Khelan me ko Kako Gusaiya Class 11 Question Answer | Class 11 Hindi Khelan me ko Kako Gusaiya | खेलन में को काको गुसैयाँ Important Questions

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Khelan me ko Kako Gusaiya Class 11 Question Answer | Class 11 Hindi Khelan me ko Kako Gusaiya | खेलन में को काको गुसैयाँ Important Questions


 प्रश्न 1. सूरदास की भक्ति-भावना का संक्षेप में विवेचन कीजिए।

उत्तर - वल्लभाचार्य ने सूर को दीक्षा प्रदान की थी और उन्हें पुष्टि मार्ग का अनुयायी बनाया था। ये सदा ही परमात्मा की कृपा को लालायित रहते थे और उनकी कृपा की अभिलाषा करते थे। इन्होंने वात्सल्य, साख्य और माधुर्य भाव-भेदों के आधार पर भक्ति के प्रेममूलक स्वरूप का सरस चित्रण किया। उन्होंने संयोग और वियोग पक्ष की मनोहारी लीलाओं की झाँकी प्रस्तुत की। सूर की भक्ति में भक्त और भगवान एक ही सामाजिक स्तर पर हैं। सूर ने भक्ति के रूप में समतामूलक जीवन-दर्शन की स्थापना की है जिसमें भेद-भाव की खाइयाँ पट जाती हैं। उनकी भक्ति-भावना आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समतावाद की योजना थी।


प्रश्न 2. हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था ?

उत्तर - श्रीकृष्ण खेल में हार गए थे पर बाल-सुलभ हठ के कारण वे अपनी हार मानने को तैयार ही नहीं थे। उनके मन में कहीं न कहीं यह भाव भी छिपा हुआ था कि उनके पिता नंद बाबा के पास गाँव में सबसे अधिक गायें थीं और वे सबसे अधिक संपन्न थे। इसलिए उनके सधियों को उनकी हर बात माननी ही चाहिए।


प्रश्न 3. ‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति’ पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है ?

उत्तर - एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि श्रीकृष्ण की बाँसुरी ने तो उन्हें पूरी तरह से अपना गुलाम बना रखा है। वह उन्हें मन-चाहे ढंग से नचवाती है; उन्हें एक पाँव पर खड़ा रखती है और उन पर अपना अधिकार जमाती है। श्रीकृष्ण का शरीर अति कोमल है पर वह अपनी आज्ञा से हर बात पूरी करवाती है। उसी की आज्ञा से उनकी कमर देढ़ी हो जाती है; वे त्रिभंगी मुद्रा धारण कर लेते हैं। वे तो बाँसुरी के सामने ऐसे लगते हैं जैसे उसके बड़े अहसानमंद और गुलाम हों। स्वयं तो होंठ रूपी कोमल शैंया पर लेट जाती है और उनके पत्ते जैसे कोमल ह्नाथों से पैर दबवाती है। तरह-तरह से चुगली करके वह हम पर क्रोध करवाती है। कृष्ण को एक क्षण कभी प्रसन्न जानकर धड़ से सिर हिलवाती है।


प्रश्न 4. कुष्ण को ‘सुजान कनौड़े’ क्यों कहा गया है ?

उत्तर - ‘सुजान’ का शाब्दिक अर्थ है ‘चतुर’ तथा कनौड़े का ‘कृपा से दबे हुए’। गोपियों के हदय में बाँसुरी के लिए सौत भाव था और वे मानती थीं कि श्रीकृष्य तो बाँसुरी के हाथों बिके हुए गुलाम हैं। चाहे वे बहुत चालाक हैं पर बाँसुरी के सामने उनकी एक नहीं चलती। श्रीकृष्ण बहुत चतुर हैं पर शायद बाँसुरी के द्वारा किए गए किसी अहसान से दबे हुए हैं। वे चाहकर भी उसका विरोध नहीं कर सकते। इसीलिए गोपियों ने कृष्ण को ‘सुजान कनौड़’ कहा है।


प्रश्न 5. बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार की हो जाती है ?

