भक्तिन (पठित गद्यांश)
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1:
सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है। नाम है- लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं।
प्रश्न:
1. भक्तिन के सदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों हुआ हैं?
2. भक्तिन के नाम और उसके जीवन में क्या विरोधाभास था?
3. जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता हैं"-अपने आस-पास के जगत से उदाहरण देकर प्रस्तुत कथन की पुष्टि कीजिए।
4. भक्तिन ने लेखिका से क्या प्रार्थना की ? और क्यों ?
उत्तर -
1. भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।
2 भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था जो वैभव, सुख, संपन्नता आदि का प्रतीक है, जबकि भक्तिन की अपनी वास्तविक स्थिति इसके ठीक विपरीत थी। वह अत्यंत गरीब, दीन-हीन महिला थी, जिसे वैभव, सुख आदि से कुछ लेना-देना न था। यही उसके नाम और जीवन में विरोधाभास था।
3. लेखिका का मानना है कि नाम व गुणों में साम्यता अनिवार्य नहीं है। अकसर देखा जाता है कि नाम और गुणों में बहुत अंतर होता है। 'शांति' नाम वाली लड़की सदैव झगड़ती नजर आती है, जबकि 'गरीबदास' के पास धन की कमी नहीं होती।
4. लेखिका ने भक्तिन को इसलिए समझदार माना है क्योंकि भक्तिन अपना असली नाम बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती। उस जैसी दीन महिला का नाम 'लक्ष्मी' सुनकर लोगों को हँसने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न 2:
पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। 'हाय लछमिन अब आई की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिह्न शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।
प्रश्न:
1. भक्तिन की विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार देर से क्यों भेजा?
2. सास ने लछमिन को क्या बहाना बनाकर मायके भेजा? और क्यों?
3. गाँव में जाकर लछमिन को कैसा व्यवहार मिला?
4. भक्तिन ने पितृशोक किस प्रकार जताया?
उत्तर -
1. लछमिन से पिता को अगाध प्रेम था। इस कारण विमाता उससे ईष्या करती थी। दूसरे, लछमिन इकलौती संतान थी। इसलिए पिता की संपूर्ण संपत्ति की वह हकदार थी। विमाता उस संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहती थी। अतः विमाता ने पिता की मरणांतक बीमारी का समाचार लछमिन को देर से दिया।
2 सास ने लछमिन को यह कहकर विदा किया कि 'तू बहुत दिन से अपने पिता के घर नहीं गई। इसलिए वहाँ जाकर उन्हें देख आ'। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अपने घर में रोने-पीटने के अपशकुन से बचना चाहती थी।
3. गाँव जाकर लछमिन को पता चला कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। लोगों की शिकायतें व सहानुभूति उसे मिली। घर में विमाता ने उससे सीधे मुँह बात नहीं की। अत: वह दुख व अपमान से पीड़ित होकर घर लौट आई।
4. मायके से घर आकर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर पिता के वियोग की व्यथा व्यक्त की।
प्रश्न : 3
जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख हीं अधिक है। जब उसने गेहूंए रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काकभुशडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया।
प्रश्न
1. भक्तिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में ऐसा क्या हुआ जिसके कारण उसकी उपेक्षा शुरू हो गई?
2. लेखिका की राय में भक्तिन की उपेक्षा उचित थी या नहीं?
3. जेठानियों को सम्मान क्यों मिलता था।
4. छोटी बहू कौन थीं? उसने कौन-सा अपराध किया था?
उत्तर =
1, भक्तिन ने जीवन के दूसरे परिच्छेद में एक-के-बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया। इस कारण सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा शुरू कर दी।
2, लेखिका ने यह बात व्यंग्य में कही है। इसका कारण यह है कि भारतीय समाज में उसी स्त्री को सम्मान मिलता है जो पुत्र को जन्म देती है। लड़कियों को जन्म देने वाली स्त्री को अशुभ माना जाता है। भक्तिन ने तो तीन लड़कियों को जन्म दिया। अतः उसकी उपेक्षा उचित ही थी।
3. जिठानियों ने काकभुशंडी जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया था। इस कार्य के बाद वे पुरखिन पद की दावेदार बन गई थीं।
4. छोटी बहू लछमिन थी। उसने तीन लड़कियों को जन्म देकर घर की पुत्र जन्म देने की लीक को तोड़ा था।
प्रश्न 4
इस दंड विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-फूटी जाती, पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगोझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसने छाँट-छाँट कर, ऊपर से असंतोष की मुद्रा के साथ और भीतर से पुलकित होते हुए जो कुछ लिया, वह सबसे अच्छा भी रहा, साथ ही परिश्रमी दंपति के निरंतर प्रयास से उसका सोना बन जाना भी स्वाभाविक हो गया।
प्रश्न
1. यहाँ दंङ-विधान की बात किसके संदर्भ में कही जा रहीं हैं? और क्यों?
