Class 12 Vidyapati ke Pad Important Question | Vidyapati ke Pad Class 12 Question Answer | विद्यापति के पद Important Question
प्रश्न 1. विद्यापति के पहले पद की नायिका किस प्रकार की नायिका है ? वह क्यों दु:खी है ? कवि उसे क्या आशा दिलाता है ?
उत्तर : विद्यापति के पहले पद की नायिका प्रोपितपतिका नायिका है। इस प्रकार की नायिका का प्रियतम बाहर रहता है। नायिका वियोग की पीड़ा झेलने को विवश होती है। नायिका एकाकी जीवन बिताने में असमर्थ है। उसका मन भी उसके पास नहीं है। कवि उसे यह आशा दिलाता है कि उसका प्रियतम कार्तिक मास में लौट आएगा।
प्रश्न 2. प्रेम के अनुभव को बताना कठिन क्यों है ?
उत्तर : नायिका के लिए प्रेम के अनुभव को बताना अत्यंत कठिन है। प्रेम का स्वरूप प्रतिक्षण बदलता रहता है। नवीनता के कारण मन में उत्सुकता बनी रहती है। प्रेम कोई स्थिर वस्तु तो है नहीं इसमें आने वाले क्षण-क्षण परिवर्तन के कारण प्रेम में अतृप्ति बनी रहती है। अतः प्रेम के अनुभव का वर्णन कठिन है।
प्रश्न 3. पठित पदों के आधार पर विद्यापति की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : महाकवि विद्यापति के इन तीनों पदों की भाषा मैथिली है। उनका भाषा पर पूर्ण नियंत्रण है। उन्होंने संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर देशी शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने सर्वत्र भाषा की कोमलता पर ध्यान रखा है। उनके पदों की भाषा श्रुतिकटुत्व के दोष से मुक्त है। विद्यापति शब्दों के पारखी प्रतीत होते हैं।
विद्यापति की भाषा मैथिली है। उन्होंने अपनी काव्य-भाषा में अलंकारों का सटीक प्रयोग किया है। यथा :
• ‘चौदसि चाँद समाना’ (उपमा-अनुप्रास)
• ‘गुनि-गुनि, सुन-सुन’ (वीप्सा अलंकार)
• ‘कमल मुखि’ (उपमा अलंकार)
विद्यापति ने विशेषोक्ति, अतिशयोक्ति, रूपक आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया है।
प्रश्न 4. तीसरे पद की नायिका का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर : तीसरे पद की नायिका भी प्रोषितपतिका है। उसका प्रियतम भी अन्यत्र जा बसा है। उसके वियोग में नायिका को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह सुखकारक वस्तुओं को न तो देखती है और न सुनती है। वह प्रिय वियोग में इतनी क्षीण हो गई है कि बड़ी कठिनाई से धरती को पकड़कर बैठ पाती है और उद्न नहीं पाती। उसके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहती रहती है। वह तो कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के चाँद के समान क्षीण हो गई है। उसकी दशा देखी नहीं जाती।
प्रश्न 5. “जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल” काव्य-पंक्ति में विद्यापति ने विरहिणी नायिका की किस मनोदशा को व्यक्त किया है?
उत्तर : ‘जनम अवधधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल ‘ के माध्यम से कवि नायिका की इस मनोदशा को व्यक्त करना चाहता है कि सच्चे प्रेम में कभी तृप्ति की अनुभूति नहीं होती। जन्म-जन्मांतर तक साथ रहने के बावजूद तृप्ति न होना ही प्रेम की प्रवृत्ति बने रहने का सूचक है। नायिका लंबे काल से अपने प्रियतम के निकट है फिर भी उसे अभी तक पूर्ण तृप्ति का अनुभव नहीं हुआ। इसका कारण है रूप क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। उसमें स्थिरता नहीं होती। नायिका तृप्ति का वर्णन करने में भी स्वयं को असमर्थ पाती है। प्रेम में कभी भी पूर्ण तृप्ति संभव नहीं है।
प्रश्न 6. आशय स्पष्ट कीजिए।
“कोकिल-कलरव, मधुकर धुनि सुनि,
कर देड झाँपइ कान॥”-
उत्तर : इन पंक्तियों का आशय यह है-कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर नायिका अपने हाथों सें अपने कान बंद कर लेती है। इसका कारण है कि ये ध्वनियाँ नायिका को प्रियतम का स्मरण कराती हैं। नायिका प्रिय की वियोगावस्था को झेलती-झेलती दु:खी हो गई है। अब उसे ये ध्वनियाँ सहन नहीं होतीं।
प्रश्न 7. “कुसुमित कानन हेरि, कमलमुखि मुंदि रहए दु नयनि” पद में चित्रित वियोगिनी नायिका की मनोदशा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर : विकसित प्रफुल्लित वन को देखकर वह कमल मुखी नायिका अपने दोनों नेत्रों को मूँद लेती है। कोयल की मीठी कूक और भौंरों की मधुर झंकार को सुनकर वह (राधा) अपने हाथों से अपने कान बंद कर लेती है। हे कृष्ग ! जरा मेरी बात सुनो! तुम्हारे गुणों एवं प्रेम का स्मरण करके राधा सुंदरी अत्यंत दुर्बल हो गई है। उसकी दुर्बलता का यह हाल है कि पृथ्वी को पकड़कर बड़ी कठिनाई से बैठ तो जाती है, पर पुन: चेष्टा करने पर भी उठ नहीं पाती। वह दैन्यपूर्ण कातर दृष्टि से तुम्हें चारों ओर खोजती है तथा उसके नेत्रों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रहती है। हे कृष्ण ! तुम्हारे विरह में राधा का शरीर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के समान प्रतिदिन, प्रति क्षण क्षीण होता चला जा रहा है।
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