उत्तर - बाँसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण का सारा ध्यान बाँसुरी की तरफ केंद्रित हो जाता है। वे भूल जाते हैं कि उनके आस-पास कौन हैं। वे नहीं चाहते कि उस समय उन्हें कोई भी परेशान करे। वे एक पाँव को तिरछा कर, कमर टेढ़ी और गर्दन झुकाकर बाँसुरी बजाते हैं तो त्रिभंगी मुद्रा में होते हैं। जब गोपियाँ उनके निकट आना चाहती हैं तो बाँसुरी बजाते-बजाते संकेत से उन्हें वहाँ से दूर जाने के लिए कहते हैं। वे अपने बाँसुरी-वादन में किसी प्रकार की बाधा पसंद नहीं करते।


प्रश्न 6. गोपियाँ किस बात को कदापि सहन नहीं कर पाती हैं ?

उत्तर - श्रीकृष्ण जब बाँसुरी बजाने में मग्न हो जाते हैं तो गोपियों की सुध भी नहीं लेते। इस बात को गोपियाँ कदापि सहन नहीं कर पार्ती कि बाँँुरी के कारण उनकी अवहेलना हो। उन्हें लगता है कि बाँसुरी उनकी सौत है, जो प्रिय को उनके पास आने ही नहीं देती। सूरदास ने गोपियों के द्वारा सौत भावना से बाँसुरी की आलोचना की है।


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प्रश्न 7. प्रथम पद में सूरदास ने किस बात का वर्णन किया है ?

उत्तर : प्रथम पद में सूरदास ने बाल कृष्ण की लीला का आकर्षक वर्णन किया है। इस पद में कवि खेल-खेल में बालकों के रूठने और अपने आप मान जाने का अत्यंत स्वाभाविक तथा मनोवैज्ञानिक चित्रण प्रस्तुत किया है। सूरदास ने प्रथम पद में खेल में हार जाने पर कृष्ण द्वारा अपनी हार स्वीकार न करने का बड़ा सुदर-सजीव चित्रण किया है।


प्रश्न 8. दूसरे पद में सूरदास ने किस बात का उल्लेख किया है ?

उत्तर - दूसरे पद में गोपियाँ अपनी सखियों से जो बात कहती हैं, उससे कृष्ण की मुरली के प्रति उनका कृष्ण के प्रति प्रेम प्रकट होता है। वे एक-दूसरे से कहती हैं कि यह मुरली तो बड़ी दुष्ट है। यह कृष्ण से अत्यंत अपमानजनक व्यवहार करती है, पर फिर भी उन्हें अच्छी लगती है। यह नंदलाल को अनेक प्रकार से नचाती है। उन्हें एक पैर पर खड़ा रखती है। उनसे अपनी आज्ञा का पालन करवाती है। इसी से उनकी कमर भी टेढ़ी हो जाती है। वह हम गोपियों की कृष्ण का कोप-भाजन बनवाती है। सदैव उनके साथ होने के कारण वह उनकी आत्मीय बन बैठी है।


प्रश्न 9. मुख्य रूप से दूसरे पद में गोपियों का कौन-सा भाव प्रकट हुआ है ?

उत्तर - दूसरे पद से मुख्य रूप से गोपियों का मुरली के प्रति ईप्या-भाव प्रकट हुआ है। उसका मानना है कि यह मुरली ही उन्हें कृष्ण से दूर करती है। इसी के कारण उन्हें कृष्ण के क्रोध का शिकार बनना पड़ता है। मुरली ने पूर्ण रूप से कृष्ण को अपना दास बना लिया है। वो उसके वश में वशीभूत हो गए हैं। गोपियाँ तो मुरली को अपनी सौत तक मानने लगी हैं।


प्रश्न 10. दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अच्छा लगा और क्यों ?

उत्तर - सूरदास के दोनों पदों में से प्रथम पद ‘खेलन में को काको गुसैयाँ’ मुझे बहुत अच्छा लगा। अच्छा लगने का कारण यह है कि इसमें श्रीकृष्ण के बाल-सुलभ रूप को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पद में सूरदास ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि का सहारा लेकर समवय आयु साथियों के खेल और झगड़े का वर्णन किया है। वे आपस में खेलते हैं, झगड़ते हैं, मानते हैं, मनाते हैं।


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