Raskhan ke Savaiye Class 9 | NCERT Class 9 Hindi Raskhan ke Savaiye | रसखान के सवैये Class 9

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Raskhan ke Savaiye Class 9 | NCERT Class 9 Hindi Raskhan ke Savaiye | रसखान के सवैये Class 9 



 सवैये

सवैये का सार

प्रश्न- पाठ्यपुस्तक में संकलित रसखान रचित 'सवैयों' का सार अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर-रसखान कृत प्रथम एवं द्वितीय सवैये में कृष्ण और कृष्ण-भूमि के प्रति उनका प्रेम भाव व्यक्त हुआ है। प्रथम सवैये में रसखान ने अपना प्रेम भाव व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि अगले जन्म में मैं मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज-भूमि में हो, यदि मैं पशु बनूँ तो मैं नित्य नंद की गायों के बीच चरता रहूँ। यदि पत्थर बनूँ तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने धारण किया था। यदि पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर हो। इतना ही नहीं, वे श्रीकृष्ण के द्वारा धारण की हुई लाठी व काली कंबली पर तीनों लोकों के राज को न्योछावर कर देना चाहते हैं। वे उनके साथ गाय चराने के लिए हर प्रकार की संपत्ति व सुख त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे ब्रज के वनों और तालाबों पर करोड़ों सोने के बने महलों को न्योछावर कर देना चाहते हैं। तीसरे सवैये में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य के प्रति गोपियों की उस मुग्धता का चित्रण किया है जिसमें वे स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण का मोर पंखों से युक्त मुकुट, उनकी माला, पीले वस्त्र, लाठी आदि सब धारण कर लेना चाहती हैं, किंतु उनकी मुरली को धारण करना उन्हें स्वीकार नहीं है। चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के अचूक प्रभाव के सामने गोपियों की विवशता का मार्मिक वर्णन है ।


 अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1 मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। 

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।

जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन॥


शब्दार्थ- मानुष हौं मनुष्य हुआ तो। ग्वारन = ग्वाले | धेनु = गायों। मँझारन मध्य में। पुरंदर = इंद्र | खग = पक्षी हरिछत्र श्रीकृष्ण ने जिसे धारण किया था। डारन =  वृक्ष की शाखाओं पर । पाहन = पत्थर।


प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।

(2)  प्रस्तुत सवैये  संदर्भ / प्रसंग स्पष्ट कीजिए ।

(3) प्रस्तुत सवैये का सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए|

( 4 ) प्रस्तुत सवैये का भाव-सौंदर्य लिखिए।

(5) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(6) प्रस्तुत सवैये में कवि की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है?


उत्तर - (1) कवि- रसखान । कविता-सवैये ।


(2) रसखान कवि द्वारा रचित इस सवैये में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उल्लेख हुआ है। इस पद में उन्होंने अगले जन्म में श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि में जन्म लेने की अपनी इच्छा प्रकट की है ।


(3) व्याख्या–महाकवि रसखान का कथन है कि हे प्रभु! यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो मेरा निवास ब्रज या गोकुल के ग्वालों के साथ हो और यदि मैं पशु बनूँ तो मेरा बस इतना ही कहना है कि मैं नित्य नंद की गायों में चरता रहूँ। हे ईश्वर! यदि मैं पत्थर भी बनूँ तो उस गोवर्धन पर्वत का बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी अँगुली पर धारण करके इंद्र के क्रोध से गोकुल की रक्षा की थी। हे प्रभु! यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना तट के कदंब के पेड़ की शाखाओं पर हो । 

भावार्थ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि की ईश्वरीय भक्ति एवं प्रेम व्यक्त हुआ है।


(4) रसखान प्रत्येक स्थिति में श्रीकृष्ण के समीप रहना चाहते हैं, जिससे उनके मन में व्याप्त श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम का परिचय मिलता है। कवि हर स्थिति में ईश्वर का सामीप्य चाहता है ।


(5) (क) कवि की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति भावना का वर्णन हुआ है।


(ख) ‘गोकुल गाँव के ग्वारन', 'मेरो चरौं' एवं 'कालिंदी, कूल, कदंब' आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है।


(ग) ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है ।


(घ) सवैया छंद है।


2.  या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि ड़ारौं । 

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद  की गाइ चराइ बिसारौं ॥

रसखान कब इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारों

कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ॥


शब्दार्थ - लकुटी = लाठी । अरु = और । कामरिया = कंबल । तिहूँ पुर = तीनों लोकों (आकाश, पाताल और पृथ्वी) में। आठहुँ सिद्धि = आठ सिद्धियाँ, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। नवौ निधि तजि : नौ निधियाँ–पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व । ये सभी कुबेर की नौ निधियाँ कहलाती हैं। तड़ाग तालाब | निहारौं = देखूँगा । कोटिक = करोड़ों । कलधौत = महल । करील = काँटेदार झाड़ी। वारौं = न्योछावर करना ।


प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।

(2) प्रस्तुत पद की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए ।

(3) प्रस्तुत पद का भाव - सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।

(5) कवि किसके लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ?

