आत्मपरिचय, दिन जल्दी जल्दी ढलता है (पठित काव्यांश)

1

आत्मपरिचय (पठित काव्यांश)






निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.

मैं जग - जीवन का भार लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ।
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।

मैं स्नेह सुरा का पान किया करता हूँ।
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ
जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।

प्रश्न
(क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं। ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?
(ख) स्नेह-सुरा से कवि का क्या आशय हैं।
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।
(घ) 'साँसों के तार' से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा?

उत्तर -
(क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का आशय है- सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।

(ख) स्नेह सुरा से आशय है प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।

(ग) 'जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते' का आशय है-यह संसार उन लोगों की स्तुति करता है जो संसार के अनुसार चलते हैं और उसका गुणगान करते है।

(घ) 'साँसों के तार' से कवि का तात्पर्य है-उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है। मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।

प्रश्न 2.

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ।
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्न का संसार लिए फिरता हूँ।

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ।
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ
जग भव सागर तरने की नाव बनाए
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

प्रश्न
(क) कवि के हृदय में कौन सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यथित क्यों है?
(ख) 'निज उर के उद्गार व उपहार' से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट कीजिए
(ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
(घ) संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?

उत्तर -
(क) कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है।

(ख) 'निज उर के उद्गार का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है। निज उर के उपहार से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है।

(ग) कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसके दृष्टिकोण के अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।

(घ) संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य को हंसते हुए जीना चाहिए।

प्रश्न 3.

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ
उन्माद में अवसाद लिए फिरता हूँ।
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हैं।

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं हैं है, हाय! जहाँ पर दाना
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे
मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना

प्रश्न
(क) 'यौवन का उन्माद' का तात्पर्य बताइए।
(ख) कबि की मनःस्थिति कैसी है?
(ग) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं।
(घ) कवि सीखे ज्ञान को क्यों भूला रहा है?

उत्तर
(क) कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अतः वह निराश भी है।

(ख) कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।

(ग) कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।

(घ) कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती, जिससे वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।

प्रश्न 4.

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता।

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।

प्रश्न
(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं?
(ख) कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति हैं?
(ग) 'शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ' से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं।

उत्तर -
(क) कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मर्जी के संसार बनाता व मिटाता है।

(ख) कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं।

(ग) उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।

(घ) कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 5. 


मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए
मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवाना।

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ।
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ
जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।

प्रश्न
(क) कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?
(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(घ) कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?

उत्तर -
(क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है।

(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।

(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती है।

(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है।



दिन जल्दी जल्दी ढलता है (पठित काव्यांश)



प्रश्न 1.

हो जाए न पथ में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थक दिन का पथी भी जल्दी जल्दी चलता है
दिन जल्दी जल्दी ढोलता हैं।

प्रश्न
(क) 'हो जाए न पथ में' यहाँ किस पथ की ओर कवि ने सकेत किया हैं?
(ख) पथिक के तेज चलने का क्या कारण हैं?
(ग) कवि दिन के बारे में क्या बताता हैं?

उत्तर -
(क) हो जाए न पथ में-के माध्यम से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है।

(ख) पधिक तेज इसलिए चलता है क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।

(ग) कवि कहता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।

प्रश्न 2.

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

प्रश्न
(क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?
(ख) चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई हैं?
(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण हैं?
(घ) इस अशा से किस मानव-सत्य को दशाया गया है?

उत्तर -
(क) बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़िया (माँ) के पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी।

(ख) कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है जब बच्चे माँ बाप की प्रतीक्षा में अपने घरों से झाँकने लगते हैं।

(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चिंता में बेचैनी हो जाती है। वे अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व सुरक्षा देना चाहती हैं।

(घ) इस अंश से कवि माँ के वात्सल्य भाव का सजीव वर्णन कर रहा है। वात्सल्य प्रेम के कारण मातृमन आशंका से भर उठता है।


प्रश्न 3.

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता हैं।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

प्रश्न
(क) कवि के मन में कौन से प्रश्न उठते हैं?
(ख) कवि की व्याकुलता का क्या कारण हैं?
(ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं।
(घ) 'मैं होऊँ किसके हित चचल?' का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -
(क) कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं-
(i) उससे मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है?
(ii) वह किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए?

(ख) कवि के हृदय में व्याकुलता है क्योंकि वह अकेला है। प्रिया के वियोग की वेदना इस व्याकुलता को प्रगाढ़ कर देती है। इस कारण उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।

(ग) कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी उत्साह नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।

(घ) 'मैं होऊ किसके हित चंचल' का आशय यह है कि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन बिता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वह किसके लिए बेचैन होकर घर जाने की चंचलता दिखाए।


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