2. 'खोटे सिक्कों की टकसाल' किसे और क्यों कहा गया है।
3, चुगली चबाई की परिणति उसके पत्नी प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी।' स्यष्ट कजिए
4, भक्तिन को अलग होते समय सबसे अच्छा भाग कैसे मिला? इसका परिणाम क्या रहा?
उत्तर -
1. यहाँ दड-विधान की बात लछमिन के संदर्भ में की जा रही है। इसका कारण यह है कि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया, जबकि जेठानियों के सिर्फ पुत्र थे। अत: उसे दंड देने की बात हो रही थी।
2. 'खोटे सिक्कों की टकसाल' लछमिन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। भारत में लड़कियों को खोटा सिक्का' कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।
3. इसका अर्थ यह है कि भक्तिन की सास व जेठानियाँ सदैव उसकी चुगली उसके पति से करती रहती थीं ताकि उसकी पिटाई हो, परंतु इसका प्रभाव उलटा होता था।
4, भक्तिन को पशु, जमीन व पेड़ों की सही जानकारी थी। इसी ज्ञान के कारण उसने हर चीज़ को छाँटकर लिया। उसने पति के साथ मिलकर मेहनत कर जमीन को सोना बना दिया।
प्रश्न 5:
भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका गठबंधन हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अतः यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगे और 'मान न मान मैं तेरा मेहमान' की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार पति की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे।
प्रश्न:
1. भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था? उसे हठी क्यों कहा गया है?
2. जेठों और जिठौतों को आशा की कौन - सी किरण दिखाई दी ?
3. जिठौत किसके लिए विवाह का प्रस्ताव लाया ? उसका क्या हस्र हुआ ?
4 'बर की पदवी पर अभिषिक्त करने का-क्या आशय हैं?
उत्तर =
1. भक्तिन का दुर्भाग्य यह था कि उसकी बड़ी लड़की किशोरी से युवती बनी ही थी कि उसका पति मर गया। वह असमय विधवा हो गई। दुर्भाग्य को हठी इसलिए कहा गया है क्योंकि बेटी के विधवा होने के दुख से पहले भक्तिन को बचपन से ही माता का बिछोह, अल्पायु में विवाह, विमाता का दंश, पिता की अकाल मृत्यु व असमय पति की मृत्यु से जीवन में अनेक कष्ट सहने पड़े।
2. जेठ और जिठौत भक्तिन की जायदाद पर नजर रखे हुए थे। इस कार्य में वे अभी सफल नहीं हुए थे। भक्तिन के उत्तराधिकारी दामाद को आकस्मिक मृत्यु से उन्हें अपनी मनोकामना सफल होती नजर आई।
3. जिठौत भक्तिन की विधवा लड़की के पुनर्विवाह के लिए अपने तीतर लड़ाने वाले साले का प्रस्ताव लाया। इस विवाह के बाद भक्तिन की सारी संपत्ति जिठौत के कब्जे में आ जाती। जिठौत के विवाह-प्रस्ताव को भक्तिन की लड़की ने नापसंद कर दिया। बाहर से बहनोई से चचेरे भाइयों को फायदा नहीं मिलता। अतः विवाह प्रस्ताव असफल हो गया।
4 भक्तिन के जेठ व जिठौत किसी भी तरीके से अपने किसी संबंधी का विवाह विधवा लड़की से कराकर संपत्ति पर कब्जा करना चाहते थे। यह वर की योग्यता का प्रश्न नहीं था। यहाँ सिर्फ शादी का मामला था।
प्रश्न 6
तीतरबाज युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दूध का दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे इन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे; अब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने होंठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी सब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।
प्रश्न:
1. युवती व तीतरबाज युवक ने अपने अपने पक्ष में क्या तर्क दिए?