(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए क्या त्यागने के लिए तत्पर है ?


उत्तर - (1) कवि - रसखान । कविता - सवैये ।


(2) व्याख्या- प्रस्तुत पद में कवि ने श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपने गहन प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबली पर मैं तीनों लोकों के राज्य के सुख को न्योछावर कर दूँगा। नंद की गायों को चराने के लिए मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भुला दूँगा अर्थात त्याग दूँगा। रसखान कवि कहते हैं कि मैं अपनी आँखों से ब्रज के बाग-बगीचे और तालाबों को देखने के लिए अत्यंत व्याकुल हूँ। मैं ब्रज के वृक्षों के समूहों पर, जहाँ कभी श्रीकृष्ण खेलते व गायों को चराते थे, सोने से निर्मित करोड़ों भवन न्योछावर करता हूँ ।

भावार्थ- कहने का भाव है कि उन्हें अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु एवं स्थान अत्यंत प्रिय हैं। इससे उनके श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम व भक्ति का पता चलता है ।


(3) श्रीकृष्ण और उनसे संबंधित हर वस्तु व स्थान कवि को अत्यंत प्रिय है। उन्हें प्राप्त करने के लिए वे बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर हैं। इससे श्रीकृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम का बोध होता है


(4) (क) प्रस्तुत पद सरल, सहज एवं प्रवाहमयी ब्रज भाषा में रचित है। 

(ख) अन्त्यानुप्रास के प्रयोग के कारण भाषा में लय बनी हुई है ।

(ग) ‘नवौ निधि’, ‘ब्रज बन', 'करील के कुंजन' आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा है ।

(घ) सवैया छंद का प्रयोग किया गया है।

(ङ) शब्द-चयन भावानुकूल है ।


(5) कवि श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार है


(6) कवि श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज्य त्यागने के लिए तत्पर है।


3. मोरपंखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी ।

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी ॥

भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करेंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ॥


शब्दार्थ- मोरपखा = मोर के पंख । गुंज घुँघची। ग्वारिन = ग्वालों । स्वाँग • रूप धारण करना । मुरलीधर श्रीकृष्ण। 


प्रश्न (1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।

(2) प्रस्तुत पद का संदर्भ स्पष्ट कीजिए । 

(3) सवैये की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए |

(4) प्रस्तुत पद में निहित काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

(5) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए ।

(6) सखी के कहने पर गोपिका क्या-क्या स्वाँग भरने को तैयार है ?


उत्तर-(1) कवि-रसखान । कविता - सवैये ।


(2) कविवर रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के निःस्वार्थ प्रेम का मनोरम चित्रण किया है। ये शब्द एक गोपिका अपनी अंतरंग सखी से कहती है ।.


(3) व्याख्या - एक गोपिका अपनी सखी से कहती है कि वह श्रीकृष्ण के लिए कोई भी रूप धारण करने के लिए तत्पर है गोपिका कहती है कि वह श्रीकृष्ण की भाँति ही मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट सिर पर धारण कर लेगी। वह श्रीकृष्ण के गले में सुशोभित होने वाली घुँघचों से बनी माला को भी धारण कर लेगी। श्रीकृष्ण की भाँति ही हाथ में लाठी लेकर ग्वालों व ग्वालिनों के साथ जंगल में गायों के पीछे भी घूम लेगी। रसखान ने बताया है कि गोपिका अपनी सखी से पुनः कहती है कि तुम्हारी कसम, मुझे श्रीकृष्ण बहुत ही अच्छे लगते हैं। तेरे कहने पर मैं हर प्रकार से श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लूँगी । किंतु श्रीकृष्ण के होंठों पर लगी रहने वाली इस मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखूँगी। यहाँ गोपिका की सौतिया भावना का चित्रण हुआ है। वह मुरली को अपनी दुश्मन और प्रतिद्वंद्वी समझती है ।

