Class 10 Hindi – A Chhaya Mat Chhuna Extra Questions | Important Questions for Class 10 Hindi | छाया मत छूना (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

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Class 10 Hindi – A Chhaya Mat Chhuna Extra Questions | Important Questions for Class 10 Hindi | छाया मत छूना (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


छाया मत छूना (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)





प्रश्न 1.
छाया मत छूना' में कवि 'छाया' किसे कहता है और क्यों?    2015

उत्तर:
कवि गिरिजा कुमार माथुर 'छाया' विगत समय में बीती हुई स्मृतियों को कहते हैं, जो अनेक बार वर्तमान समय में भी मानव-मस्तिष्क में छाई रहती हैं। ये यादें ठीक परछाई की तरह मानव का पीछा नहीं छोड़ती हैं। वर्तमान में भी मृग-मरीचिका की तरह भ्रमित करती हैं, इसलिए कवि ने इन्हें 'छाया' कहा है। ये स्मृतियों छाया की तरह मन में विचरित करती हुई वर्तमान जीवन को भी दुखी कर देती हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने ‘छाया मत छूना' कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है?

उत्तर:
कवि गिरिजा कुमार माथुर ने कविता 'छाया मत छूना' में यथार्थ को पूजने की बात इसलिए कही है। क्योंकि वर्तमान समय में वास्तविकताओं का सामना करके ही हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं । विगत स्मृतियों से चिपके रहना व्यर्थ है और वर्तमान से पलायन करके हम सुखी नहीं हो सकते। अतः वर्तमान समय में आने वाले कठोर यथार्थ का डटकर सामना करना ही हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। यथार्थ को पूजकर ही हम सच्चाई का सामना कर सकते हैं और जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
‘मृगतृष्णा' किसे कहते हैं? 'छाया मत छूना' कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

उत्तर:
गर्मियों में प्यास से व्याकुल मृग को रेगिस्तान में थोड़ी दूरी पर पानी होने का भ्रम होता है, किंतु पास जाने पर केवल रेत-ही-रेत दिखाई देता है और फिर वहाँ से आगे पानी होने का भ्रम होने लगता है। वह पानी के इस भ्रम को वास्तविक पानी समझकर उसे पाने के लिए भागता रहता है। उसकी इस स्थिति को ही 'मृगमरीचिका' या ‘मृगतृष्णा' कहा जाता है। इस प्रकार प्रतीकात्मक अर्थ में ‘मृगतृष्णा' मिथ्या, भ्रम अथवा छलावे की स्थिति को कहा जा सकता है। ‘छाया मत छूना' कविता में कवि कहना चाहता है कि जीवन में प्रभुता यानी बड़प्पन की अनुभूति भी एक प्रकार से भ्रम ही है क्योंकि व्यक्ति इसे पाने के लिए मान-सम्मान, धन-संपति, पद-प्रतिष्ठा के लिए भागता रहता है और इसी भ्रम में वह पूरा जीवन छला जाता है और यह भ्रम उसे सुख नहीं, बल्कि दुख ही देता है।

प्रश्न 4.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?'- का क्या भाव है?

उत्तर:
“क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर पंक्ति का भाव यह है कि जिस प्रकार बसंत ऋतु में फूल न खिले तो वह सुखदायी प्रतीत नहीं होती, वैसे ही मनुष्य अपने अतीत में जो चाहे और वह उसे न मिले तो उदासी उसके जीवन को घेर लेती है। अतीत की मधुरिम यादों से मिली यह उदासी वर्तमान व भविष्य का सुख भी छीन लेती है। इसलिए जीवन में सच्चे सुख के लिए अतीत की यादों को बिसराना ही उचित होता है।


प्रश्न 5.
मनुष्य अतीत में खोए रहने के कारण दुखी रहता है। आपके विचार में दुख के और क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर:
अतीत में खोए रहने के कारण दुखी रहना मानव प्रकृति है जो कि उचित नहीं है। उससे हम अपने वर्तमान व भविष्य को भी नहीं सँवार पाते। मानव के दुखी रहने के अन्य कारण भी हैं, जैसे-
 (i) कठिन परिश्रम करने पर भी फल की प्राप्ति न होने पर मानव दुखी हो जाता है।
(ii) समय बीत जाने पर वस्तुओं की प्राप्ति भी मानव को दुखी कर देती है।
(iii) जब संकट के समय मित्र और रिश्तेदार साथ न निभाएँ।
(iv) प्रियजन के बिछड़ जाने पर भी मानव दुखी हो जाता है।

प्रश्न 6.
मृगतृष्णा' से क्या तात्पर्य है? उसके पीछे क्यों नहीं भागना चाहिए?

