आओ मिलकर बचाएँ (पठित पद्यांश)

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आओ मिलकर बचाएँ (पठित पद्यांश)







1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

अपनी बस्तियों की
न होने से
शहर की आबो हवा से बचाएँ उसे
अपने चहरे पर
सथिल परगान की माटी का रंग
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
भाषा में झारखंडीयन

 प्रश्न

1. कवयित्री वक्या बचाने का आहवान करती है?
2 संथाल परगना की क्या समस्या है?
3 झारखंडीपन से क्या आशय है?
4. काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -
1. कवयित्री आदिवासी संभाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाने का आह्वान करती है।

2 संथाल परगना की समस्या है कि यहाँ कि भौतिक संपदा का बेदर्दी से शोषण किया गया है, बदले में यहाँ लोगों को कुछ नहीं मिलता। बाहरी जीवन के प्रभाव से संथाल की अपनी संस्कृति नष्ट होती जा रही है।

3. इसका अर्थ है कि झारखंड के जीवन के भोलेपन, सरलता, सरसता, अक्खड़पन, जुझारूपन गर्मजोशी के गुणों को बचाना।

4. काव्यांश में निहित संदेश यह है कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहर नदी, पर्वत, पेड़, पौधे, मैदान, हवाएँ आदि को प्रदूषित होने से बचाएँ। हमें इन्हें समृद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।

2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

ठड़ी होती दिनचय में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन जुझारूपन भी

 प्रश्न

1. आम व्यक्ति की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ा है।
2. जीवन की गर्माहट से क्या आशय है।
3. कवयित्री आदिवासियों की किस प्रवृत्ति को बचाना चाहती है।
4. मन का हरापन से क्या तात्पर्य है?

उत्तर =
1, शहरी प्रभाव से आम व्यक्ति की दिनचर्या ठहर-सी गई है। उनमें उदासीनता बढ़ती जा रही है।

2. जीवन की गरमाहट का भाशय है-कार्य करने के प्रति उत्साह, गतिशीलता।

3, कवयित्री आदिवासियों के भोलेपन, अक्खड़पन व संघर्ष करने की प्रवृत्ति को बचाना चाहती है।

4. मन का हरापन से तात्पर्य है-मन की मधुरता, सरसता व उमंग।


3. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुन्हा की धार
जगंल की ताज हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधार
फलों की ललहाहट

 प्रश्न

1. आदिवासी जीवन के विषय में बताइए।
2. भादिवासियों की दिनचर्या का अंग कौन-सी चीजें हैं?
3, कवयित्री किस किस चीज को बचाने का आहवान करती है।
4. भीतर की आग से क्या तात्पर्य है।

उत्तर -
1. आदिवासी जीवन में तीर, धनुष, कुल्हाड़ी का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी जंगल, नदी, पर्वत जैसे प्राकृतिक चीजों से सीधे तौर पर जुड़े हैं। उनके गीत विशिष्टता लिए हुए हैं।

2. भादिवासियों की दिनचर्या का अंग धनुष तीर, व कुल्हाड़ियाँ होती हैं।

३, कवयित्री जंगलों की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों के मौन, मिट्टी की खुशबू, स्थानीय गीतों द फसलों की लहलहाहट को बचाना चाहती है।

4. इसका तात्पर्य है आतरिक जोश व संघर्ष करने की क्षमता।


4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकात
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति

 प्रश्न

1. हँसने और गाने के बारे में कवयित्री क्या कहना चाहती है?
2. कवयित्री एकांत की इच्छा क्यों रखती है।
3. बच्चों, पशुओं व बूढों को किनकी आवश्यकता है?
4. कवयित्री शहरी प्रभाव पर क्या व्यंग्य करती है?

उत्तर -
1. कवयित्री कहती है कि झारखंड के क्षेत्र में स्वाभाविक हँसी व गाने अभी भी बचे हुए हैं। यहाँ संवेदना अभी पूर्णतः मृत नहीं हुई है। लोगों में जीवन के प्रति प्रेम है।

2. कवयित्री एकांत की इच्छा इसलिए करती है ताकि एकांत में रोकर मन की पीड़ा, वेदना को कम कर सके।

3. बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए हरी हरी घास तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण चाहिए।

4. कवयित्री व्यंग्य करती है कि शहरीकरण के कारण अब नाचने-गाने के लिए स्थान नहीं है, लोगों की हँसी गायब होती जा रही है, जीवन की स्वाभाविकता समाप्त हो रही है। यहाँ तक कि रोने के लिए भी एकांत नहीं बचा है।

5. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने
आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा हैं।
अब भी हमारे पास

प्रश्न

1. कवयित्री ने आज के युग को कैसा बताया है।
2. कवयित्री क्या-क्या बचाना चाहती है?
3. कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा कि बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास
4. कवयित्री का स्वर आशावादी है या निराशावादी?

उत्तर =
1. कवयित्री ने आज के युग को अविश्वास से युक्त बताया है। आज कोई एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करता।

2. कवयित्री थोड़ा सा विश्वास, उम्मीद व सपने बचाना चाहती है।

3. कवयित्री कहती हैं कि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता के सभी तत्वों का पूर्णतः विनाश नहीं हुआ है। अभी भी हमारे पास अनेक तत्व मौजूद हैं जो हमारी पहचान के परिचायक हैं।

4. कवयित्री का स्वर आशावादी है। वह जानती है कि आज घोर अविश्वास का युग है, फिर भी वह आस्था व सपनों के जीवित रखने की कआशा रखे हुए है।


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