भावार्थ - कवि का भाव रखती है । कहने का तात्पर्य है कि एक ओर गोपिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है और दूसरी ओर उनकी बांसुरी से सौत


(4) (क) प्रस्तुत पद में कवि ने सरल एवं सहज ब्रज भाषा का प्रयोग किया है।

(ख) 'या मुरली... न धरौंगी' में गोपी के सौतिया डाह की अभिव्यक्ति हुई है ।

(ग) 'मुरली मुरलीधर', 'अधरान धरी अधरा' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

(घ) ‘रसखांनि’ का अर्थ रस की खान तथा रसखान कवि होने के कारण यमक अलंकार है। मुस्कान ।


(5) प्रस्तुत पद में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपिका के अनन्य प्रेम का वर्णन किया है, किंतु गोपिका को श्रीकृष्ण की मुरली अच्छी नहीं लगती, क्योंकि जब भी श्रीकृष्ण मुरली को अपने होंठों पर रखकर बजाते हैं तो गोपियों को भूल जाते हैं। इसलिए गोपिका मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव रखती है, जिसे व्यक्त करना कवि का प्रमुख उद्देश्य है ।


(6) सखी के कहने पर गोपी श्रीकृष्ण के पीले वस्त्र, घुँघची की माला तथा मोर पंखों से बना मुकुट आदि सब कुछ धारण करने के लिए तैयार है। वह हाथ में लाठी लेकर गायों और ग्वालों के साथ वन-वन घूमने के लिए भी तत्पर है ।


4.  काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै ।

मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ॥

टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझेहै।

माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ॥

शब्दार्थ – काननि = कानों में। अँगुरी अँगुली। धुनि धुन । टेरि कहौं = पुकारकर कहती हूँ। | मंद = धीरे । मोहनी = मधुर । अटा = अट्टालिका । गोधन ब्रज़ प्रदेश में गाया जाने वाला एक लोक-गीत ।  काल्हि = कल को । वा = उस । मुसकानि = मुस्कान।


प्रश्न ( 1 ) कवि एवं कविता का नाम लिखिए ।

(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।

(3) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।

(4) प्रस्तुत सवैये में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए ।

(5) गोपिका अपने कानों में अँगुली क्यों डालना चाहती है?

(6) गोपिका व्रज के सभी लोगों को पुकारकर क्या कहना चाहती है ?


उत्तर - (1) कवि-रसखान । कविता- सवैये ।


(2) व्याख्या - एक गोपिका का कथन है, हे सखी। जब श्रीकृष्ण अपनी गुरली मंद-मंद ध्वनि में बजाएंगे, तब मैं अपने कानों में अँगुली डाले रहूँगी ताकि मुरली की ध्वनि मुझे सुनाई ही न दे । फिर भले ही वह रस के सागर ( श्रीकृष्ण ) अट्टालिका पर चढ़कर तानों में गोधन राग में गीत गाते हैं तो गाते रहें । मैं तो ब्रज के सभी लोगों को पुकार - पुकारकर कहती हूँ कि कल को कोई मधुर कितना ही समझाए, किंतु मैं श्रीकृष्ण के मुख की मधुर मुस्कुराहट को नहीं सँभाल पाऊँगी 

भावार्थ- कवि के कहने का भाव है कि गोपिका श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान पर अत्यंत मोहित है।


(3) प्रस्तुत सवैये में कवि ने ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान के प्रभाव का सुंदर उल्लेख किया है। श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को देखकर गोपिका अपने आपको रोक नहीं पाती। वह उससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के प्रेम में बह जाती है ।


(4) (क) श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान व मंद-मंद मुस्कान का सजीव चित्रांकन किया गया है।

(ख) अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है ।

(ग) ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है ।

(घ) शब्द-चयन अत्यंत सार्थक एवं विषयानुकूल है।

(ङ) सवैया छंद का प्रयोग है।


(5) गोपिका श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि से अत्यंत प्रभावित है । वह जब भी उसे सुनती है तो अपने-आपको रोक नहीं पाती। इसलिए वह लोक-लाज के कारण अपने कानों में अँगुली रख लेती है। ऐसा करने से उसे न तो मुरली की ध्वनि सुनाई देगी और न ही वह श्रीकृष्ण के पास जाएगी ।


(6) गोपिका ब्रज के सभी लोगों को पुकार - पुकारकर कहती है कि कल कोई भी मुझे कितना ही क्यों न समझाए, परंतु मैं श्रीकृष्ण की मधुर मुस्कान को सँभाल नहीं पाऊँगी अर्थात वह उसकी मुस्कान पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकेगी ।



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