उत्तर:
मृगतृष्णा शब्द का अर्थ है कि जिस प्रकार एक मृग रेगिस्तान में रेत पर तेज़ धूप पड़ने पर वहाँ पानी होने के भ्रम में उसके पीछे भागता है, पर वहाँ जाकर भी वह तृषित रहता है। उसके पीछे भागना व्यर्थ होता है, ठीक उसी प्रकार मानव को भी ऐसी मृगतृष्णा व कल्पनाओं के पीछे नहीं भागना चाहिए। जहाँ से उसे किसी सुख की प्राप्ति न हो। अतीत की सुखद या दुखद स्मृतियों के पीछे भागना ऐसी ही मृगतृष्णा है, जिससे मानव का न तो वर्तमान सुखी होता है और न ही भविष्य सुखी होता है। व्यक्ति को यथार्थ का सामना कर संघर्ष से सफलता व सुख की प्राप्ति करनी चाहिए।

प्रश्न 7,
‘छाया मत छूना' कविता के आधार पर दुख के कारण बताइए।            2014

उत्तर:
कवि 'गिरिजा कुमार माथुर' द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना' में दुख के निम्नलिखित कारण बताए है-
(i) व्यक्ति अतीत की यादों में खोया रहता है और वर्तमान के सुख तक नहीं भोग पाता है। बीती बातें बार-बार उसे याद आकर वर्तमान में सताती रहती हैं।
(i) उसे अपने प्रिय मिलन की मीठी यादें आती हैं। उसकी देह गंध, और केशों के पुष्पगुच्छ याद-आ-आकर सताते हैं।
(iii) धन-दौलत और वैभव सभी सुख मृगतृष्णा के समान उसे भरमाते रहते हैं।
(iv) उसे इस बात का भी दुख होता है कि उसकी इच्छाओं की पूर्ति कभी समय पर न हो पाई।

प्रश्न 8.
'छाया' से क्या तात्पर्य है? कवि उसे छूने से मना क्यों करता है?

उत्तर:
कविता 'छाया मत छूना' में 'छाया' से तात्पर्य अतीत के उन सुखों से है जो कवि को कभी प्राप्त नहीं हुए। अप्राप्य के पीछे भागना और उसकी याद में खोए रहना व्यर्थ है। कवि उसे छूने से इसलिए भी मना करता है क्योंकि उनके बारे में सोचते रहने और दुखी रहने से वर्तमान में कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि मन और दुखी होगा। अतः अतीत को भूलकर वर्तमान में यथार्थ का सामना करके हम अपने जीवन में कर्मठता के द्वारा सुख पा सकते हैं। ‘छाया” छूने से केवल मन भ्रमित होगा।

प्रश्न 9.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी' से 'छाया मत छूना' कविता के कवि का अभिप्राय जीवन की किन मधुर स्मृतियों से है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी' से 'छाया मत छूना’ कविता के कवि का अभिप्राय जीवन में अपनी प्रिया के साथ व्यतीत किए गए सुखद क्षणों से है। स्मृतियों में अपनी प्रेयसी के तन की सुगंध कवि के मन-तन दोनों को ही सराबोर कर देती है। चाँदनी रात में प्रेयसी के बालों में गुथे पुष्पों की मनभावन सुगंध का स्मरण हो आता है। अतीत की ये स्मृतियाँ कभी वास्तव में मधुर रही होंगी, किंतु बिछोह की स्थिति में ये वर्तमान में पीड़ा ही भरने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 10.
‘छाया मत छूना' कविता का कवि कठिन यथार्थ के पूजन को श्रेयस्कर क्यों मानता है?

