त किए। अब इन्हीं सुखों और दुखों के बीच मेंर प्राण निकल रहे हैं। तुम इन्हें नवजीवन दे दो।
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