आत्मा का ताप (पठित गद्यांश)

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आत्मा का ताप (पठित गद्यांश)






निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. मैंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं बंबई पहुँचा तब तक जे.जे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग अध्यापक को नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटुंगा नहीं, अंबई में ही अध्ययन करूगा। 

प्रश्न
1. लेखक ने नौकरी से त्यागपत्र क्यों दिया?
2. लेखक की छात्रवृत्ति वापिस लेने का कारण बताइए।
3. सरकार ने उन्हें क्या पेशकश की?

उत्तर-
1. लेखक को मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्टस में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकार की तरफ से छात्रवृत्ति मिली। इस कारण उन्होंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया।

2. लेखक को जे.जे. स्कूल में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति मिली, परंतु त्यागपत्र देने व अन्य कारणों से वह मुंबई देर से पहुँचा। तब तक इस स्कूल में दाखिले बंद हो गए थे। यदि दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा नहीं हो पाता। अतः दाखिला न लेने के कारण छात्रवृत्ति वापस ले ली गई।

3. लेखक ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और उसे जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला भी नहीं मिला। अब वह बेरोजगार था। अतः सरकार ने उसे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

2. इस सम्मान को पाने वाला में सबसे कम आयु का कलाकार था। दो बरस बाद मुझे फ्रांस सरकार को छात्रवृत्ति मिल गई। मैंने खुद को याद दिलायाः भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। मेरे पहले दो चित्र नवंबर 1943 में आट्रस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। उद्घाटन में मुझे आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि मैं जाना-माना नाम नहीं था। अगले दिन मैंने 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रदर्शनी की समीक्षा पढ़ी। 

प्रश्न
1. लेखक को कौन-सा सम्मान मिला तथा क्यों?
2. 'भगवान के घर दर हैं अधर नहीं-यह कथन किसस, किस सदर्भ में कहा?
3. लेखक ने प्रदर्शनी की समीक्षा में क्या पढ़ा?

उत्तर-
1. लेखक को 1948 ई. में बॉम्बे ऑट्रस सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। वह पुरस्कार पाने वाला सबसे कम आयु का कलाकार था।

2. यह कथन लेखक ने उस समय कहा जब बॉम्हे ऑटुस सोसाइटी द्वारा स्वर्ण पदक मिला।

3. लेखक ने प्रदर्शनी की समीक्षा 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में पढ़ी जिसमें कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लिखा था कि एस.एच, रज़ा के नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष प्रयोग की जबरदस्त समझदारी दिखती है।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

3. भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे। पहले तो कल्याण वाले घर में मेरे पास रहतें मेरी माँ का देहांत हो गया। पिता जी मेरे पास ही थे। वे मंडला लौट गए। मई 1948 में वे भी नहीं रहे। विभाजन की त्रासदी के बावजूद भारत स्वतंत्र था। उत्साह था, उदासी भी थी। जीवन पर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। हम युवा थे। मैं पच्चीस बरस का था, लेखकों कवियों, चित्रकारों की संगत थी। हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं। और सभी अपने अपने क्षेत्रों में, अपने माध्यम में सामय भर बढ़िया काम करने में जुट गए। देश का विभाजन, महात्मा गांधी की हत्या क्रूर घटनाएँ थीं। व्यक्तिगत स्तर पर, मेरे माता पिता की मृत्यु भी ऐसी ही क्रूर घटना थी। हमें इन क्रूर अनुभवों को आत्मसात करना था। हम उससे उबर काम में जुट गए। 

प्रश्न
1.1947 व 1948 में कौन-कौन-सी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई?
2. लेखक के साथ व्यक्तिगत रूप से कौन सी दुखद घटनाएँ घर्टी?
3. घटनाओं को आत्मसात करने से लखक का क्या अभिप्राय हैं?

उत्तर-
1. 1947 में वर्षों की गुलामी के बाद भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ। भारत का विभाजन कर दिया गया था। 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। ये दोनों घटनाएँ राष्ट्र पर गहरा प्रभाव डालने वाली थीं।

2. लेखक की माता की मृत्यु 1947 में हुई। उसके पिता साध रहते थे, परंतु माता की मृत्यु के बाद वे मंडला चले गए। 1948 ई. में उनकी भी मृत्यु हो गई। अतः सारी जिम्मेदारियाँ लेखक के कंर्धा पर अचानक आ पड़ी।

3, 1947 में देश को आजादी मिली, परंतु विभाजन की पीड़ा के साथ। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। लेखक के ऊपर भी जिम्मेदारियों आ गई, क्योंकि माता-पिता दोनों का अचानक निधन हो गया। घर व देश दोनों जगह अव्यवस्था थी। अतः इन सभी घटनाओं को आत्मसात यानी चुपचाप सहन करके ही आगे बढ़ा जा सकता था।