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण क्या माना? उन्होंने क्या फैसला किया?
३. नए दामाद का स्वागत कैसे हुआ? इस बेमेल विवाह का क्या परिणाम हुआ?
4 भक्तिन को शहर क्यों आना पड़ा?
उत्तर -
1. तीतरबाज युवक ने अपने पक्ष में कहा कि उसे भक्तिन की बेटी ने ही अंदर बुलाया था, जबकि युवती का कहना था कि उसने जबरदस्त विरोध किया। इसका प्रमाण युवक के मुँह पर छपी उसकी पाँचों औगुलियाँ हैं।
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण कलियुग को माना। उन्होंने निर्णय किया कि चाहे कोई सच्चा है या झूठा, पर कुछ समय के लिए पति-पत्नी के रूप में रहे। इस स्थिति में इन्हें आजीवन पति-पत्नी के रूप में ही रहना पड़ेगा। .
3. पंचायत के फैसले पर भक्तिन व उसकी बेटी खून का घूँट पीकर रह गई। लड़की ने अपमान के कारण होंठ काटकर खून निकाल लिया तथा माँ ने क्रोध से जबरदस्ती के दामाद को देखा। इस बेमेल विवाह से उत्पन्न क्लेश के कारण खेत, पशु आदि सब का सर्वनाश हो गया। अंत में लगान अदा करने के पैसे भी न रहे।
4. नए दामाद के आने से घर में क्लेश बढ़ा। इस कारण खेती-बारी चौपट हो गई। लगान अदा न करने पर जमींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। इस अपमान व कमाई के विचार से भक्तेिन शहर आई।
प्रश्न: 7
दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औधाकर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फुटते हुए सूर्य और पीपल का दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। अपने भोजन के संबंध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक-विद्या के लिए परिवार में प्रख्यात हूँ और कोई भी पाक कुशल दूसरे के काम में नुक्तानीनी बिना किए रह नहीं सकता। पर जब छूत-पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का बात-बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के सामने दुर्लंघ्य हो उठी। निरुपाय अपने कमरे में बिछौने में पड़कर नाक के ऊपर खुली हुई पुस्तक स्थापित कर मैं उसी अनाधिकारी को भूलने का प्रयास करने लगी।
प्रश्न
1. नौकरी मिलने के दूसरे दिन भक्तिन ने क्या काम किया?
2. लेखिका को भक्तिन से निपटना टेढ़ी खीर क्यों लगा ?
3 लेखिका के लिए कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा कैसे बन गई?
4. अनाधिकारी को भूलने से लेखिका का क्या अभिप्राय है?
उत्तर =
1. नौकरी मिलने पर भक्तिन दूसरे दिन सबसे पहले नहाई, फिर उसने लेखिका द्वारा दी गई धुली धोती जल के छींटों से पवित्र करके पहनी और उगते सूर्य व पीपल को जल अर्पित किया। फिर उसने दो मिनट तक नाक दबाकर जप किया और कोयले की मोटी रेखा से रसोईघर की सीमा निश्चित की।
2. लेखिका को भक्ति से निपटना टेढ़ी खीर लगा क्योंकि उसे पता था कि भक्तिन जैसे लोग पक्के इरादों के होते हैं। ऐसे लोगों के कार्य में बाधा होने पर ये खाना-पीना छोड़कर जान देने तक को तैयार रहते हैं।
3. भक्तिन धार्मिक प्रवृत्ति की औरत थी। वह रसोई के मामले में बेहद पवित्रता रखती धी। रसोई बनाते समय वह कोयले से मोटी रेखा खींच देती थी ताकि बाहरी व्यक्ति प्रवेश न कर सके। स्वयं लेखिका का प्रवेश भी वर्जित था। यदि वह रेखा का उल्लंघन करती तो भक्तिन जैसे लोग भूखे मरने को तैयार हो जाते हैं। अतः कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा जैसी बन गई थी।
4. लेखिका को अभी तक भक्तिन की पाक कला का ज्ञान नहीं था। उसे संशय था कि वह उसकी पसंद का खाना बना पाएगी या नहीं। भक्तिन स्वच्छता के नाम पर उसे रसोई में घुसने नहीं दे रही थी। इस कारण लेखिका को लगा कि शायद उसने किसी अनाधिकारी को प्रवेश दिया, किन्तु अब कोई उपाय न था। अतः वह उसे भूलकर किताब में ध्यान लगाने लगी।
प्रश्न : 8
भोजन के समय जब मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और आत्मतुष्टि से आप्लावित मुस्कुराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखकर उसे टेडी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुषारपात करते हुए मरे भाव से कहा-'यह क्या बनाया है?' तब वह हतबुद्धि हो रही।
प्रश्न
1. भत्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता और आत्मतुष्टि के भाव क्यों ?
