Savadiya Class 12 Important Question Answer | Class 12th Hindi Savadiya ke Important Question Answer | संवदिया पाठ के Important Questions
प्रश्न 1.बड़ी बहुरिया के मायके के गाँव में जलपान करते समय हरगोबिन को क्या अनुभव हुआ ?
उत्तर :वहाँ जलपान करते समय हरगोबिन को लगा, बड़ी बहुरिया दालान पर बैठी उसकी राह देख रही है-भूखी-प्यासी…। रात में भोजन करते समय भी बड़ी बहुरिया मानो सामने आकर बैठ गई…और कह रही हो कि कर्ज-उधार अब कोई देता नहीं। …एक पेट तो कुत्ता भी पालता है, लेकिन मैं ?…माँ से कहना…! हरगोबिन ने थाली की ओर देखा-दाल-भात, तीन किस्म की भाजी, घी, पापड़, अचार।…बड़ी बहुरिया बथुआ-साग उबालकर खा रही होगी।
प्रश्न 2.‘संवदिया’ कहानी का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -‘संवदिया’ कहानी फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ द्वारा रचित है। इस कहानी में लेखक ने मानवीय संवदेना की गहन और विलक्षण पहचान प्रस्तुत की है। इस कहानी में बड़ी बहुरिया के माध्यम से एक असहाय और सहनशील नारी-मन के कोमल तंतु की अभिव्यक्ति हुई है। उसकी करुणा पीड़ा और यातना की सूक्ष्म पकड़ कहानीकार ‘ रेणु’ ने की है। हरगोबिन संवदिया की तरह अपने अंचल के दुखी, बेसहारा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों का संवाद लेकर लेखक पाठकों के सम्मुख उपस्थित हुआ है। लेखक ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।
प्रश्न 3.बिंहपुर स्टेशन पर पहुँचने के बाद हरगोबिन की मानसिक दशा कैसी थी?
उत्तर :थाना बिंहपुर स्टेशन पर गाड़ी पहुँची तो हरगोबिन का जी भारी हो गया। इसके पहले भी कई भला-बुरा संवाद लेकर वह इस गाँव में आया है, कभी ऐसा नहीं हुआ। उसके पैर गाँव की ओर बढ़ ही नहीं रहे थे। इसी पगडंडी से बड़ी बहुरिया अपने मैके लौट आवेगी। गाँव छोड़कर चली जावेगी। फिर कभी नहीं आवेगी! उसका मन कलपने लगा तब गाँव में क्या रह जावेगा? गाँव की लक्ष्मी ही गाँव छोड़कर जावेगी! किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा? कैसे कहेगा कि बड़ी बहुरिया बथुआ-साग खाकर गुज़ारा कर रही है? सुनने वाले हरगोबिन के गाँव का नाम लेकर थूकेंगे। हरगोबिन ने अनिच्छापर्वक गाँव में प्रवेश किया।
प्रश्न 4.हरगोबिन ने बड़ी बहू की माँ को क्या संदेश दिया?
उत्तर :हरगोबिन ने बड़ी बहू की माँ को कहा कि दशहरे के समय बड़ी बहू गंगा जी के मेले में आकर माँ से मुलाकात कर जाएगी। वह आ भी नहीं सकती, क्योंकि सारी गृहस्थी का भार उस पर ही है। वह गाँव की लक्ष्मी है।
प्रश्न 5.हरगोबिन जलालगढ़ पैदल क्यों गया?
उत्तर :हरगोबिन के पास जितने पैसे थे, उनसे कटिहार तक का टिकट खरीदा जा सकता था। यदि उसकी चौअन्नी नकली निकली तो सैमापुर तक ही का टिकट ले पाएगा। वह बिना टिकट एक स्टेशन आगे नहीं जा सकता। इसलिए उसने बीस कोस पैदल चलने का फैसला किया।
प्रश्न 6.‘संवदिया’ कहानी की क्या विशेषता है ?