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4. 1948 मैं मैं श्रीनगर गया, वहाँ चित्र बनाए। ख्वाज़ा अहमद अब्बास भी वहीं थे। कश्मीर पर कबायली आक्रमण हुआ, तब तक मैंने तय कर लिया था कि भारत में ही रहूँगा। में श्रीनगर से आगे बारामूला तक गया। घुसपैठियों ने बारामूला को ध्वस्त कर दिया था। मेरे पास कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का पत्र था, जिसमें कहा गया था कि यह एक भारतीय कलाकार हैंइन्हें जहाँ चाहे वहां जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए। एक बार मैं बस से बारामूला से लौट रहा था या वहाँ जा रहा था तो स्थानीय कश्मीरियों के बीच मुझ पैटधारी शहराती को देखकर एक पुलिसवाले ने मुझे बस से उतार लिया। मैं उसके साथ चल दिया। उसने पूछा, 'कहाँ से आए हो? नाम क्या है?" मैंने बता दिया कि मैं रज़ा हैं, बंबई से आया हूँ। शेख साहब की चिट्ठी उसे दिखाई। उसने सलाम ठोंका और परेशानी के लिए माफी माँगता हुआ चला गया। 

प्रश्न
1. 1949 ई में कश्मीर में क्या घटना घटीं?
2. लेखक ने क्या तया किय?
3. रजा को मिले पत्र में क्या लिखा था।

उत्तर-
1. 1948 ई. में कश्मीर पर कबायली हमला हुआ। उन्होंने बारामूला को तहस-नहस कर दिया था। उस समय रज़ा श्रीनगर में था।

2. कबायली हमले को देखकर रज़ा ने निर्णय किया कि वह पाकिस्तान के बजाय भारत में रहेगा। यह देश विभाजन के पक्ष में नहीं था।

3. रज़ा को तत्कालीन कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का पत्र मिला था। इसमें लिखा था कि यह एक भारतीय कलाकार हैं, इन्हें जहाँ चाहे वहीं जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

5. श्रीनगर की इस यात्रा में मेरी भेंट प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-बेस से हुई। मेरे चित्र देखने के बाद उन्होंने जो टिप्पणी की यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा, तुम प्रतिभाशाली हो, लेकिन प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों को लेकर में संदेहशील हैं। तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है-आधार, नव दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है। मैं कहूंगा कि तुम सेज़ का काम ध्यान से देखो। इन टिप्पणियों का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा। बंबई लौटकर मैंने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रांसे में दाखिला ले लिया। फ्रेंच पेंटिंग में मेरी खासी रुचि थी, लेकिन मैं समझना चाहता था कि चित्र में रचना या बनावट वास्तव में क्या होगी। 

प्रश्न
1. श्रीनगर में लेखक की मुलाकात किससे हुई? वह लेखक के लिए महत्वपूर्ण कैसे थी ।
2. लखक की चित्रकला में क्या कमी भी?
3. लेखक को श्रीनगर की यात्रा से क्या प्रेरणा मिली ?

1. श्रीनगर में लेखक की मुलाकात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए ब्रेस से हुई। उसने लेखक के चित्रों को देखा तथा उन पर टिप्पणी की। उसने कहा कि तुम प्रतिभाशाली हो, परंतु उसमें निखार नहीं आया है। तुम्हारे चित्रों में रंग, 'भावना है, परंतु रचना नहीं है। तुम्हें सेज़ों का काम देखना चाहिए।

2. लेखक की चित्रकला में रचना पक्ष की कमी थी। जिस प्रकार इमारत की रचना में आधार नींव दीवार, बीम, छत आदि की भूमिका होती है, उसी प्रकार लेखक के चित्रों में आधार की कमी थी।

3. लेखक को श्रीनगर की यात्रा से यह प्रेरणा मिली कि उसने बंबई लौटते ही अलमस फ्रांस में दाखिला लिया ताकि फ्रेंच भाषा सीख राके। उसे फ्रेंच पेंटिंग में खासी रुचि थी, परंतु वह बनावट या रचना को समझना चाहता था।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

6. मैंने धृष्टता से उन्हें बताया कि 'बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीखा मेरे मन में शायद युवा मित्रों को यह संदेश देने की कामना है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो खुद कुछ करो। जरा देखिए, अच्छे खासे संपन्न परिवारों के बचे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं। और यहाँ हम बेचैनी से भरे, काम किए जाते हैं। मैं बुखार से छटपटाता-सा, अपनी आत्मा, अपने चित्त को संतप्त किए रहता हूँ। मैं कुछ ऐसी बात कर रहा हैं जिसमें खार्मी लगती है। यह बहुत गजब की बात नहीं है, लेकिन मुझमें काम करने का संकल्प है। भगवद् गीता कहती है, जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है।' बचपन, जीवन का पहला चरण, एक जागृति है। लेकिन मेरे जीवन का बंबईवाला दौर भी जागृति का चरण ही था। 

प्रश्न
1. लेखक युवा मित्रों को क्या सर्देश देता है?
2. लेखक अपने चित्त को क्यों सतपत किए रहता हैं?
३. भगवद् गीता का सर्देश क्या है?

उत्तर-
1. लेखक युवा मित्रों के संदेश देता है कि उन्हें काम करना चाहिए। उन्हें कुछ घटने का इंतजार नहीं करना चाहिए। हाथ पर हाथ धरे रखना मूर्खता है।

2. लेखक सच्चा कलाकार है। उसकी आत्मा निरंतर नया करने के लिए व्याकुल रहती है। उसका कलाकार मन बुखार से पीड़ित व्यक्ति की तरह छटपटाता है।

3. भगवद्गीता का संदेश है-जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है। अर्थात् संघर्ष के बिना उन्नति नहीं हो सकती। अगर जीवन में उन्नति और सफलता का स्वाद चखना है तो उसे संघर्ष के पथ पर चलना ही होगा।


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