2. लेखिका द्वारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने क्या परोसा ?
3 लेखिका ने क्या प्रतिक्रिया जाहिर की ?
4. लेखिका की प्रतिक्रिया का भक्तिन पर क्या असर हुआ ?
उत्तर =
1. लेखिका ने भक्ति की धार्मिक प्रवृत्ति और पवित्रता को स्वीकार लिया था। उसने भक्तिन द्वारा खींची गई रेखा का उल्लंघन भी नहीं किया। यह देखकर भक्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता तथा आत्मतुष्टि के भाव थे।
2. लेखिका द्वारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने प्रसन्नता के साथ फूल की थाली में एक तरफ एक अंगुल मोटी व गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रख और दूसरी तरफ थाली टेढ़ी करके गाढ़ी दाल परोस दी।
3. मोटी-मोटी रोटियाँ देखकर लेखिका ने रुआंसे भाव से उससे पूछा कि तुमने यह क्या बनाया है?
4. लेखिका की प्रतिक्रिया जानकर भक्तिन की प्रसन्नता खत्म हो गई और वह हतबुद्धि हो गई तथा बहाने बनाने लगी।
प्रश्न :9
मेरे इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये, भंडार-घर की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है। पर, उस संबंध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्कशिरोमणि के लिए संभव नहीं यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है। उसके जीवन का परम कर्तव्य ने मुझे प्रसन्न रखा है। जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा।
प्रश्न:
1. अनुछेद किसके बारे में हैं? किस रहस्य के बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती हैं?
2. इधर-उधर बिखरे रुपये-पैसों का भक्तिन जो कुछ करती हैं, क्या आप उसे चोरी मानेंगे? क्यों?
3. महादेवी जी को सच न बताकर इधर-उधर की बातें बताने को वह झूठ क्यों नहीं मानती?
4 भक्तिन का परम कर्तव्य क्या था। वह इसे कैसे पूरा करती थी?
उत्तर -
1. अनुच्छेद भक्तिन के बारे में है। भक्तिन चोरी के पैसे कहाँ और कैसे रखती है, इसके बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती है।
2. इधर उधर बिखरे रुपये पैसों का भक्ति जो कुछ करती है, उसे हम चोरी मानेंगे। इसका कारण यह है कि वह घर में नौकरी करती है। घर की किसी वस्तु पर उसका स्वामित्व नहीं है। पैसे या अन्य सामान मिलने पर उसका दायित्व यह है कि वह उन चीजों को घर के मालिक को दे। ऐसा न करने पर उसका कार्य चोरी के अतर्गत आता है।
3. लेखिका की शैली व्यंग्यपूर्ण है। वे भक्तिन को प्रत्यक्ष तौर पर चोर नहीं कहतीं, परंतु प्रत्यक्ष तौर पर अपनी सारी बात कह देती हैं। चोरी पकड़े जाने पर चोर अपने बचाव में आधारहीन अनेक तर्क देता है। इन सब बातों को लेखिका व्यंग्यात्मक शैली में कहती हैं।
4 भक्तिन का परम कर्तव्य था लैखिका को हर प्रकार से खुश रखना। इसके लिए वह उन बातों से बचती थी, जिससे लेखका को क्रोध आता हो। वह हर बात का जवाब वाक्पटुता से देती थी।
प्रश्न 10:
पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है।
प्रश्न:
1. भक्तिन किससे क्या आग्रह करती है?
2. भक्तिन किस बात में अपनी हीनता मानती हैं?
3. भक्तिन अन्य व्यक्तियों से किस प्रकार अधिक बुद्धिमान प्रमाणित होती है ?