अथवा
‘संवदिया’ कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :‘संवदिया’ कहानी में मानवीय संवेदना की गहन एवं विलक्षण पहचान प्रस्तुत हुई है। असहाय और सहनशील नारी मन के कोमल तंतु की, उसके दुख और करुणा की, पीड़ा तथा यातना की ऐसी सूक्ष्म पकड़ रेणु जैसे ‘आत्मा के शिल्पी ‘ द्वारा ही संभव है। हरगोबिन संवदिया की तरह अपने अंचल के दुखी. विपन्न बेसहारा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों का संवाद लेकर रेणु पाठकों के सम्मुख उपस्थित होते हैं। रेणु ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को तथा उसके भीतर के हा-हाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है। लोक भाषा की नींव पर खड़ी ‘संवदिया’ कहानी पहाड़ी झरने की तरह गतिमान है। उसकी गति, लय. प्रवाह, संवाद और संगीत पढ़ने वाले के रोम-रोम में झंकृत होने लगता है।
प्रश्न 7.‘संवदिया’ कहानी की मूल संवेदना क्या है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :‘ संवदिया’ कहानी में मानवीय संवेदना की गहन, विलक्षण एवं अद्भुत पहचान की अभिव्यक्ति हुई है। लेखक ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ ने असहाय और अत्यंत सहनशील मन के कोमल तंतुओं, उसके दुख, करूणा, व्यथा और यातना को अत्यंत हृदयस्पर्शीं ढंग से प्रस्तुत किया है जो पाठक मन को द्रवीभूत कर जाता है। हरगोबिन संवदिया और अपने अंचल की दुखी बेसहारा पात्रा बड़ी बहुरिया जैसे पात्रों के माध्यम से नारी मन के व्यथित हृदय के हाहाकार को सहानुभूति प्रदान की है। कहानी में लोक भाषा के शब्दों के प्रयोग से आँचलिकता मुखरित हो उठी है जो पाठक मन को झंकृत कर जाती है।
प्रश्न 8.बड़ी बहू के देवर-देवरानियों के लिए हरगोबिन क्या भावना रखता था?
उत्तर :बड़ी बहू का दुख सुनकर हरगोबिन का रोम-रोम कलपने लगा। देवर-देवरानियाँ भी बेदर्द हैं। अगहनी धान के समय बाल-बच्चों को लेकर शहर से आएँगे। दस-पंद्रह दिनों में कर्ज-उधार की ढेरी लगाकर, वापस जाते समय दो-दो मन के हिसाब से चावल-चूड़ा ले जाएँगे, फिर आम के मौसम में आकर कच्चा-पक्का आम तोड़कर बोरियों में बंद करके चले जाएँगे, फिर उलटकर कभी नहीं देखते। वह उन्हें राक्षस की संज्ञा देता है।
प्रश्न 9.कटिहार जंक्शन पर पहुँचकर हरगोबिन को यह क्यों महसूस हुआ कि सचमुच सुराज आ गया है?
उत्तर :कटिहार जंक्शन पहुँचकर हरगोबिन ने देखा कि पंद्रह-बीस साल में बहुत कुछ बदल गया है। अब स्टेशन पर उतरकर किसी से कुछ पूछने की कोई जरूरत नहीं। गाड़ी पहुँची और तुरंत भोंपे सं आवाज अपने-आप निकलने लगी- थाना बिंहपुर, खगड़िया और बरौनी जाने वाले यात्री तीन नंबर प्लेटफार्म पर चले जाएँ। गाड़ी लगी हुई है। हरगोबिन प्रसन्न हुआ। यही मालूम होता है कि सचमुच सुराज हुआ है। इसके पहले कटिहार पहुँचकर किस गाड़ी में चढ़े और किधर जाए, इस पूछताछ में ही कितनी बार उसकी गाड़ी छूट गई है।
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प्रश्न 10.‘संवदिया’ कहानी में बड़ी बहुरिया अपने मायके क्या संदेश भेजना चाहती थी और क्यों ? संदेश भेजने के बाद उसकी मन:स्थिति कैसी हो गई ?
