Important Questions CBSE Class 10 Hindi A -सवैया और कवित्त | सवैया और कवित्त (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

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Important Questions CBSE Class 10 Hindi A -सवैया और कवित्त | सवैया और कवित्त (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)


सवैया और कवित्त (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)






प्रश्न 1.
‘पट-पीत', 'बनमाल' के साथ श्रीकृष्ण को और कौन-सी वस्तु बहुत अधिक प्रिय थी, जिसके उल्लेख के बिना उनका रूप वर्णन पूर्ण नहीं लगता'–स्पष्ट कीजिए। श्रीकृष्ण उसका उपयोग कैसे करते थे?         2016

उत्तर:
श्रीकृष्ण के साँवले अंगों पर पीले वस्त्र और गले में वनमाल के साथ उनके माथे पर मोर का मुकुट ऐसी वस्तु है, जिसके उल्लेख के बिना उनका रूप वर्णन पूर्ण नहीं लगता। माथे पर मोर का मुकट एक तरफ उन्हें राजसी वैभव की चमक प्रदान करता था, तो दूसरी तरफ उन्हें समूचे ब्रज में दूल्हे का स्वरूप भी। ब्रज के दूल्हे का रूप कवि देव को और ब्रजवासियों को अत्यंत प्रिय है। श्रीकृष्ण उसका उपयोग इसी रूप में करते थे।

प्रश्न 2,
कवि देव ने कंजकली को क्या भूमिका सौंपी है और क्यों ?  2015

उत्तर:
कवि देव ने कंजकली को वसंत रूपी शिशु की नज़र उतारने की भूमिका सौंपी है। बंसत रूपी बालक को नज़र से बचाने के लिए कमल की कली रूपी नायिका बेलों रूपी साड़ी को सिर पर ओढ़कर राई-नोन रुपी पराग-कणों को छिड़क रही हैं। वसंत, कामदेव का शिशु है, कोमल है। उसे किसी प्रकार से नज़र न लगे, इसलिए कंजकली यह सब प्रक्रिया कर रही है।

प्रश्न 3.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि देव ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता और सुंदरता को किन-किन रूपों में देखा है?

उत्तर:
कवि देव ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता और सुंदरता को विभिन्न रूपों में प्रकट किया है। पूर्णिमा की चाँदनी के बीच आकाश के सौंदर्य को देखकर कवि को लगता है जैसे स्फटिक शिलाओं से सँवारकर अमृत-रूप आकाश मंदिर को निर्मित कर दिया गया हो। मंदिर के आँगन में फैली हुई चाँदनी दूध के झाग के समान प्रतीत हो रही है। चाँदनी का यह उज्ज्वल रूप दही के सागर में उमड़ता हुआ दिखाई देता है। सर्वत्र फैली हुई चाँदनी से युक्त आकाश रूपी दर्पण में चंद्र रूपी राधा का प्रतिबिम्ब प्रतीत होता है। इस प्रकार चाँदनी रात बहुत ही सुंदर प्रतीत हो रही है।

प्रश्न 4.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै' पंक्ति के द्वारा कवि देव क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर:
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’- पंक्ति में कवि देव ने बसंत को बालक रूप में चित्रण कर उसका मानवीकरण किया है। बसंत ऋतु में गुलाब सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर चटक उठते हैं। गुलाब के चटकने अर्थात् खिलने में कवि ने यह कल्पना की है कि गुलाब सवेरे-सवेर चुटकी बजाकर बसंत रूपी शिशु को जगा रहा है।

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