उत्तर -
1. भक्तिन लेखिका से आग्रह करती है कि वह उसे कुछ काम करने को बताए।
2. भक्तिन इस बात में अपनी हीनता मानती है कि वह महादेवी की चित्रकला और कविता लिखने के दौरान किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती।
3. अन्य व्यक्ति लेखन या चित्रकारी में सहायता करने के विषय में सोचते हैं, परंतु भक्तिन सदैव लेखिका के सामने बैठकर कुछ-न-कुछ क्रियात्मक सहयोग देती रहती थी। अन्य लोग जहाँ लेखिका का हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे, वहीं भक्तिन सदैव उनके सामने बैठकर सहयोग करती थी। इससे सिद्ध होता है कि वह अन्य लोगों से बुद्धमान थी।
प्रश्न 11:
इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उद्भासित हो उठती है जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी है। किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।
प्रश्न:
1. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन कैसे अपनी प्रसन्नता प्रकट करती थी ?
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे कैसे देखती थी?
3. भक्तिन लेखिका को किस प्रकार भूख का कष्ट नही सहने देती थी?
4. अनपढ़, भक्तिन को लेखिका की नवप्रकाशित पुस्तकों से निराश नहीं होना पड़ता था - स्पष्ट कीजिए?
उत्तर -
1. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मुख से प्रसन्नता ऐसे प्रकट हो जाती थी जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा प्रकाश उद्भासित हो जाता है।
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन बहुत प्रसन्न होती थीं। अकेले में वह उसे बार-बार छूती थी। उसे आँखों के समीप ले जाकर तथा चारों तरफ घुमाकर अपनी सहायता का अंश खोजती थीं।
3. जब लेखिका चित्र को पूरा करने में व्यस्त रहती थी तब भक्तिन कभी दही का शर्बत तो कभी कभी तुलसी की चाय बनाकर लेखिका को देती थी। इस तरह वह लेखिका को भूख का कष्ट नहीं रहने देती थी।
4. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन पुस्तक को चारों ओर से छूकर तथा अपनी आँखों के समीप लाकर असीम आनंद की अनुभूति करती थी। इस तरीके से वह अपनी सहायता का अंश खोजती थी। उसकी नजरों से आत्मतुष्टि की झलक मिलती थी। इससे लगता है कि भक्तिन को निराश नहीं होना पड़ता।
प्रश्न 12:
मेरे भ्रमण की भी एकांत साथिन भक्तिन ही रही है। बदरी-केदार आदि के ऊँचे नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते में जैसे वह हठ करके मेरे आगे चलती रही है, वैसे ही गाँव की धूलभरी पगडंडी पर मेरे पीछे रहना नहीं भूलती। किसी भी समय, कहीं भी जाने के लिए प्रस्तुत रहती हैं। भक्तिन को छाया के समान साथ पाती हैं। देश की सीमा में युद्ध को बढ़ते देखकर जब लोग आतंकित हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर बुलाने आ पहुँचे, पर बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उनके साथ नहीं जा सकी। सबको वह देख आती है; रुपया भेज देती है; पर उनके साथ रहने के लिए मेरा साथ छोड़ना आवश्यक है; जो संभवतः भक्तिन को जीवन के अंत तक स्वीकार न होगा।
प्रश्न:
1. पहाड़ी तंग रास्त पर भक्तिन महादेवी के आगे क्यों चलती थी?
2. गाँव की पगडंडी पर महादेवी के पीछे भक्तिन के चलने का कारण बताइए।
3. युदध के दिनों में भक्तिन गाँव क्यों नहीं गई?
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन का व्यवहार कैसा था?