उत्तर :बड़ी बहुरिया अपनी बड़ी हवेली (जो अब नाममात्र को ही बड़ी थी) में एकाकी और घोर दरिद्रता का जीवन बिता रही थी। कभी वह इस हवेली में राज करती थी, पर अब दाने-दाने को मोहताज है। वह बथुआ-साग खाकर पेट भर रही है। उधार न चुका पाने के लिए उसे बहुत सुनना पड़ता है। देवर-देवरानी उसकी परवाह नहीं करते। संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें छलछला आई क्योंकि वह अपनी वर्तमान दशा से अत्यंत व्याकुल थी। वह तो आत्महत्या तक करने पर उतारू थी। न उसके खाने-पीने का कोई प्रबंध था, न उसका दु:ख बाँटने वाला कोई था। वह भाई-भाभियों की नौकरी तक करने को तैयार थी। उसके जीने की इच्छा मरती जा रही थी। उसके मन की व्यथा आँसुओं की राह बह रही थी।
प्रश्न 11. ‘संवदिया’ कहानी के आधार पर हरगोबिन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :एक कुशल संवदिया-हरगोबिन में एक कुशल संवदिया के सभी गुण विद्यमान हैं। वही बड़ी बहू का समाचार अत्यंत गुप्त तरीके से ले जाता है। वह संवदिया की आम धारणा के विपरीत है।विश्वासपात्र : हरगोबिन बड़ी हवेली का विश्वासपात्र है। बड़े भैया की आकस्मिक मृत्यु के बाद भी वह बड़ी बहुरिया के प्रति विश्वास एवं निष्ठा बनाए रहता है। तभी बड़ी बहुरिया उसके सामने अपने मन की व्यथा उँड़ेल देती है।सहुदय व्यक्ति : हरगोबिन केवल संवदिया ही नहीं है, वह एक सहृदय व्यक्ति भी है। वह बड़ी बहुरिया की दशा देखकर व्यथित होता है। इसी कारण वह बड़ी बहुरिया की माताजी को उसका दुख कह पाने में असमर्थ हो जाता है।त्यागमय : वह बड़ी बहुरिया को इस विपन्न अवस्था में गाँव से नहीं जाने देने के लिए कटिबंद्ध हो जाता है। वह उसे विश्वास दिलाता है कि वह सारे गाँव की माँ है। अब वह उसे कोई कष्ट नहीं देगा। अब वह निठल्ला नहीं बैठेगा और उसका हर काम करेगा।
प्रश्न 12.फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने ‘बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।’ कथन के आलोक में बड़ी बहुरिया का चरित्राकंन कीजिए।
उत्तर :फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ने बड़ी बहुरिया की पीड़ा को, उसके भीतर के हाहाकार को संवदिया के माध्यम से अपनी पूरी सहानुभूति प्रदान की है।लेखक ने बड़ी बहुरिया की स्थिति का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे बताते हैं कि संवदिया को संवाद सुनाते समय बड़ी बहुरिया सिसकने लगी। हरगोबिन की आँखें भी भर आई ।…… बड़ी हवेली की लक्ष्मी को पहली बार इस तरह सिसकते देखा है हरगोबिन ने। वह बोला, “बड़ी बहुरिया, दिल को कड़ा कीजिए।” ” और कितना कड़ा करूँ दिल ?….माँ से कहना, में भाई-भाभियों की नौकरी करके पेट पालूँगी। बच्चों की जूठन खाकर एक कोने में पड़ी रहूँगी, लेकिन यहाँ अब नहीं……अब नहीं रह सकूँगी।… ..कहना, यदि माँ मुझे यहाँ से नहीं ले जाएगी तो मैं किसी दिन गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरूँगी।…..बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ ? किसलिए,….किसके लिए ? ”बड़ी बहुरिया के चरित्राकंन में कहा जा सकता है कि वह एक भावुक स्वभाव की स्त्री है।वह जीवन की वास्तविकता को समझती है। बाद में वह मायके जाकर बसने के फैसले पर पुनर्विचार करती है और उस विचार को त्याग देती है।वह परिवार के मान-सम्मान की रक्षा करती है।
प्रश्न 13.संदेश भेजते समय बड़ी बहुरिया की तथा हरगोबिन की मनःस्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश भिजवाना चाहती थी कि अब उसका यहाँ रहना कठिन हो गया है और वहीं आकर रहना चाहती है।संदेश भेजते समय बड़ी बहुरिया की आँखें छलछलाई। वह कभी इस हवेली की लक्ष्मी थी, पर अब वह सिसक रही थी। उसने संवदिया हरगोविंद से कहा कि यदि उसकी माँ उसे यहाँ से नहीं ले गई तो वह गले में घड़ा बाँधकर पोखरे में डूब मरेगी। वह बथुआ-साग खाकर भला कब तक जीए ? हरगोबिन भी बड़ी बहुरिया की व्यथा को देखकर दुखी हो गया। उसका रोम-रोम कलपने लगा।
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