उत्तर:
कविता 'छाया मत छूना' में कवि गिरिजा कुमार जी यथार्थ के पूजन को इसलिए श्रेयस्कर मानते हैं। क्योंकि यथार्थ का सामना करके ही व्यक्ति जीवन को सफल व सुखी बना सकता है। अतीत की स्मृतियों में खोए रहने से केवल दुख और पीड़ा का अहसास होता है। वर्तमान में यथार्थ में आने वाली कठिनाइयों का कठोरता से सामना व संघर्ष करके जीवन बेहतर हो सकता है। यथार्थ से पलायन कर विगत में खोए रहना हितकार नहीं है। यथार्थ से रूबरू होना ही जीवन का सत्य है। कल्पनाओं में जीना तो यथार्थ से मुंह छुपाने जैसा है। अतः वर्तमान में यथार्थ का साहस से सामना करना ही श्रेयस्कर है।

प्रश्न 11,
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' पंक्ति में कवि ने जीवन का कौन-सा यथार्थ प्रस्तुत किया है? व्यक्ति उस यथार्थ को कैसे झेल सकता है?

उत्तर:
'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' पंक्ति के माध्यम से कवि जीवन के उस यथार्थ को बताना चाहता है कि हर सुख में दुख छिपा है क्योंकि चंद्रिका सुखों का और कृष्णा दुखों का प्रतीक है। जिस प्रकार हर रात के बाद दिन आता है उसी प्रकार जीवन में सुख-दुख बारी-बारी से आते रहते हैं। व्यक्ति जीवन के यथार्थ अर्थात जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना धैर्य व साहस से कर सकता है। यथार्थ का सामना करके, उससे संघर्ष करके ही उसे पस्त किया जा सकता है। बीते दुख के दिनों को याद करने का कोई फायदा नहीं। अतः यथार्थ का डटकर सामना करना चाहिए।

प्रश्न 12.
क्या प्रभुता की कामना केवल एक मृगतृष्णा है? इस कथन के पक्ष वा विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:
कविता 'छाया मत छूना' में कवि ने प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा के समान बताया है जो बिलकुल उचित है। मैं इसके पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कर रही हूँ। प्रभुता, यानी सत्ता या बड़प्पन की लालसा के पीछे व्यक्ति दौड़ता रहता है। उसे पाने के लिए वह वर्तमान के सुख भी नहीं भोग पाता है। प्रभुता एक छलावे की तरह मानव को छलती रहती है। समय पर प्रभुता, धन, वैभव और इच्छित प्राप्त न होने पर मानव दुखी हो जाता है। केवल प्रभुता की कल्पना में खोए रहने से वह यथार्थ से दूर हो जाता है। जबकि जीवन में यथार्थ का सामना करके ही सुख मिलते हैं।

प्रश्न 13.
‘छाया मत छूना' कविता की पंक्ति ‘जितना ही दौड़ा तू, उतना ही भरमाया' का क्या आशय है?

उत्तर:
कविता 'छाया मत छूना' में कवि 'गिरिजा कुमार माथुर' द्वारा रचित ये पंक्ति 'जितना ही दीड़ा तू, उतना जितना ही अधिक धन, दौलत, सुख-ऐश्वर्य व मान-सम्मान पाने के लिए भाग-दौड़ करता है अर्थात प्रयत्न करता है उतना ही अधिक ये चीज़े उसे भरमाती हैं। मृगतृष्णा के समान उससे दूर भागती रहती हैं। ये मानव को जीवन पर्यंत छलती रहती हैं। कभी व्यक्ति इन्हें पाने के लिए दुखी रहता है और कभी इनके न मिलने पर दुखी रहता है। ये चीजें मानव को जीवन भर अपने पीछे दौड़ाती रहती हैं।

प्रश्न 14.
छाया मत छूना' कविता के आधार पर बताइए कि कवि अतीत को क्यों भुलाना चाहता है।

उत्तर:
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि अतीत को इसलिए भुलाना चाहता है क्योंकि अतीत की सुखद स्मृतियों को यादकर वह अपने वर्तमान को दुखी एवं बोझिल नहीं बनाना चाहता। अतीत का सुख वर्तमान में दुख एवं पीड़ा ही देगा। उसके सहारे वर्तमान में जिया नहीं जा सकता। अतीत के सुखद पल उस छाया के समान हैं, जिनको छूने से दुःख और प्रबल होगा। वर्तमान में जीने के लिए यथार्थ को स्वीकार करना अत्यंत अनिवार्य है। वर्तमान में निराशा, असफलता एवं कष्ट से बचने के लिए यह अनिवार्य है कि अतीत को भुलाकर जीवन वर्तमान के ठोस धरातल पर जिया जाए।


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