उत्तर -
1. भक्तिन महादेवी की सच्ची सेविका थी। पहाड़ों के तंग व ऊँचे-नीचे रास्तों पर वह हठ करके महादेवी के आगे चलती थी ताकि आगे आने वाले खतरे को वह स्वयं उठा ले।
2. गाँव की पगडंडी धूलभरी होती है। व्यक्ति के पीछे चलने वाले व्यक्ति को धूल सहनी पड़ती है। यही कारण है कि भक्तिन महादेवी के पीछे चलती थी ताकि चलने से धूल उड़ने पर वह उसे स्वयं सहन कर ले।
3. युद्ध के दिनों में सभी लोग आतंकित थे। भक्तिन के दामाद-बेटी व नाती उसे लेने के लिए आए, परंतु वह उनके साथ नहीं गई क्योंकि वह महादेवी को अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन के संबंध मात्र औपचारिक थे। वह उन्हें रुपया भेज देती थी, कभी-कभी सबको देख आती थी, परंतु वह उनके साथ रहना पसंद नहीं करती थीं।
प्रश्न 13:
गत वर्ष जब युद्ध के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी रखने के मचान पर अपनी नयी धोती बिछाकर मेरे कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें गाड़कर और उन पर तख्ते रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उस पर अपना कंबल बिछाकर वह मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याहीं आदि को नयी हंड़ियों में सँजोकर रख देगी और कागज-पत्र को छींके में यथाविधि एकत्र कर देगी।
प्रश्न:
1. लेखिका और भक्तिन में आप किसे अधिक साहसी मानते है और क्यों ?
2. लेखिका के मन में क्या प्रवृत्ति आई? उसका कारण क्या था ?
3. भक्तिन ने लेखिका से क्या आग्रह किया?
4. भक्तिन ने उन्हें क्या क्या कार्य करने का आश्वासन दिया !
उत्तर -
1. लेखिका और भक्तिन दोनों में मैं भक्तिन को अधिक साहसी मानता हूँ क्योंकि युद्ध का डर लेखिका को विचलित कर गया परंतु भक्तिन को नहीं। इस डर से लेखिका अन्यत्र रहने को तैयार हो गई।
2. लेखिका के मन में पलायन प्रवृत्ति आई। इसका कारण युद्ध का भूत था।
3. भक्तिन ने पहली बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ लेखिका से गाँव चलने का अनुरोध किया।
4. भक्तिन ने लेखिका को निम्नलिखित कार्य करने का आश्वासन दिया-
# लकड़ी रखने के मचान पर नयी धोती बिछाकर कपड़े रखना।
# दीवार में कीलें गाड़कर व उन पर तख्ते रखकर किताबें रखना।
# सोने के लिए धान के पुआल का गोदरा (बिस्तर) बनवाकर उस पर कंबल बिछाना।
# रंग, स्याही आदि को नयी हंड़ियों में रखना।
# कागज-पत्रों को सही तरीके से छींके में रखना।
प्रश्न 14:
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है; क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है।
प्रश्न:
1. उपर्युक्त गदयांश में किनके स्वामी सेवक संबंधों की चर्चा की गई है? उन संबंधों की क्या विशेषता बताई गई है?
2. लेखिका के लिए आँगन में फूलने वाला गुलाब और आम सेवक क्यों नहीं है? क्या यह बात भक्तिन पर भी लागू होती है?
3. आम और गुलाब किन रूपों में लेखिका से सुख-दुःख के कारण है और क्यों ?
4. भक्तिन का लेखिका के साथ किस प्रकार का संबंध है?
उत्तर -
1. उपर्युक्त गद्यांश में लेखिका और भक्तिन के संबंध की चर्चा की गई है। इन दोनों में मालकिन और सेविका का संबंध नहीं है। भक्तिन ने लेखिका को अपनी संरक्षिका मान लिया है। लेखिका भी उसे अपने परिवार का सदस्य मानती है।
2. लेखिका के लिए आँगन में फूलने वाला गुलाब व आम सेवक नहीं हैं। इसका कारण यह है कि ये हमें सुख देते हैं, परंतु हमसे कोई अपेक्षा नहीं रखते। इनका अपना अस्तित्व है। भक्तिन पर भी यह बात लागू होती है।
3 आम और गुलाब का स्वतंत्र अस्तित्व है। ये लेखिका के सुख-दुख के साझीदार हैं। ये फल व फूल प्रदान करके सुख की अनुभूति कराते हैं तथा काँटों व पत्तों के बिखराव से कष्ट भी उत्पन्न करते हैं।
4. भक्तिन लेखिका को अपना संरक्षक मानती है। वह उसे छोड़ने की सोच भी नहीं सकती। महादेवी ने भी उसे उसी रूप में स्वीकार किया है।
''mahadevi ke sath bhaktin kitne samaye se rah rhi h'', yah puche jane par uska kya jawab hota tha,yah uttar kitna uchit tha
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